हरियाणा के एक छोटे से गांव परधानीपुरा के रहने वाले रामपाल गुर्जर की उम्र सिर्फ 41 साल है. वह एक रंग कारखाने में सुपरवाइजर हैं. रामपाल ने जीवन में कभी शराब-सिगरेट या हुक्के का सेवन नहीं किया. सात्विक भोजन करते हैं. अनुशासन में रहते हैं. दूध-दही के शौकीन हैं. रामपाल को अचानक खांसी की बीमारी लग गयी. तमाम दवाएं खा लीं, कफ सिरप पी लिये, मगर खांसी नहीं गयी. खांसी महीनों बनी रही. फिर सीने में दर्द की शिकायत भी रहने लगी. काम करते वक्त या चलते वक्त कमजोरी महसूस होने लगी. कारखाने में जब सांस लेने में दिक्कत होती तो वह कारखाने से निकल कर बाहर खुले में आ जाते. एक दिन रामपाल ने बलगम थूका तो साथ में खून का थक्का गिरा. रामपाल घबरा गये. डौक्टर के पास पहुंचे. जांच में पता चला कि उनको लंग कैंसर है. रामपाल तो जैसे टूट ही गये. घर में कमाने वाले अकेले व्यक्ति, तीन बच्चे, बीवी, बूढ़ी मां की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी. रामपान यह सोच कर हलकान थे कि जीवन में कभी बीड़ी-सिगरेट को हाथ नहीं लगाया, फिर उनको फेफड़े का कैंसर कैसे हो गया? दरअसल रामपाल व्यवसायिक कैंसर की चपेट में आ गये, जो उनको रंग फैक्टरी से उड़ने वाले रसायन के कारण मिला. रसायन पेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले अधिकांश श्रमिक और सुपरवाइजर अनुवांशिक क्षति और व्यवसायिक कैंसर की चपेट में आ जाते हैं.
रामपाल बीते पांच साल से कैंसर का इलाज करा रहे हैं. डौक्टर ने तसल्ली दी है कि वे पूरी तरह कैंसर मुक्त हो जाएंगे, मगर इस बीच उनके दो बड़े औपरेशन हो चुके हैं और इससे उनके शरीर की ताकत बहुत घट गयी है. इलाज और औपरेशन में जमापूंजी खर्च हो चुकी है और घर का खर्च चलाने के लिए अब उनकी पत्नी को रंग कारखाने में बतौर मजदूर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
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महानगरों में प्रदूषित हवा, धूम्रपान के कारण फेफड़ों और श्वास सम्बन्धी तमाम रोगों के साथ कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी भी इंसान को अपना शिकार बना रही है. ईंट-भट्टे पर काम करने वाले, सीमेंट, कोयला, शीशे की फैक्टरी जैसी जगहों पर बिना मास्क के काम करने वाले लोग, रसायन और रंग फैक्ट्रियों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग तीस पैंतीस साल की उम्र में ही लंग कैंसर के शिकार हो रहे हैं. भारत में हर साल लंग कैंसर के करीब 90 हजार नये मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें 48 हजार से ज्यादा पुरुष और 19 हजार से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं. इस रोग की वजह से हर साल हजारों लोगों की मौत हो रही है. स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मुंह के कैंसर के बाद फेफड़े का कैंसर चौथे स्थान पर है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की संख्या साठ हजार से ज्यादा है.
भारत में लगभग 90 फीसदी फेफड़े के कैंसर के मामले सिगरेट, बीड़ी या हुक्का से जुड़े हैं. फेफड़ों के कैंसर के लिए धूम्रपान सबसे बड़ा कारक है. आजकल मनोरंजन के नाम पर जगह-जगह यूथ हुक्का बार खुल गये हैं. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में तो हाईवे के किनारे शराब बार के साथ-साथ तमाम हुक्का बार चल रहे हैं. युवा यहां कुछ घंटे के मनोरंजन के लिए इकट्ठा होते हैं और अपने साथ लंग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का तोहफा समेट कर ले जाते हैं. वहीं गांव-कस्बों में बीड़ी, तम्बाकू और हुक्के के आदी अधिकांश ग्रामीणों में यह बीमारी तेजी से अपने पैर पसार रही है. महानगरीय पर्यावरण में कैंसरकारी तत्वों की मौजूदगी भयावह है. गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों से निकलने वाला पेंट, रसायन और धुआं, कीटनाशक, जलावन का धुआं ये सारे तत्व श्वास और फेफड़ों के लिए जहर साबित हो रहे हैं.
फेफड़ों का कैंसर है क्या?
हमारे शरीर में दो फेफड़े होते हैं. इनमें से किसी एक की भी कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि होने के कारण टिश्यूज प्रभावित होने लगते हैं, जिससे लंग कैंसर होता है. फेफड़े शरीर को सांस पहुंचाने का काम करते हैं. इसके खराब होने पर शरीर में कई अन्य तरह की बीमारियां भी पैदा होने लगती हैं, इसलिए समय रहते कैंसर के लक्षणों को पहचानना और उसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है.
लंग कैंसर के लक्षण
फेफड़ों का कैंसर होने के कई लक्षण हैं. अगर लम्बे समय तक खांसी बनी हुई है तो इसको नजरअंदाज करना खतरनाक है क्योंकि यह कैंसर का लक्षण हो सकता है. खांसी के साथ खून आना, जल्दी सांस फूलना, घबराहट होना, भूख न लगना, जल्दी थकावट हो जाना, हर वक्त कमजोरी महसूस करना, बार-बार संक्रमण का होना, हड्डियों में दर्द और चेहरे, हाथ या गर्दन में सूजन ये सब कैंसर के लक्षण हो सकते हैं. फेफड़े में होने वाला कैंसर शुरुआती चरण में नहीं पहचाना जा सकता है, क्योंकि शुरुआती वक्त में इसके स्पष्ट लक्षण दिखायी नहीं देते हैं, लेकिन कुछ लक्षणों के सामने आने पर ही यदि समय से जांच करवा ली जाए तो कैंसर को उसके शुरुआती दौर में ही खत्म किया जा सकता है और इंसानी जान बचायी जा सकती है. अपने शरीर में आने वाले बदलावों पर नजर रखें और निम्न में कोई भी लक्षण आपको दिखे तो तुरंत डौक्टर से सम्पर्क करें –
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- अगर सांस लेते वक्त आपको हल्की सीटी जैसी आवाज फेफड़ों से आती सुनायी दे, तो तुरंत डौक्टर से सम्पर्क करें. यह आवाज कई तरह की समस्याओं की ओर इशारा करती है, साथ ही यह फेफड़ों से जुड़ी समस्या का स्पष्ट इशारा है.
- अगर आप गहरी या लंबी सांस लेने में तकलीफ महसूस करते हैं, तो यह अवरोध सीने में तरल पदार्थ के जमा होने के कारण हो सकता है जो फेफड़ों में कैंसर के कारण पैदा होता है.
- यदि आप सीने के साथ-साथ पीठ और कंधों में भी दर्द महसूस करते हैं, तो इसे गंभीरता से लें. यह लसिकाओं के स्थानांतरण के कारण हो सकता है. भले ही आप खुद को स्वस्थ महसूस करें, मगर यह गंभीर रोग की चेतावनी है, इसलिए डॉक्टर से तुरंत मिलें.
- यदि सीने में कफ हो रहा है और यह समस्या 2-3 सप्ताह से भी ज्यादा समय तक बनी हुई है, तो यह संक्रमण हो सकता है. इसके अलावा कफ संबंधी अन्य समस्याएं जैसे थूक के साथ रक्त का आना गंभीर बीमारी का लक्षण है. इसको नजरअंदाज न करें.
- फेफड़ों के कैंसर का असर बढ़ने पर मस्तिष्क की कोशिकाएं भी इसकी चपेट में आ सकती हैं. ऐसी स्थिति में लगातार सिर में दर्द बना रहता है. कभी-कभी ट्यूमर उत्पन्न हो जाने से उन शिराओं में दबाव पड़ता है जो शरीर के ऊपरी हिस्से में रक्त को संचारित करती है. इससे मस्तिष्क प्रभावित होता है.
- चेहरे और गले में सूजन होना भी लंग कैंसर का लक्षण है. अगर अचानक से गले और चेहरे में सूजन या कोई बदलाव दिखायी दे तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें.
- हड्डियों में दर्द, जोड़ों, पीठ, कमर और शरीर के अन्य भागों में दर्द को इग्नोर न करें. यह लंग कैंसर के लक्षण हो सकते हैं. हड्डियों में फ्रैक्चर भी इसकी वजह से हो सकता है.
- न्यूरोलौजीकल लक्षण के अन्तर्गत नर्वस सिस्टम और न्यूरोलॉजीकल फंक्शन में बदलाव आने से सिरदर्द, चक्कर आना, दौरे आना और पैर व कंधे में अकड़न हो सकती है.
- कई बार शरीर में कैल्शियम की मात्रा अधिक हो जाती है, जिससे खून जमना शुरू हो जाता है. यह भी लंग कैंसर के कारण ही होता है.
- लगातार थकान रहना या थोड़ा सा चलने पर भी सांस फूलने लगे तो यह भी लंग कैंसर के कारण हो सकता है.