रेटिंगः डेढ़ स्टार
अवधिः दो घंटे 17 मिनट
निर्माताः भूषण कुमार, महावीर जैन, मृगदीप सिंह लांबा, दिव्या खोसला कुमार व कृष्ण कुमार
निर्देशकः शिल्पी दास गुप्ता
लेखकः गौतम मेहरा
संगीतकारः तनिश्क बागची, रोचक कोहली, बादशाह व पायल देव
कलाकारः सोनाक्षी सिन्हा, वरूण शर्मा, नादिरा बब्बर, प्रियांशु जोरा, कुलभूषण खरबंदा, अन्नू कपूर, परेश आहुजा व अन्य.
औरतों के प्रति दकियानूसी सोच रखने वाले भारत देश में एक पंजाबी लड़की अपने मामा के पुश्तैनी सेक्स क्लीनिक ‘‘खानदानी शफाखाना’’ की बागडोर संभालने पर दकियानूसी समाज के पुरूष व औरतें किस तरह की बातें करती हैं, उन सब को लेकर यह एक हास्यप्रद नाटकीय फिल्म है. जिसमें सेक्स पर खुलकर बात होनी चाहिए और सेक्स शिक्षा की जरुरत को हास्य के साथ बहुत ही सतही तौर पर पेश किया गया है.
कहानीः
फिल्म ‘‘खानदानी शफाखाना’’ की शुरूआत होती है होशियारपुर में रहने वाली पंजाबी लड़की बबिता उर्फ बेबी बेदी से, जो कि पंजाब के एक शहर में एक दवा बनाने वाली कंपनी की एमआर यानी कि मेडिकल सेल्स रिप्रजेंटेटिव के रूप में कार्यरत है. पर वह एक हर्बल कंपनी की दवाएं भी अलग से बेच रही है. तो वहीं बेबी बेदी के मामा हकीम ताराचंद (कुलभूषण खरबंदा) मशहूर खानदानी शफाखाना के मालिक हैं और ‘‘हिंदुस्तानी यूनानी चिकित्सा व रिसर्च सेंटर’’ के सदस्य हैं. पर ताराचंद जिस तरह से सेक्स की कमजोरी दूर कर सफल वैवाहिक जीवन जीने की वकालत करते हुए टीवी पर विज्ञापन देतें हैं, उससे ‘‘हिंदुस्तानी चिकित्सा रिसर्च सेंटर’’ उनकी सदस्यता खत्म कर देता है. इधर ताराचंद की बहन श्रीमती बेदी (नादिरा बब्बर) यानी कि बेबी बेदी की मां भी अपने भाई से संबंध नहीं रखती. बेबी बेदी की छोटी बहन स्वीटी की शादी बेबी बेदी के चाचा ने कर्ज देकर किया था और अब वह अपनी रकम वापस पाने के लिए बेबी बेदी की कहीं भी शादी करवा देना चाहते हैं. बेबी बेदी के मना करने पर उनके चाचा तीन माह के अंदर रकम न देने पर घर पर कब्जा कर लेने की धमकी देते हैं. बेबी बेदी का भाई भूसित बेदी (वरूण शर्मा) बेरोजगार है, वह काम करना ही नही चाहता. बेबी बेदी की कमाई से ही घर का खर्च चल रहा है.
उधर ‘हिदुस्तान यूनानी चिकित्सा व रिसर्च सेंटर’द्वारा हकीम ताराचंद की सदस्यता खत्म करने के बावजूद ताराचंद अपना काम करते रहते हैं. वह खुद दवाएं तैयार करते हैं और सेक्स के तमाम मरीजों को ठीक करते रहते हैं. एक दिन सेक्स कमजोरी का शिकार इंसान ताराचंद की दवा से इस कदर ठीक हो जाता है कि वह अपनी पत्नी के अलावा कुछ दूसरी औरतों से भी सेक्स संबंध रखने लगता है, इससे पारिवारिक कलह बढ़ती है, तब वह शख्स इसके लिए ताराचंद को दोषी मानकर उनकी हत्या कर देता है. ताराचंद का वकील तागरा (अन्नू कपूर) ताराचंद की बहन श्रीमती बेदी, बेबी बेदी और भूसित बेदी को बुलाकर ताराचंद की वसीयत सौंपते हुए कहते हैं कि ताराचंद ने ‘खानदानी शफाखाना’ और उससे जुड़ी संपत्ति का वारिस बेबी बेदी को बनाया है. बेबी बेदी इसे उनकी मौत के छह माह बाद बेंच सकती हैं. पर छह माह तक उन्हें उनके सेक्स क्लीनिक ‘‘खानदानी शफाखाना’’ को चलाते हुए मरीजों को दवाएं देनी होंगी. इसी के चलते बेबी बेदी बिना मां को बताए अपने मामा ताराचंद की सेक्स क्लीनिक ‘‘खानदानी शफाखना’’ में जाना शुरू करती है. उसकी निगरानी के लिए वकील ने लेमन ब्वाय के रूप में मशहूर युवक (प्रियांशु जोरा) को लगा रखा है, जिसकी सेक्स क्लीनिक के नीचे अपनी दुकान है. मगर बेबी बेदी को परिवार व समाज से घृणा व विरोध का सामना करना पड़ता है. पता चलता है कि मरीज दवा के बदले पैसे नहीं, बल्कि घी वगैरह दे जाते हैं, जबकि बेबी बेदी को चाचा का कर्ज चुकाने के लिए पैसा चाहिए. एक दिन बेबी बेदी से मशहूर गायक गबरू घातक (बादशाह) संपर्क करके अपनी दवा मांगता है. जिसके बदले में वह मोटी रकम देता है, इसके बाद बेबी बेदी अपने मामा के लिखे हुए दवा के नुस्खे पढ़कर दवा बनाकर मरीजों इलाज करने लगती है. फिर ‘खानदानी शफाखाना’ के प्रचार के लिए कई तरीके अपनाती है. जब बेबी बेदी सेक्स, शीघ्रपतन, स्तंभन, स्खलन, गुप्त रोग, सेक्स की कमजोरी पर खुलकर बात करती है और लोगों के बीच परचे बंटवाती है कि ‘बात करो’ तो स्वाभाविक तौर पर समाज में उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है, पर लेमन ब्वाय हर जगह उसके साथ खड़ा नजर आता है. अंततः ‘हिंदुस्तानी यूनानी चिकित्सा व रिसर्च सेंटर’ बेबी बेदी को अदालत में घसीटता है, जहां बोबी बेदी की जीत होती है. उसके बाद बेबी बेदी की मां व बहन स्वीटी भी खुश हो जाती हैं.
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लेखनः
पटकथा लेखन में तमाम कमियां हैं. लेखक ने ताराचंद के हत्यारे द्वारा टीवी पर आकर उनकी हत्या करने की बात कुबूल करता है. अब इस इंसान के साथ कानून ने क्या किया, कहीं कुछ नहीं कहा गया. फिल्म की पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म की गति बहुत धीमी है. फिल्म में असरदार हास्य संवादों का घोर अभाव है.
निर्देशनः
सहायक निर्देशक के रूप में कई फिल्में कर चुकी शिल्पी दास गुप्ता ने स्वतंत्र निर्देशक रूप में अपनी इस फिल्म में बोल्ड और समाज में टैबू समझे जाने वाले सेक्स जैसे मुद्दे को उठाया है. इसके लिए उन्होंने कौमेडी का सहारा लिया है, मगर फिल्म पर उनकी पकड़ कायम नहीं रहती. समाज को संदेश देने की उनकी कोशिश सराहनीय है, पर काश वह एक बेहतर फिल्म बना पाती. उनका निर्देशन बहुत कमजोर है. फिल्म में भावनाओं की भी कमी है. फिल्म कई बार हमें आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’ की याद दिला जाती है. ‘खानदानी शफाखना’ सेक्स जैसे टब्बू पर बेहतरीन फिल्म बन सकती थी, पर अनुभव की कमी ने फिल्म को डुबो दिया. फिल्म की अति सुस्त गति के लिए निर्देशन काफी हद तक जिम्मेदार है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावहीन है.
अभिनयः
बेबी बेदी के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा ने काफी मेहनत की है, पर वह कई जगह लड़खड़ा गयी हैं. अपरंपरागत किरदार में वह अद्भुत हैं, मगर लंबे समय तक वह दर्शकों को बांध नही पाती. इसके लिए कुछ हद तक लेखक व निर्देशक भी जिम्मेदार है, जिन्होंने बेबी बेदी का चरित्र सही ढंग से विकसित नहीं किया. अपने चाचा के सेक क्लीनिक को बेमन संभालने के बाद मरीजों के प्रति लापरवाही के कई दृश्य बहुत ही ज्यादा अवास्तविक नजर आते हैं. पंजाबन के तौर पर उनकी संवाद अदायगी गड़बड है. लेमन ब्वाय यानी कि बेदी के प्रेमी के छोटे किरदार में प्रियांशु जोरा बहुत क्यूट लगे हैं. रैप स्टार बादशाह ने पहली बार अभिनय किया है, वह अपने छोटे किरदार में प्रभाव छोड़ जाते हैं. वरूण शर्मा ने तो निराश ही किया है. उन्हें इस तरह के किरदार करने से बचना चाहिए. वैसे भी फिल्म में उनका किरदार जबरन जोड़ा हुआ नजर आता है. वकील के किरदार में अन्नू कपूर प्रभाव डाल जाते हैं.