जब बिहार में किसानों और खेती को बचाने के लिए नीलगायों को मारने का जिम्मा पेशेवर शिकारियों को सौंपा गया, तो पटना से ले कर दिल्ली तक की सियासत गरमा गई. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अपने ही दल और सरकार के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडे़कर के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया. बिहार में मोकामा के दियारा इलाकों में नीलगायों के बढ़ते आतंक को रोकने के लिए जब उन्हें मारने का काम शुरू किया गया, तो मेनका ने केंद्र और राज्य सरकार की बखिया उधेड़ते हुए कहा कि पता नहीं जानवरों को मारने की कौन सी हवस पैदा हो गई है? अपने साथी मंत्री के आरोपों के जवाब में जावड़ेकर सफाई  दर सफाई देते रहे, पर मेनका अपनी रौ में बहती रहीं. प्रकाश ने कहा कि बिहार सरकार ने नीलगायों को मारने की अनुमति मांगी थी और कानून के तहत मंजूरी दी गई है.

नीलगायों को मारना केंद्र की कोई योजना नहीं है. नीलगायों पर मची राजनीति से भौंचक किसानों का कहना है कि मेनका गांधी को नीलगायों की वकालत करने से पहले किसानों की हालत को देखना चाहिए. नीलगायों के खौफ से लाखों एकड़ उपजाऊ खेत खाली पड़े हैं. मोकामा के दियारा इलाकों में 6 जून से नीलगायों को मारने का काम शुरू हो गया और 9 जून तक 300 से ज्यादा नीलगायों को मारा जा चुका है. इस के लिए हैदराबाद के शिकारी नवाब शफाथ अली खान और उन की टीम को लगाया गया है. नीलगायों को मारने से मेनका इस कदर खफा हुईं कि उन्होंने केंद्र सरकार और बिहार सरकार दोनों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि आरटीआई से पता चला है कि किसी भी राज्य ने जानवरों को मारने की मंजूरी नहीं मांगी है. वहीं नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद बिहार में होने वाला यह पहला इतना बड़ा प्राणी संहार है.

मेनका ने कहा कि गुजरात में  1 लाख 86 हजार नीलगायें हैं और वे अकसर मूंगफली, अरंडी, बाजरा, गन्ना, कपास आदि फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं. इस के बाद भी वहां एक भी नीलगाय नहीं मारी गई. गौरतलब है कि साल 2007 में ही केंद्र सरकार ने गुजरात सरकार को नीलगायों को मारने की मंजूरी दी थी.

मेनका ने आगे कहा कि क्या अब गोवा में मोरों को मारा जाएगा? क्या बंगाल में हाथियों को मारने की इजाजत दी जाएगी? हिमाचल में बंदरों की संख्या ज्यादा है, तो क्या बंदरों को मारा जाएगा? क्या चंद्रपुर में जंगली सूअरों को निशाना बनाया जाएगा? सरकार को सोचना चाहिए कि जंगलों के कटने और आग लगने की वजह से ही जानवर बाहर निकल आते हैं.

मेनका के आरोपों के जवाब में जदयू के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार ने 1 दिसंबर 2015 को ही नीलगायों और जंगली सूअरों को मारने की इजाजत दी थी. उस समय मेनका गांधी ने उस का विरोध क्यों नहीं किया? अगर मेनका को नीलगायों से प्रेम है, तो उन्हें खेतों से हटा कर कहीं और रखने का इंतजाम करवाएं.

नीरज ने कहा कि मेनका गांधी को पता नहीं है कि नीलगायों की वजह से बिहार समेत कई राज्यों के किसान तबाह हो रहे हैं. नीलगायों से फसलों को बचाने के लिए साल 2007 में किसानों का बड़ा आंदोलन हो चुका है और उसी के बाद पटना हाई कोर्ट ने भारत सरकार को कार्यवाही करने का आदेश दिया था. उस के बाद ही नीलगायों और जंगली सूअरों को अनुसूची 3 से हटा कर अनुसूची 5 में डाला गया और उन के शिकार की इजाजत दी गई. वन्य प्राणी अधिनियम 1972 की धारा 11 बी के तहत कहा गया है कि इन के शिकार के लिए पेशेवर शिकारियों की मदद ली जाए. बिहार के 20 जिलों में पूरी तरह से और 11 जिलों के सीमित इलाकों में नीलगायों के शिकार की इजाजत है. वहीं 10 जिलों में जंगली सूअरों का शिकार करने की मंजूरी है.

गौरतलब है कि पटना जिले के मोकामा के दियारा इलाकों में पिछले कई सालों से नीलगायों का आतंक मचा हुआ है और वहां के किसानों ने खेती करना बंद कर दिया है. नीलगायों के झुंड दलहन,तिलहन, रबी, खरीफ समेत सब्जियों की फसलों को पलक झपकते ही चर जाते हैं या बरबाद कर देते हैं. फतुहा से ले कर बड़हिया तक फैले मोकामा दियारा क्षेत्र में 1 लाख 67 हजार हेक्टेयर में खेती की जाती है, पर पिछले कुछ सालों से हजारों हेक्टेयर खेत खाली पड़े हैं. सरकारी आंकड़ों में बिहार में करीब 25 हजार नीलगायें हैं.

नीलगायों के आतंक से परेशान उत्तर बिहार के कई इलाकों में किसान हजारों एकड़ खेतों में खेती नहीं कर पा रहे हैं. उन की मेहतन और पूंजी को एक झटके में ही नीलगायें चर जाती हैं. किसानों के सामने सिर पीटने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है. बिहार में हर साल नीलगायें किसानों को करीब 600 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाती हैं. उन के खौफ की वजह से पिछले साल करीब 25 हजार हेक्टेयर खेत खाली रह गए. राज्य के पटना, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, औरंगाबाद, सिवान, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सारण, बेगूसराय और मधुबनी में नीलगायें और जंगली सूअर करीब 21 हजार टन अनाज गटक जाते हैं, जिस से किसानों को हर साल 600 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

उत्तर बिहार के गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों में नीलगायों के आतंक से किसान परेशान और खेती तबाह है. मोतीहारी जिले के पिपरा गांव के किसान मलंग लाल ने बताया कि उन्होंने अरहर की खेती के लिए कर्ज ले कर बीज, खाद से ले कर सिंचाई तक का इंतजाम किया था, लेकिन उन की सारी फसल को नीलगायें चट कर गईं. अब महाजन का कर्ज चुकाना बहुत बड़ी समस्या बन गया है.

मोतिहारी के तुरकौलिया, पीपरा, कोटवा, हरसिद्धि सहित कई प्रखंडों में नीलगायों के उत्पात ने खेती और किसानों को तबाह कर दिया है. नीलगायों के आतंक की वजह से गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों की करीब 70 हजार एकड़ जमीन पर किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. लहलहाती फसलों को नीलगायें पलक झपकते ही खा जाती हैं और किसान अपनी मेहनत और पूंजी के लुटने का तमाशा देखते रह जाते हैं.

किसान रामेश्वर यादव ने बताया कि पहले तो पटाखों की आवाज से डर कर नीलगायें भाग जाती थीं, लेकिन अब उन पर पटाखों के धमाकों का कोई असर नहीं होता है. फसलों को बचाने के लिए किसानों को हर महीने करीब 2 हजार रुपए पटाखों पर खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन अब वे भी फायदेमंद नहीं साबित हो रहे हैं. नीलगायें अगर किसी किसान की फसलों को बरबाद कर देती हैं, तो सरकार की ओर से उसे मुआवजा मिलता है. फसल के नुकसान होने पर प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपए का अनुदान दिया जाता है. कृषि मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि जिन इलाकों में नीलगायों का ज्यादा आतंक है, उन इलाकों के किसानों को इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वे जेट्रोफा की खेती करें. उसे नीलगायों से कोई खतरा नहीं होता है. किसानों को जेट्रोफा के पौधे भी मुहैया कराए जा रहे हैं. लेकिन जेट्रोफा की खेती करने में किसानों की कोई दिलचस्पी नहीं है. किसान मनीराम का कहना है कि उन्हें मुआवजा नहीं बल्कि नीलगायों से हमेशा के लिए नजात दिलाई जाए.

नीलगायों की आबादी काफी तेजी से बढ़ती है. 1 मादा नीलगाय 1 साल में 4 बच्चे पैदा करती है और उस के बच्चे भी 1 साल के अंदर ही बच्चे पैदा करने लायक हो जाते हैं. इस वजह से नीलगायों की संख्या में तेजी से इजाफा होता जा रहा है.

वेटनरी डाक्टर कौशल किशोर कहते हैं कि साल 2003 में नीलगायों के बंध्याकरण का काम शुरू किया गया था, लेकिन वह योजना काफी समय पहले ही बंद हो गई. बगैर किसी ठोस प्लानिंग के नौसिखिए और अनाड़ी लोगों को बंध्याकरण के काम में लगा दिया गया था, जिस से नतीजा शून्य रहा. वन प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत नीलगायों को संरक्षित जंगली जानवर का दर्जा मिला हुआ है, जिस की वजह से किसान नीलगायों को मार भी नहीं सकते हैं. नीलगायों को मारने वाले को जेल और जुर्माने की सजा देने का इंतजाम है, जिस की वजह से किसान नीलगायों से परेशान हो कर खेती नहीं कर पाने की सजा भुगतने के लिए मजबूर हैं.  

अब नीलगायों को बिजली का झटका

नीलगायों के आतंक से फसलों को बचाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा. इस के तहत लोहे के तारों से खेतों की घेराबंदी कर के उस में सौर ऊर्जा का करंट प्रवाहित किया जाएगा. प्रयोग के तौर पर पटना के सरकारी कृषि फार्म की घेराबंदी की जा रही है. गौरतलब है कि पटना,  मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, भोजपुर, भभुआ, बक्सर आदि जिलों में लहलहाती फसलों को नीलगायों के झुंड चट कर जाते हैं. नीलगाय 10 फुट की ऊंचाई तक छलांग लगा सकती है और वह खासकर दलहनी फसलों को अपना निशाना बनाती है. धान, गेहूं, मक्का को खाने के बाद जब उस का पेट भर जाता है, तो खड़ी फसलों को रौंद कर बरबाद कर देती है. इस से किसानों को काफी नुकसान होता है. घेराबंदी वाले तारों में सौर ऊर्जा के जरीए करंट दौड़ाया जाएगा. करंट डायनमो के जरीए पैदा होगा और उस के झटके से नीलगायों की मौत नहीं होगी. करंट का झटका लगने के बाद नीलगायें खेतों की ओर दोबारा जाने की हिम्मत नहीं करेंगी. इस के लिए किसानों को पैसा भी दिया जाएगा

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