पूरी दुनिया में तमाम ऐसे जीव हैं जो या तो पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हीं में से एक है सुनहरा लंगूर जिस की संख्या इतनी तेजी से गिरी है कि अब केवल 400 सुनहरे लंगूर रह गए हैं. बेहद छोटे और गिलहरी के आकार के इन लंगूरों को ब्राजील के वर्षावनों में देखा जा सकता है. इस सुनहरे लंगूर को टैमेरिन भी कहा जाता है.

यहां के सुरक्षित वनों और चिडि़याघरों में इस प्रजाति को फिर से बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. मात्र 600 ग्राम वजन और 60 सेंटीमीटर लंबाई वाले इस जीव को कभी 1600 किलोमीटर तक फैले वर्षावनों में देखा जाता था, पर आबादी की वजह से तेजी से काटे जा रहे वर्षावनों से सुनहरे लंगूरों की आबादी पर विपरीत असर पड़ा है.

सब से पहले ब्राजील के जीवविज्ञानी अडेल्मार फारिया कोइंब्रा-फिल्हो का ध्यान जब इस लंगूर की ओर गया. काफी पहले उन्होंने अपने देश के लोगों से कहा था कि वे इस सुनहरे लंगूर को पालतू न बनाएं क्योंकि एक लंगूर पकड़ने के चक्कर में 10 नन्हें बच्चे मारे जाते हैं. कोइंब्रा के कारण ही इस लंगूर के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी गई.

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इस सफलता के बाद सरकार ने कोइंब्रा के कहने पर ही 3250 हेक्टेयर वर्षावन को राष्ट्रीय सुरक्षित वन घोषित कर दिया. इस समय तक इस जीव की संख्या खतरनाक तरीके से नीचे गिर गई थी. यानी मात्र 100 सुनहरे लंगूर ही बचे थे. उधर ये सुनहरे लंगूर या तो पालतू थे अथवा चिडि़याघर में प्रजनन नहीं कर रहे थे.

इसी के बाद वाशिंगटन स्थित नैशनल जूलौजिकल पार्क के जंतु वैज्ञानिक डेवरा क्लीमान ने एक प्रोजैक्ट सामने रखा ताकि इन लंगूरों को बचाया जा सके. डेवरा ने ही अध्ययन के बाद पता लगाया कि टैमेरिन यानी सुनहरे लंगूरों को हड्डियों के रोग ज्यादा होते हैं क्योंकि शरीर में विटामिन-डी बनाने के लिए जिस विटामिन-डी की जरूरत होती है, वह सूर्य के प्रकाश में ही शरीर में बनता है.

यही नहीं टैमेरिन पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं. जब इन लंगूरों को जब जीवों के लिए प्रोटीन और विटामिन दिए गए तभी इन का स्वास्थ्य ठीक हुआ. इस के बाद इन लंगूरों को पेड़ पर ही ऐसे बक्से दिए गए जो पेड़ पर बने हलके घोंसलों जैसे होते थे, इसी के बाद इन की संख्या बढ़ने लगी.

इन लंगूरों के बीच लड़ाई भी काफी भयंकर होती है, जिस से हर साल कई लंगूर मारे जाते हैं. ज्यादातर ऐसी लड़ाइयां मादाओं के बीच होती हैं. ऐसी सभी मादा टैमेरिन को एक जगह अलग रखा गया, जो अपने झुंड से, लड़ाई की वजह से, अलग हो गई थीं. इन सभी मादाओं को अलग स्थान दिया गया और देखते ही देखते सभी की संख्या में भारी वृद्धि हो गई.

इस के बाद पूरी दुनिया से कई जंतु वैज्ञानिकों ने ब्राजील में डेरा डाला और नए सिरे से टैमेरिन यानी सुनहरे लंगूरों को बचाने की कवायद शुरू हो गई. जंतु वैज्ञानिकों के प्रयासों से पता चला कि टैमेरिन को घने और कंटीले वृक्षों की छांव पसंद है, क्योंकि इस से वे शत्रुओं से अपनी सुरक्षा कर सकते हैं. ये लंगूर अपने परिवार के साथ काफी विशाल क्षेत्रफल को अपने लिए सुरक्षित बना लेते हैं. इस क्षेत्र में लंगूरों का कोई दूसरा परिवार नहीं आ सकता. ये क्षेत्र कई बार तो 35 हेक्टेयर तक का होता है.

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यही कारण है कि इन जीव वैज्ञानिकों ने सरकार को सचेत करने के अलावा खुद भी तमाम पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया है. लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए कई जीव वैज्ञानिकों ने निजी चैनलों से भी संपर्क किया है ताकि इन लंगूरों के प्रति आमजन को जागरुक किया जा सके.

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