हमारी सरकार देश के कुलांचे भरते कदमों पर बहुत हल्ला मचा रही है. उस का श्रेय किस को जाता है, यह छोड़ दें क्योंकि आज जो देश में हो रहा है उस की जड़ें तो 1991 के सुधार हैं और बीच में केवल 5 साल भाजपा गठबंधन को मिले थे. 2 सालों में देश में ऐसी तरक्की नहीं हुई है कि उस पर सिर उठाया जा सके. पर यह संतोष की बात है कि जहां दूसरे देशों की वृद्धि 1 फीसदी से 5 फीसदी तक है, हम कहते हैं कि हमारी 7.6 फीसदी है जबकि हमारे अपने रिजर्व बैंक औफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं.
पर उस से ज्यादा गंभीर बात यह है कि 2016 के ग्लोबल स्लेवरी इंडैक्स का अंदाजा है कि दुनिया में 4.5 करोड़ लोग गुलाम हैं या गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं जिन में से ?अकेले भारत में 2 करोड़ हैं. भारत के 2 करोड़ का आंकड़ा भी सही नहीं है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि स्वतंत्र दिखने वाले भी छूआछूत, रोटीबोटी, गरीबी, भुखमरी, बीमारी, परंपराओं के कारण वास्तव में इस तरह गुलाम हैं कि वे कहीं भाग नहीं सकते.
शारीरिक गुलामी के खिलाफ अमेरिका ने लंबी जंग लड़ी. सिविल वार से ले कर ओबामा तक अमेरिका अश्वेतों को ले कर खुद से लड़ता रहा. आज भी वहां कालों के साथ दुर्व्यवहार होता है. उन्हें नशे, अपराध, गरीबी के कारण दुत्कारा जाता है और अमेरिकी जेलों में काले ही भरे हैं और अमेरिका में ही सब से ज्यादा कैदी हैं.
भारत की दलितों, यानी पिछड़ों व गरीबों की खुली कैदें असल में सामाजिक रोग हैं. दलित जातियों के लोग पीढि़यों से गुलामों की तरह ऊंची जातियों की सेवा करते आ रहे हैं. 1950 के संविधान ने उन्हें बराबरी की जगह दी पर केवल बैलट बौक्स से. वे गुलामी के बंधन से नहीं निकल पाए. उन्हें किसी तरह की सामाजिक बराबरी का अवसर नहीं मिला. वे अपने खुद के बनाए जालों में फंसने लगे.
ये गुलाम भारत के अमीर वर्ग को कोई विशेष लाभ पहुंचा रहे हों, ऐसा नहीं. असलियत में यही गुलामी हमारी कमजोरी है, हमें आगे बढ़ने से रोकती है. जो गुलाम हैं वे पढ़ते नहीं, नई तकनीक नहीं समझते, उन की उत्पादकता कम है. हमारा देश गंदा है क्योंकि हम ने इन गुलामों को गंद में रहने की आदत डाल रखी है और ये हमारे चारों ओर गंदगी फैलाते रहते हैं. हमारा पढ़ालिखा वर्ग अपनी योग्यता का पूरा लाभ नहीं उठा पाता क्योंकि उसे इन्हीं शून्य योग्य गुलामों से काम कराना पड़ता है, जबकि आज का युग विशेषज्ञों का हो गया है. ये 2 करोड़ लोग (या 20 करोड़, इस का आंकड़ा हमेशा अस्पष्ट रहेगा) अगर गुलाम न हो कर स्वतंत्र, कर्मठ, मेहनती, योग्य हों तो ही भारत पश्चिमी देशों सा बन सकता है. गुलामी की गंदी गंध गुलाम को बीमार करती ही है, यह सारे समाज को सड़ा भी देती है. अमेरिका ने सिविल वार में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में जो युद्ध लड़ा उसी के कारण वह महान बना. यूरोप तभी उन्नत हुआ जब मार्टिन लूथर की पोपशाही की धार्मिक गुलामी से मुक्त हुआ.