सवाल

मेरा 2 साल का बेटा न तो सुन पाता है और न ही बोल पाता है. हम ने अपने फैमिली डाक्टर और दूसरे 2-3 डाक्टरों से बातचीत की, लेकिन उन की राय है कि वह जन्म से ही बधिर है. अत: उस की सुनने की शक्ति सामान्य बना पाना मुश्किल है. पिछले दिनों मैं ने अखबार में कोक्लियर इंप्लांट के बारे में पढ़ा. उस से कुछ उम्मीद जागी. क्या मेरे बेटे को कोक्लियर इंप्लांट से लाभ मिल सकता है? उस के लिए हमें क्या करना चाहिए? कोक्लियर इंप्लांट लगवाने पर कितना खर्च आता है? क्या यह सुविधा सरकारी अस्पतालों में भी उपलब्ध है?

जवाब

आप अपने बेटे को किसी बड़े सरकारी अस्पताल के ईएनटी विभाग में विस्तार से जांच कराएं. जब तक बच्चे के कानों की अंदरूनी जांच ठीक से नहीं हो जाती और यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि दोष कान के किस भाग में है और यह दोष किस किस्म का है, यह कह पाना मुश्किल है कि उस के लिए कौन सा इलाज फायदेमंद साबित होगा.

दरअसल, हमारे कान देखने में चाहे बिलकुल ठीक नजर आते हों, पर उन की अंदरूनी बनावट खासी जटिल होती है. मोटे तौर पर प्रत्येक कान 3 हिस्सों में बंटा होता है. बाहरी कान जो कान का चौड़ा बाहर से दिखने वाला हिस्सा है, जिस से

1 सुरंगनुमा नली अंदर मध्य कान की ओर जाती है, इस नली के अंदरूनी सिरे पर कान का परदा होता है जिस के अंदर मध्य कान स्थित होता है. इस में 3 छोटीछोटी हड्डियां होती हैं. बाहरी कान तक आने वाली ध्वनितरंगें उस की सुरंगनुमा नली से होती हुई कान के परदे तक पहुंचती हैं और मध्य कान की हड्डियों में कंपन पैदा करती हैं. ये कंपन तरंगें इन हड्डियों के माध्यम से अंदर सटे अंदरूनी कान के चक्राकार कोक्लियर के नाजुक रोमों में पहुंच जाती हैं. कोक्लियर इन कंपन तरंगों को विद्युत सिग्नल्स में बदल देता है, जिन्हें श्रुति तंत्रिका मस्तिष्क के श्रुति केंद्र में पहुंचा देती है. यह श्रुति केंद्र इन सिग्नल्स का विश्लेषण कर उन्हें तरहतरह की ध्वनियों में बदल देता है, जिस से हम ध्वनि लोक का सुख उठा पाते हैं.

जिन बच्चों में कोक्लियर का दोष होता है, उन में नया कोक्लियर नुमा यंत्र सर्जरी से रोपित करने से सुनने की शक्ति सामान्य या लगभग सामान्य बनाई जा सकती है.

कई बच्चों में कोक्लियर का यह दोष जन्म से ही होता है. बच्चा जिस वक्त मां के पेट में होता है, उस वक्त मां को हुआ खसरा, जौंडिस, दूसरा कोई इन्फैक्शन, जन्म के समय बच्चे की सांस भिंचने से हुई क्षति या बच्चे के प्रैगनैंसी के 7वें/8वें महीने में जन्म लेने और उस के बाद लंबे समय तक इंक्यूबेटर में रहने से यह विकार जन्म ले सकता है. कुछ मांएं बच्चे के पेट में होते हुए गलत दवा ले लेती हैं. उस से भी यह परेशानी उपज सकती है. कुछ परिवारों में यह समस्या वंशानुगत भी पाई जाती है.

यह जांचने के लिए कि बच्चे को कौन सा श्रुति दोष है, कई प्रकार के उन्नत टैस्ट किए जाते हैं, जिन में बाहरी कान से ले कर अंदरूनी कान के सभी अंग, श्रुति तंत्रिका और मस्तिष्क के श्रुति केंद्र की भलीभांति जांच हो जाती है. साथ ही कान के तमाम हिस्सों और मस्तिष्क की रचना की जांच के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई भी की जाती है. बच्चे का आईक्यू भी जांचा जाता है.

उपयुक्त मामलों में पहले बच्चे को हियरिंग एड लगाई जाती है. जिन बच्चों में उस से बात नहीं बनती और 6 महीने तक भी कोई लाभ नहीं दिखता उन में कोक्लियर इंप्लांट का औपरेशन करने का फैसला लिया जाता है.

भारत में कोक्लियर इंप्लांट की कीमत 6 से 12 लाख के बीच है. प्राइवेट अस्पतालों में इस से जुड़े औपरेशन पर अलग से लगभग 1 लाख खर्च होते हैं. फिर स्पीच थेरैपी और दूसरी चीजों का खर्च अलग से उठाना पड़ता है. कुल मिला कर यह काफी महंगा सौदा है.

पर यदि आप दिल्ली या दिल्ली के आसपास रहते हैं, तो आप केंद्र सरकार के सफदरजंग अस्पताल में यह पूरा इलाज बहुत कम लागत पर करवा सकती हैं. अस्पताल के ईएनटी विभाग में बिलकुल हाल में ही यह व्यवस्था विकसित की गई है, जिस में बच्चे की जांच, कोक्लियर इंप्लांट, सर्जरी सभी नि:शुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं और मात्र विशिष्ट स्पीच थेरैपी की सुविधा उपलब्ध न होने से उस का खर्च मातापिता को वहन करना पड़ता है. आप चाहें तो अधिक जानकारी के लिए सफदरजंग अस्पताल के ईएनटी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. गुल मोतवानी या डा. तिलकराज सिंह से संपर्क कर सकती हैं.

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