स्नेहा अपने मातापिता की एकलौती संतान होने के कारण बहुत लाड़ली थी. स्कूल में उस के दोस्त भी बहुत थे लेकिन इस के बाद भी स्नेहा को अपने भाई की कमी महसूस होती थी. खासकर रक्षाबंधन पर तो वह अपने भाई की कमी बहुत महसूस करती. जैसेजैसे स्नेहा बड़ी हो रही थी उसे भाई की कमी काफी खलने लगी थी.

जब वह कक्षा 8 में पढ़ रही थी तभी उस के पड़ोस में सुरेश और नेहा का परिवार आ कर रहने लगा. पड़ोस में रहने के कारण स्नेहा का उन के घर आनाजाना होने लगा, वहां स्नेहा को अपना हमउम्र राकेश मिल गया. राकेश स्नेहा से एक क्लास आगे था. उस ने स्नेहा के स्कूल में ही ऐडमिशन ले लिया. अब स्नेहा और राकेश के बीच मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता बन गया. दोनों एकसाथ पढ़ने जाते थे. स्कूल में भी ज्यादातर एकसाथ रहते थे. स्नेहा को अब लगने लगा जैसे उस का कोई बड़ा भाई भी है. स्नेहा पहले से अधिक खुश रहने लगी. दूसरी ओर राकेश भी स्नेहा का साथ पा कर खुश रहने लगा था. दोनों का मन अब पढ़ने में लगने लगा था. इस से उन के पेरैंट्स भी खुश थे.

यह बात केवल स्नेहा और राकेश की ही नहीं है, आज कई ऐसे बच्चे हैं जो अकेले होते हैं. कई बच्चों को अकेलापन परेशान करने लगता है, जिस से वे मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं. ऐसे में मुंहबोले भाईबहन जैसे रिश्ते समय की जरूरत बन जाते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से अधिक मजबूत होते हैं, क्योंकि इन में एकदूसरे की भावनाओं का ज्यादा खयाल रखा जाता है.

समाजशास्त्री डाक्टर रेखा सचान कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते बहुत जरूरी होते हैं. यह समय की जरूरत बनते जा रहे हैं. वैसे तो ऐसे रिश्ते इतिहास में भी मिलते हैं. मुगल बादशाह हुमायूं और चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्णवती की कहानी ऐसे रिश्तों की पुष्टि करती है. कर्णवती राजा राणासांगा की पत्नी थी. वह हुमायूं को राखी बांधती थी. दोनों के बीच मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता था. एक बार युद्ध के समय कर्णवती ने हुमायूं से मदद मांगी तो हुमायूं ने अपनी सेना सहित उन की मदद की.’’

एकल परिवार बने वजह

समाज में पहले संयुक्त परिवार का चलन था. जहां बच्चों को तमाम भाईबहन मिल जाते थे, जो सगे भाईबहन की कमियों को पूरा करते थे. छुट्टियों में बच्चे अपने नातेरिश्तेदारों के यहां रहते थे जिस से उन के बीच बेहतर रिश्ते बन जाते थे. अब यह चलन करीबकरीब बंद हो गया है. बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ पड़ने लगा है कि वे छुट्टियों को तो भूल ही गए हैं. केवल बच्चे ही नहीं बल्कि उन के पेरैंट्स को भी छुट्टी नहीं मिलती. ऐसे में मुंहबोले भाईबहन समय की जरूरत बन गए हैं. कई बार बच्चे अपनी जो बातें मातापिता, सगे भाईबहन से नहीं कह पाते वे बातें मुंहबोले भाईबहन से कह देते हैं.

दिल्ली की रहने वाली पुनीता शर्मा कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन में यह जरूरी नहीं होता कि वे एक ही जाति या धर्म के हों. अलगअलग जाति और धर्म वाले भी मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता बेहतर निभा सकते हैं. यह समय की ही नहीं समाज की भी जरूरत है. ऐसे रिश्तों से बेहतर भविष्य और समाज की संरचना हो सकती है. समाज में ऐसे तमाम रिश्ते दिखते हैं जहां मुंहबोले भाईबहन के बीच बेहतर कमिटमैंट और सहयोग होता है. कई बार तो यह रिश्ते सगे रिश्तों से भी अधिक कारगर साबित होते हैं. ’’

दोस्ती से ज्यादा भरोसा

किशोरावस्था में दोस्ती के रिश्ते बहुत बनते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से कहीं अधिक जिम्मेदारी भरे होते हैं. दोस्ती बनतीबिगड़ती रहती है पर ऐसे रिश्ते आसानी से टूटते नहीं हैं. दोस्ती में जहां कई तरह की परेशानियां आ जाती हैं वहीं मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों में हमेशा एक बंधन होता है. मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों में परिवार भी जुड़ा होता है. ऐसे में यहां पर भरोसा दूसरे रिश्तों के मुकाबले ज्यादा होता है. परिवार के साथ होने से यह रिश्ते ज्यादा समय तक और भरोसे के साथ चलते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में दोनों ही तरफ से जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं. परिवार के साथ होने से ऐसे रिश्तों में कोई परेशानी या तनाव आता है तो उस को दूर करना सरल होता है.

लखनऊ के लालबाग गर्ल्स इंटर कालेज में पढ़ने वाली रितिका अग्निहोत्री कहती है, ‘‘आज के समय में ज्यादातर किशोर उम्र के बच्चे ऐसे रिश्तों और उन की जरूरतों को कम समझ पाते हैं. समाज को ऐसे रिश्तों की बहुत जरूरत है. ऐसे रिश्तों से समाज में बेहतर माहौल बनता है. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से ज्यादा गंभीर होते हैं. इन को समझ कर सहेजने की जरूरत है.’’

तालमेल बैठाना जरूरी

कोई भी रिश्ता हो उस में तालमेल और खुलेपन का होना जरूरी होता है. जब तक आप उस रिश्ते को सही से समझेंगे नहीं, उसे निभा नहीं पाएंगे. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते के प्रति यह समझना जरूरी होता है कि यह प्रेम और खून के रिश्ते जैसा नहीं होता. कभीकभी इस में दूरी भी आती है. यह दूरी कई वजहों से आ सकती है. जब ऐसे रिश्तों में दूरी आए तो परेशान होने की जरूरत नहीं होती, बल्कि आपसी तालमेल से गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.

संजोली श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते किशोर उम्र में ही बनते हैं. इस के बाद भी इन का एहसास जीवनभर बना रहता है. ऐसे रिश्ते आगे चल कर पारिवारिक रिश्तों की तरह बन जाते हैं और सगे रिश्तों से भी अधिक गहरे हो जाते हैं. हर रिश्ते की तरह मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता भी बहुत कमिटमैंट के साथ निभाने की जरूरत होती है. इस रिश्ते में विश्वास और ईमानदारी का होना बहुत जरूरी होता है. आज जहां समाज में लड़कियों के अनुकूल माहौल बनाने की बात की जा रही है वहीं ऐसे रिश्तों की भी बहुत जरूरत महसूस होती है.’’

रिश्तों का अपनापन

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में कोई बड़ी मजबूरी नहीं होती. यह दिल से बनते हैं और हंसीखुशी निभाए जाते हैं. लखनऊ के लामार्टिनियर गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली दिया मनशा कहती है, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में अपनापन होता है. उस में एक भरोसा होता है. कैरियर के बारे में किशोरावस्था में तमाम तरह के सवाल मन में चलते रहते हैं. ऐसे में आपस में सलाह कर सही दिशा मिल जाती है.

‘‘यह बात सही है कि नए दौर में यह रिश्ते गुम से होते जा रहे हैं लेकिन इस के बाद भी ऐसे रिश्तों की जरूरत खत्म नहीं होती. इन को बनाए रखना समाज की जरूरत हो गई है.’’

अनुपम तिवारी कहता है, ‘‘मुंहबोले भाईबहन एकदूसरे की बेहतर मदद कर सकते हैं. इन को आपस में एकदूसरे के परिवार और घर की भी जानकारी होती है. ऐसे में यह घरपरिवार को सामने रख कर सलाह देते हैं जो ज्यादा बेहतर साबित होती है. हम इन रिश्तों के साथ खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. ऐसे में इन रिश्तों को सहेजने और बनाए रखने की भरपूर जरूरत है.’’

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