घूस में ऊपर वाले तक का बड़ा हिस्सा रहता है. इसलिए, घूसखोरों को पापी तो किसी भी लिहाज से नहीं कहा जा सकता, बल्कि ढूंढ़ने से उन के जैसे पुण्यात्मा और दानी नहीं मिलेंगे और जो मिलेंगे, उन के घूसखोर न होने की गारंटी खुद ऊपर वाला नहीं लेगा, क्योंकि जब सबकुछ उसी का बनाया हुआ है तो तय है घूस और घूसखोरी भी उसी ने बनाए हैं.
‘तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा’ को वास्तविक रूप से कोई मानता और उस पर ईमानदारी से अमल करता है तो वह घूसखोर ही है जो दिनभर में जो भी पैसा घूस का बटोरता है उस का कुछ हिस्सा घर ले जाने से पहले धर्मस्थलों पर जरूर चढ़ाता है. ऐसा करने से उस के पाप धुल जाते हैं और मन की ग्लानि दूर होती है. यानी, जब ऊपर वाला तक घूस का पैसा स्वीकार लेता है तो किसी को कोई हक नहीं कि वह नीचे वालों को कोसे.
मध्य प्रदेश के कटनी जिले के सलमान हैदर खान खाद्य आपूर्ति निगम में प्रबंधक पद पर थे. उन्होंने अपने सेवाकाल में खूब घूस खाई और कभी भी ऊपर वाले का हिस्सा देना नहीं भूले. बीते दिनों जब लोकायुक्त पुलिस ने उन के इंदौर और कटनी स्थित भव्य आवासों पर छापा मारते 5 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा किया तो लोगों के मन में उन के प्रति नफरत कम, श्रद्धा ज्यादा जागी, कि जैसा भी था, आखिर था तो महादानी. अब यह और बात है कि आम लोगों की यह दलील अदालत में नहीं चलेगी.
सलमान ने एक करोड़ रुपए की राशि धर्मस्थलों के लिए दान की थी और तकरीबन 40 लाख रुपए लोगों की हजयात्रा पर भी खर्च किए थे. जाहिर है, कोई भी आदमी इतनी बड़ी रकम मेहनत से कमा कर तो ऊपर भेजेगा नहीं, क्योंकि खूनपसीने और मेहनत की कमाई अव्वल तो इतनी भारीभरकम होती नहीं, और होती भी है तो लोग कंजूसी कर जाते हैं. वे उतना ही दान करते हैं कि उसे घूस की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि दान अल्प होता है और घूस अपार होती है.
तो सलमान भाई पकड़े गए, उन पर उस ऊपर वाले को भी रहम नहीं आया जिसे वे नियमित घूस का हिस्सा देते रहे थे. फिर नीचे वालों से तो किसी डिस्काउंट या रहम रखने की उम्मीद करना बेकार की बात है. ऐसे धर्मपरायण और महादानी व्यक्ति को हिकारत से देखा जाना और अपराधी माना जाना उस के साथ ज्यादती नहीं तो और क्या है?
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घूस और दान
सलमान खान के पकड़े जाने से दिलचस्प बात यह उजागर हुई कि दुनियाभर के धर्मस्थल जिस पुण्य के पैसे से फलफूल रहे हैं उस में घूस की बड़ी भागीदारी है. मंदिरों, मसजिदों, चर्चों और गुरुद्वारों में जो अरबोंखरबों रुपए चढ़ते हैं उन में बड़ा योगदान घूसखोरों का रहता है, जिन्हें चढ़ाने से पहले सोचना नहीं पड़ता कि कितना चढ़ाएं. भोपाल के एक रिटायर्ड कौंस्टेबल हैं रामसिंह (बदला नाम) जिन्होंने जिंदगीभर ‘भाभीजी घर पर हैं’ नाम के टीवी धारावाहिक के एक पात्र दरोगा हप्पू सिंह की तरह न्योछावर यानी घूस खाई. लेकिन, पूरी ईमानदारी से वे ऊपर वाले का हिस्सा देते रहे. नतीजतन, बेदाग रिटायर हो गए. जिस तरह पुलिस के सेवाकाल में उन्हें अपनी पगार निकालने की जरूरत नहीं पड़ती थी, उसी तरह घूस का पैसा उन्होंने बिना किसी अर्थशास्त्री या फाइनैंशियल एडवायजर की मदद के कुछ इस तरह इन्वैस्ट किया कि उस के रिटर्न और इंट्रैस्ट के चलते पैंशन की रकम निकालने की जरूरत नहीं पड़ती.
हप्पू सिंह की तरह रामसिंह को भी कभी घूस लेने में कोई संकोच नहीं हुआ और न ही शर्म आई. वे बेहिचक घूस खाते रहे, जिस के बूते पर दोनों बेटे महंगे स्कूलों में पढ़ कर सरकारी नौकरी में लग गए. वे अब भी घूस खाने की अपनी पुश्तैनी परंपरा को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभा रहे हैं. बड़ा पुलिस विभाग में ही पिता का नाम रोशन कर रहा है तो छोटा बेटा राजस्व विभाग के राजस्व में मलाई काट रहा है. हालांकि, वह नकदी के अलावा जेवर, जमीन और जिस्म तक घूस में ले लेता है.
इन दोनों की नौकरी लगवाने में रामसिंह ने 5-5 लाख रुपए दिए थे. रामसिंह बड़े फख्र से बताते हैं कि वे पैसे भी घूस के ही थे. बड़े बेटे का समय बलवान था जो उस की मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के ठीक पहले ही कसबे में एक मर्डर हो गया. कत्ल की इस वारदात के प्रताप से उन्हें पत्नी के गहने बेचने का विचार त्यागना पड़ा. छोटे बेटे के इंटरव्यू के पहले ही ऊपर वाले ने एक अमीर घराने की जवान विधवा बहू को गर्भवती कर दिया. वह गर्भसहित भागी तो ससुराल वालों ने इस बाबत उन्हें घूस दी कि वह पकड़ी जाए तो पेट वाली बात वे अपने पेट तक ही रखें.
रामसिंह का बुढ़ापा ऐशोआराम से कट रहा है. दोनों बेटे चारों हाथों से कमा रहे हैं. घूस कैसे लें कि पकड़े न जाएं, इस हुनर के टिप्स सीखने बेटों को किसी कोचिंग में नहीं जाना पड़ा. बचपन से ही उन्हें पूजापाठ के साथसाथ घूस के संस्कार और प्रशिक्षण दोनों ही पूज्य पिताजी से मिल गए थे.
सलमान खान और रामसिंह जैसे मुलाजिम कुछ और करें न करें, अपनेअपने धर्मस्थल सुबहशाम जरूर जाते हैं. उन की पहली प्रार्थना यह रहती है कि हे दाता, आज खूब घूस दिलवाना, तो शाम को इतने या उतने चढ़ाऊंगा और कभी पकड़ा न जाऊं तो इतने और, और कभी कोई भ्रष्ट बुद्धि वाला शिकायत न करे और कर भी दे तो उस पर कोई कार्यवाही न हो तो उस के लिए इतने और चढ़ाऊंगा.
अधिकतर मामलों में ऊपर वाला सुन लेता है. लेकिन उस के पास भी काम इतना ज्यादा है कि वह सभी घूसखोरों को नहीं बचा पाता. कहने का मतलब यह नहीं कि उन की भक्ति, श्रद्धा या दान की मात्रा में कोई कमी होती है, बल्कि यह है कि ऊपर वाला जिस दिन ध्यान नहीं दे पाता उस दिन वे लापरवाह और बेखौफ हो जाते हैं. इसलिए रंगेहाथों धरे जाते हैं. सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी वाली कहावत सड़कों पर ही नहीं, घूसखोरी के कठिन मार्ग पर भी लागू होती है.
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घूसखोर क्यों अपेक्षाकृत ज्यादा धार्मिक होता है, इस विषय पर शोध की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. लेकिन यह बात तय है कि पकड़े जाने के डर से नीचे वाले घूसखोरों ने ऊपर वाले को भी घूसखोर बना दिया है. मान लिया जाता है कि नहीं पकड़े गए तो ऊपर वाले की कृपा है जो दान यानी ग्रांट घूस से मिलती है और अगर पकड़े गए तो ग्रहनक्षत्र खराब थे, जो लेने में चूक या लापरवाही कर दी.
साबित होता है कि दान और घूस में केवल शाब्दिक अंतर है, नहीं तो भावना दोनों की समान है कि हमारा काम हो जाए. सलमान खान धड़ल्ले से खाद्य आपूर्ति निगम को चूना लगा रहे थे, लेकिन वे आर्थिक दिखावे की चूक कर गए और ऊपर वाले पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर बैठे. इसलिए अब हवालात में हैं. और यकीन मानें, यदि वे बरी भी होंगे तो ऊपर वाले की कृपा से ही होंगे. रामसिंह कभी पकड़े नहीं गए तो यह भी ऊपर वाले की कृपा थी. यह और बात है कि उन जैसे मुलाजिम घूस लेने में मुकम्मल एहतियात बरतते हैं.
भगवान को घूस देने का रिवाज नया कहीं से नहीं है. हर धर्म यह कहता है कि अपनी कमाई का इतना या उतना हिस्सा चढ़ाओ. लेकिन, इस हिदायत में कहीं भी जायज या नाजायज कमाई का जिक्र नहीं है.
धर्मस्थलों में भी
हर कोई बातबात पर अपने इष्ट और आराध्य को घूस देता है कि हे भगवान, यह काम करवा दो तो इतने का चढ़ावा चढ़ाऊंगा. सार यह कि बेटे की नौकरी इसी घूस का दाना डालने से लगती है और बेटी की शादी भी इसी से होती है. असाध्य बीमारियों से ठीक होने में भी भगवान को घूस दी जाती है और पत्नी की कलह से बचने के लिए निसंतानों के घरों में किलकारियां घूस से गूंजती हैं और मनचाहा प्रेमी या प्रेमिका भी घूस से मिलती है.
ऊपर वाला चूंकि सीधे घूस नहीं ले पाता, इसलिए उस के नीचे भी दलाल बैठे हैं जिन का कभी कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि दान घूस की तरह जुर्म नहीं है. अब सलमान हैदर खान के मामले ने दिलचस्पी तो पैदा कर दी है कि उस एक करोड़ रुपए की रकम का क्या होगा जो उन्होंने धर्मस्थल को दान में दी थी. अदालत इसे घूस मानते जब्त करने का हुक्म देती है या नहीं.
लेकिन इन सांसारिक बातों से इतर एक कड़वा और उजागर सच यह भी है कि धर्मस्थलों पर मूर्ति के दर्शन तक के लिए घूस का चलन है. किसी भी ब्रैंडेड मंदिर में तयशुदा फीस दे कर जल्द दर्शन कर सकते हैं, इसे वीआईपी दर्शन कहा जाता है. ज्यादा समझदार लोग धर्मस्थल के इर्दगिर्द तैनात सुरक्षाकर्मियों को ही घूस दे कर आम श्रद्धालुओं और भक्तों से पहले दर्शन लाभ ले लेते हैं. दक्षिण के मशहूर तिरुपति बालाजी मंदिर से ले कर उत्तर के वैष्णो देवी मंदिर तक यह परंपरा मौजूद है और उस के भुक्तभोगी भी हर कहीं मिल जाएंगे.
ऊपर वाला सर्वशक्तिमान होता है, इसलिए मान लेना चाहिए कि वह जानता है कि कौन सा भक्त नाजायज तरीके से दक्षिणा दे कर पहले उस के दर्शन कर गया और उस में से कितना पैसा घूस का था. इस के बाद भी वह भेदभाव नहीं करता. करता तो उस के संविधान में वर्णित यह अनुच्छेद शक की निगाह से देखा जाने लगेगा कि ऊपर वाले के दरबार में सब बराबर होते हैं. जाहिर है, दान की तरह घूस भी एक मौलिक अधिकार है जिस की पात्रता यानी सरकारी नौकरी हासिल करने में भी घूस देनी पड़ती है.
घूस की महिमा अपरंपार है जिस पर 19वां घूस पुराण लिखा जा सकता है, जिस का सार यह होगा कि घूस की महिमा से बिगड़े काम बनते हैं. घूस से जाति और मूल निवासी प्रमाणपत्र बन जाता है. मकान का नामांतरण हो जाता है. पासपोर्ट बन जाता है. बच्चे को मनचाहे स्कूल में दाखिला मिल जाता है. एफआईआर दर्ज नहीं होती. मुकदमे में मनमाफिक तारीख मिल जाती है. डाक्टर फुरती से इलाज कर देता है और इकोनौमिक्स की स्पेलिंग न जानने वाला भी अर्थशास्त्र में मास्टर डिगरी ले लेता है.
कोई नहीं मानता और न ही कहता है कि कर्मकांडों की तरह घूस कभी खत्म होगी क्योंकि वह महादान है, इसलिए बेहतर होगा कि उसे आईपीसी की अपराध वाली धारा 171 से हटाया जाए.
सच तो यह है कि लोग खुद घूस का रिवाज बनाए रखना चाहते हैं. इस का प्रमाण वह नया कानून है जिस में घूस देने वाले को भी सजा का प्रावधान साल 2018 में किया गया था. लेकिन, एक साल गुजरने के बाद भी घूस देने के आरोप में शायद ही कोई पकड़ा गया हो. भ्रष्टाचार निवारण संशोधन अधिनियम 2018 पुराणों की तरह हो गया है जिन्हें खोलने के बजाय लोग ऊपर से ही उस का पूजापाठ कर देते हैं.
घूस को कानूनी मंजूरी मिल जाए, तो सरकार का राजस्व बढ़ेगा, किसानों को वक्त पर मुआवजा मिलने लगेगा. देश के सारे लोगों के पास गरीबी का प्रमाणपत्र होगा. और तो और, जातिगत भेदभाव खत्म हो जाएगा क्योंकि सभी के पास एससी, एसटी होने के प्रमाण होंगे. इस से आरक्षण की समस्या अपनेआप हल हो जाएगी.
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इन तमाम वर्णित और अवर्णित कारणों के चलते घूसखोरी की प्रवृत्ति और घूसखोरों को कोसा नहीं जाना चाहिए क्योंकि वे काम को आसान बनाते हैं और इस के एवज में कुछ पैसा ले लेते हैं तो कोई जुर्म नहीं करते. घूसखोरी एक ही शर्त पर बंद हो सकती है कि जागरूकता और समझदारी दिखाते लोग ऊपर वाले को घूस देना बंद कर दें, तो नीचे वाले अपनेआप सुधर जाएंगे.
कहां कितनी घूस
घूस के लेनदेन को ले कर नैशनल काउंसिल औफ एप्लाइड इकोनौमिक
रिसर्च की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो शहरी क्षेत्र में रहने वाला एक परिवार औसतन 4,400 और ग्रामीण क्षेत्र का परिवार अपने काम कराने के लिए औसतन 2,900 रुपए की घूस देता है. घूस का एक बड़ा हिस्सा मनरेगा में जाता है, जहां लोगों को जनकल्याण योजनाओं का लाभ लेने के लिए दक्षिणा चढ़ानी पड़ती है. ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सरकारी काम ऐडमिशन और पुलिस से जुड़े कामों के लिए सब से ज्यादा घूस देते हैं, शहरों में नौकरी, ट्रांसफर और पोस्ंिटग के लिए एक परिवार सालाना औसतन 18,000 रुपए और ट्रैफिक पुलिस को 600 रुपए सालाना रिश्वत देता है.
बात भाजपा राज की करें, तो ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल इंडिया ऐंड लोकल सर्कल्स के एक सर्वे के मुताबिक, 56 फीसदी लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष घूस देनी पड़ती है. सीधे नकद दी जाने वाली घूस 40 फीसदी है. सरकारी दफ्तरों में दलालों के जरिए दी जाने वाली घूस 25 फीसदी है. सब से ज्यादा घूस पुलिस महकमे को 25 फीसदी दी जाती है. इस के बाद स्थानीय निगम, राजस्व विभाग और दूसरे महकमों को घूस जाती है.
इस सर्वे में दिलचस्प बात यह उजागर हुई थी कि अधिकांश सरकारी दफ्तरों में सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बाद भी घूस दी और ली गई. एक और दिलचस्प बात यह है कि 58 फीसदी लोगों को नहीं मालूम कि उन के प्रदेशों में कोई एंटीकरप्शन हैल्पलाइन भी है. इस के चलते घूस का कारोबार दिन दोगुना रात चौगुना फलफूल रहा है.