जापान के लिए 1945 का साल और अगस्त का महीना ऐसा काला पन्ना है जिस की इबारत अमेरिका ने ‘लिटिल बौय’ और ‘फैट मैन’ से लिखी थी. ये 2 नाम किसी इंग्लिश फिल्म के नहीं हैं, बल्कि ये तो वे महाबम थे जिन्हें दुनिया ने परमाणु बम के नाम से जाना और समझा था.
6 अगस्त, 1945 की सुबह 8 बज कर 15 मिनट पर अमेरिकी वायु सेना के कर्नल पौल टिबेट्स ने अपने बी-29 विमान ‘एनोला गे’ से ‘लिटिल बौय’ को हिरोशिमा के ऊपर गिराया था. धरती को छूते ही ‘लिटिल बौय’ ने ऐसा कुहराम मचाया था कि चंद ही पलों में वह हिरोशिमा की कुल आबादी ढाई लाख में से 30 फीसदी यानी 80 हजार लोगों को लील गया था.
अमेरिका इतने पर ही नहीं माना. 3 दिनों बाद यानी 9 अगस्त, 1945 को उस ने जापान के एक और शहर नागासाकी पर दोपहर को अपने बी-29 बमवर्षक विमान से दूसरा बम ‘फैट मैन’ गिराया था. धमाका इतना तेज था कि 8 किलोमीटर दूर बने घरों के शीशों के परखचे उड़ गए थे. बम गिरने की जगह से एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद हर चीज उजड़ गई थी.
जापान इस तबाही को आज तक नहीं भूल पाया है, जबकि अमेरिका तो तब से आज तक पूरी धरती के मुल्कों को अपने अत्याधुनिक हथियारों का डर दिखा कर उन पर अपना दबदबा बनाए हुए है.
लेकिन तब से आज तक दुनिया में बहुत बदलाव भी आए हैं. भारत के पड़ोसी देश चीन को ही देख लें. बढ़ती आबादी और बेरोजगारी से परेशान चीन ने अब दुनिया के नक्शे पर कई मामलों में अपनी छाप छोड़ी है. पहले जनसंख्या पर नियंत्रण, उस के बाद रोजगार बढ़ाने के मामले में इस रहस्यमयी देश ने जबरदस्त कामयाबी पाई है. खेल जगत में भी इस देश ने सीधे अमेरिका को चुनौती दी है, चाहे वह ओलिंपिक के पोडियम ही क्यों न हों.
इस समय अमेरिका और चीन 2 ऐसी महाशक्तियां बन चुकी हैं जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बेधड़क आमनेसामने दिखाई देती हैं. अगर अमेरिका अपनी सेना के जोर पर कमजोरों को दबाने की चाल चलता है तो चीन अपनी कूटनीति से अमेरिका के दबदबे के नीचे आने को तैयार नहीं है.
भले ही अमेरिका अपनी सैन्य ताकत में चीन से आगे खड़ा दिखाई देता है लेकिन चीन को कम आंकने की भूल किसी को भी नहीं करनी चाहिए. 1 अक्तूबर को चीन ने अपने साम्यवादी शासन के 70 साल पूरे होने पर पेइचिंग में विशाल सैन्य परेड में अपनी आधुनिक और बहुत ताकतवर मिसाइलों का भी प्रदर्शन किया था, जिसे दुनिया के सामने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा गया था. उस की मिसाइलें कमाल की थीं.
चीन ने जिन मिसाइलों का प्रदर्शन किया, उन में इंटर कौंटिनैंटल मिसाइलें डोंगफेंग-41 और डोंगफेंग-17 भी शामिल थीं, जो 2 हजार किलोमीटर से 15 हजार किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. डीएफ-41 दुनिया की सब से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली मिसाइल मानी जाती है. चीन ने पहली बार इस मिसाइल को परेड में दिखाया था.
याद रहे कि चीन में हुए गृहयुद्ध के बाद 1 अक्तूबर, 1949 को माओत्से तुंग ने पीपल्स रिपब्लिक औफ चाइना की स्थापना की घोषणा की थी. इस स्थापना दिवस के 70 साल पूरे होने पर आयोजित की गई सैन्य परेड में चीन ने अपने आधुनिक और बहुत शक्तिशाली हथियारों का प्रदर्शन किया. इन हथियारों में फाइटर प्लेन, एयरक्राफ्ट कैरियर, सुपरसोनिक मिसाइल और न्यूक्लियर क्षमता से लैस पनडुब्बियों का प्रदर्शन किया गया.
खतरनाक डोंगफेंग-41
यह दुनिया की सब से ताकतवर मिसाइलों में शामिल है जिस की मारक क्षमता बहुत अधिक है. सैन्य जानकारों का कहना है कि यह मिसाइल कुछ ही मिनटों में चीन से अमेरिका तक पहुंच सकती है. इस मिसाइल को दुनिया की सब से ज्यादा लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम मिसाइल माना जा रहा है, जिस की मारक क्षमता 15 हजार किलोमीटर तक है. विश्लेषकों के मुताबिक, इस मिसाइल पर एकसाथ 10 वारहैड्स फिट किए जा सकते हैं, जो एकसाथ अलगअलग टारगेट को बरबाद करने में सक्षम हैं.
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डोंगफेंग-17 भी कम नहीं
चीन ने पहली बार किसी परेड में अपनी इस घातक डोंगफेंग-17 मिसाइल का प्रदर्शन किया. यह न्यूक्लियर क्षमता से लैस ग्लाइडर है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस ग्लाइडर की ताकत इस की हाई स्पीड है. यह बहुत ही तेज गति की वजह से ऐंटीमिसाइल डिफैंस सिस्टम को भी भेद सकती है. यह 2 किलोमीटर तक वार कर सकती है.
हाइपरसोनिक हथियार
पिछले साल अगस्त महीने में चीन ने स्काई-2 नाम के एक हाइपरसोनिक एयरक्राफ्ट का परीक्षण किया था. इस की गति आवाज से साढ़े 5 गुना ज्यादा बताई जा रही है. यह अपने साथ हाइपरसोनिक गति से हथियार भी ले जा सकता है, जिसे किसी भी तरह रोकना मुश्किल होगा.
रणनीतिकार कहते हैं कि हाइपरसोनिक टैक्नोलौजी गेमचेंजर तकनीक है. यह मौजूदा दौर की मिसाइल डिफैंस सिस्टम से कहीं आगे है. कहा जाता है कि जब मिसाइल डिफैंस सिस्टम हरकत में आएंगे, तब तक यह मार कर चुकी होगी. बताया जाता है कि चीन ने एकसाथ 3 तरह के हाइपरसोनिक विमानों का परीक्षण किया है.
स्पेस और काउंटर स्पेस
चीन ने अंतरिक्ष से निगरानी, जासूसी और टोह लेने के लिए खूब पैसा खर्च किया है. भविष्य में वह ऐसी क्षमता भी विकसित करेगा कि अंतरिक्ष से ही धरती पर मनचाही जगह मार कर पाए. चीन साल 2014 में ऐंटीसैटेलाइट मिसाइल सिस्टम का परीक्षण कर चुका है.
परमाणु हथियार
चीन लगातार नए तरह के परमाणु हथियारों को विकसित करने में लगा है. चाइना एकेडमी औफ इंजीनियरिंग इस की डिजाइनिंग और उत्पादन में मदद करती है. यह एकेडमी हथियारों की हर तरह की रिसर्च, डिजाइन और उन के तमाम पहलुओं पर काम करती है, साथ ही, चाइना नैशनल न्यूक्लियर कौर्पौरेशन यूरेनियम संवर्धन के लिए अपने 3 प्लांट्स के जरिए काम करता है.
अंडरग्राउंड सुविधाएं
चीन की अंडरग्राउंड सुविधाएं भी शानदार हैं. वह सी4आई यानी कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशंस, कंप्यूटर्स और इंटैलिजैंस के तहत प्रतिरक्षण पर काम कर रहा है. इस में मिसाइलें भी शामिल हैं. चीन ने पिछले कुछ सालों में अंडरग्राउंड उन्नत तकनीक सुविधाएं विकसित कर ली हैं. माना तो यहां तक जा रहा है कि इस समय चीन के पास जितनी आधुनिक हथियार प्रणाली है वह दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है. इतना ही नहीं, चीन में लगातार सैन्य अभ्यास चलते रहते हैं. इन सैन्य अभ्यासों की संख्या 18,000 के आसपास बताई गई है.
अमेरिका से नहीं डरेगा चीन
संख्याबल के लिहाज से दुनिया की सब से बड़ी सेना वाला देश चीन अपनी सेना पर पैसा खर्च करने के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे पायदान पर है. इस के सैनिकों की संख्या तकरीबन 28 लाख है. इतना ही नहीं, सेना में भरती होने की उम्र वाले युवाओं की संख्या भी चीन में सब से ज्यादा है. चीन के पास ऐसे तकरीबन 1 करोड़, 95 लाख युवा हैं. चीन के पास साढ़े 22 लाख सक्रिय सैनिक हैं जबकि 5 से 6 लाख सैनिक दूसरी जगह औपरेशंस में सक्रिय हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस तरह की सैन्य प्रदर्शनी से दुनिया, खासकर अमेरिका, को अपनी ताकत दिखाना चाहता है. एशियाई क्षेत्र में चीन अपनी असीमित ताकत का प्रदर्शन करने के साथ ही साउथ चाइना सी और पूरे एशिया में खुद को सब से ताकतवर साबित करने की कोशिश कर रहा है.
अमेरिकी रक्षा विभाग की खुफिया एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही चीन के आर्थिक विकास में कुछ गिरावट देखने को मिली है, लेकिन इस ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए 5 वर्षीय योजना के तहत बहुत अधिक निवेश किया है. अपनी सेना को अलगअलग मोरचों पर मजबूत बनाने के लिए चीन ने कई तरह के आधुनिक हथियारों को अपने बेड़े में शामिल किया है. कुछ मामलों में तो चीन ने अच्छीखासी बढ़त पहले ही हासिल कर ली है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की पैसिफिक कमांड के प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस ने अमेरिकी कांग्रेस में बताया था कि हाइपरसोनिक हथियार बनाने के मामले में अमेरिका अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है. उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ऐसी संभावनाएं हैं कि जब तक अमेरिकी रडार चीनी मिसाइलों को पकड़ सकें तब तक वे अमेरिकी जहाजों और सैन्य अड्डों पर हमले न कर दें.
एडमिरल हैरी हैरिस ने कहा था, ‘‘हमें इस दिशा में बेहद तेजी से काम करने की जरूरत है और अपने खुद के हाइपरसोनिक हथियार बनाने चाहिए.’’
इस अमेरिकी अधिकारी की चिंता जायज भी है. भले ही अमेरिका के पास सब से ज्यादा परमाणु बम होंगे पर चीन दूसरे कई मामलों में उस से कहीं भी कमतर नहीं है. 1945 का जमाना गुजर गया है, तब जापान पर अमेरिका ने अपनी हेकड़ी दिखा कर उसे कमजोर कर दिया था. अब बहुत से देश किसी ‘लिटिल बौय’ या ‘फैट मैन’ से डरने वाले नहीं हैं. चीन तो कतई नहीं, जो हर लिहाज से ताकतवर देश बन चुका है.
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भारत और चीन की सैन्य शक्ति :
किस का पलड़ा भारी
भारत के पड़ोसी देशों में चीन का दबदबा सब से ज्यादा है. भले ही यह देश भारत को अपने यहां बना चीनी माल खूब सप्लाई करता हो पर जब सरहद की सुरक्षा की बात आती है तो इन दोनों देशों की भौंहें तन जाती हैं. ऐसा हो भी क्यों न, इतिहास की बात करें तो ये दोनों देश युद्ध के मैदान में आमनेसामने भी हो चुके हैं. 1962 की लड़ाई में चीन के मुकाबले भारत का नुकसान ज्यादा हुआ था.
आज भी चीन हम से ज्यादा ताकतवर दिखता है. देशभक्ति एक अलग बात है लेकिन जब हम इन दोनों देशों की सैन्य शक्ति का आकलन करते हैं तो बहुत सी चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं.
चीन के पास एक बेहद ताकतवर सेना है. पिछले 25 सालों में वह अपने रक्षा बजट पर तकरीबन 10 गुना खर्च बढ़ा चुका है. चीन ने साल 2017 में रक्षा क्षेत्र के लिए 151 अरब डौलर यानी 9 हजार, 815 अरब रुपए का बजट आवंटित किया था, जबकि भारत ने उसी साल 52.5 अरब डौलर यानी
3 हजार, 409 अरब रुपए का रक्षा बजट रखा था.
इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फौर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के आंकड़ों को मानें, तो भारत के पास 14 लाख सैनिक हैं. इस के अलावा भारत के पास 3,563 युद्ध टैंक, 3,100 इन्फैंट्री लड़ाकू वाहन, 336 सशस्त्र पर्सनल कैरियर्स और 9,719 तोपें हैं. इतना ही नहीं, भारत के पास 9 तरह की औपरेशनल मिसाइलें हैं, जिन में अग्नि-3 (3,000-5,000 किलोमीटर रेंज वाली) भी शामिल है. भारत के पास ब्रह्मोस भी है, जिसे पनडुब्बी, पानी के जहाज, विमान या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है.
भारत के पास 814 कौम्बैट एयरक्राफ्ट हैं. भारत की वायु सेना का संख्या बल 1,27,200 है. अफसरों के मुताबिक, साल 2032 तक भारत के पास 22 स्क्वैड्रन्स होंगे. राफेल लड़ाकू विमान के आने से भारत की ताकत बढ़ी है.
सैनिकों की संख्या हो, लड़ाकू विमानों की संख्या हो या फिर टैंकों की संख्या हो, चीन भारत से इक्कीस है. उस के पास 6,457 कौम्बैट टैंक हैं. 2,955 लड़ाकू विमान हैं. छोटेबड़े सभी जहाज मिला कर 714 नेवल एसेट्स हैं. एक एयरक्राफ्ट कैरियर है. 35 डैस्ट्रोयार्स यानी विध्वंसक युद्धपोत हैं. 68 पनडुब्बियां हैं.
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स दुनिया की दूसरी बड़ी वायु सेना है. चीनी वायु सेना में तकरीबन 3 लाख, 30 हजार सैनिक हैं. चीनी वायु सेना ने 192 आधुनिक लौंचर बनाए हैं. उस के पास एस-300 जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल है.
चीन और भारत के बीच बड़ेबड़े पहाड़ों की रुकावटें हैं. इस लिहाज से चीन हम से ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी सेना को रख सकता है. सब जानते हैं कि पहाड़ों की लड़ाई में पैदल सेना का ज्यादा महत्त्व होता है.
अगर इन दोनों देशों के बीच कभी लड़ाई होगी तो वह पाकिस्तानी कश्मीर से लद्दाख, तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, भूटान से होती हुई अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर और म्यांमार तक फैलेगी. ये सारे हिस्से पहाड़ों से घिरे हैं. यहां अपने दुश्मन की टोह लेना भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है.
वैसे, अगर नंबर गेम की बात की जाए तो चीन की सेना दुनिया में तीसरे नंबर पर जबकि भारत की सेना चौथे नंबर पर है. ये दोनों खुद को महाशक्ति साबित करने की चाह रखते हैं. लिहाजा, अगर ये अच्छे पड़ोसी होने का धर्म निभाएं तो पूरी दुनिया की शांति के लिए बेहतर रहेगा.
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