उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के अहिरौली थानाक्षेत्र का एक गांव है शंभूपुर दमदियावन. इसी गांव में हरिदास यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे संतोष यादव और विनोद यादव. संतोष बड़ा था. अपनी मेहनत और लगन की बदौलत वह सन 2015 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हो गया था. उस की पहली पोस्टिंग चंदौली जिले के चकिया थाने में हुई थी. नौकरी लग जाने पर घर वाले भी बहुत खुश थे. जब लड़का कमाने लगा तो घर वालों ने उस का रिश्ता भी तय कर दिया.
30 दिसंबर, 2017 को उस का बरच्छा था, इसलिए वह एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव आया था. बरच्छा का कार्यक्रम सकुशल संपन्न हो गया था. अगली सुबह 8 बजे के करीब संतोष अपने 2 दोस्तों राहुल यादव और सुरेंद्र के साथ टहलते हुए गांव से बाहर की ओर निकला. शादी को ले कर राहुल और सुरेंद्र दोनों ही संतोष से हंसीमजाक कर रहे थे, तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया.
संतोष ने अपने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो वह नंबर उस के किसी परिचित का निकला. काल रिसीव कर के उस ने उस से बात करनी शुरू की. अपने दोनों दोस्तों से वहीं रुकने और थोड़ी देर में लौट कर आने की बात कह कर वह वहां से चला गया. संतोष के इंतजार में राहुल और सुरेंद्र वहां काफी देर तक खड़े रहे. जब 2 घंटे बाद भी वह नहीं लौटा तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर लौट गए कि हो सकता है संतोष अपने घर चला गया हो.
संतोष के यहां मांगलिक कार्यक्रम था. घर में मेहमान आए हुए थे. दोस्तों ने सोचा कि हो सकता है वह उन के सेवासत्कार में लग गया हो और उसे लौटने का समय न मिला हो. संतोष को घर से निकले 3 घंटे बीत चुके थे. घर वाले उसे ले कर काफी परेशान थे कि सुबह का निकला संतोष आखिर कहां घूम रहा है. सब से ज्यादा परेशान उस के पिता हरिदास थे.
उन्होंने छोटे बेटे विनोद को संतोष का पता लगाने के लिए भेज दिया. विनोद को पता चला कि 3 घंटे पहले संतोष को राहुल और सुरेंद्र के साथ गांव से बाहर जाते देखा गया था. यह जानकारी मिलते ही विनोद राहुल और सुरेंद्र के घर पहुंच गया. दोनों ही अपनेअपने घरों पर मिल गए. विनोद ने उन से संतोष के बारे में पूछा तो वह यह सुन कर चौंक गए कि संतोष अब तक घर पहुंचा ही नहीं था. आखिर वह कहां चला गया.
राहुल ने विनोद को बताया कि वे तीनों साथ में गांव से बाहर निकले थे तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. वह कुछ देर में वापस आने की बात कह कर चला गया था. जब 2 घंटे बीत जाने के बाद भी वह नहीं लौटा तो वे दोनों यह सोच कर लौट आए कि शायद वह घर चला गया होगा.
संतोष को ले कर जितना ताज्जुब दोस्तों को हो रहा था, विनोद भी उतनी ही हैरत में डूबा हुआ था कि बिना किसी को कुछ बताए भाई आखिर गया कहां. इस से भी बड़ी बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. संतोष का नंबर मिलातेमिलाते विनोद भी परेशान हो चुका था.
संतोष का जब कहीं पता नहीं चला तो विनोद घर लौट आया और पिता हरिदास को सब कुछ बता दिया. अचानक संतोष के लापता हो जाने की बात सुन कर हरिदास ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार स्तब्ध रह गया.
संतोष की गांव भर में तलाश की गई, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. संतोष को तलाशते हुए पूरा घर और नातेरिश्तेदार परेशान हो गए. विनोद भी मोटरसाइकिल ले कर संतोष को खोजने गांव के बाहर निकल गया था. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.
दोपहर 2 बजे के करीब गांव के कुछ चरवाहे बच्चे गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर अरहर के खेत के पास अपने पशु चरा रहे थे. भैंसें चरती हुई अरहर के खेत में घुस गईं तो चरवाहे खेत में गए. चरवाहे जैसे ही बीच खेत पहुंचे तो वहां दिल दहला देने वाला दृश्य देख कर उन के हाथपांव फूल गए.
अरहर के खेत के बीचोबीच संतोष यादव की खून से सनी लाश पड़ी थी. लाश देखते ही चरवाहे जानवरों को खेतों में छोड़ कर चीखते हुए उल्टे पांव गांव की ओर भागे. वे दौड़ते हुए सीधे हरिदास यादव के घर जा कर रुके और एक ही सांस में पूरी बात कह डाली.
बेटे की हत्या की बात पर एक बार तो हरिदास को भी विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने उन बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, किसी और की लाश होगी. तुम ने ठीक से पहचाना नहीं होगा.’’
बच्चे पासपड़ोस के थे, इसलिए वे संतोष को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. बच्चों ने जब उन्हें फिर से बताया कि लाश किसी और की नहीं बल्कि संतोष चाचा की ही है तो हरिदास के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.
हरिदास छोटे बेटे विनोद को ले कर अरहर के खेत में उस जगह पहुंच गए, जहां संतोष की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. बेटे की रक्तरंजित लाश देख कर हरिदास गश खा कर वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई तो वहां पूरा गांव उमड़ आया.
यह सूचना थाना अहरौला के थानाप्रभारी चंद्रभान यादव को दे दी गई थी. चूंकि हत्या एक पुलिसकर्मी की हुई थी, इसलिए आननफानन में थानाप्रभारी एसआई रमाशंकर यादव, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, अखिलेश कुमार पांडेय, ओमप्रकाश यादव और महिला कांस्टेबल अनीता मिश्रा के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना एसपी अजय कुमार साहनी और एसएसपी नरेंद्र प्रताप सिंह को भी दे दी.
सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहां आसपास अरहर की फसल टूटी हुई थी. इस से लग रहा था कि मृतक ने हत्यारों से संघर्ष किया होगा.
संतोष की हत्या कुल्हाड़ी जैसे तेज धारदार हथियार से की गई थी. हथियार के वार से उस का जबड़ा भी कट कर अलग हो गया था. गले पर कई वार किए गए थे. इस के अलावा उसे 2 गोली भी मारी गई थीं. इस से साफ पता चलता था कि हत्यारे नहीं चाहते थे कि संतोष जिंदा बचे. इसलिए मरते दम तक उस पर वार पर वार किए गए थे.
मौकेमुआयने के दौरान पुलिस को वहां कारतूस का एक खाली खोखा भी मिला. संतोष के पास मोबाइल फोन था, जो उस के पास नहीं मिला. इस का मतलब था कि हत्यारे उस का मोबाइल अपने साथ ले गए थे. बहरहाल, पुलिस ने कागजी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दी.
पुलिस ने मृतक के पिता हरिदास यादव की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी चंद्रभान यादव ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.
काल डिटेल्स खंगाली तो पता चला कि संतोष के सेलफोन पर 30 दिसंबर, 2017 की सुबह आखिरी काल आजमगढ़ के छितौना गांव की रहने वाली ज्योति यादव की आई थी. पुलिस ने ज्योति को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. ज्योति से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि वह मृतक संतोष यादव की प्रेमिका थी.
पुलिस ने जब ज्योति से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने संतोष की हत्या की पूरी कहानी बता दी. उस ने कहा कि संतोष को उस ने ही फोन कर के गांव से बाहर अरहर के खेत में मिलने के लिए बुलाया था. वहां पहले से छिपे बैठे उस के घर वालों ने उसे मौत के घाट उतार दिया. पुलिस ने वारदात में शामिल अन्य आरोपियों की तलाश में दबिश दी तो वे सभी अपने घरों से गायब मिले.
पुलिस ने सिपाही संतोष यादव हत्याकांड का खुलासा 60 घंटों में कर दिया था. ज्योति से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने अपने प्रेमी की हत्या की जो कहानी बताई, वह रोमांचित कर देने वाली थी—
22 वर्षीया ज्योति उर्फ रजनी मूलरूप से आजमगढ़ के अहरौला थाने के छितौना गांव के रहने वाले रामकिशोर यादव की बेटी थी. 3-4 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर की थी. रामकिशोर यादव की खेती की जमीन थी, उसी से वह अपने 6 सदस्यों के परिवार की आजीविका चलाते थे. सांवले रंग और सामान्य कदकाठी वाली ज्योति बिंदास स्वभाव की थी. वह एक बार किसी काम को करने की ठान लेती तो उसे पूरा कर के ही मानती थी.
ज्योति ने 12वीं तक पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई नहीं की. आगे की पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा था. हालांकि मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उन की कोशिश बेकार गई थी.
ज्योति जिस स्कूल में पढ़ने जाया करती थी, उस स्कूल का रास्ता शंभूपुर दमदियावन गांव हो कर जाया करता था. ज्योति सहेलियों के साथ इसी रास्ते से हो कर आतीजाती थी. इसी गांव का रहने वाला संतोष कुमार यादव ज्योति के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में खड़ा हो जाता और उसे बड़े गौर से देखता था. ज्योति भले ही सांवली थी, लेकिन उस में गजब का आकर्षण था. यही आकर्षण संतोष को उस की ओर खींच रहा था.
संतोष ने ज्योति के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि वह पड़ोस के गांव छितौना के रहने वाले रामकिशोर यादव की बेटी है और उस का नाम ज्योति है. ज्योति के बारे में सब कुछ पता लगाने के बाद संतोष उस के पीछे पागल दीवानों की तरह घूमने लगा.