बौलीवुड में तमाम लोग सिनेमा में आए बदलाव की चर्चा कर रहे हैं. मगर अभिनेताअभय देओल से इसे महज कोरी कल्पना मानते हैं. ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए अभय देओल ने कहा-‘‘लोग बातें बहुत कर रहे हैं, मगर मुझे लगता है कि हम सिनेमा में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं कर पा रहे हैं. इसकी मूल वजह यह है कि हम सभी को डर सताता है कि दर्शक देखना चाहेगा या नहीं? यही वजह है कि हम 60 के दशक से लगभग एक जैसा ही सिनेमा बना रहे हैं. बीच बीच में ‘देव डी’, ‘मसान’ या ‘रांझणा’ जैसी कुछ अलग फिल्में आती रहती हैं. हम सभी आदर्शवाद की ही पूजा करते हैं. इसके अलावा दर्शक कलाकार और निर्देशकों को उसकी पहली सफल फिल्म के अनुसार ही दूसरी फिल्म में देखना चाहता है.

दर्शक कभी यह नहीं सोचता कि इस फिल्म में इसने यह किया है, अब देखते हैं कि अगली फिल्म में क्या करेगा? इसके अलावा सिनेमा को नुकसान पहुंचाने में मीडिया की भी भूमिका है. जैसे ही निर्माता अपनी फिल्म के साथ सौ करोड़ का तमगा लगा देता है, वैसे ही पूरी मीडिया उसके पीछे भागने लगती है. यदि किसी फिल्मकार ने चिरपरिचित फिल्म से हटकर कोई फिल्म बनायी है, तो मीडिया भी उसको तवज्जो नहीं देता.’’

जब हमने उनसे कहा कि क्या सौ करोड़ की हवाबाजी भी गलत होती है? तो अभय देओल ने कहा-‘‘मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री दोनों का गठबंधन है. मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री में कोई फर्क रह ही नहीं गया. क्योंकि दोनों हाथ मिलाकर काम कर रहे हैं. देखिए, जब तक मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री का गठबंधन रहेगा, तब तक मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री दोनों ही मीडियाकर काम करते रहेंगें. इसलिए सिनेमा में बदलाव नहीं आ सकता.’’

जब हमने अभय देओल से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि सिनेमा के बदलाव की सारी झूठी खबरें फैलायी जा रही हैं? तो अभय देओल ने कहा-‘‘सिनेमा में बदलाव की चाहत लोगों के दिलों में हैं, पर हो नहीं रहा है. जैसा कि मैने पहले ही कहा कि एक दो गैर मेन स्ट्रीम फिल्मों को सिनेमा का बदलाव कहना मूर्खता है. असली सिनेमा में बदलाव तब आएगा,जब आप ऐसे किसी मुद्दे पर फिल्म बनाते हैं,जिस पर फिल्म बनाने की हिम्मत किसी ने न की हो. सिनेमा में बदलाव आने के लिए लेखन में बदलाव कलाकारों और फिल्मकारों के एटीट्यूड में बदलाव आना चाहिए. इसके लिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री को रिस्क लेना पड़ेगा. हर कलाकार को रिस्क उठाना पड़ेगा. ऐसा लगातार करना पडे़गा.

कलाकार के तौर पर यदि हमने एक फिल्म में रिस्क उठायी, वह फिल्म असफल हो गयी और हम भाग खड़े हुए, तो सिनेमा में कभी बदलाव नहीं आएगा. मेरी कोशिश तो यही रहती है कि मेरी फिल्में असफल होती हैं, पर मैं भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनता. मेरी राय में एक फिल्म से कोई बदलाव नहीं आता. मैं कहता हूं कि सिनेमा में कोई बदलाव नहीं आया. हां! बदलाव यह आया है कि अब फिल्म निर्माण में पैसा ज्यादा खर्च होता है. इसलिए फिल्में चमकदार ज्यादा हो गयी है. अब पटकथा भी शूटिंग से पहले मिलने लगी हैं. पर फिल्में वही फार्मूला वाली बन रही हैं.

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