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सावधान : कहीं आप सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार तो नहीं

VIDEO : बिजी वूमन के लिए हैं ये ईजी मेकअप टिप्स

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छठी कक्षा का छात्र मोहित घर से लापता हो गया. दूध लेने निकला तो वापस घर न आया. 1 सप्ताह बाद एक सज्जन मोहित को घर छोड़ गए. पूछताछ करने पर पता चला कि वह खुद ही घर से भागा था. दरअसल, परीक्षा में उस के नंबर कम आए थे. पिता के खौफ को झेलना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. अत: वह घर से भाग गया.

नन्हा बंटू कभी गले में कुछ फंसने की शिकायत करता है तो कभी पेट की. हमेशा गुमसुम और उखड़ाउखड़ा सा रहता है. खाता भी ठीक से नहीं है. छोटीछोटी बातों पर रोने लगता है. डाक्टरी जांच में सब ठीक निकला. दरअसल, ये दोनों बच्चे अपने अभिभावकों के सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार हैं.

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डाक्टर मैडलिन लेविन ने अपनी पुस्तक ‘प्राइस औफ प्रिवलिन’ में लिखा है कि जो पेरैंट्स अपनी सफलता के लिए बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव डालते हैं वे अनजाने ही उन्हें स्ट्रैस व डिप्रैशन का शिकार बना देते हैं. उन की नजर में ये पेरैंट्स हमेशा अपने बच्चों को, दूसरों से आगे देखना चाहते हैं. चाहे पढ़ाई हो, खेल हो या कोई और ऐक्टिविटी वे हर क्षेत्र में बच्चों को पुश करते हैं. वास्तविकता से दूर जब ऐसा बच्चा मातापिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वह दुख, मायूसी व दुविधा की स्थिति का सामना करता है.

डाक्टर लेविन के अनुसार, संपन्न व धनी परिवारों के बच्चों में साधारण परिवारों के बच्चों के मुकाबले डिप्रैशन व चिंता की स्थिति 3 गुना ज्यादा देखी जाती है. ऐसे बच्चे गलत रास्ते पर जा सकते हैं. वे ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं. कभीकभी तो बच्चे स्वयं से ही नफरत करने लगते हैं. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए जिस वातावरण की जरूरत होती है वह उन्हें नहीं मिल पाता. एक के बाद एक क्लासेज उन की दिनचर्या बन जाती है. स्कूल के बाद कोचिंग, फिर क्लास के होमवर्क के बीच उन्हें अपनी क्रिएटिविटी जानने या टेलैंट पहचानने व उसे निखारने का बिलकुल समय नहीं मिल पाता.

हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा न सिर्फ अपनी कक्षा में पढ़ाई में शीर्ष पर हो, बल्कि अन्य ऐक्टिविटीज के प्रति भी उत्साहित व प्रोत्साहित हो. स्कूल खुले नहीं कि पेरैंट्स कमर कस लेते हैं. पिछले साल जो परफौर्मैंस रही, जैसा भी परिणाम रहा, इस साल तो बस शुरू से ही ध्यान देना है. फिर तो हर दिन की ऐक्टिविटी, होमवर्क, स्पोर्ट्स हर क्षेत्र पेरैंट्स की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन जाता है.

अगर आप भी सुपर पेरैंट्स सिंड्रोम से घिरे हुए हैं तो मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए इन सुझावों पर ध्यान दें और अपने व्यवहार में नियंत्रण और समझदारी लाएं:

प्यार से समझाएं: बच्चों के भविष्य को ले कर आप के मन में असुरक्षा का भाव स्वाभाविक है. कई बार मनोबल की कमी होने से आप खुद असुरक्षित महसूस करते हैं और यही भाव आप अपने बच्चों में भी भर देते हैं. ऐसी स्थिति में आप का बच्चा विश्वास खोने लगता है. अत: बेहतर होगा कि खुद में विश्वास रखते हुए आप अपने प्यार व स्नेह की छत्रछाया में उसे सुरक्षा का एहसास कराएं. मुसकराना व खुश रहना बड़ा पौजिटिव दृष्टिकोण है. आप मुस्कुराएंगे तो बच्चा भी मुस्कुराएगा और वही सीखेगा. उस में आत्मविश्वास और आप में भरोसा बढ़ेगा कि वह जैसा भी है आप को प्रिय है.

तुलना न करें: बच्चे की तुलना किसी भी फ्रैंड या रिश्तेदार के बच्चे से न करें. यदि किसी परीक्षा या प्रतियोगिता में उसे दूसरे बच्चे से कम नंबर मिलते हैं या वह किसी प्रतियोगिता में हार जाता है तो बच्चे की तुलना जीत गए बच्चे से करने के बजाय प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेर कर कहें कि कोई बात नहीं, इस बार हार गए तो क्या अगली बार कोशिश करना, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी. ऐसा करने से आप के बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचेगी.

लैक्चर देने से बचें: बातचीत अनेक समस्याओं का हल है, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप बोलते रहें और बच्चा सुनता रहे. यदि ऐसा है तो निश्चित मानिए उस ने आप की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.

बच्चे की क्षमता व सीमा पहचानें: एक के बाद एक क्लास जौइन करा कर आप ने सही किया या गलत इसे बच्चे के दृष्टिकोण से देखें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि देखादेखी या तुलना के चक्कर में आप ने ऐसा किया है. अपने बच्चे की क्षमता व सीमा समझें बिना हमेशा आगे बढ़ने के लिए उस पर दबाव डाल कर आप उस का हित करने के बजाय उस का अहित कर रहे हैं. बेहतर होगा कि अपनी सोच में बदलाव लाएं. बच्चे का स्तर दूसरे की योग्यता देख कर निर्धारित न करें, बल्कि उसे अपने स्तर को धीरेधीरे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि धैर्य से धीरेधीरे चलने वाला ही अंत में जीतता है.

निजता का सम्मान करें: अनुशासन व आज्ञाकारिता महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु समयसमय पर उदारता भी जरूरी है. यदि आप का बच्चा कुछ देर अकेला रहना चाहता है, इंटरनैट और मोबाइल पर किसी के साथ चैटिंग करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने दें. यदि आप को महसूस हो कि वह कुछ गलत कर रहा है, तो निर्देश देने या आलोचना करने के बजाय उस का मार्गदर्शन करें. कभीकभी बच्चों को पूर्ण स्वतंत्रता दे कर उन की काबिलीयत पर भरोसा रखना भी जरूरी होता है.

अच्छे काम की सराहना करें: जब आप बच्चे की गलतियों पर उसे डांटना नहीं भूलते तो अच्छे काम के लिए उस की तारीफ करना क्यों भूल जाते हैं? बच्चे की प्रशंसा को सिर्फ उस के रिजल्ट कार्ड तक ही सीमित न रखें. उस की अच्छी परफौर्मैंस पर पुरस्कार देने के साथसाथ उस की पीठ थपथपाना और गले लगाना भी न भूलें.

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार यदि आप का बच्चा अपने किसी दोस्त के साथ कोई अच्छी योजना बनाता है या उस के साथ अच्छा व्यवहार करता है, मेहमानों के साथ तमीज से पेश आता है, दूसरे की भावनाओं पर चोट पहुंचाने पर क्षमायाचना करता है तो भी उस की प्रशंसा करें. ऐसा न करने पर उस का दिल टूट जाएगा.

हारना भी है जरूरी: बच्चे को जीतने के लिए नहीं, बल्कि अच्छे ढंग से प्रयास करने के लिए प्रेरित करें. अगर उसे कभी नाकामी मिलती है, तब भी उस के सामने अफसोस जाहिर न करें. हारने पर भी उस के अच्छे प्रयास की सराहना करते हुए उसे अगली बार जीतने के लिए प्रेरित करें.

कुछ पेरैंट्स अपने बच्चों के साथ खेलते वक्त उन्हें खुश करने के लिए जानबूझ कर हार जाते हैं. ऐसा कभी न करें. इस से बच्चा प्रयास करने के लिए प्रेरित नहीं होगा और हर बार मेहनत किए बगैर जीतना चाहेगा. जीतने के साथ उसे हार को भी सहजता से स्वीकारना सिखाएं.

जिम्मेदार घर का माहौल भी: बच्चे का पहला स्कूल उस का घर होता है. अपने अभिभावकों की छत्रछाया में वह आत्मविश्वास, दृढ़ शक्ति, निर्णय शक्ति, साहस और स्पष्ट सोच जैसे गुणों को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाता है.

मनोचिकित्सक मनीष कांडपाल के अनुसार घर में बुजुर्गों का अपमान, छोटेबड़े झगड़े, गालीगलौच, मातापिता का शराबसिगरेट जैसे बुरे व्यसनों का आदी होना बच्चों के मन को बहुत जल्दी प्रभावित करता है. बच्चा जो देखता है, वही सीखता है.

अपने तक ही सीमित रखें तनाव: औफिस और घर की टैंशन लिए जब आप अपने बच्चों के सामने आते हैं, तो वे आप के साथ बैठने के बजाय कहीं और समय बिताना पसंद करते हैं. बच्चे आप को खुश देखना चाहते हैं ताकि वे अपनी परेशानी आप के साथ शेयर कर सकें. किसी और की टैंशन या गुस्से के लिए बच्चों को डांटना या उन पर हाथ उठाना सही नहीं.

खुद से तुलना कभी न करें: जरूरी नहीं कि बचपन में आप को जो कुछ नहीं मिला वह सब आप अपने बच्चे को दे पाएं. यह भी जरूरी नहीं कि यदि आप गोल्ड मैडलिस्ट थे, अच्छे गायक या खिलाड़ी थे तो आप का बच्चा भी वैसा ही बने. हर बच्चे के अपने शौक, रुझान और सीमाएं होती हैं. उसे उसी ओर ढालने का प्रयास करें. जरूरत से ज्यादा उम्मीदें कदापि न करें. आप अपनी ड्यूटी निभाएं, उसे अपनी प्रतिभा निखारने के लिए सही प्रोत्साहन व वातावरण पैदा करें.

मोबाइल वौलेट यूजर्स को आरबीआई ने दी बड़ी राहत, जानें पूरी खबर

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अगर आप भी मोबाइल वौलेट का इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपके लिए है. इस खबर को पढ़कर आपको जरूर राहत मिलेगी. दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश में लाइसेंस प्राप्त सभी मोबाइल वौलेट कंपनियों को अपने ग्राहकों का केवाईसी नौर्म्स पूरा करने के लिए 28 फरवरी 2018 तक का वक्त दिया था.

ज्यादातर कंपनियां आरबीआई के इस आदेश को पूरा नहीं कर पाईं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 28 फरवरी तक भी करीब 80 प्रतिशत यूजर्स का केवाईसी अपडेट नहीं हुआ है. ऐसे में आशंका जताई जा रही थी कि इस आदेश के पूरा नहीं होने पर मोबाइल वौलेट अकाउंट बंद कर दिए जाएंगे और यूजर्स का पैसा फंस जाएगा.

डिजिटल वौलेट इस्तेमाल करने की सशर्त छूट

लेकिन अब आरबीआई ने मोबाइल वौलेट कंपनियों के ग्राहकों को बिना केवाईसी डिजिटल वौलेट का इस्तेमाल करने की सशर्त छूट दी है. आरबीआई ने केवाईसी की समय सीमा आगे नहीं बढ़ाई लेकिन ग्राहक न्यूनतम केवाईसी के साथ अपना डिजिटल वौलेट चला सकते हैं, लेकिन उन्हें सीमित सुविधाएं ही मिलेंगी. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर बीपी कानूनगो ने भी इस बारे में कहा कि ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है. ग्राहक का वौलेट में मौजूद पैसा कहीं नहीं जाएगा. ग्राहक इसका इस्तेमाल कर सकते हैं और पहले की तरह वस्तुओं और सेवाओं की खरीद जारी रख सकते हैं, जितना उनके वौलेट में पैसा है.

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मौजूदा बैलेंस बरकरार रहेगा

उन्होंने यह भी साफ किया कि ग्राहक ई वौलेट में दोबारा पैसा तभी डाल सकेंगे, जब केवाईसी की पूरी जानकारी दें देंगे. आरबीआई के निर्देशानुसार ग्राहक केवाईसी की न्यूनतम शर्तों को पूरा कर ई-वौलेट या प्रीपेड इन्स्ट्रूमेंट के जरिये 10 हजार तक का लेनदेन कर सकते हैं. आरबीआई ने कहा है कि वौलेट में रखा मौजूदा बैलेंस बरकरार रहेगा और यूजर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा, आरबीआई ने कहा कि यूजर्स अपने पैसे को बैंक खाते में भी ट्रांसफर कर सकते हैं. इससे लोगों के पैसे फंसने से बच जाएंगे.

जल्द करा लें केवाईसी पूरा

एयरटेल मनी, जियो मनी, पेटीएम, मोबिक्विक जैसे मोबाइल वौलेट सेवा प्रदाता कंपनियां ग्राहकों को समय-समय पर केवाईसी पूरा करने के लिए सूचित कर रही हैं. ग्राहकों को अपने मोबाइल वौलेट को आधार कार्ड और पैन कार्ड से लिंक कराना होगा, इस तरह से केवाईसी पूरा हो जाएगा. इसके बाद आपका मोबाइल वौलेट सुरक्षित हो जाएगा.

कैसे करवाएं केवाईसी

किसी भी ऐप पर जाकर केवाईसी के आइकौन पर क्लिक कर. आप अपनी डिटेल्स भर सकते हैं इसमें आप से आपका आधार नंबर मंगा जाएगा. कंपनी अपने प्रतिनिधि को भेजने के लिए आपके घर या औफिस का पता और पिनकोड मांगेगी. अगले 2 से 4 दिनों में कंपनी का प्रतिनिधि आपके पते पर आकर डौक्युमेंट्स का वेरिफिकेशन करेगा.

चुनावों से डर नहीं लगता, भाईसाहब को सिंधियाओं से डर लगता है

बेहद टसल बाले मुंगावली और कोलारस विधानसभा उप चुनावों में कांग्रेस की जीत के अपने अलग सियासी माने हैं, जिसका असर सीधे सीधे इसी साल होने वाले तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आम चुनावों पर इस संदेश के साथ पड़ेगा कि भाजपा शासित इन राज्यों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह अपनी पकड़ और प्रभाव खो रहे हैं.

राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा उप चुनाव की करारी हार के सदमे से भाजपा अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी कि नया झटका उसे मध्य प्रदेश की मुंगावली और कोलारस के नतीजों से लगा.

मुंगावली सीट से कांग्रेस के बृजेन्द्र सिंह यादव ने भाजपा की बाई साहब यादव को 2124 और कोलारस से कांग्रेस के महेंद्र सिंह यादव ने भाजपा के देवेंद्र जैन को 8083 वोटों से हराकर यह साबित कर दिया कि अभी भी मध्य भारत इलाके में सिंधिया राजघराने का दबदबा कायम है, जिसे चुनौती दे पाना या तोड़ पाना कम से कम शिवराज सिंह के बूते की बात तो नहीं.

ये दोनों चुनाव पूरी तरह सिंधिया बनाम शिवराज सिंह हो गए थे, जिनमे दोनों ने ही अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. प्रचार के आखिरी सात दिन शिवराज केबिनेट के तमाम मंत्री इन दोनों सीटों पर घर घर जाकर भाजपा को जिताने मतदाताओं के हाथ जोड़ रहे थे. खुद शिवराज सिंह ने ऐलान कर दिया था कि पांच महीनों में सरकार यहां इतना विकास कर देगी जितना पांच सालों में भी नहीं हुआ. प्रचार में दोनों दलों ने साम, दाम, दंड, भेद सारे हथकंडे अपनाए थे. दोनों दलों की तरफ से नोट बांटने की शिकायतें हुईं थीं और हजारों फर्जी वोटरों के होने की बात भी उजागर हुई थी, कलेक्टरों के तबादले हुये थे और कई कार्यकर्ताओं के सर भी फूटे थे.

ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से सांसद हैं, मुंगावली और कोलारस दोनों सीटें इसी संसदीय क्षेत्र में आती हैं जहां से साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की लहर होने के बाद भी परचम लहराया था. शिवराज सिंह की मंशा और दिलचस्पी यह थी कि जैसे भी हो इस इलाके से सिंधिया घराने का सूपड़ा साफ किया जाये, जिससे कांग्रेस ज्योतिरादित्य को बतौर मुख्यमंत्री पेश न कर पाये, जो उनकी सरदर्दी की बड़ी वजह बन सकते हैं. शिवराज सिंह की लोकप्रियता को चुनौती देने का जोखिम ज्योतिरादित्य ने प्रचार में यह कहते उठाया था कि जनता मुझे चुन ले या शिवराज सिंह को चुन ले.

मतदाताओं के सामने यह बड़ी दुविधा थी एक तरफ सरकार और शिवराज के लुभावने लोलीपोप थे, तो दूसरी तरफ महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य का यह पासा था कि वह अगर शिवराज सिंह को चुनती है, तो वे फिर इस इलाके में झांकेगे नहीं. इसी कशमकश के चलते कांग्रेस बहुत कम वोटों से जीती, जिसे भाजपा अपनी उपलब्धि बताते हार की खिसियाहट पर लीपा पोती कर रही है.

यह मुंगावली और कोलारस के नतीजों का वह पहलू है जो हर किसी को नजर आ रहा है. दूसरे पहलू की स्क्रिप्ट खुद शिवराज सिंह ने साल भर पहले सिंधियाओं की ही प्रभाव वाली सीट अटेर के उपचुनाव प्रचार अप्रेल 2017 में यह कहते लिखी थी कि सिंधिया राजघराने के पूर्वज गद्दार थे और आजादी की लड़ाई के वक्त उन्होंने जनता का नहीं अंग्रेजों का साथ दिया था. तब शिवराज के इस बयान पर खासा बवाल मचा था और बवाल ज्योतिरादित्य ने नहीं बल्कि उनकी बुआओं यशोधरा राजे और वसुंधरा राजे ने मचाया था.

यशोधरा राजे ने तो मीडिया के सामने सुबकते हुये गिनाया था कि कैसे उनकी मां राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपने गहने तक बेच बेच कर पहले जनसंघ और फिर भाजपा को खड़ा करने में अपनी जिंदगी भी पार्टी के नाम कर दी थी और आज उसी पार्टी का जिम्मेदार नेता और मुख्यमंत्री कैसे और क्यों  इस तरह की अनर्गल बातें कह रहा है.

यशोधरा राजे के आंसू रंग लाये थे और भाजपा आलाकमान और आरएसएस ने शिवराज सिंह को चेतावनी दी थी कि वे सिंधिया घराने के पूर्वजों के बारे में कुछ न कहें, लेकिन ज्योतिरादित्य को जितना चाहें कोस लें.

तब दरअसल में शिवराज के निशाने पर यशोधरा राजे ही थीं, जिन्होंने कभी शिवराज सिंह के सामने झुक कर बात नहीं की थी और न अभी करती हैं. दोनों यदा कदा ही एक साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखे और जब भी दिखे तब तब यशोधरा राजे की राजसी ठसक भी उनके चेहरे पर दिखी. यह ठसक अभी भी शिवराज सिंह के कलेजे में नश्तर सरीखी चुभती है. शिष्टता और आरएसएस की खुशामद को हथियार की तरह इस्तेमाल करते रहने वाले शिवराज सिंह के बारे में हर कोई जानता है कि उमा भारती और बाबूलाल गौर सरीखे आधा दर्जन दिग्गजों को अपने रास्ते से दूध में पड़ी मक्खी की तरह हटाया है, लेकिन यशोधरा राजे का वे बाल भी बांका नहीं कर पा रहे.

28 फरवरी को जब वोटों की गिनती चल रही थी, तब प्रादेशिक न्यूज चेनल्स पर भाजपा के पिछड़ की वजह गिनाते नेताओं, पत्रकारों और विश्लेषकों ने सब कुछ गिना डाला कि किसान व्यापारी कर्मचारी सभी भाजपा से नाराज हैं, युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं और सिंधिया के गढ़ में सेंधमारी करना उतना आसान काम है नहीं, जितना शिवराज सिंह और भाजपा समझते हैं, दूसरे शिवराज सिंह की लच्छेदार भाषण शैली और वादे करने के रोग से प्रदेश की जनता ऊब चली है. कुछ कुछ ने भाजपा की अंदरूनी कलह और फूट की तरफ भी इशारा किया.

लेकिन मुद्दे की बात देर रात शिवराज सिंह खेमे से इस चर्चा को तूल देना रही कि मुंगावली कोलारस में भाजपा नेताओं का बड़बोलापन हार की वजह बना. इस चर्चा का सीधा इशारा यशोधरा राजे के उस भाषण की तरफ था जिसमें उन्होंने मतदाताओं से यह कहा था कि अगर भाजपा को नहीं जिताया तो सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलेगा. कमोबेश ऐसे ही बातें एक और कैबिनेट मंत्री माया सिंह ने भी कहीं थी जो सिंधिया घराने के नजदीकी रिश्तेदार हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी इस प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव में मिली हार से शिवराज सिंह की साख और धाक दोनों को धक्का लगा है. यशोधरा ने जानबूझ कर मतदाताओं को नाराज करने बाला भाषण अगर दिया था और हार की एकलौती वजह वही भाषण है तो भी राजनीति के लिहाज से बात हैरत की नहीं, कोई भी अपनी पूर्वजों को सरेआम गद्दार जैसे संबोधन से नवाजा जाना हजम नहीं कर सकता. कइयों को धकियाने वाले शिवराज सिंह पहली बार दिक्कत में दिख रहे हैं कि कैसे इन दोनों हारों का ठीकरा यशोधरा राजे के सर इस तरह फोड़ें कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.

आम चुनाव सर पर हैं और शिवराज सिंह विरोधी लौबी भी सक्रिय हो चली है, ऐसे में कोई फसाद खड़ा करने का जोखिम शिवराज उठाएंगे, वह भी यशोधरा राजे के खिलाफ ऐसा लग नहीं रहा. राज्य में चौराहों पर चटखारे लेकर कहा जा रहा है कि बुआ भतीजे ने मिलकर ऐसे निबटाया है कि भड़ास न उगलते बन रही न ही निगलते बन रही. शिवराज सिंह के गृह जिले के एक भाजपा कार्यकर्ता ने बड़े चुटीले अंदाज में कहा चुनाव से डर नहीं लगता भाईसाहब को सिंधियाओं से डर लगता है.

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अलविदा श्रीदेवी : बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार

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बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी का कल, 28 फरवरी को मुंबई के विलेपार्ले स्थित ‘विलेपार्ले सेवा समाज’ के शवदाह ग्रह में अंतिम संस्कार कर दिया. इससे पहले करोड़ों लोगों के दिलों में करीबन चालीस दशक तक राज करने वाली श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को उनकी पसंद की लाल रंग की बनारसी साड़ी, माथे पर लाल बिंदी, होठों पर लाल लिपिस्टिक से दुल्हन की तरह सजाया गया था. जबकि उनके आस पास के माहौल को मोगरे के सफेद फूलों से सजाया गया था. श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को जिस ट्रक से शवदाह गृह तक ले जाया गया, उसे भी मोगरे के फूलों से सजाया गया था.

24 फरवरी, शनिवार की देर रात दुबई के होटल जुमैरा इमीरात के वाशरूम में बाथटब के अंदर डूबने से 54 वर्ष की उम्र में श्रीदेवी का देहांत हो गया था. दुबई की कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद मंगलवार, देर रात श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई पहुंचा था. पद्मश्री से सम्मानित श्रीदेवी को एक तरफ राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी, तो दूसरी तरफ कपूर परिवार ने उन्हे एक रानी की तरह अंतिम विदाई देने का काम किया.

13 अगस्त 1963 को शिवाकाशी, तमिलनाड़ु में जन्मी श्रीदेवी का असली नाम श्री अम्मा मंगर अप्पायन था. चार वर्ष की उम्र में उन्होने एक तमिल फिल्म में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया था, उस वक्त तक अभिनय को लेकर उनकी कोई समझ ही नहीं थी. क्योंकि दकियानूसी परिवार से संबंध रखने वाली श्रीदेवी के चाचा राजनेता,  उनके पिता वकील और मां गृहिणी थी. उसके बाद तेरह वर्ष की उम्र में वह नाटकीय घटनाक्रम के साथ तमिल फिल्म से जुड़ी. यानी कि श्रीदेवी के अभिनय करियर की शुरूआत 13 वर्ष की उम्र में हुआ था. फिर 1975 में हिंदी फिल्म ‘‘जूली’’ में भी बाल कलाकार के रूप में ही अभिनय किया.

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1996 में श्रीदेवी ने बोनी कपूर से ब्याह किया था. 1997 के बाद उन्होंने अभिनय से दूरी बनाकर खुद को अपने परिवार के प्रति समर्पित कर दिया था. उन्होने अपने पति बोनी कपूर के अलावा दोनों बेटियों जान्हवी और खुशी के ही इर्द गिर्द अपने आपको समेट लिया था. पर 2012 में उन्होंने गौरी शिंदे निर्देशित फिल्म ‘‘इंग्लिश विंग्लिश’’ से पुनः अभिनय में वापसी की थी. 2013 में उन्हे भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ देकर सम्मानित किया था. उसके बाद 2017 में श्रीदेवी के करियर की 300वीं फिल्म ‘‘मौम’’ प्रदर्शित हुई.

श्रीदेवी ने अपने अभिनय का जादू तमिल, तेलगू, मलयालम व हिंदी भाषा की फिल्मों में इस कदर बिखेरा कि हर कोई उनका दीवाना हो गया. श्रीदेवी एक ऐसी अदाकारा थी, जिन्होंने अभिनय व भाषा की बंदिश/सीमाओं को तोड़ते हुए काम किया था. फिल्म ‘‘खुदा गवाह’’ में श्रीदेवी ने अफगानी लहजे की हिंदी में संवाद अदायगी कर अफगानिस्तान में भी अपने प्रशंसकों की संख्या बढ़ायी थी.

पहली बार ऐसी अंतिम विदाई

दिवंगत श्रीदेवी को उनके परिवार की तरफ से जिस अंदाज में अंतिम विदाई दी गयी, वैसी विदाई इससे पहले किसी भी बौलीवुड स्टार को नहीं दी गयी थी. कुछ वर्ष पहले राजेश खन्ना के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को ट्रक पर रखकर बांदरा के उनके बंगले से विलेपार्ले के इसी शवदाह तक लाया गया था और उनके दर्शन के लिए उनके प्रशंसकों की भीड़ उमड़ी थी. लेकिन बौलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी को अंतिम विदाई देने के लिए हजारों प्रशंसक देश के कोने कोने से आए थे.

ऐसा पहली बार हुआ जब दिवंगत कलाकार के अंतिम दर्शन के लिए उनके प्रशंसकों के लिए भी खास व्यवस्था की गई. इसी के चलते कार्यक्रम में बदलाव किया गया. बोनी कपूर के ‘ग्रीन एकर्स’ घर से सौ कदम की दूरी पर स्थित ‘‘लोखंडवाला स्पोर्ट्स सेलीब्रेशन क्लब’’ में श्रीदेवी के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन की व्यवस्था की गई. सुबह करीबन साढ़े नौ बजे से दोपहर एक बजे के बीच सिर्फ फिल्मी हस्तियों ने ही नहीं, बल्कि श्रीदेवी के प्रशंसक भी अंदर जाकर अपनी श्रृद्धांजली अर्पित कर सके. उसके बाद लगभग आधा घंटे तक कपूर परिवार के सभी सदस्यों ने श्रीदेवी के पार्थिव शरीर के साथ बिताया. उस वक्त अंदर कपूर परिवार के अलावा कोई नहीं था.

अंतिम संस्कार के लिए विलेपार्ले के शवदाह गृह की तरफ ले जाने से पहले श्रीदेवी को पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया. उसके बाद मुंबई पुलिस के बैंड ने ‘गार्ड आफ औनर’ यानी कि सलामी दी. ट्रक में श्रीदेवी के पार्थिव शरीर के साथ बोनी कपूर, अनिल कपूर, संजय कपूर, अर्जुन कपूर, हर्षवर्धन कपूर, मोहित मारवाह और जान्हवी कपूर थीं. करीबन ढाई घंटे में श्रीदेवी के पार्थिव शरीर का काफिला विलेपार्ले स्थित ‘विलेपार्ले सेवा समाज’ के शवदाह ग्रह पहुंचा, जहां उनके प्रंशंसकों की भीड़ को संभालना पुलिस के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती साबित हुई.

कायम की पारिवारिक एकजुटता की मिसाल

दुःख की इस घड़ी में कपूर परिवार ने पारिवारिक एकजुटता की मिसाल कायम की. लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि श्रीदेवी ने बोनी कपूर के साथ दूसरी शादी की थी. श्रीदेवी के साथ बोनी कपूर का रिश्ता बनने से पहले बोनी कपूर शादीशुदा और एक बेटे अर्जुन कपूर व बेटी अंशुला के पिता थे. बोनी कपूर ने पहली शादी मशहूर फिल्म निर्माता सत्ती शोरी की बेटी मोना शोरी से की थी.

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बोनी कपूर के साथ विवाह करने के बाद श्रीदेवी बहुत ही ज्यादा आत्मकेंद्रित हो गईं थी. उन्हे यह बर्दाश्त नहीं था कि बोनी कपूर का ध्यान कहीं और जाए. जब एक बार बोनी कपूर, अर्जुन कपूर व अंशुला को लेकर पिकनिक मनाने गए थें, तो श्रीदेवी काफी नाराज हुई थीं. तो दूसरी तरफ मोना कपूर भी श्रीदेवी को पसंद नही करती.

जब श्रीदेवी गर्भवती थी, तब मोना कपूर ने श्रीदेवी के पेट पर लात मारी थी. यहां तक कि यह कटुता मोना कपूर व श्रीदेवी के बच्चों के बीच भी लगातार बनी रही. 2012 में जब अर्जुन कपूर व अंशुला की सगी मां तथा बोनी कपूर की पहली पत्नी मोना कपूर शोरी का निधन हुआ था, तब मोना के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए श्रीदेवी, जान्हवी और खुशी नहीं गए थें.

लेकिन श्रीदेवी के देहांत के बाद अर्जुन कपूर व अंशुला ने शामिल होकर पारिवारिक एकजुटता की मिसाल कायम कर दी. जब श्रीदेवी का पार्थिव शरीर ‘सेलीब्रेशन क्लब’’ में अंतिम दर्शन के लिए रखा हुआ था, उस वक्त अर्जुन कपूर व्यवस्था देख रहे थे. यहां तक कि पार्थिव शरीर को सेलीब्रेशन क्लब से विलेपार्ले शवदाह गृह तक ले जाते समय भी अर्जुन कपूर श्रीदेवी के पार्थिव शरीर के साथ खड़े थे. इतना ही नहीं श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को दुबई से मुंबई लाने के लिए भी मंगलवार की सुबह अर्जुन कपूर मुंबई से दुबई पहुंच गए थें और फिर अपने पिता बोनी कपूर के साथ रहे और श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को लेकर ही लौटे.

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छोटे होते हुए भी अनिल कपूर ने निभायी बड़े भाई की भूमिका

श्रीदेवी का निधन 24 फरवरी की देर रात हुआ था, इस खबर को सुनते ही बोनी कपूर के सबसे छोटे भाई व अभिनेता संजय कपूर तुरंत वापस दुबई लौट गए थें और बोनी कपूर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. जबकि बोनी कपूर के छोटे भाई अनिल कपूर ने बड़े भाई की तरह मुंबई रहकर जिम्मेदारी निभाई. अंशुला, अर्जुन, जान्हवी व खुशी को बुलाकर अपने घर पर रखा. जब तक श्री देवी का पार्थिव शरीर मुंबई नहीं पहुंचा, तब तक हर जिम्मेदारी निभाई, लोग अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए अनिल कपूर के घर पर ही जा रहे थे. इतना ही नहीं श्रीदेवी के पार्थिव शरीर को लेने के लिए अनिल कपूर मुंबई एयरपोर्ट भी गए.

रविवार व सोमवार के दिन अर्जुन कपूर भी अनिल कपूर के ही घर पर रहे, पर वह दुःख की घड़ी में अपने पिता का साथ देने के लिए दुबई नहीं गए. मगर अचानक मंगलवार की सुबह वह दुबई पहुंच गए. उसके बाद उन्होंने एक बेटे की सही भूमिका निभाई. सूत्र बताते हैं कि अर्जुन कपूर का मन बदलने में अनिल कपूर ने अहम भूमिका निभाई. सूत्रों का दावा है कि अनिल कपूर ने ही अर्जुन को समझाया कि अर्जुन कपूर को अपने पिता के साथ खड़े रहकर संयुक्त परिवार की भावना के साथ कपूर परिवार की एकजुटता का सबूत देना चाहिए. सूत्रों का दावा है कि अनिल कपूर की बातों का अर्जुन कपूर पर काफी असर हुआ और वह मंगलवार की सुबह पिता का साथ देने के लिए दुबई पहुंच गए थें.

श्रीदेवी ने बनायी थी सोनम कपूर की पेंटिंग

सोनम कपूर और श्रीदेवी के बीच काफी अच्छे संबंध रहे हैं. पेटिंग बनाने की शौकीन श्रीदेवी ने सोनम कपूर की भी पेंटिंग बनायी थी. यही वजह है कि जब श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई पहुंचा, तो सोनम कपूर फूटफूट कर रो पड़ी थीं.

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