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फेसबुक के माध्यम से मिले विदित और सुहानी को एकदूसरे की सचाई जान अच्छा लगा. विदित शादीशुदा, 2 बच्चों का पिता था जबकि सुहानी 35 वर्षीय अविवाहिता. शादी न कर पाने के कारण मन में इच्छाएं दबी थीं, जिस कारण वह विदित की ओर आकर्षित हुई. दोनों एकदूसरे से इतना बंध गए कि कई बार एकांत मिलने पर हद से गुजर जाने को बेचैन हो उठते, लेकिन विदित खुद को रोक लेता. एक मुलाकात के दौरान वे सुहानी की सहेली के फ्लैट पर मिले तो विदित ने सुहानी को अपने आगोश में ले लिया और दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.          अब आगे…

अचानक पता नहीं क्यों, विदित ने खुद को रोक लिया. सुहानी ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किया. वह जाना चाहती थी सारे तटबंधों को तोड़ कर, लेकिन विदित ने हांफते हुए कहा, ‘‘नहीं, इस तरह नहीं. तुम्हें यह न लगे कि मैं ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है विदित,’’ सुहानी निश्चिंत हो कर बोली.

‘‘सुहानी,’’ विदित ने सुहानी के हाथों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार दे सकता हूं, अधिकार नहीं.’’

सुहानी ने विदित से लिपटते हुए कहा, ‘‘मुझे प्यार के अलावा कुछ और चाहिए भी नहीं.’’ विदित ने सुहानी के होंठों पर अपने होंठ रखे. सुहानी ने फिर खुद को समर्पित किया, लेकिन विदित ने फिर स्वयं को रोक लिया.

‘‘एक बात पूछूं विदित? ’’सुहानी ने पूछा.

‘‘पूछो.’’

‘‘अपनी पत्नी से अंतरंग क्षणों में तुम मेरी कल्पना करते हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो?’’

‘‘हां, लेकिन मन के साथ. केवल तन नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ गहराई तक उतरने को तैयार हूं. फिर तुम पीछे क्यों हट रहे हो?’’

‘‘यही सोच कर कि मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगा. न कोई सुनहरा भविष्य, न कोई अधिकार. अपनों के सामने तुम्हारा क्या परिचय दूंगा. इन तथाकथित अपनों के सामने शायद तुम्हें पहचानने से भी इनकार कर दूं. कहीं यह तुम्हारा शोषण तो नहीं होगा,’’ सकुचाते हुए विदित बोला. ‘‘मेरे पास भविष्य के लिए नौकरी है. रही अधिकार की बात, तो मैं जानती हूं कि तुम विवाहित हो. मैं तुम से ऐसी कोई मांग नहीं करूंगी, जिस से तुम स्वयं को धर्मसंकट में फंसा महसूस करो. मैं तो तुम्हारे साथ खुशी के कुछ पल बिताना चाहती हूं. ऐसे पल जिन पर हर स्त्री का अधिकार होता है, लेकिन मेरी नौकरी के कारण मेरे परिवार के लोग ही मुझे अपने स्त्रीत्व से वंचित रखना चाहते हैं और मैं ये पल अब चुराना चाहती हूं, छीनना चाहती हूं.’’

विदित खामोश रहा. विदित को सोच में डूबा देख कर सुहानी ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ विदित ने कहा, ‘‘मैं यह सोच रहा था और इसलिए सोच कर तुम से कह रहा हूं कि अपने सुख की तलाश में कहीं हम वासना के दलदल में तो नहीं भटकना चाह रहे. तुम्हारी खुशियां मेरे साथ हमेशा नहीं रहेंगी. मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूं, लेकिन मैं तुम से प्यार भी करता हूं. स्त्रीपुरुष जब तनमन के साथ एक होते हैं तो बंध जाते हैं एकदूसरे से. मैं तो फिर भी पुरुष हूं. शादीशुदा हूं. तुम मुझ से बंध कर कहीं अकेली न रह जाओ,’’ विदित कहते हुए चुप हो गया. सुहानी चुपचाप सुनती रही, कुछ नहीं बोली.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारे योग्य कहीं एक अच्छा लड़का, चाहे वह अधेड़ हो या फिर विदुर, तलाशा जाए, जिस के साथ तुम जीवन भर खुश रह सको. तुम्हारा अधूरापन हमेशा के लिए दूर हो जाए.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है, विदित? मैं ने ये सब सोचा नहीं होगा. इस काम में मेरी एक प्रिय सहेली ने मेरी मदद भी की. मैरिज ब्यूरो से संपर्क भी किया, कुछ रिश्ते आए भी, लेकिन वे सब रिश्ते ऐसे आए जो मु झे पसंद नहीं थे. वही कुंडली मिलान, दहेज, घरपरिवार, जातिधर्म, गोत्र. मेरा मन नहीं मिला किसी से. एकदो मेरे मातापिता से मिले भी तो मातापिता ने उन्हें टाल दिया और मु झे सम झाया कि इस उम्र में क्यों शादीब्याह के चक्कर में पड़ रही हो. अपने मातापिता का ध्यान रखो. 70-75 की उम्र में मातापिता से घर नहीं छोड़ा जा रहा और बेटी को तपस्या करने की सलाह दे रहे हैं…’’ कहते हुए सुहानी की आंखों में आंसू आ गए.

विदित ने आंसू पोंछते हुए सुहानी से कहा, ‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था. मैं तो तुम्हारे भले के लिए यह कह रहा था.’’

‘‘तुम डर रहे हो मु झ से,’’ सुहानी बोली.

‘‘नहीं, तुम्हें सम झा रहा हूं,’’ विदित  आश्वस्त करते हुए बोला.

‘‘इतना आगे आने के बाद,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘अभी इतने भी आगे नहीं आए कि वापस न लौट सकें.’’

‘‘तुम लौटना चाहते हो तो लौट जाओ.’’

‘‘मैं नहीं लौटना चाहता.’’

‘‘मैं भी नहीं लौटना चाहती,’’ फिर दोनों गले मिले और मुसकराते हुए अपनेअपने गंतव्य की तरफ चले गए. रात को विदित को सुहानी का खयाल आया. उसे वे पल याद आए जब एकांत पहाड़ी पर उस ने सुहानी को सिर से ले कर पैर तक चूमा था. उस के शरीर के ऊपरी वस्त्र हटा कर उस के गोपनीय अंगों से छेड़छाड़ करने लगा था और सुहानी मादक सिसकारियां लेते हुए उस का साथ दे रही थी. ‘उफ्फ, मैं क्यों पीछे हट गया. मिलन पूर्ण हो जाता तो यह तड़प, यह बेकरारी तो न सताती. शरीर इस तरह भारी तो न महसूस होता.’ स्वयं को इस भारीपन से मुक्त करने के लिए विदित अपनी पत्नी के पास पहुंचा. पत्नी ने  झिड़कते हुए कहा, ‘‘सो जाइए. आज मेरा मूड नहीं है.’’ विदित अपमानित सा अपने कमरे में आ गया. उस ने मोबाइल उठा कर सुहानी को कई टुकड़ों में एसएमएस किया. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. सुहानी का उत्तर आ गया. विदित ने मोबाइल के एसएमएस बौक्स पर उंगली रखी.

‘‘जब मैं तुम्हारे साथ बहने को तैयार थी तो तुम पीछे हट गए और मु झे दुनियादारी समझाते रहे. क्या तुम मुझ से इसलिए शारीरिक सुख चाहते हो, क्योंकि यह सुख तुम्हें अपनी पत्नी से नहीं मिल रहा है. मैं कोई बाजारू औरत नहीं हूं. यह सुख तो चंद रुपए दे कर कोई वेश्या भी तुम्हें दे सकती है. तुम्हारा बारबार पीछे हटना यह साबित करता है कि तुम डरते हो मु झ से, अपनी पत्नी से, अपने परिवार से, जबकि मैं ने पहले ही तुम से कह दिया था कि मु झे सिर्फ प्यार चाहिए, अधिकार नहीं.

‘‘तुम ने उन अनमोल पलों को न जाने किस डर से गंवा दिया. वह भी ऐसे समय में जब मैं तुम्हारे साथ आगे बढ़ रही थी. उन क्षणों में मैं ने खुद को कितना अपमानित महसूस किया था और अब तुम मुझ से शरीर के ताप से पीडि़त हो कर मिलन की मांग कर रहे हो. क्या इसे तुम प्यार कहते हो या सिर्फ जरूरत? मैं तुम्हारी ही भाषा में बात कर रही हूं. औरत जब किसी के प्रेम में डूबती है तो फिर आगेपीछे नहीं सोचती. जिसे प्रेम करती है उस पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ती है. तुम इतना सोचते हो मेरे साथ होते हुए भी, सब के बारे में, मेरे बारे में भी सब सोचने को रहता है बस, मैं ही नहीं रहती.’’

विदित ने एसएमएस को 4-5 टुकड़ों में पढ़ा. उसे उस पर गुस्सा आ गया. उस ने सीधा नंबर लगाया और कहा, ‘‘तुम्हारी हां है या ना.’’ उधर से सुहानी ने उत्तर दिया, ‘‘इतनी मानसिक तैयारी से शादी की जाती है, सुहागरात मनाई जाती है, प्यार नहीं किया जाता.’’ विदित को गुस्सा आ गया. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘शराफत के कारण पीछे रह गया. नहीं तो बहुत पहले ही सबकुछ कर चुका होता. अब पूछ रहा हूं तो भाव खा रही हो.’’

दूसरी तरफ से मोबाइल बंद हो गया. विदित को खुद पर गुस्सा आया. ‘उफ्फ, यह क्या कह दिया मैं ने. किस बदतमीजी से बात की मैं ने. मेरे बारे में क्या सोच रही होगी सुहानी,’ विदित ने सोचा और फिर नंबर घुमाने लगा, लेकिन सुहानी ने फोन काट दिया. फिर विदित ने एसएमएस किया.

‘‘क्यों तड़पा रही हो? गुस्से में निकल गया मुंह से. इस के लिए मैं माफी मांगता हूं,’’ सुहानी ने एसएमएस पढ़ कर रिप्लाई किया.

‘‘क्या चाहते हो?’’ सुहानी  झुं झला कर बोली.

‘‘तुम्हें चाहता हूं,’’ विदित बोला.

‘‘क्यों चाहते हो?’’

‘‘प्यार करता हूं तुम से.’’

‘‘मु झ से या मेरे शरीर से?’’

‘‘तुम्हारा शरीर भी तो तुम ही हो.’’

‘‘तो ऐसा कहो, शरीर चाहिए मेरा.’’

‘‘तुम गलत सम झ रही हो.’’

‘‘मैं ठीक सम झ रही हूं.’’

‘‘तुम्हारी हां है या ना?’’

‘‘जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताए पलों के लिए मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूं.’’

‘‘चलो, कीमत ही सम झ कर दे दो.’’

‘‘ठीक है, बताओ कब, कहां आना है?’’ सुहानी ने कहा.

विदित को सम झ नहीं आ रहा था कि जो औरत कल तक उस के लिए बिछने के लिए तैयार थी, जिस के हितअहित के बारे में इतना सोचा कि सुख की चरम अवस्था से लौट कर वापस आ गया. आज वही औरत इस तरह की बात कर रही है. इन औरतों को सम झना बहुत मुश्किल है. एक बार संबंध बनने के बाद अपनेआप काबू में आ जाएगी . स्त्रीपुरुष के बीच जिस्मानी संबंध बनने जरूरी हैं. तभी स्त्री पूर्णरूप से समर्पित हो कर रहेगी. एक बार संबंध बन गए तो फिर वह उसी की राह ताकती रहेगी. खाली प्रेम तो दिल की बातें हैं. आज है कल नहीं है. विदित यों निकला जैसे शिकार पर निकल रहा हो. विदित ने विभागीय औडिट टीम के लिए 3 कमरे होटल रीगल में बुक करवाए. रात 12 बजे की ट्रेन से औडिट टीम जाने वाली थी. उस ने होटल के मैनेजर को फोन कर के कहा, ‘‘एक कमरा कल सुबह तक बुक रहेगा. 2 कमरे खाली कर रहा हूं.’’

‘‘यस सर.’’

विदित के बताए पते पर रात 10 बजे सुहानी पहुंची. घर से वह यह कह कर निकली कि साहब जरूरी काम से बाहर गए हैं. घर पर उन की पत्नी अकेली हैं इसलिए मु झे साथ रहने के लिए उन की पत्नी ने बुलाया है. साहब का निवेदन था, इनकार नहीं कर सकती. विदित होटल के बाहर सुहानी की प्रतीक्षा कर रहा था. सुहानी को देख कर उस के चेहरे पर चमक आ गई.  कमरे के अंदर पहुंचते ही विदित ने दरवाजा बंद किया और सुहानी को जोर से भींच कर कहा, ‘‘आई लव यू.’’ इस के बाद बिना सुहानी से पूछे वह सुहानी के जिस्म को चूमने लगा. सुहानी कहती रही कि इतनी रात को न आने के लिए मैं ने तुम्हें पहले ही मना किया था और तुम ने भी वादा किया था. मु झे  झूठ बोल कर आना पड़ा, लेकिन विदित का ध्यान सुहानी की बातों पर बिलकुल नहीं था. वह तो सुहानी के शरीर के लिए बेकरार था. वह सुहानी के नाजुक अंगों को चूमता रहा, सहलाता रहा. उस के बदन को  झिंझोड़ता रहा. सुहानी कहती रही, ‘‘तुम ने फोन पर मु झ से इस तरह बात की जैसे मैं कोई वेश्या हूं. तुम्हें मेरा शरीर चाहिए था तो लो यह रहा शरीर. बु झा लो अपनी वासना की आग. मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो था वह खत्म हो चुका है. मैं सिर्फ उन पलों की कीमत चुकाने आई हूं, जो मेरे लिए तुम्हारे साथ अनमोल थे. मेरे जीवन के वे सब से अद्भुत क्षण. मेरे स्त्रीत्व होने के वजूद भरे पल.’’ विदित सुहानी की कोई बात नहीं सुन रहा था, न सम झ रहा था. वह सुहानी के जिस्म से खेल रहा था. सुहानी शव के समान पड़ी रही. उस के अंदर कोई भाव नहीं था, शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन इस ओर विदित का ध्यान नहीं गया. वह तो शिकारी बना हुआ था. सुहानी के शरीर को चीरफाड़ रहा था, सुहानी के अंदर न रस था न आनंद. वह निर्जीव सी पड़ी हुई थी और विदित उस के अंदर प्रवेश कर खुद को जीता हुआ महसूस कर रहा था. उस का खुमार उतर चुका था. अब आग जल कर राख हो चुकी थी.

विदित की नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी. उसे सुहानी कहीं नहीं दिखाई दी. न कमरे में न वाशरूम में. उस ने सुहानी को फोन लगाया. सुहानी का मोबाइल बंद था. उस ने मैनेजर से फोन पर पूछा, ‘‘मैडम कहां गईं?’’

‘‘सर, वे तो रात को ही चली गई थीं.’’ मैनेजर बोला.

‘‘कितने बजे?’’ विदित भौचक रह गया.

‘‘तकरीबन 12 बजे,’’ मैनेजर ने कहा.

‘‘कोई मैसेज दिया, कुछ कह कर गई वह?’’ विदित ने पूछा.

‘‘सर, आप के लिए एक पत्र छोड़ कर गई हैं,’’ मैनेजर ने विदित को बताया.

‘‘मेरे कमरे में पहुंचा देना,’’ विदित ने आदेश दिया.

‘‘जी सर,’’ मैनेजर बोला.

थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘अंदर आ जाओ,’’ विदित ने कहा, तो वेटर ने अंदर आ कर एक लिफाफा दिया. लिफाफा ले कर विदित ने कहा, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

विदित ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ा, ‘तुम्हारे दिए अनमोल पलों की कीमत चुका दी है मैं ने और तुम ने भी अच्छी तरह वसूल ली है. तुम कुछ भी हो सकते हो, लेकिन प्रेमी नहीं हो सकते. मैं ने तुम्हें तन दे दिया है जिस की तुम्हें जरूरत थी. मन अपने साथ ले कर जा रही हूं. औरत के शरीर को पा कर तुम यह सम झो कि तुम ने औरत पर नियंत्रण पा लिया है तो तुम्हारी और बलात्कारी की सोच में कोई फर्क नहीं रहा. प्रेम में देह कोई माने नहीं रखती, लेकिन जिसे देह से ही प्रेम हो वह तो महज व्यभिचारी हुआ. मैं ने प्रेम किया था तुम से. देह तो स्वयं ही समर्पित हो जाती, क्योंकि प्रेम प्रकट करने का माध्यम है देह, लेकिन तुम ने स्त्री के मन और तन को अपनी इच्छा और सुविधानुसार अलगअलग कर के देखा. तुम्हारी खोज एक शरीर की खोज थी. इस के लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं थी. चले जाते किसी वेश्या के पास. मेरी खोज प्रेम की खोज थी. जो मु झे तुम से नहीं मिला. दोबारा मिलने व संपर्क करने की कोशिश मत करना.

‘पुन: प्रेम की खोज में,

सुहानी.’

विदित पत्र पढ़ कर सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा, ‘उफ्फ, यह मैं ने क्या कर दिया? तन पा लिया और मन खो दिया. कुछ पल पाए और पूरा जीवन खो दिया. जीत कर भी हार गया मैं. ‘प्रेम में जीतहार जैसी बातें सोच कर प्रेम को अपमानित कर दिया मैं ने. सामने अमृतकुंड था और प्यास बु झाने के लिए खारा पानी पी लिया मैं ने. सुहानी का सबकुछ मेरा था, मन भी और तन भी, लेकिन क्षण भर की वासना में प्रेम की कीमत लगा ली मैं ने. जो सहज और स्वाभाविक रूप से मेरा था उसी को नीलाम कर दिया मैं ने. अपने ही प्रेम की बोली लगा कर हमेशा के लिए खो दिया सुहानी को. अपने प्रेम को अपमानित और प्रताडि़त कर दिया मैं ने. कितना बेवकूफ था मैं, जो सोचने लगा कि औरत को जीता जा सकता है. संपत्ति सम झ लिया था मैं ने औरत को. ‘सुहानी के लिए शरीर प्रेम करने का माध्यम था और मैं शरीर की तृप्ति के लिए कितनी ओछी हरकत कर बैठा सुहानी के साथ. सुहानी ने प्रेम में बिताए अनमोल पलों के लिए शरीर सौंप दिया मु झे. जैसे शव को सौंपते हैं अग्नि में.’ बहुत देर तक उदास और गमगीन बैठा रहा विदित. दोबारा सुहानी से मिलने की हिम्मत नहीं थी उस में और सुहानी प्रेम के अनमोल क्षणों की तलाश में निकल पड़ी. उसे किसी बात का दुख नहीं था. वह ऐसे पुरुष के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती थी जो प्रेम में आगे बढ़ते हुए पीछे हट जाए. जो स्त्रीपुरुष के अंतरंग क्षणों में भलाबुरा सोचते हुए पीछे हट जाए और यह भूल जाए कि इन अनमोल पलों में आगे बढ़ते हुए पीछे हटने से स्त्री अपमानित होती है. सुहानी को प्रेम के वे पल इतने भा गए थे कि उन पलों को वह फिर से जीने के लिए प्रेम की तलाश में निकल पड़ी. उम्र के इस दौर में प्यार मिलता है या नहीं यह अलग बात है, लेकिन सुहानी की तलाश जारी थी. उसे विश्वास था कि वह प्रेम के अनमोल पलों को खोज लेगी.

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