पांच दिन तक समाजवादी पार्टी में चली कलह की कहानी का सुखद अंत हो गया. इस बात का अंदाजा पहले से भी था. देखने वाली बात यह थी कि बीच का रास्ता किन बिन्दुओं से होकर गुजरेगा. सपा में केवल परिवार का विवाद है. परिवार के लोगों के अहम की वजह से है. ‘बाहरी ताकतें‘ केवल आग में घी डालने का काम कर सकती हैं. आग तो परिवार के लोग ही लगाने में सक्षम हैं.

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की यह बात सही है कि ‘जब तक मैं हूं, पार्टी नहीं बंटेगी’. यही वह बात है जो मुलायम सिंह की पीढ़ी तो समझ रही है पर यादव परिवार की दूसरी पीढ़ी यह समझने को तैयार नहीं है. यादव परिवार के इस सियासी जंग में दूसरी पीढ़ी को अपने भविष्य की चिंता है. 5 दिन चली जुबानी जंग में ही दूसरी पीढ़ी के लोग केवल अपने पिताओं के पीछे ही खड़ें नजर आये. स्वाभविक तौर पर अगर मसला मुलायम की पीढ़ी का होता, तो दूसरी पीढ़ी के चेहरे  जुबानी जंग के इस फ्रेम से बाहर रहते. चूंकी चिंता दूसरी पीढ़ी के अपने हितों की थी इसलिये वह अपने पिताओं के साथ खड़े दिखे.

प्रदेश की जनता एक बार सुलह के फार्मूले में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच मतभेद को भूल भी सकती है पर उसे इस बात का मलाल है कि गायत्री प्रजापति की वापसी क्यों? गायत्री प्रजापति की वापसी की क्या मजबूरियां हैं, यह सरकार या पार्टी न भी बताये तो लोग कयास लगाने में सक्षम है. अखिलेश सरकार के लिये जनता को यह समझाना सरल नहीं है कि राजकिशोर सिंह और दीपक सिंघल से अधिक गायत्री प्रजापति प्रभावी कैसे हो गये. अखिलेश और शिवपाल के मतभेद को वह चाचा भतीजे की नोकझोंक मान सकती है. उसे यह नहीं समझ आ रहा कि गायत्री सपा के लिये बाहरी व्यक्ति क्यो नहीं है ?

यादव परिवार में मुखिया मुलायम सिंह ने अपनी दूसरी पीढ़ी को राजनीति में न केवल उतार दिया, बल्कि उनको संसद और विधानसभा तक पहुंचा दिया. यादव परिवार के लिये संसद और विधानसभा में पहुंचना कोई बहुत बडा मुद्दा नहीं रह गया है. यह बहुत आसान सा विषय है. आज भी वह चाहे तो परिवार के किसी भी सदस्य को इन सदनों का सदस्य बना सकते हैं. राज्यसभा और विधानपरिषद के रास्ते बिना चुनाव लड़े यह काम हो सकता है. दूसरी पीढ़ी अब उम्मीद से दोगुना चाहती है.

अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाकर मुलायम ने 2012 में सबको राजी कर लिया था. 5 सालों में विवाद उसी जगह वापस पहुंच गया है. परिवार के लोग खासकर दूसरी पीढ़ी अपने लिये सुरक्षित और सक्षम हिस्सेदारी की उम्मीद करती है. अब इसके लिये वह तैयार खड़ी है. यही वजह है कि मुलायम अपने परिवार की इस चुनौती में पहली बार सबसे अधिक कमजोर दिखे. अपनी पीढ़ी के तेवर वह दबा देते थे पर दूसरी पीढ़ी के तेवर दबाने पर उनके और उभरने का खतरा पार्टी और परिवार दोनो को प्रभावित कर सकता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...