सरकार को उम्मीद है कि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) आने के बाद टैक्स रेवेन्यू बढ़ौतरी होगी. यह अनुमान बहुत से विशेषज्ञों की राय से अलग है जिन्होंने जीएसटी से टैक्स मशीनरी में रुकावटें आने और रेवेन्यू ग्रोथ कम होने की चेतावनी दी थी. पिछले सप्ताह जारी किए गए मीडियम टर्म एक्सपेंडिचर फ्रेमवर्क में सरकार ने अगले दो वर्षों में टैक्स-टु-जीडीपी रेशियो बढ़ने की उम्मीद जताई है. फाइनेंशियल ईयर 2015 में टैक्स-टु-जीडीपी रेशियो 10.7% थी.
मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में इसके 10.8% रहने का अनुमान है. सरकार का अनुमान है कि ऊंची इकनॉमिक ग्रोथ, जीएसटी और पॉलिसी से जुड़े उपायों के चलते फाइनेंशियल ईयर 2018 में जीडीपी में ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू 10.9% और फाइनेंशियल ईयर 2019 में 11.1% रह सकता है. सरकार को उम्मीद है कि अगले फाइनेंशियल ईयर में प्लान और नॉन-प्लान को हटाने से कैपिटल स्पेंडिंग पर अधिक ध्यान दिया जाएगा.
केंद्र का कहना है, 'बड़ा मुद्दा एक्सपेंडिचर को लेकर है जो रेवेन्यू-कैपिटल एक्सपेंडिचर असंतुलन से संबंधित है. 2017-18 के बजट में प्लान और नॉन-प्लान के मर्जर के साथ कैपिटल और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर पर फोकस किया जाएगा. सरकार अपने कुल एक्सपेंडिचर में कैपिटल कंपोनेंट बढ़ाने के लिए उपाय करेगी.' सरकार का मानना है कि नॉन-डिवेलपमेंटल एक्सपेंडिचर में ग्रोथ कम करने से कुल खर्च में कमी आएगी और यह फाइनेंशियल ईयर 2017 में जीडीपी के अनुमानित 13.1% से घटकर फाइनेंशियल ईयर 2019 में 12.2% हो जाएगा. फाइनेंशियल ईयर 2018 में सैलरी पर खर्च में बढ़ोतरी 12% और फाइनेंशियल ईयर 2019 में 8% होने का अनुमान है. सरकार आने वाले वर्षों में बड़े डिसइनवेस्टमेंट टारगेट नहीं रखेगी.
केंद्र का कहना है कि अगले दो वर्षों में सब्सिडी रिफॉर्म जारी रहेंगे. फाइनेंशियल ईयर 2017 में सब्सिडी पर खर्च घटकर जीडीपी का 1.5% होने का अनुमान है, जो फाइनेंशियल ईयर 2016 में 1.8% था. किसी समय सरकार की वित्तीय स्थिति को बिगाड़ने में फ्यूल सब्सिडी का बड़ा योगदान होता था, लेकिन पेट्रोल और डीजल के प्राइस से कंट्रोल हटाने के बाद इस सब्सिडी में काफी कमी आई है. फाइनेंशियल ईयर 2019 में इसके 21,500 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.