उत्तेजक, झीने कपड़ों में डांस करना एक पेशा हो सकता है पर इस का अर्थ यह कतई नहीं हो सकता कि कोई डांसर 1 नहीं 4-4 आदमियों को गनपौइंट पर अपने बदन से खिलवाड़ करने की इजाजत भी दे रही है. औरतों का अपना शरीर दिखाने या उसे चला कर मोहित कर देने का हक वैसा ही है जैसा एक पहलवान का कुश्ती में दांवपेंचों को दिखाना या एक प्रवचनकर्ता का लाखों की भीड़ को मुग्ध कर देना.
लखनऊ में एक कंपनी ने अपने किसी उत्सव में एक डांसर को भी मनोरंजन के लिए बुलाया पर बाद में 4 लोगों ने उसे कमरे में बुला कर बलात्कार कर डाला. मामला तो बन गया और सजा होगी या नहीं यह पता नहीं पर मुख्य सवाल यह है कि डांसर से साथ सोने की पेशकश करना ही कैसे संभव है?
औरत का शरीर बिकाऊ नहीं है. सैक्स बेचने की नहीं प्रेम की चीज है. जिसे डांस करना आता है वह सैक्स बेच कर वैसे भी पैसा नहीं कमाएगी. जो औरतें शरीर बेचती हैं वे दरअसल, कोठा मालकिनों, दलालों, माफिया की गुलाम होती हैं. सैक्स में प्रेम आवश्यक है और पैसा प्रेम का केवल प्रतीक भर है.
यह खेद की बात है कि दुनिया भर का लोकतंत्र देहव्यापार को रोक नहीं पाया है. औरतों को बताया जाता है कि वे देह बेच कर भी पैसा बना सकती हैं और पुरुषों को सिखाया जाता है कि खरीदी हुई देह भी प्रेम का प्रतीक है जबकि दोनों वहशीपन, जंगलीपन और पशुता के प्रतीक हैं.
यदि एक पैसे वाली कंपनी अपने किसी उत्सव के लिए कर्मचारियों के लिए डांस का प्रोग्राम रख सकती है तो स्पष्ट है कि वहां काम करने वाले गंवार, गुंडे तो नहीं होंगे. सभ्य, शिक्षित और सफल औरतों के प्रति ऐसे विचार रखें कि जिसे नचाया जा सकता है उसे जबरन बिस्तर पर ले जाना सभ्यता और शिक्षा पर कलंक है.
विरोध सैक्स की आजादी का नहीं, सैक्स को जबरन पाने की सोच का होना चाहिए और यह नियम ठीक उस तरह होना चाहिए जैसे सड़क पर चलते हुए लोग गाड़ी बाईं ओर ही चलाते हैं. यह जीवन का अंग होना चाहिए कि औरत का शरीर, पुरुष के शरीर की तरह उस की अपनी संपत्ति है और वह अपना सर्वस्व किसी को सौंपती है तो वह प्रेम का प्रतीक है चाहे 1 साल का हो या जीवन भर का.
औरत का शरीर उस का व्यक्तित्व है और उस की गरिमा का आदर करना समाज का कर्तव्य है. वह जमाना नहीं रहा जब औरत लूटी जाती थी, खरीदी जाती थी, दान में दी जाती थी. अब औरतों को हर काम करने की इजाजत है, देह दिखाने और सैक्स बेचने की भी पर अपनी शर्तों पर, जोरजबरदस्ती से नहीं. समाज व कानून को यह मानना होगा. इस में कंप्रोमाइज नहीं हो सकता. हक तो हक है. बराबर का, पहलवान का भी और प्रधानमंत्री का भी.