महिलाएं किसी भी मजहब की क्यों न हों, उन्हें पीटना न सिर्फ अमानवीय है बल्कि गैरकानूनी भी है. मुसलिम महिलाओं को आगे बढ़ाने और समाज में उन की भागीदारी को सुनिश्चित करने हेतु हर क्षेत्र में अधिकार देने की मुहिम चल रही है जबकि दूसरी ओर उन की पिटाई करने का हक मर्दों को देने का सुझाव दिया जा रहा है. यह सुझाव पाकिस्तान काउंसिल औफ इसलामिक आइडियोलौजी (सीआईआई) ने दिया है. सीआईआई पाकिस्तान की संवैधानिक संस्था है जो समयसमय पर इसलामी कानूनों के हवाले से वहां की संसद को सुझाव देती है. यह अलग बात है कि पाकिस्तानी संसद उस के सुझावों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. ताजा सुझावों ने महिलाओं को आश्चर्यचकित कर दिया है और उन में काफी रोष है. महिलाओं का तर्क है कि उलेमा ने समाज में अपने प्रभाव के चलते पिटाई को धर्म से जोड़ दिया है जबकि इसलाम में महिलाओं की पिटाई का कोई औचित्य नहीं है. सीआईआई के सुझावों को स्वीकार किया जाता है अथवा नहीं, यह अलग सवाल है लेकिन इन सुझावों ने एक पुरानी बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है.

सुझावों में कहा गया है कि यदि कोई महिला मासिकधर्म में सफाई का खयाल नहीं रखती है, जिस्म को ढकने वाले कपड़े पहनने से इनकार करती है, शौहर की बातों से मतभेद रखती है और उन्हें नहीं मानती है, तो शौहर को अपनी बीवी की पिटाई करने का हक है. साथ ही, नर्सों द्वारा मर्द मरीजों की देखभाल करने और ‘अश्लील’ विज्ञापनों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी लगाने का भी सुझाव दिया गया है.

जहां तक महिलाओं की पिटाई का मामला है, इसलामी न्यायविधियों ने इस पर बड़ी लंबीचौड़ी बहस की है. भारत सहित मुसलिम देशों में यह व्यवस्था चलन में है क्योंकि उलेमा इस बात पर एकमत हैं कि महिलाओं की पिटाई करने का शौहर को हक है. फुकहा यानी धार्मिक न्यायविद ने पिटाई के लिए जो दिशानिर्देश दिए हैं वे बहुत दिलचस्प हैं. फतवों के अनुसार, बीवी की पिटाई झाड़ू की तीली अथवा किसी हलकी चीज से की जाए जिस से उस के शरीर पर निशान न पड़े, और चेहरे पर न मारा जाए, हथेली अथवा पीठ पर मारा जाए. लेकिन यदि कोई शौहर गुस्से में इन दिशानिर्देशों की अनदेखी कर बीवी को पीटता है, जिस का नमूना समाज में आएदिन देखने को मिलता है, तो क्या उस शौहर पर कोई कानून लागू होगा अथवा वह बेलगाम रहेगा, जैसे सवालों पर आमतौर पर कोई चर्चा नहीं होती है.

वैसे उपरोक्त सुझावों में यह व्यवस्था है कि यदि कोई शौहर अपनी बीवी पर हिंसा करता है तो उस के खिलाफ देश के कानून के मुताबिक कार्यवाही की जाएगी. बुनियादी सवाल यह है कि आदमी गुस्से के समय झाड़ू की तीली तलाश करेगा अथवा जो हाथ में आएगा, उस का इस्तेमाल करेगा. यहां महिलाओं की जिस तरह पिटाई होती है वह पिटाई नहीं, हिंसा की श्रेणी में आती है, जो अपराध है और यदि कोई महिला थाने में इस की शिकायत दर्ज कराती है तो पुलिस, कानून के अनुसार, उस आदमी के खिलाफ कार्यवाही करती है. लेकिन मुसलिम महिलाओं द्वारा शिकायतें कम ही दर्ज कराई जाती हैं.

शारीरिक व मानसिक पीड़ा

सीआईआई ने महिला अधिकारों के संरक्षण हेतु जो विधेयक तैयार किया है वह 164 धाराओं पर आधारित है. इस में बीवी को ‘हलकी मार’ की इजाजत दी गई है तो निसंदेह फुकहा के फतवों के अनुरूप है. इन फतवों की वजह से औरत की पिटाई को एक तरह से धर्म का संरक्षण प्राप्त हो गया है लेकिन इसलाम की मूलभावना में यह धारणा नहीं है बल्कि फुकहा का समयानुसार अपनी सोच पर आधारित फतवा है. इसलिए वह इसलाम द्वारा महिलाओं को दिए गए मानसम्मान से मेल नहीं खाता है. लेकिन यह भी सच है कि आमतौर पर किसी ने उलेमा की इस धारणा को चैलेंज नहीं किया है, बल्कि आंख मूंद कर उस का पालन किया जा रहा है.

इस संदर्भ में बीते दिनों सऊदी अरब के विख्यात बुद्धिजीवी डा. अब्दुल हमीद अबु सुलेमान ने 2002 में एक किताब ‘बीवी की पिटाई : कुरआन व सुन्नत की रोशनी में’ लिखी जिसे नई दिल्ली के इंस्ट्टियूट औफ औब्जैक्टिव स्टडीज ने प्रकाशित किया है. लेखक ने इस किताब में पिटाई को ले कर फुकहा के फतवों से मतभेद व्यक्त किया है. लेखक ने लिखा है कि आमतौर पर फुकहा ने कुरआन की सूरा-अल-निसा में इस्तेमाल शब्द ‘जरब’ से पिटाई का अर्थ लिया है लेकिन क्या इस का अर्थ शारीरिक चोट अथवा मानसिक पीड़ा पहुंचाना है.

समाज में मां का जो स्थान है, क्या उस को चोट पहुंचा कर उस की गरिमा बहाल रह सकती है और क्या एक स्वस्थ्य एवं नैतिक मूल्यों वाले समाज की कल्पना की जा सकती है. इसी तरह मियांबीवी के रिश्ते द्वारा 2 परिवार आपस में मिलते हैं और मियांबीवी से एक नया परिवार वजूद में आता है, क्या बीवी को पीडि़त करने व मानसिक पीड़ा पहुंचाने से एक नया परिवार वजूद में आ सकता है?

पिटाई से जो पीड़ा और मनमुटाव पैदा होता है वह दिलों में नासूर बन जाता है. नाराजगी जाहिर करने के लिए बीवी का बिस्तर अलग कर देना उपयुक्त तरीका है. ‘जरब’ शब्द से पिटाई समझना सही नहीं है बल्कि इस का अर्थ नाराजगी जाहिर करना है. नाराजगी के लिए पिटाई अथवा पीड़ा पहुंचाने का कोई औचित्य नहीं है. द्य

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