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भूटान

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भूटान अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजो कर रखे हुए है. वहां के रहनसहन, पर्यटन स्थलों और खानपान का लुत्फ उठा कर पर्यटकों का दिल खुश हो जाता है.

दुनिया में ऐसे देश हो सकते हैं जहां रेलगाडि़यां नहीं दौड़तीं मगर शायद ही ऐसा कोई देश होगा जिस की सड़कों पर एक से बढ़ कर एक लग्जरी कारें दौड़ती हैं, वह भी बिना ट्रैफिक सिग्नल के.
भारत के पूर्वोत्तर में बसे नन्हे, हिमालयी देश भूटान में ऐसी कई रोचक चीजें देखी जा सकती हैं. यहां की सड़कों पर दोपहिया वाहन दिखना दुर्लभ होता है.

यहां फैशन और स्टाइल है और परंपराओं का भी उतनी ही शिद्दत से पालन होता है. स्कूली बच्ची से ले कर बुजुर्ग महिला तक पारंपरिक ड्रैस ‘कीरा’ मे टहलती है तो खूबसूरत, रेशमी बालों को फैशनेबल अंदाज में बिखरा कर चलती युवती भी भूटान की इस पारंपरिक ड्रैस में बेहद सहज दिखाई देती है. युवकों के बालों के स्टाइल आकर्षक हैं, लेकिन वे भी पारंपरिक पोशाक ‘घो’ (जो बाथरोब की तरह लगता है) में ज्यादातर दिखते हैं. सचमुच 15वीं और 21वीं सदी यहां एकसाथ कदमताल करती दिखती हैं.

इस देश ने बहुत धीमी मगर संभली हुई रफ्तार से आधुनिकता को अपनाया है. इंटरनैट, मोबाइल, टैलीविजन सरीखे आधुनिक बोध के साधनों को जैसे भूटान के हिमालयी शिखरों ने लंबे समय तक यहां दाखिल नहीं होने दिया.

भूटान की राजमाता आशी दोरजी वांग्मो वांग्चुक कहती हैं कि भूटान ने अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रखने की खातिर खुद पर अंकुश लगाए रखा. अलबत्ता, पिछले एक दशक में देश ने करवट लेनी सीखी है और धीरेधीरे ही सही मगर बदलाव की बयार राजधानी थिंपू समेत अन्य जगहों पर महसूस की जा रही है. लेकिन यहां के जीवन को देख कर लगता है कि भूटानी समाज अपनी परंपराओं को आज भी जकड़े हुए है.

करीब 7 लाख की आबादी वाले इस देश में जिंदगी बहुत सहज लगती है, खासतौर से भारत के बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों की धक्कामुक्की के बाद यहां जब आप कहीं भी भीड़ नहीं देखते तो सुखद एहसास होना स्वाभाविक है.

बस स्टेशन के टिकट काउंटर पर आप अकसर खुद को सब से आगे पाते हैं. टैक्सी स्टैंड पर भी टैक्सियों की कतार तो है मगर कोई शोरगुल, चिल्लपौं या ड्राइवरों की धींगामुश्ती नहीं है. अपनी मंजिल की ओर दौड़ती बस या टैक्सी की खिड़की से बाहर के खूबसूरत नजारों को निहारते हुए मन में यह सवाल अकसर कौंधता है कि क्या यह देश सचमुच आखिरी शंगरिला है.

हिमालय की गोद में बसे सिक्किम, लद्दाख, दार्जिलिंग, हिमाचल जैसे तमाम भारतीय प्रदेशों का मिलाजुला नजारा भूटान में बेशक है, मगर यह देश सब से अलग है. लालपीले वस्त्रों में ढके बौद्ध भिक्षुओं के रूप में लेहलद्दाख की  झलक यहां दिखती तो है लेकिन मठों का विशिष्ट वास्तुशिल्प इस के लैंडस्केप को अद्भुत पहचान देता है.

इस हिमालयी साम्राज्य ने बेहद सू झबू झ से उस हिप्पी कल्चर से खुद को दूर रखा है जिस ने नेपाल जैसे एक हिमालयी देश को भ्रष्ट कर डाला है. भूटान ने बहुत समय तक विदेशी टूरिस्टों के लिए अपने दरवाजे बंद रखे और जब 1974 में पर्यटन का  झोंका आया भी तो बेहद सधे हुए अंदाज में ऐसा हुआ.

टूरिज्म के अद्भुत मौडल के चलते यहां ‘लो इंपैक्ट, हाई वैल्यू’ पर्यटन पर जोर दिया गया है. विदेशियों के लिए जहां भूटान में सैरसपाटा काफी खर्चीला है वहीं आम भारतीय सैलानी अपने मनमाने बजट के अनुरूप इस नन्हे से देश को अपनी रफ्तार से देखजान सकते हैं.

अलबत्ता, उन्हें यहां आने के लिए विशेष परमिट (भारतीयों के लिए वीजा की जरूरत नहीं है) लेना होता है जो सड़कमार्ग से आने पर फ्युंशलिंग (पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी से करीब 165 किलोमीटर दूर), समद्रुप जोंखार (गुवाहाटी से 110 किलोमीटर दूर) या असमभूटान सीमा पर गेलेफू स्थित इमिग्रेशन कार्यालय से जारी किया जाता है.

आम भूटानी नागरिक को जैसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाहरी दुनिया किस रफ्तार से दौड़ रही है. वह अपनी मंथर गति से, अपनी संस्कृति, अपनी परंपराओं में पूरी तरह मस्त है. थिंपू शहर हो या पारो की गलियां, हर जगह मुसकराते, खिलखिलाते चेहरे नजर आ जाएंगे.

चौथे भूटान नरेश जिग्मे सिग्मे वांग्चुक ने 1972 में देश की तरक्की को नापने के लिए जब जीडीपी जैसे ठोस आर्थिक पैमाने के बजाय जीएनएच को ज्यादा तवज्जो देने का नारा बुलंद किया था तो देखादेखी कुछ यूरोपीय देशों ने भी इस ‘राजनीतिक फुटबाल’ को खूब उछाला था. दुनिया के बाकी देशों में इस फुटबाल की सिलाई कभी की उधड़ चुकी है लेकिन भूटान में आज खुशहाली का आलम यह है कि हर कोई अपने वर्तमान से पूरी तरह मंत्रमुग्ध दिखता है.

अकेले हैं, दुकेले हैं, परिवार के संग हैं या परिवार से दूर किसी मोनैस्ट्री की छत्रछाया में हैं, हर चेहरे पर मस्ती का अनूठा रंग है जो आप को देश के इकलौते हवाई अड्डे पारो पर उतरते ही दिखने लगता है. थिंपू शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर खूबसूरत पारो घाटी में स्थित यह हवाई अड्डा काफी ऊपर से ही दिखने लगता है.

यह हवाई अड्डा दुनिया के सब से खतरनाक लैंडिंग वाले हवाई अड्डों में गिना जाता है, मगर यहां उतरने के बाद आप खुद को ऐसे अनोखे भूटानियों के बीच पाते हैं जिन के चेहरे की मांसपेशियों ने शायद हंसना ही सीखा है. कभीकभी तो मन होता है किसी को रोक कर पूछने का कि तनाव, दबाव, गम और चिंता से परे कैसे रहता है उन का समाज? और तभी बौद्ध दर्शन याद दिलाता है कि जीवन अनावश्यक दुखों को सहने के लिए नहीं बना. बुद्ध की इस शिक्षा को अगर सही माने में किसी ने अपनाया है तो वह भूटानी समाज ही है. तभी तो सालभर तरहतरह के उत्सवों व नृत्य की मस्ती में भूटानी समाज डूबा रहता है.

कभी 70 के दशक की शुरुआत तक घरपरिवार ही शादीब्याह तय करते थे यहां. आज लड़कालड़की खुद ही अपना जीवनसाथी तलाश कर कभी शादी की परंपरा को अपना कर तो कभी ‘लिविंग टुगैदर’ की व्यवस्था के तहत साथसाथ जीनेमरने की कसमें उठा लेते हैं.

मातृसत्तात्मक समाज व्यवस्था आम है. लिहाजा, शादी के बाद लड़का अपनी पत्नी के घर में शिफ्ट हो जाता है और तलाक की नौबत आती है तो उतने ही सहज ढंग से वापस अपने पुराने घर लौट जाता है.

एक समय था कि हर घर से एक लड़का मठ की राह अवश्य पकड़ता था लेकिन आज भूटानी समाज इस बंधन से मुक्त है. जो परिवार अपने बच्चों को बौद्ध भिक्षु या भिक्षुणी बनाने का फैसला करते हैं, वे स्वतंत्र रूप से बिना किसी दबाव के ऐसा करते हैं. लेकिन भूटान में जगहजगह बिखरी मोनैस्ट्री और ननरी (भिक्षुणियों के मठ) इस बात के गवाह हैं कि बौद्ध धर्म की इस अनूठी व्यवस्था की जड़ों को भूटानी समाज आज भी शिद्दत से सींच रहा है.

करिश्माई दुबई

विश्व मानचित्र पर दुबई की अहमियत एक ऐसे मुल्क के रूप में है जो एक ओर आधुनिकता का जामा ओढ़े हुए है तो दूसरी ओर अपनी प्राचीन संस्कृति व ऐतिहासिक धरोहरों को अपनेआप में समेटे हुए है. यही वजह है कि यह मुल्क आज पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बन गया है.

हराभरा, आकर्षणों से भरपूर दुबई, जो कुछ सालों तक शून्यता से भर गया था, बेकारी की दर जहां दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी, लोग नौकरियां छोड़ कर वापस आ रहे थे, कई लोग अपनी गाड़ी में ही रात गुजारते थे, किसी को कुछ रुपए दे कर उस के घर में नहाधो कर फिर से अपने काम में लग जाते थे, वही दुबई आज फिर से शेख मोहम्मद साहब के अथक परिश्रम व दूरदर्शिता से बुलंदी पर पहुंच गया है. आज दुबई का हाल यह है कि वह अपने ही बनाए आंकड़ों को चुनौती दे कर आगे बढ़ रहा है. इस में कोई शक नहीं कि विश्वभर के लोगों का आकर्षण पहले भी दुबई था और आज भी है.

दर्शनीय स्थल

दुबई में आने वाले हर सैलानी को बर्फानी स्थल देख कर सुकून मिलता है. इमरेट्स औफ भौरा के अंदर के इस बर्फीले स्थल में पहुंच कर सैलानी को कुछ पल के लिए ऐसा महसूस होता है कि वह या तो कश्मीर के गुलमर्ग क्षेत्र में पहुंच गया है या फिर स्विट्जरलैंड. इस बर्फानी स्थल में जाने के लिए विशेष कपड़े, टोपी इत्यादि पहनने पड़ते हैं. वहां पर अकसर कई लोग छोटेमोटे कार्यक्रम जैसे जन्मदिन या छोटीमोटी पार्टी आदि भी करते हैं. स्केटिंग का लुत्फ भी वहां उठाया जाता है.

समुद्र में बने होटल बुर्ज अरब के 27वें फ्लोर पर जा कर सैलानी पूरे दुबई को देखने के साथसाथ वहां की साजसज्जा व विभिन्न कार्यक्रम देख कर आनंद महसूस करता है.

उम अल्क्वेन

उम अल्क्वेन में हर उम्र के लोगों के लिए खेल हैं. पानी में तरहतरह के खेलों का आनंद बच्चे, बूढ़े और जवान जीभर कर उठाते हैं. हर पानी के खेल में सिक्योरिटी वाले खड़े रहते हैं. इन खेलों में सलवारकुरता या साड़ी पहन कर जाना मना है. कोई भी सैलानी जिस्म से चिपकी टीशर्ट, जींस या हाफ पैंट पहन कर ही इन खेलों में शामिल हो सकता है.

आभूषणों की मंडी  : दुबई में आने वाले हर सैलानी को डेरा दुबई और गोल्ड सूक में सोने के आभूषणों की मंडी आकर्षित करती है. कई पर्यटक इसे देखते ही रह जाते हैं.

दुबई में आधुनिक से आधुनिक व कई देशों के बने डिजाइनों के आभूषण उपलब्ध हैं. अमेरिकी हो या अफगानी, बंगाली हो या राजस्थानी, यहां सभी को अपनी रुचि के अनुसार आभूषण मिल जाते हैं.

दुबई के सोने की विशेषता है कि सैलानी को खरा सोना निर्धारित दाम में मिलता है. वहां 22 कैरट का सोना एकदम 100 फीसदी 22 कैरट का होता है, कोई मिलावट नहीं होती जबकि अन्य देशों में सोने के साथ अमूमन तांबा या अन्य कोई धातु मिलाई जाती है.

दुबई में सोने के आभूषण खरीदते समय यदि सैलानी आभूषण की बनवाई पर मोलभाव करे तो उसे फायदा हो सकता है. हालांकि वहां मोलभाव का प्रचलन नहीं है फिर भी दुकानदार ग्राहक को बनवाई में थोड़ाबहुत कम कर देते हैं.

भव्य मौलों का शहर : दुबई में एक से एक बड़े और भव्य मौल हैं. ‘मौल औफ अमीरात’ सब से बड़ा मौल है. इस के अलावा बरजुमान, लैम्सी प्लाजा, बुर्ज खलीफा, अजमान आदि में अनेक भव्य मौल बने हुए हैं, जहां आप को दुनिया के हर ब्रैंड का कपड़ा व चीजें मिलेंगी, पुरुषों के सूट यों तो रेडीमेड मिल जाते हैं पर और्डर देने पर 3 घंटे में भी तैयार कर दिए जाते हैं. मेकअप का सामान हो या घरगृहस्थी का, घड़ी हो या चप्पल या फिर पर्स, हर ब्रैंड का सामान यहां मिलता है.

मौल्स के अतिरिक्त कुछ ऐसे बाजार भी हैं जहां सस्ता व हर तरह का सामान हर तबके का व्यक्ति खरीद सकता है. जैसे डेरा दुबई इलाके के ऊंट बाजार में बच्चों के कपड़े, खिलौने, महिलाओं के मेकअप का सामान, पर्स आदि सस्ते दामों में मिल जाते हैं. डेरा बाजार में कपड़ों का बाजार है जहां होलसेल और रिटेल दोनों दामों पर कपड़े मिलते हैं.

चाइनीज मार्केट में चीन का बना छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा हर तरह का सामान मिलता है, इन का मूल्य भी कम होता है. ‘केअरफोर’ यहां का बहुत बड़ा मौल है जहां खानापीना, कपड़ा, घर का सामान, घड़ी, सोना सभीकुछ मिलता है.

ओपन बस का मजा : दुबई में ‘ओपन बस’ में बैठ कर आप पूरे शहर के पर्यटन स्थल घूम सकते हैं. इस बस के कई स्टौप हैं. आप किसी भी पर्यटन स्थल पर उतर कर अच्छी तरह से घूम कर फिर दूसरी ‘ओपन बस’ ले कर दूसरे पर्यटन स्थल का आनंद ले सकते हैं. टिकट वही रहता है. एक दिन का टिकट दूसरे दिन भी चलता है. जितने पर्यटन स्थलों का विवरण टिकट में लिखा होता है.

यह बस बरजुमान, करामा से शुरू होती है. म्यूजियम, अमीरात, मोल, बुर्ज अरब होटल, अरब के पुराने मकान, सब से लंबी बिल्ंिडग, जुमेरा आदि कई स्थलों से घुमाते हुए ले जाती है.

दुबई में ट्रांसपोर्ट के लिए आप कार्ड भी बनवा सकते हैं. यह ट्रांसपोर्ट कार्ड, बस या मैट्रो दोनों में चल जाता है.

मछलियों की दुनिया : दुबई की सब से ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा देखने लायक है. वहां ऊपर जाने में टिकट लगता है. वहां के हर फ्लोर पर आकर्षण के कई केंद्र हैं. उस के साथ ही मछलियों का ऐसा म्यूजियम है जहां हर तरह की व कुछ विशेष आकर्षण से युक्त मछलियां हैं, जिन्हें देख कर बच्चे ही नहीं, बड़े भी आनंदित होते हैं.

बिना ड्राइवर मैट्रो : दुबई की मैट्रो बिना चालक के औटोमेटिक चलती है. पूरे शहर में मैट्रो का जाल बिछा हुआ है. इस का किराया भी साधारण है. एक डब्बा प्रथम श्रेणी का होता है जिस में थोड़ा ज्यादा किराया होता है. हवाई जहाज की शक्ल की यह मैट्रो आकर्षण के साथसाथ सैलानियों को आनंदित भी करती है.

बालू के पहाड़ों में रोमांचक सफारी : दुबई में सफारी डेजर्ट का भी अपना अलग रोमांच है. पजेरो जैसी गाडि़यों में ड्राइवर बालू के विशाल पहाड़ों पर सैलानियों को ले जाते हैं. 3-4 घंटे की इस सवारी के समय वहीं पर खानापीना व अरबी नृत्यांगनाओं का नृत्य देखते हैं. खाने के साथसाथ जाम के दौर का भी प्रबंध होता है. नृत्यांगना बैली डांस करती हैं. कई सैलानी भी इन के साथ नृत्य करते हैं.

समुद्र में नौका विहार : दुबई में रात में ज्यादातर बड़ीबड़ी बोटों को सजाया जाता है. इस पर कई सैलानी दूर समुद्र की सैर करने के साथसाथ वहीं खानापीना भी करते हैं. डांस आदि के कार्यक्रम भी चल रहे होते हैं. समुद्र में इस तरह की कई बोटें चल रही होती हैं जो बहुत आकर्षित करती हैं. कई लोग इन्हीं बोटों पर जन्मदिन की पार्टियां आदि भी आयोजित करते हैं.

खूबसूरत इमारतों का शहर : दुबई में एक से एक खूबसूरत इमारतें हैं. पहलेपहल यहां मकान या फ्लैट खरीदना सिर्फ बड़े आदमियों की मिल्कीयत थी लेकिन अब कुछ दाम कम हो जाने के कारण कई लोगों ने एक कमरे का फ्लैट या 2 बैडरूम फ्लैट खरीद रखे हैं, जिस के लिए उन को वीजा भी मिलता है.

कैसे जाएं : दुबई जाने के लिए  अमीरात एअर लाइंस तो हमेशा से वीजा देती रही है. अब अन्य एअर लाइंस ने भी देना शुरू किया है. इस के अतिरिक्त दिल्ली, मुंबई में ऐंबैसी से भी वीजा प्राप्त किया जा सकता है. कई ट्रैवल एजेंट भी टिकट और वीजा मुहैया करा देते हैं.

मौसम : दुबई का मौसम यों तो ठीक ही रहता है लेकिन गरमियों में जून से ले कर अगस्त के आखिर तक बहुत गरमी होती है. बाकी समय खुशगवार मौसम रहता है.

लक्षद्वीप

छोटेछोटे द्वीपों से बने लक्षद्वीप पहुंच कर सैलानी शांत, भीड़भाड़ से दूर, सुकून भरे वातावरण में पहुंच  जाते हैं. वे सागर से आती लहरें, हरेभरे ऊंचे वृक्ष और रोमांच से भर देने वाले दृश्य में डूब जाते हैं. यहां कुदरत के ऐसेऐसे अद्भुत नजारे मिलते हैं कि बस देखते ही रह जाते हैं.

जून के पहले सप्ताह में हमें लक्षद्वीप जाने का अवसर मिला. दिल्ली से हवाई मार्ग द्वारा रात को कोच्चि पहुंचने पर, कोच्चि में ही विश्राम करना पड़ा क्योंकि कोच्चि से लक्षद्वीप के लिए प्रतिदिन एअर इंडिया की एक ही घरेलू फ्लाइट है और फिर वही फ्लाइट दोपहर को वापस कोच्चि आ जाती है. इसलिए हम कोच्चि से एअर इंडिया की घरेलू फ्लाइट से लक्षद्वीप के लिए रवाना हुए. कोच्चि से लक्षद्वीप पहुंचने में लगभग 2 घंटे का समय लगा. हमारा विमान लक्षद्वीप के एक छोटे से द्वीप अगाती हवाई अड्डे पर जब उतरा तो विमान से बाहर आते ही बड़ा ही रोमांचकारी दृश्य देखने को मिला. हम ने अपनेआप को समुद्र के बीच एक द्वीप पर पाया. 3 ओर से समुद्र की लहरें हिलोरे मार रही थीं. हवाई पट्टी के एक ओर पवन हंस का एक हैलीकौप्टर भी आ कर खड़ा हो गया.

पूछने पर पता चला कि यह हैलीकौप्टर लोगों को लक्षद्वीप की राजधानी कावाराती से ले कर आ रहा है और अभीअभी जो यात्री विमान से उतरे हैं और कावाराती जाने वाले हैं, यह उन्हें ले कर भी जाएगा. यात्रियों को यहां से हैलीकौप्टर द्वारा सिर्फ कावाराती द्वीप पर ही ले जाया जाता है और यात्रियों को यह सुविधा दिन में एक ही बार मिलती है. शनिवार और रविवार को यह हैलीकौप्टर सेवा छुट्टियों के कारण बंद रहती है.

वास्तव में 32 किलोमीटर लंबी भूमि वाला लक्षद्वीप 36 छोटेछोटे द्वीपों से मिल कर बना है, जिन में आबादी केवल 10 द्वीपों पर ही है.

लक्षद्वीप भारत का केंद्र शासित राज्य है. इस के सभी द्वीपों पर जलवायु सामान्य है. यहां की मिश्रित भाषा है जिस में मलयालम, तमिल और अरेबिक इत्यादि भाषाओं का मिश्रण है, जिसे ‘जिसरी’ कहा जाता है.

दर्शनीय स्थल

अगाती द्वीप : यह कोच्चि से 459 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हवाई जहाज से यहां पहुंचने में 2 घंटे का समय लग जाता है. यह द्वीप 7 किलोमीटर लंबा है. सब द्वीपों में लंबा होने के कारण ही यहां एअरपोर्ट बनाना संभव हो पाया, इसलिए इस द्वीप का अपना ही महत्त्व है. उत्तर में इस द्वीप की चौड़ाई आधे किलोमीटर से भी कम है. द्वीप के बीचोंबीच एक पक्की सड़क बनी हुई है जहां से दोनों ओर का समुद्र दिखाई देता है.

जब हम इस द्वीप पर पहुंचे, वहां वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका था. समुद्र और मौसम के बदले तेवर के कारण यहां से अन्य द्वीपों पर जाने का एकमात्र साधन पानी के जहाज बंद हो चुके थे, इसलिए हम कुछ दिन अगाती में ही रुक कर वापस कोच्चि के लिए रवाना हो गए. इसी दौरान इस द्वीप पर बसे गांव को बड़े नजदीक से देखने का अवसर मिला.

यहां टूरिज्म विभाग भी कार्यरत है और यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस उन का गैस्ट हाउस और एक पुराना डाकबंगला भी है. यहां वाटर स्पोर्ट्स, स्कूबा डाइविंग, केनोइंग, कांच के तल वाली नावों से समुद्र के अंदर कोरल व समुद्री जीवजंतुओं को देखने व हट्स इत्यादि जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.

समुद्र के किनारे बहुत ही साफसुथरे हैं. नारियल के पेड़ों की सूखी टहनियों और खोलों को बड़े ही करीने से ढेर लगा कर रखा जाता है. यहां लोगों के आनेजाने का मुख्य साधन साइकिल लोकप्रिय है, इसलिए प्रदूषण की समस्या नहीं है. इस द्वीप की एक बड़ी खासीयत यह भी है कि बिजली आपूर्ति के लिए सोलर स्टेशन बनाया गया है. सड़कों पर सोलर लाइटें लगी हुई हैं. पीने के पानी के लिए घरघर में वर्षाजल संचित किया जाता है.

कावाराती द्वीप : कोच्चि से 440 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, कावाराती द्वीप लक्षद्वीप की राजधानी है. इस द्वीप का क्षेत्रफल 4.22 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या 25 हजार से भी अधिक है, इसलिए भीड़भाड़ भी ज्यादा है. अगाती से कावाराती हैलीकौप्टर या शिप द्वारा आया जा सकता है. हैलीकौप्टर से 20-25 मिनट और शिप से यहां पहुंचने के लिए 6 घंटे लगते हैं. वर्षा ऋतु में मौसम खराब हो जाने पर शिप बंद कर दिए जाते हैं. यहां भी अगाती की तरह स्थानीय लोगों के लिए जीवनयापन की सभी सुविधाएं मौजूद हैं. पर्यटकों के लिए सभी सुखसुविधाओं से लैस गैस्ट हाउस बने हुए हैं. यहां के खूबसूरत समुद्री किनारे पर्यटकों को लुभाते नजर आते हैं इसीलिए पर्यटक यहां वाटर स्पोर्ट्स और तैराकी का लुत्फ उठाते हैं.

मिनीकाय द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 398 किलोमीटर है. इस का क्षेत्रफल 4.80 वर्ग किलोमीटर है. यह दूसरा सब से बड़ा द्वीप है. पहला बड़ा द्वीप अन्द्रोथ है. मिनीकाय, लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित है. इस द्वीप पर रहने वाले लोगों की संस्कृति उत्तरी द्वीपों के लोगों से भिन्न है. यहां की बोलचाल की भाषा माही है. यहां वर्ष 1885 का बना सब से पुराना लाइटहाउस भी  है. पर्यटकों को लुभाने हेतु खूबसूरत समुद्री किनारे हैं.

किल्टन द्वीप : फारस की खाड़ी और श्रीलंका के साथ व्यापार करने के लिए यह एक अंतर्राष्ट्रीय मार्ग के नाम से भी जाना जाता है. यह द्वीप बहुत गरम है. गरमी अधिक होने के कारण लोग बाहर सोते हैं. यह पहला द्वीप है जिस की ‘बीचेस’ पर ऊंची तूफानी लहरें उठती रहती हैं. इस द्वीप की मिट्टी बहुत उपजाऊ होने के कारण यहां बहुत अधिक वनस्पतियां उगाई जाती हैं. यहां के समुद्री किनारे लोकनृत्यों के लिए प्रसिद्ध हैं.

कादमत द्वीप : यह द्वीप कोच्चि से 407 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस के पश्चिम में खूबसूरत व उथला समुद्र होने के कारण वाटर स्पोर्ट्स के लिए यह बहुत उत्तम समुद्री किनारा है. पूर्व में तंग लैगून है और लंबा बीच है. शहर से दूर यहां आ कर सैलानी वाटर स्पोर्ट्स, पैडल बोट्स, स्वीमिंग, सी डाइविंग, सेलिंग के अतिरिक्त शीशों के तल वाली नावों में समुद्र में जा कर, समुद्री जीवजंतुओं को देखने का आनंद भी उठाते हैं. इस के अतिरिक्त स्कूबा डाइविंग पर्यटकों के लिए यहां का विशेष आकर्षण है.

एडमिनी द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 407 किलोमीटर है. यह द्वीप आयताकार है. यहां के समुद्र में भवन निर्माण हेतु कोरल्स और रेतीले पत्थर बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं. यहां के निवासी कुशल शिल्पकार हैं जो कछुए के खोल और नारियल के खोलों से छड़ी बनाने के लिए मशहूर हैं.

अन्द्रोथ द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 293 किलोमीटर है. यह लक्षद्वीप का सब से बड़ा द्वीप है. यह द्वीप घनी हरियाली के लिए भी जाना जाता है, विशेषकर घने नारियल के पेड़ों के कारण. जूट और नारियल यहां के मुख्य उत्पादन हैं.

चेतला द्वीप : कोच्चि से इस द्वीप की दूरी 432 किलोमीटर है. यहां नारियल कम होता है इसलिए जूट यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय है. नारियल के पत्तों की चटाइयां बनाई जाती हैं. 20वीं शताब्दी में यहां समुद्री जहाज, नावें बनाने का यहां का उद्योग बहुत प्रसिद्ध रहा है जिस की अन्य द्वीपों पर जाने वाले लोगों द्वारा मांग की पूर्ति की जाती थी.

कल्पेनी द्वीप : कोच्चि से यह द्वीप 287 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह द्वीप भी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. सब से पहले इस द्वीप पर लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया गया था. वर्ष 1847 में इस द्वीप पर बहुत बड़ा तूफान आया था जिस में बहुत बड़ेबड़े पत्थर भी यहां आ कर गिरे थे. वाटर स्पोर्ट्स, रीफ वौक, तैराकी जैसी सुविधाएं पर्यटकों के लिए यहां उपलब्ध हैं.

राजस्थान

राजेरजवाड़ों और राजसी वैभव के तमाम किस्से समेटे सांस्कृतिक और आधुनिकता का संगम बन चुका राजस्थान अपने अद्भुत वास्तुशिल्प, मधुर लोकसंगीत और रंगबिरंगे पहनावे के लिए मशहूर है. यही वजह है कि विदेशी पर्यटक यहां बरबस ही खिंचे चले आते हैं.

राजाओं की धरती राजस्थान देशी और विदेशी घुमक्कड़ों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल माना जाता है. यह राज्य अपनी संस्कृति, रंगबिरंगे पहनावे और खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है.
यहां की पुरानी हवेलियां जो कभी राजेमहाराजों और राजकुमारियों का निवास हुआ करती थीं, उन्हें पर्यटकों के लिए लग्जरी होटलों में तबदील कर दिया गया है. इन में रह कर पर्यटक कुछ समय के लिए खुद को इस राजसी राज्य का राजा महसूस करने लगते हैं.

जैसलमेर

राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में थार के रेगिस्तान के हृदयस्थल पर स्थित जैसलमेर देश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. अनुपम वास्तुशिल्प, मधुर लोकसंगीत, विपुल सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को अपने में समाए जैसलमेर पर्यटकों के स्वागत के लिए सदैव तत्पर रहता है. यह ?ालसाने वाली गरमी और जमा देने वाली ठंडी रेगिस्तानी जमीन के लिए जाना जाता है.

दर्शनीय स्थल

डेजर्ट कल्चर सैंटर व म्यूजियम : डैजर्ट कल्चर सैंटर व म्यूजियम राजस्थान की संपन्न संस्कृति को दर्शाता है. इस संग्रहालय में कई तरह के पारंपरिक  यंत्र, प्राचीन व मध्ययुग के सिक्के, खूबसूरत पारंपरिक टैक्सटाइल व बेशकीमती चीजों को संगृहीत किया गया है.

सलीम सिंह की हवेली : बेहतरीन शिल्पकला का नमूना दर्शाती यह हवेली जैसलमेर किले के निकट पहाडि़यों के पास स्थित है. इस की छत को मोर के डिजाइन में तैयार किया गया है जबकि हवेली के मुख्यद्वार पर एक  विशालकाय हाथी किसी द्वारपाल की भांति खड़ा है. हवेली के भीतर 38 बालकनी हैं. हवेली को सामने से देखने पर यह एक जहाज की तरह प्रतीत होती है, इसी कारण कई लोग इसे जहाजमहल भी कहते हैं.

पटवा हवेली : पटवा हवेली जैसलमेर में स्थित हवेलियों में अपना अलग ही स्थान रखती है. पत्थर से बनी इस हवेली की किनारियों को सुनहरे रंग से रंगा गया है. इस हवेली को पटवा भाइयों द्वारा 1800 व 1860 के मध्य बनवाया गया था, जो गहनों के व्यापारी थे. वर्तमान में इसे पटवा स्टाइल के फर्नीचर व साजसजावट से सजाया गया है जो पर्यटकों को पटवाओं के रहनसहन की ?ालक दिखाता है.

कैमल सफारी : जैसलमेर का यह वह स्थान है जहां पर देशीविदेशी पर्यटकों को राजस्थान की शाही सवारी यानी ऊंट पर सवारी करने का रोमांचकारी अनुभव होता है. ऊंट पर्यटकों को अपनी पीठ पर बिठा कर पास ही स्थित छोटेछोटे गांवों तक सैर के लिए ले जाता है, जहां पर्यटकों को राजस्थानी जीवनशैली के दर्शन होते हैं. वहीं ऊंट पर बैठ कर आप हवेलियों, मंदिरों व अन्य स्थानों तक भी जा सकते हैं, रास्ते में आप को लोकनृत्य व लोकसंगीत की ?ालकियां देखने को मिलेंगी.

कैसे जाएं

रेल मार्ग : जैसलमेर रेलमार्ग से देश के अधिकतर शहरों से जुड़ा हुआ है.

सड़क मार्ग : सड़क  मार्ग द्वारा जैसलमेर जाने के लिए निजी औपरेटर्स के वाहन और राजस्थान सरकार की डीलक्स बसें हर समय उपलब्ध रहती हैं. 

हवाई मार्ग : जोधपुर, जयपुर, मुंबई और दिल्ली से जैसलमेर के लिए इंडियन एअरलाइंस की सीधी फ्लाइट मिलती हैं.

कब जाएं : अक्तूबर से फरवरी तक आप यहां ठंड और बारिश के मिलेजुले मौसम का आनंद उठा सकते हैं.

उदयपुर

अरावली पहाड़ी के निकट स्थित राजस्थान के सब से खूबसूरत शहर उदयपुर को ?ालों का शहर भी कहा जाता है. यह अपनी प्रकृति और मानवीय रचनाओं से समृद्घ अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है. यहां की हवेलियों, महलों, ?ालों और हरियाली को देख कर सैलानी उमंग से भर जाते हैं. मनमोहक और हरेभरे बगीचे, ?ालें, नहरें, दूध की तरह सफेद संगमरमर के महल इस शहर को रोमांटिक बनाते हैं.

दर्शनीय स्थल

सिटी पैलेस : इस महल की स्थापना 16वीं सदी की शुरुआत में की गई थी. इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान रहा. शीशे और कांच के कार्य से निर्मित यह भव्य महल यूरोपीय व चीनी वास्तुकला का उम्दा नमूना पेश करता है. किले के भीतर गलियारों, मंडपों, प्रांगणों व बगीचों के समूह हैं. इस में कई बालकनियां और टावर भी हैं. पैलेस के मुख्य हिस्से को संग्रहालय का रूप दिया गया है जिस में पुरानी वस्तुओं को संरक्षित रखा गया है.

पिछौला ?ाल : इस ?ाल के बीच में जलमहल, जग मंदिर, जगनिवास क ा निर्माण हुआ है. इस खूबसूरत ?ाल के सफेद पानी में पर्यटक नौका विहार का आनंद लेते हैं.

सहेलियों की बाड़ी : यह उदयपुर की रानियों व राजकुमारियों के आराम करने के लिए बनवाई गई थीं. इस विश्राम स्थल में कई सुंदर फौआरे लगे हुए हैं. यह चारों ओर से हरियाली से घिरी है.

फतेहसागर : यह ?ाल एक नहर द्वारा पिछौला ?ाल से जुड़ी हुई है. यह 3 तरफ से पहाडि़यों से घिरी है इस के बीच में नेहरू पार्क है. इस में एक खूबसूरत रेस्तरां बनाया गया है जहां पहुंचने के लिए ?ाल के बीच में एक पुल का निर्माण किया गया है. इस रेस्तरां में आराम से बैठ कर पर्यटक विभिन्न व्यंजनों का स्वाद लेते हैं.

भारतीय लोककला मंडल : जिन लोगों को राजस्थान की पारंपरिक व ऐतिहासिक वस्तुएं देखने में रुचि है उन के लिए यह स्थान सब से उपयुक्त है. यहां राजस्थानी पहनावे, गहने, वाद्ययंत्र, कठपुतलियां, मुखौटे और उस समय की सुंदर चित्रकारी का दुर्लभ संग्रह है. विशेष रूप से बच्चे यहां हर रोज दिखाए जाने वाले कठपुतली नृत्य का जम कर आनंद लेते हैं.

कैसे जाएं

रेल मार्ग :  उदयपुर, दिल्ली, जयपुर, अजमेर व अहमदाबाद से रेलमार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है.

सड़क मार्ग : उदयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर स्थित है. दिल्ली, आगरा, जयपुर, अजमेर, माउंट आबू, अहमदाबाद से उदयपुर के लिए सीधी बस सेवाएं हैं.

हवाई मार्ग : सब से नजदीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप है. यह डबौक में है. जयपुर, जोधपुर, औरंगाबाद, दिल्ली तथा मुंबई से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं.

कब जाएं :  यदि आप उदयपुर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो यहां जाने का सब से अच्छा मौसम वर्षा ऋतु के बाद है, क्योंकि बारिश के बाद यहां की सुंदरता असाधारण हो जाती है. वैसे यहां घूमने का उपयुक्त समय सितंबर से अप्रैल तक है.

माउंट आबू

माउंट आबू ‘डेजर्ट स्टेट’ कहे जाने वाले राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है जो गुजरात वालों के लिए वहां की हिल स्टेशन की कमी को भी पूरा करता है. दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा यह हिल स्टेशन 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है. इस की सुंदरता कश्मीर से कम नहीं आंकी जाती.

दर्शनीय स्थल

नक्की ?ाल : राजस्थान के माउंट आबू में 3,937 फुट की ऊंचाई पर स्थित नक्की ?ाल लगभग ढाई किलोमीटर के दायरे में फैली हुई कृत्रिम ?ाल है. ?ाल के आसपास हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारें, पहाडि़यों से घिरी ?ाल और ?ाल के बीच आईलैंड किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है. ?ाल में बोटिंग करने का मजा भी लिया जा सकता है, जिस में पैडल बोट, शिकारा व फैमिली बोट का मजा उठा सकते हैं.

सनसैट पौइंट : शाम के समय सनसैट पौइंट से सूरज के ढलने का नजारा देखने के लिए सैकड़ों सैलानी यहां उमड़ पड़ते हैं. पर्यटक इस नजारे को अपने कैमरों में कैद कर के ले जाते हैं. इस पौइंट तक पैदल चल कर तो जाया ही जा सकता है. यदि आप पैदल नहीं चलना चाहते तो यहां पहुंचने के लिए ऊंट अथवा घोड़े की सवारी कर के पहुंच सकते हैं.

हनीमून पौइंट :  सनसैट पौइंट से 2 किलोमीटर दूर नवविवाहित जोड़ों के लिए हनीमून पौइंट है. यह ‘आंद्रा पौइंट’ के नाम से भी जाना जाता है. शाम के समय यहां नवविवाहित जोड़े होटलों के कमरों से निकल कर प्रकृति का आनंद उठाते हैं.

टौड रौक : यह मेढक के आकार की बनी एक चट्टान है जो नक्की ?ाल से कुछ ही दूरी पर स्थित है. यह चट्टान सैलानियों, विशेष रूप से बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है. चट्टान इस तरह अपने स्थान पर टिकी है मानो यह अभी ?ाल में कूद पड़ेगी, इसलिए यह पर्यटकों के लिए कुतूहल का केंद्र है.

म्यूजियम और आर्ट गैलरी : राजभवन परिसर में 1962 में गवर्नमैंट म्यूजियम स्थापित किया गया है ताकि इस क्षेत्र की पुरातात्विक संपदा को संरक्षित रखा जा सके.

गुरुशिखर : गुरुशिखर समुद्रतल से करीब 1,722 मीटर ऊंचा है. यह अरावली पर्वत की सब से ऊंची चोटी है. इस शिखर से नीचे और आसपास का नजारा देखना सैलानियों को अलग ही अनुभव देता है.

वन्यजीव अभयारण्य : राज्य सरकार द्वारा 228 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 1960 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था. पशुपक्षियों को नजदीक से देखने की चाह रखने वाले लोगों के लिए यह जगह उत्तम है. यहां वानस्पतिक विविधता, वन्यजीव व स्थानीय प्रवासी पक्षी आदि देखे जा सकते हैं. पक्षियों की लगभग 250 और पौधों की 110 से अधिक प्रजातियां देखी जा सकती हैं. साथ ही तेंदुए, वाइल्ड बोर, सांभर, चिंकारा और लंगूर आप को उछलकूद करते दिख जाएंगे.

कैसे जाएं

हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है, जो यहां से 185 किलोमीटर दूर है.

रेल मार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड, 28 किलोमीटर की दूरी पर है जो अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा हुआ है.

सड़क मार्ग : माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है.

कब जाएं : यहां फरवरी से जून व सितंबर से दिसंबर तक घूमना सब से उपयुक्त रहता है.

जयपुर

‘पिंक सिटी’ के नाम से मशहूर जयपुर राजस्थान की राजधानी है. जयपुर अपनी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. यहां कला, संस्कृति और सभ्यता का अनोखा संगम देखने क ो मिलता है.

दर्शनीय स्थल

हवामहल : यह शिल्पकला का उम्दा नमूना माना जाता है. यह जयपुर का सब से अनोखा स्मारक है.  इस में 152 खिड़कियां व जालीदार छज्जे हैं. अपनी कलात्मकता के लिए विख्यात हवामहल का निर्माण 18वीं सदी में राजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था. शहर के केंद्र में बना यह पांचमंजिला महल लाल और गुलाबी रंग, सैंड स्टोन से मिलजुल कर बना है. यहां से शहर का आकर्षक नजारा देखा जा सकता है.

सिटी पैलेस : शहर में स्थित सिटी पैलेस मुगल और राजस्थानी स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है. पुराने शहर के दिल में स्थित सिटी पैलेस वृहद क्षेत्र में फैला हुआ  है. सिटी पैलेस के एक हिस्से में अब भी जयपुर का शाही परिवार रहता है. कई इमारतें, सुंदर बगीचे और गलियारे इस महल का हिस्सा हैं. 

जलमहल : यह सवाई प्रताप सिंह द्वारा 1799 में बनवाया गया था. यह महल मान सागर ?ाल के  बीचोंबीच स्थित है.

कैसे जाएं

वायु मार्ग  : जयपुर के दक्षिण में स्थित सांगनेर एअरपोर्ट नजदीकी एअरपोर्ट है.

रेल मार्ग : जयपुर रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से विभिन्न रेलगाडि़यों के माध्यम से जुड़ा हुआ है.

सड़क मार्ग : दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुंचा जा सकता है जो 256 किलोमीटर की दूरी पर है. राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं. दिल्ली से भी जयपुर के लिए सीधी बस सेवा है.

कब जाएं : जयपुर में मार्च से जून तक काफी गरमी रहती है. यहां घूमने का सब से उपयुक्त समय सितंबर से फरवरी है.

मध्य प्रदेश: प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति का मेल

भारत की हृदयस्थली मध्य प्रदेश अपने गौरवशाली इतिहास और आधुनिकता से ओतप्रोत है. विंध्य और सतपुड़ा पहाडि़यों से आच्छादित इस प्रदेश के वन्य प्राणी अभयारण्य और हिल स्टेशन सैलानियों को सुखद एहसास कराते हैं. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से संपन्न मध्य प्रदेश उत्कृष्ट वास्तुकला और गाथाओं की कहानी कहते दुर्गों, महलों, स्तूपों के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है.

यहां के आदिवासी समाज का सादा जीवन, अलौकिकता से परिपूर्ण संस्कृति और यहां का लगभग एकतिहाई वनों से भरा हुआ क्षेत्र प्रदेश को नया आयाम देते हैं. राज्य के मालवा, निमाड़, बघेलखंड, बुंदेलखंड अंचलों की स्थापत्य कला, सुंदर हथकरघे की वस्तुएं और अनुपम वन्यजीवन पर्यटकों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करते हैं. प्रदेश में बांधवगढ़, पन्ना, पेंच राष्ट्रीय उद्यानों के साथ ही ग्वालियर, खजुराहो, मांडू जैसे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल मौजूद हैं.

पचमढ़ी

भारत के हृदयस्थल का सर्वाधिक हरियाली वाला पर्वतीय क्षेत्र है पचमढ़ी. यहां खिलखिलाते पहाड़, दूर तक फैली सतपुड़ा की पर्वतशृंखलाएं और चहकते ?ारने व चांदी के समान चमकते जलप्रपात स्थित हैं.

सतपुड़ा के अनमने, ऊंघते जंगलों में कलकल करती नदियों का संगीत और गर्जना के साथ गिरते जलप्रपातों का सुंदर समन्वय ही पचमढ़ी है. वैसे तो अपने शांत वातावरण के कारण यह वर्षभर पर्यटकों से भरा रहता है परंतु अब यह स्थान नवविवाहित जोड़ों की खास पसंद बनता जा रहा है. प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा यहां पुरातात्त्विक वस्तुओं का खजाना भरा पड़ा है.

महादेव पहाडि़यों के शैलचित्र देखने वालों को आश्चर्यचकित कर देते हैं. इन में से ज्यादातर चित्रों का समय 500 से 800 ई. के मध्य माना गया है.

मध्य प्रदेश का इकलौता हिलस्टेशन होने की वजह से पचमढ़ी गरमियों में पर्यटकों से भरा रहता है. यहां के जंगलों में साल, सागौन, महुआ, आंवले और गूलर के वृक्षों की भरमार है. साथ ही यह वन्यक्षेत्र सांभर, लंगूर, गौर, रीछ, हिरण, चीतों का भी बसेरा है.

दर्शनीय स्थल

अप्सरा विहार : यह पिकनिक मनाने के लिए उपयुक्त स्थान है. यहां पानी का स्तर सब से कम है. लेकिन जहां पानी गिरता है वहां गहराई ज्यादा है. इसलिए पर्यटकों को खास ध्यान रखना चाहिए.

रजत प्रपात : 350 फुट ऊंची चट्टान से गिरते हुए ?ारने को देखना रोमांचकारी अनुभव होता है. अप्सरा विहार के पथरीले रास्तों से चल कर यहां पहुंचा जा सकता है. काफी ऊंचाई से गिरने के कारण इस प्रपात का पानी सूर्य की रोशनी में चांदी के समान चमकता है.

महादेव गुफा : 30 फुट लंबी इस गुफा में शीतल जल लगातार रिसता रहता है. गुफा के अंदर ही जल का ?ांड स्थित है. वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय तात्याटोपे ने अपनी सेना का पुनर्गठन इसी स्थान पर किया था.

जटाशंकर गुफा : पचमढ़ी के बस स्टैंड से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ये गुफाएं प्रकृति की कारीगरी का नायाब नमूना हैं. यहां 2 चट्टानों के मध्य कुंड के अधर से लटकती चट्टान को देख कर हर कोई आश्चर्य से भर उठता है. यहां अकसर फिल्मों की शूटिंग होती रहती है.

चौरागढ़ व धूपगढ़ : ये पचमढ़ी की 2 अलगअलग पहाडि़यां हैं जहां से सूर्यास्त और सूर्योदय का अद्भुत नजारा दिखता है. धूपगढ़ पहाड़ी से भोर में सूर्योदय देखना अलग ही अनुभव है.

हांडी खोह : यह 300 फुट ऊंची सपाट ढाल है. इस की आकृति कुल मिला कर हांडी की तरह है, इसलिए इसे हांडी खोह कहा जाता है.

इन दर्शनीय स्थलों के अलावा भी पचमढ़ी में अन्य आकर्षण राजगिरी, लांजीगिरी, आइरीन सरोवर, सुंदर कुंड, पांडव गुफाएं, गुफा समूह, धुआंधार, भांतनीर (डोरोथी डीप) अस्तांचल, बीनावादक की गुफा, सरदार गुफा आदि भी हैं.

कैसे पहुंचें वायुमार्ग से : निकटवर्ती हवाई अड्डा भोपाल (210 किलोमीटर).

रेलमार्ग से : इलाहाबाद के रास्ते मुंबई-हावड़ा मेन लाइन पर, पिपरिया (47 किलोमीटर) सब से नजदीकी रेलवे स्टेशन.

सड़क मार्ग : जबलपुर, भोपाल, नागपुर, छिंदवाड़ा से पंचमढ़ी के लिए बस व टैक्सी सेवा मौजूद हैं.

कहां ठहरें मध्य प्रदेश पर्यटन के अमलतास, ग्लेनव्यू, हिलटौप बंगलो, रौक एंड मैनार, होटल हाईलैंड, पंचवटी, सतपुड़ा रिट्रीट चंपक बंगलो, वुडलैंड बंगलो में जा कर या पहले से आरक्षण करवा कर रुक सकते हैं.

अधिक जानकारी व आरक्षण के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन की वैबसाइट 222.द्वश्चह्लशह्वह्म्द्बह्यद्व.ष्शद्व पर लौगऔन कर सकते हैं.

भोपाल

यह मध्य प्रदेश की राजधानी है. इस की स्थापना राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में की थी. लखनऊ की तरह भोपाल में भी नवाबों का शासन रहा है जिन की शानोशौकत और नवाबियत की मिसालें आज भी पुराने भोपाल की इमारतों व महलों में दिखाई देती हैं.

भोपाल शहर 2 भागों में बंटा हुआ है. एक ओर महल, मसजिदें व विशाल दरवाजे हैं जो मुगलकालीन शासकों की रहीसी और वैभव की कहानी कहते हैं वहीं दूसरी ओर नया भोपाल बसा हुआ है जिस में सुंदर पार्क, चौड़ी सड़कें, जगमगाते मौल्स व बाजार की रंगीनियां हैं.

दर्शनीय स्थल

बड़ी झील : भोपाल शहर के बीचोंबीच या कहिए भोपाल शहर की शान यह ‘बड़ी झील’ भोपाल की पहचान के साथसाथ पूरे शहर के लिए पीने के पानी का इंतजाम करती है. इस झील का निर्माण राजा भोज ने करवाया था. भारत भवन के पास स्थित इस झील के किनारों पर अनेक रैस्टोरैंट और कैफेटेरिया स्थित हैं जहां शाम के समय लोगों का जमावड़ा लगा रहता है.

अब पर्यटन विकास निगम ने बड़ी झील पर क्रूज सेवा शुरू की है जिस पर बैठ कर पर्यटक लहरों के ऊपर कौफी का मजा ले सकते हैं, बोटिंग के शौकीनों के लिए पाल नौकाएं व छोटी बोट भी उपलब्ध हैं.

ताजउल मसजिद : इस विशाल मसजिद का निर्माण शाहजहां बेगम ने करवाया था. शाहजहां बेगम भोपाल की 8वीं बेगम थीं. उन की मत्यु के बाद मसजिद का निर्माण कार्य आज तक अधूरा ही पड़ा है. इस मसजिद की मुख्य विशेषताएं इस का शानदार मुख्य कक्ष, मेहराबदार छत, चौड़े छज्जे और संगमरमरी फर्श है. यहां हर 3 साल में इज्तिमा का मेला लगता है.

शौकत महल और सदर मंजिल : शहर के बीचोंबीच बसे इस महल की वास्तुकला देखने लायक है. पश्चिमी स्थापत्य शैली में बने इस महल में अनेक शैलियों का समावेश देखने को मिलता है.

भारत भवन : कला और संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए भारत भवन की स्थापना की गई. यह प्रदर्शनियों, कलाओं और साहित्य का घर है. यह कला केंद्र पहाड़ी पर स्थित है और ?ाल के किनारे बना होने के कारण बहुत ही आकर्षक लगता है. यहां विशाल पुस्तकालय भी है जिस में भारत की लगभग सभी भाषाओं की 10 हजार से भी ज्यादा कविताओं की पुस्तकें हैं.

राज्य संग्रहालय : 16 प्रकार की कला वीथिकाओं में बंटे हुए इस संग्रहालय में राज्य की प्राचीन, पाषाण और लौह मूर्तियां, साहित्य और शिलालेखों का संग्रह मौजूद है.

वन विहार : बड़ी झील के पीछे 444 वर्ग हैक्टेयर क्षेत्र में यह संरक्षित वन स्थित है. यहां बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में सभी वन्यजीव निवास करते हैं. विशाल घने पेड़ों से घिरे इस वन्यक्षेत्र में रीछ, हिरण, तेंदुए के अलावा पक्षियों की बहुत सारी प्रजातियां मौजूद हैं. इस सफारी पार्क में पिकनिक मनाने व कैंप की भी व्यवस्था है.

सैरसपाटा : बच्चों के लिए टौय ट्रेन, एडवैंचर के शौकीनों के लिए एडवैंचर जोन व खानेपीने का शौक रखने वालों के लिए सभी तरह के लजीज व्यंजनों के स्टौल, ये सब वह भी एक जगह पर. मध्य प्रदेश पर्यटन द्वारा विकसित किया गया यह स्थान भदभदा पुल के पास सैरसपाटा के नाम से जाना जाता है. इस का मुख्य आकर्षण सस्पैंशन केबल स्टे ब्रिज है जो रात के समय रोशनी से जगमगाता रहता है.

भोजेश्वर मंदिर : सम्राट भोज द्वारा भोपाल से 28 किलोमीटर की दूरी पर एक विशाल मंदिर की स्थापना की गई जिस का नाम राजा भोज के ही नाम पर भोजेश्वर रखा गया. यह विशाल मंदिर पाषाण कला का उत्कृष्ट नमूना है. वर्गाकार 3 भागों में बंटे इस मंदिर का मुख्य शिखर 4 मजबूत स्तंभों द्वारा सधा हुआ है. अष्टभुजाकार आकार का निचला भाग इस मंदिर की उत्कृष्ट वास्तुकला को प्रदर्शित करता है.

भीम बैठका : भोपाल से ही दक्षिण की ओर रायसेन जिले  के भिमापुरा गांव में जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में भीम बैठका गुफाएं स्थित हैं.

भोपाल से 40 किलोमीटर की दूरी पर इन गुफाओं तक पहुंचा जा सकता है. इन गुफाओं के अंदर प्रागैतिहासिक समय की चट्टानों पर की गई चित्रकारी आज भी खासी लुभावनी लगती है, इन सैकड़ों शैलचित्रों को देख कर आदिकाल के मानव की संस्कृति व दिनचर्या का अनुमान लगाना आसान हो जाता है.

यहां के शैलचित्रों को बनाने में लाल व सफेद रंगों का इस्तेमाल किया गया है. कहींकहीं पर हरे व पीले रंगों का भी उपयोग किया गया है. इन चित्रों में आखेट (शिकार), नृत्य संगीत, घोड़े व हाथी की सवारी, लड़ते हुए जानवर, मधुसंचय, देह शृंगार, मुखौटे व घरेलू जीवन को चित्रित किया गया है. इन सैलानियों की विविधता और प्राचीनता को देखते हुए यूनैस्को ने इसे वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल किया है. यह भोपाल से सिर्फ 40 किलोमीटर की दूरी पर है.

कैसे पहुंचें

भोपाल सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग द्वारा सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है.

कहां ठहरें

द्य    होटल पलाश रेजीडैंसी

द्य    होटल लेकव्यू अशोक व अन्य कई होटल.

सांची

भोपाल से 48 किलोमीटर की दूरी पर शांति और अहिंसा के प्रतीकात्मक स्तूपों की नगरी सांची स्थित है. जब बौद्ध धर्म का स्वर्णकाल था तब सम्राट अशोक ने इस स्थल का निर्माण कराया था. यहां स्थित स्तूपों में से कई स्तूपों का निर्माण सम्र्राट अशोक ने कराया था. वर्तमान में केवल 3 स्तूपों को ही सुरक्षित अवस्था में देखा जा सकता है. ऊंचे गुंबद और तोरण द्वारों से घिरे हुए स्तूपों को 3 क्रमांकों में विभाजित किया गया है.

स्तूप क्रमांक 1 : गोलाकार गंबुद और 36.5 मीटर व्यास व 16.4 मीटर ऊंचाई वाले इस स्तूप को सब से प्राचीन स्तूप माना जाता है. इस का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था. इस स्तूप के चारों ओर गोलाकार रास्ता व 4 तोरण द्वार बनाए गए हैं जिन में बुद्ध के जन्म की और बाद की जातक कथाएं उत्कीर्ण हैं. भारतीय शिल्प की आरंभिक कला का उत्कृष्ट नमूना इन तोरण द्वारों में मिलता है.

स्तूप क्रमांक 2 : पहाड़ी के किनारे बने इस स्तूप की मुख्य विशेषता इस का पाषाण का कठघरा है. इस की दीवारों पर बुद्ध के जीवन पर आधारित चित्रों को उकेरा गया है. पाषाण कठघरे को बजाने पर मधुर ध्वनि निकलती है.

स्तूप क्रमांक 3 : बुद्ध के सब से पहले के 2 शिल्पों के अवशेष इस स्तूप में रखे गए हैं.

अशोक स्तंभ : यह बड़े स्तूप के दक्षिणी तोरण द्वार के पास स्थित है. सम्राट अशोक ने कुल 30 स्तंभ बनवाए थे जिन में से सिर्फ 10 ही सुरक्षित हैं.

संग्रहालय : सांची और उस के आसपास जो शिलालेख, वस्तुएं प्राप्त हुईं उन को एकत्रित कर के इस संग्रहालय में रखा गया है. सांची में इन स्तूपों के अलावा गुप्तकालीन मंदिर, महापात्र भी देखने लायक है.

कैसे पहुंचें

वायुमार्ग : निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है जो तकरीबन 48 किलोमीटर दूर है.

रेलमार्ग : सांची मध्य रेलवे जंक्शन पर स्थित है. यहां से विदिशा 10 किलोमीटर दूर है.

सड़क मार्ग : भोपाल, इंदौर, झांसी, इटारसी से सीधी बस सेवा से जुड़ा हुआ है. यहां ठहरने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन के ‘गेट वे रिट्रीट’ के अलावा ‘हाइवे ट्रीट’ गेस्ट हाउस भी है.

कुंभ – किसे क्या मिला

इलाहाबाद में संपन्न हुए महाकुंभ 2013 को प्रबंधन की दृष्टि से भले ही सफल आयोजन कहा जाए पर दोटूक सवाल यही है कि करोड़ों रुपए दांव पर लगा कर आखिर किस को मिला क्या? सच तो यह है कि कुंभ धर्म के धंधेबाजों और मुफ्तखोरों का ठिकाना है, जहां ठगी का खेल खेला जाता है. पढि़़ए बुशरा का लेख.

इलाहाबाद में 14 जनवरी को कड़कड़ाती ठंड के साथ शुरू हुआ महाकुंभ 2013 गरमी की आहट के साथ 10 मार्च को संपन्न हो गया. 55 दिनों तक चला यह कुंभ मेला 2001 में आयोजित महाकुंभ की तुलना में 10 दिन अधिक लंबा चला. इस दौरान इलाहाबाद की जमीन पर करोड़ों लोगों के कदम पड़े, शहर ने सभी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया.

दुनियाभर की नजरें कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथसाथ इस आयोजन के लिए की गई व्यवस्था पर भी टिकी रहीं. कुंभ मेला आस्था के केंद्र के साथसाथ बेहतरीन प्रबंधन व आर्थिक गतिविधियों के लिए भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहा. कड़ाके की सर्दी के बीच करोड़ों लोगों के रहने, भोजन और सुरक्षा के इतने बड़े पैमाने पर पुख्ता इंतजाम किए गए, जो दुनिया की किसी भी इवैंट कंपनी और प्रबंधन गुरु के लिए अजूबा और शोध का विषय हो सकता है. प्रबंधन गुरुओं और शोध छात्रों ने इस मेले के कई पहलुओं जैसे वित्त, मार्केटिंग, सूचना, संवाद, सामाजिक व आर्थिक स्तर और मानव संसाधन पर शोध किया. छात्रों के लिए यह जमीनी अनुभव था. यही नहीं, हार्वर्ड बिजनैस स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ, फैकल्टी औफ आर्ट्स ऐंड साइंसेज, स्कूल औफ डिजाइन, हार्वर्ड बिजनैस स्कूल, मैडिकल स्कूल फैकल्टी के छात्र कुंभ पर शोध करने के लिए विशेष रूप से इलाहाबाद और वाराणसी पहुंचे जिन्होंने कुंभ आयोजन के हर पहलू पर शोध किया. शोध में मुख्य रूप से कुंभ में व्यापार व एक विशाल अस्थायी कुंभनगरी बसाने की प्लानिंग शामिल रही.

25 कोस में फैले त्रिवेणी के तट पर आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में करोड़ों देशीविदेशी, अमीरगरीब, छोटेबड़े श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई व पूजापाठ कर अपने पापों से मुक्ति पाने की प्रक्रिया संपन्न कर के हर्ष की अनुभूति प्राप्त की.

आयोजन के दौरान इन धार्मिक मेहमानों की मेजबानी के लिए इलाहाबाद ने पूरी तन्मयता से पलकपांवड़े बिछाए रखे. ‘अतिथि देवो भव:’ का भाव लिए राज्यप्रशासन के सभी महकमे व स्थानीय लोगों ने यहां आने वालों की सुविधा के लिए हर तरह के प्रबंध व सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालांकि रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ को ले कर कुंभ के इंतजामों पर सवाल अवश्य उठे लेकिन वे जल्द ही शांत हो गए.

मेला प्रशासन की ओर से इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि मेले में आने वाले किसी भी व्यक्ति को परेशानी न हो. इस के लिए हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए प्रबंध किए गए. श्रद्धालुओं व साधुसंतों की सेवा में बड़ी संख्या में अफसरों व कर्मचारियों को तैनात किया गया.

मेला प्रशासन ने कुंभ क्षेत्र में 2 महीनों के लिए यमुना किनारे एक अस्थायी शहर ‘कुंभनगरी’ बसाया जो करोड़ों लोगों और भगवाधारियों से लबालब भरा रहा. करोड़ों लोगों के रहने, भोजन, तट पर डुबकी लगाने, उन के स्वास्थ्य व चिकित्सा और सुरक्षा आदि के प्रबंध व्यापक पैमाने पर किए गए.

पिछले महाकुंभ 2001 की तुलना में इस बार अधिक लोगों के आने का अनुमान लगाते हुए मेला क्षेत्र 1,500 हैक्टेअर से बढ़ा कर 2 हजार हैक्टेअर कर दिया गया था. सैक्टरों को भी 11 से बढ़ा कर 14 किया गया, साथ ही पार्किंग लौट्स 35 से बढ़ा कर 99 कर दिए गए थे ताकि वाहनों को पार्क करने के लिए जगह पर्याप्त रहे व आवाजाही के रास्ते बाधित न हों.

सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद बनाए रखने के लिए मेला क्षेत्र में 30 पुलिस स्टेशन स्थापित किए गए जिन में लगभग 12 हजार पुलिसकर्मी तैनात रहे व आग की किसी भी आपातस्थिति से निबटने के लिए इतने ही फायर स्टेशन बनाए गए.

किसी आतंकी हमले से सुरक्षा के मद्देनजर यमुना किनारे स्थित अकबर के किले में स्थानीय पुलिस और सेना की मदद से एक कंट्रोलरूम बनाया गया जहां संचार की समस्त नवीनतम तकनीकें उपलब्ध थीं. नाइट विजन कैमरे और लौंग रेंज कैमरे भी लगाए गए ताकि 1937 हैक्टेअर क्षेत्र में फैले मेले में हर पल चौकसी बरती जा सके. पुलिस के खोजी कुत्तों के 15 स्क्वैड संदिग्ध वस्तुओं की तलाश में लगाए गए.

करोड़ों लोगों के एक स्थान पर एकत्रित होने पर किसी तरह की कोई महामारी व बीमारी आदि न फैले,

इस के लिए सैकड़ों सफाई कर्मचारियों को चप्पेचप्पे की सफाई कार्य में लगाया गया. लोगों के मलमूत्र त्यागने के लिए 45 हजार अस्थायी शौचालय बनाए गए.

लोगों को चिकित्सा सेवा प्रदान करने के लिए 370 बिस्तरों वाले 48 अस्पताल पूरे मेला क्षेत्र में बनाए गए, जिन में 264 चिकित्सक व 838 स्वास्थ्यकर्मी काम पर लगाए गए. आपातकालीन स्थिति से निबटने के लिए 75 ऐंबुलैंस गाडि़यों को तैयार रखा गया.

लड़ाईझगड़े व वादविवाद के मामलों का तुरंत निबटारा करने के लिए अदालत व मजिस्ट्रेट भी तत्काल उपलब्ध रहें, इस के लिए एक अदालत का निर्माण किया गया. मेला क्षेत्र में रात में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था बनाए रखने के लिए 25 हजार स्ट्रीट लाइटें लगाई गईं, जिस से घाटों पर चकाचौंध बनी रही.

भीड़ में एकदूसरे से बिछड़ों को मिलाने का जिम्मा लेते हुए 6 लौस्ट ऐंड फाउंड सैंटर्स बनाए गए जिन में हर समय अनाउंसमैंट की व्यवस्था रही ताकि लोगों को उन के बिछड़े साथी व खोयापाया सामान वापस मिल सके. 55 दिनों के इस लंबे आयोजन में किसी अप्रिय घटना से बचने और चप्पेचप्पे पर नजर रखने के लिए 100 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे जो मेले में होने वाली हर गतिविधि को रिकौर्ड करते रहे.

बाहर से आने वाले लोगों के रहने की व्यवस्था के लिए व वीआईपी पर्यटकों के लिए शहर में इलावर्त एवं त्रिवेणी पर्यटक आवास को उच्चीकृत किया गया. पर्यटन विभाग ने मेला क्षेत्र में रेत पर 10 महाराजा स्विस कौटेज व 42 लग्जरी स्विस कौटेज तैयार किए जो वाटरप्रूफ टैंट से बनाए गए थे ताकि बारिश आदि से बचाव रहे. इन में बैडरूम, लौबी, ड्रैसिंगरूम, स्टोररूम और बाथरूम थे. प्रवास का यह प्रबंध वास्तव में शाही था. इन में लकड़ी से बने डबल बैड, आरामदायक कुरसियां, डाइनिंग टेबल, कौफी टेबल आदि की सुविधाएं भी दी गईं. सर्दी को ध्यान में रखते हुए नहाने के लिए इन में गरम पानी मुहैया करवाया गया. इन कौटेजों का एक दिन का किराया 6 हजार से 10 हजार रुपए रखा गया था.

वहीं, आम पर्यटकों के लिए 66 लाख रुपए की लागत से स्विस कौटेज कालौनी का निर्माण किया गया जिस में शानदार सुविधाएं दी गईं. पर्यटन विभाग द्वारा मेला क्षेत्र में पांचसितारा सुविधाओं वाले लग्जरी कौटेज भी तैयार कराए गए, जहां विदेशी मेहमानों के साथसाथ देश के धनी वर्ग ने भी इस का लाभ उठाया. इस के अतिरिक्त मकानों का भी निर्माण किया गया.

मेला क्षेत्र की कच्ची जमीन पर लोहे की प्लेट्स लगा कर 156 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया गया जिस से लोगों के फिसल कर गिरने की आशंका न रहे. यमुना पर 12 पैंटून पुलों का निर्माण किया गया.

मीडियाकर्मियों के लिए मीडिया सैंटर्स बनाए गए, इन में पत्रकारों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान की गईं.

सवाल यह है कि लगभग 1,200 करोड़ रुपयों की लागत से आयोजित हुए इस महाकुंभ से आखिर इलाहाबाद को क्या मिला?

जहां तक मेले से इलाहाबाद को मिलने वाले राजस्व का सवाल है तो इलाहाबाद महाकुंभ की आर्थिक क्षमता का हिसाब लगाते हुए ‘द एसोसिएटैड चैंबर्स औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री औफ इंडिया’ (एसोचैम) ने पहले ही अपना अनुमानपत्र जारी कर दिया था जिस के मुताबिक 2013 महाकुंभ के दौरान उत्तर प्रदेश को 12 से 15 हजार करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित करने की बात कही गई. आयोजन के दौरान लोगों के लिए 6 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए. इस में एअरलाइंस व एअरपोर्ट सैक्टर में डेढ़ लाख, होटल इंडस्ट्री में ढाई लाख, टूर औपरेटर्स में 45 हजार, ईको टूरिज्म में 50 हजार व निर्माण कार्यों में 85 हजार रोजगार शामिल हैं.

इस से इलाहाबाद व आसपास के बेरोजगार युवकयुवतियों को वैकल्पिक रोजगार प्राप्त हुआ. विशेषकर होटलों, गैस्ट हाउसों व धर्मशालाओं ने कुंभ के दौरान जम कर चांदी काटी. लग्जरी होटलों में, जहां आम दिनों में 4,500 रुपए में कमरा मिल जाता है वहीं कुंभ के दौरान इन का रेट 12 हजार से 14 हजार रुपए तक पहुंच गया था. बजट होटल में किराया 3 हजार से बढ़ कर 9 हजार रुपए कर दिया गया.

इलाहाबाद के धार्मिक स्थलों के आसपास डेरा जमाए रखने वाले भूखेनंगे भिखारियों को 55 दिनों तक अपने दो वक्त के भोजन की चिंता नहीं करनी पड़ी. साथ ही, लोगों ने उन्हें खूब दान भी दिया. इलाहाबाद के गरीब रिकशा व आटोरिकशा चालकों ने इन 2 माह के भीतर कई गुना अधिक कमाई की और लोगों से मनमरजी का भाड़ा वसूल किया. वहीं इलाहाबाद के लोकल ट्रांसपोर्टरों व दुकानदारों, फुटकर विक्रेताओं ने भी जम कर लाभ कमाया.

मेले से इलाहाबाद को करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी भावी योजनाओं का मेले में जम कर प्रचारप्रसार किया. इस से न केवल प्रचार पर खर्च बचा बल्कि एक ही स्थान से करोड़ों लोगों तक सरकार अपना संदेश पहुंचाने में भी कामयाब रही. जहां लगभग 1,200 करोड़ रुपए की लागत से आयोजित इस कुंभ से केंद्र सरकार मालामाल हुई वहीं शहर के होटलों, बाजारों, रेलवे स्टेशन से ले कर सड़कों तक का पूरी तरह से कायाकल्प हुआ. इस दौरान सरकारी कर्मचारियों को खुद को बेहतरीन प्रशासनिक अधिकारी साबित करने का मौका भी मिला.

एसोचैम ने अपने अनुमान के अनुसार, आयोजन के दौरान इलाहाबाद में करोड़ों देशीविदेशी पर्यटकों की आवक का अनुमान लगाया था. निकटवर्ती राज्यों जैसे राजस्थान (जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा आदि), उत्तराखंड (नैनीताल, मसूरी, देहरादून, हरिद्वार, रानीखेत, अल्मोड़ा), उत्तर प्रदेश (आगरा, लखनऊ), पंजाब (अमृतसर,  लुधियाना), हिमाचल प्रदेश (शिमला, कुफरी, मनाली) में भी पर्यटन से राजस्व में भारी वृद्धि की संभावना जताई थी.

बिना कुछ खर्च किए लाभ कमाने वालों में धार्मिक गतिविधियों के संचालक शामिल हैं. पूरे आयोजन में आए साधुसंतों और अखाड़ों पर नोटों की बरसात होती रही. विभिन्न अखाड़ों के पास करोड़ों रुपयों का दान आया. मेले में आए साधुसंत व अखाड़े मलाई चाट कर चलते बने और अपने पीछे अंधभक्तों को धूल फांकने के लिए छोड़ गए जो आयोजन के अंतिम दिन तक संगम में डुबकियां लगाते रहे.

धार्मिक आयोजनों में आने वाले श्रद्धालुओं से आयोजक द्वारा किसी तरह का कोई प्रवेश शुल्क अथवा पैसा नहीं लिया जाता जबकि किसी ऐतिहासिक स्थल अथवा सिनेमा हौल आदि में टिकट ले कर ही प्रवेश कराया जाता है. क्योंकि लोगों को धर्म पहले मुफ्त में बांटा जाता है और फिर जब इस धर्मनुमा अफीम की लत लग जाती है तो इस के बदले में श्रद्धालु स्वयं पैसा लुटाने लगते हैं. धर्मगुरु इसी फार्मूले पर चलते हैं, धर्म के धंधे की यही आर्थिक नीति है. दान देने का पाठ पढ़ने वाले श्रद्धालुओं ने इन साधुसंतों को दिल खोल कर दान दिया और स्वयं सबकुछ लुटा कर गए.

दरअसल, इस तरह के धार्मिक आयोजनों को बढ़ाचढ़ा कर प्रचारित करने के पीछे कोई आस्था या विश्वास नहीं होता बल्कि ऐसे आयोजन करना कुछ लोगों का व्यवसाय है जिस के जरिए वे लाखोंकरोड़ों रुपयों का खरा लाभ कमाते हैं.

इन में सब से पहला नाम आता है साधुसंतों व धर्मगुरुओं का जो जनता के बीच धर्म का बीज बो कर उसे हर समय खादपानी देते रहते हैं ताकि इस पेड़ को हिला कर वे जब चाहें पैसा बटोर सकें. वहीं, दूसरी ओर जनता की धार्मिक भावनाओं का लाभ नेता अपनी राजनीति की नैया पार लगाने में उठाते हैं.

इस धार्मिक आयोजन के दौरान इलाहाबाद के हर छोटेबड़े धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं ने दिल खोल कर दानदक्षिणा दी व चढ़ावा चढ़ाया. लोग श्रद्धाभाव से ओतप्रोत हो कर अधिक से अधिक दान देने की होड़ में थे. पूजापाठ व दानदक्षिणा के जरिए हर कोई अपने पापों से मुक्ति व अच्छे भविष्य की कुंजी चाह रहा था.

दरअसल, कुंभ में इलाहाबाद व साधुसंतों को मिलने वाले करोड़ों के लाभ के पीछे धर्म के इन करोड़ों ग्राहकों का ही योगदान है जो संगम तट पर लगने वाले धर्म के इस महा आयोजन का हिस्सा बनने के लिए हर पीड़ा सहने और सबकुछ लुटा देने को आतुर थे.

महाकुंभ 2013 में स्नान से श्रद्धालुओं के पाप धुले या नहीं, लेकिन यह कुंभ उत्तर प्रदेश सरकार को करोड़ों का राजस्व और लाखों बेरोजगारों को अस्थायी वैकल्पिक रोजगार के अवसर जरूर दे गया. साथ ही, देशदुनिया को बेहतरीन प्रबंधन का पाठ भी पढ़ा गया जिस के लिए प्रशासन व मेला प्रबंधन की चहुंओर वाहवाही हो रही है. इस कुंभ से सब से अधिक लाभ कमाने वालों में अखाड़े और साधुसंत रहे जो बिना कुछ खर्च किए करोड़ों बना कर चलते बने.

शह और मात का खेल

सहारा ने जिस पैरा बैंकिंग के जरिए कारोबार की दुनिया में सफलता की बुलंदियों को छुआ, आज वह हवाई किला साबित हो रही है. सेबी ने जिस तरह सहारा के झूठे दावों की पोल खोली है उस से सहारा समूह की कार्यशैली पर सवालिया निशान तो लग ही गया है. पढि़ए शैलेंद्र सिंह का लेख.

‘बस, बहुत हो गया,’ यह किसी टीवी सीरियल के डेली सोप या फिर फिल्म का डायलौग नहीं है बल्कि सहारा ग्रुप औफ कंपनीज का सिक्योरिटी ऐंड ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया यानी सेबी को जवाब है. देखा जाए तो सहारा और सेबी के बीच चल रहे शह और मात के खेल में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका निर्णायक की है. सेबी शह और मात के इस खेल में सहारा को पछाड़ने में लगा है तो सहारा अपने साधनों का इस्तेमाल कर सेबी को झूठा और खुद को सच्चा साबित करने में लगा है.

सेबी जब सहारा पर कोई कार्यवाही करता है तो अगले दिन अखबारों में एक पैराग्राफ की खबर छपती है जिस से तिलमिला कर सहारा उस के अगले दिन अखबारों को पूरे पेज का विज्ञापन दे कर सेबी को झूठा साबित करने का प्रयास करता है.

17 मार्च, 2013, दिन रविवार को प्रकाशित विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ इस कड़ी का अंग है. इस विज्ञापन में सहारा ने सेबी को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने का काम किया है जो एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना सा दिखता है.

विज्ञापन में सहारा के प्रबंध कार्यकर्ता सुब्रत राय सहारा कहते हैं, ‘हमारा किसी भी तरह का दोष न होते हुए भी सेबी जानबूझ कर गलत आदेश पारित कर के हमें बदनाम कर रहा है जिस से पिछले 34 साल में मेहनत से अर्जित की गई छवि को नुकसान हो रहा है.’ यही नहीं, वे सेबी को टीवी चैनल पर खुली बहस करने के लिए चुनौती भी देते हैं.

वे यह भी कहते हैं कि सेबी बदले की भावना से काम कर रही है. सेबी को जवाब देने के लिए सहारा ने जिस तरह विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ का सहारा लिया है वह किसी धमकी से कम नहीं लगता. जब अदालत में इतने गंभीर लैवल पर मामला चल रहा हो तो ऐसे काम फैसले को प्रभावित करने की श्रेणी में आते हैं. बेहतर होता कि सहारा ये बातें अदालत में कहता जहां उस की बात को पूरी गंभीरता के साथ सुना जाता.

क्यों तिलमिलाया सहारा

सेबी ने निवेशकों का पैसा लौटाने में आनाकानी करने पर सहारा समूह के खिलाफ कड़े कदम उठाने की इजाजत देने के लिए 15 मार्च, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रार्थनापत्र दिया था. इस में सेबी ने सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय की गिरफ्तारी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दाखिल की थी.

जस्टिस के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अप्रैल के पहले सप्ताह में इस की सुनवाई करने की तारीख तय कर दी. इस याचिका में पहली बार सेबी ने कहा कि अदालत सुब्रत राय के देश छोड़ने पर रोक लगाए. सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि वह सुब्रत राय को अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करने का आदेश दे. सुब्रत राय के साथ ही साथ सहारा समूह के 2 और निर्देशकों, अशोक राय चौधरी और रवि शंकर दुबे के खिलाफ भी गैर जमानती वारंट जारी करने का अनुरोध किया गया था.

दरअसल, यह पूरा मामला निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने से जुड़ा हुआ है. खुद सुप्रीम कोर्ट सहारा समूह की 2 कंपनियों, सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन द्वारा गलत तरीके से जुटाए गए 24 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटाने का आदेश दे चुका है. इस के बाद भी सहारा इस रकम को लौटाने में आनाकानी कर रहा है.

सेबी का कहना है कि सहारा सही जानकारी न दे कर उसे और अदालत दोनों को गुमराह कर रहा है. इस से बचने के लिए सेबी पहले ही सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन, सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन और सुब्रत राय सहित 3 दूसरे निदेशकों के चलअचल खाते और संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है.

34 सालों में पहली बार किसी सरकारी विभाग ने सहारा समूह के खिलाफ इतने बड़े लैवल पर पुख्ता प्रमाणों के साथ कार्यवाही की है. सेबी की कार्यवाही से अदालत भी सहमत नजर आती है. इस का प्रमाण तब मिला जब सहारा ने सुप्रीम कोर्ट से निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए समय देने की मांग की. उस समय चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सहारा समूह को फटकार लगाते हुए कहा कि उस ने पहले दिए गए आदेशों का पालन नहीं किया है. ऐसे में सहारा समूह को लग रहा है कि कहीं अगर सेबी की बात मानते हुए अदालत ने सुब्रत राय और दूसरे निदेशकों के देश छोड़ कर न जाने का आदेश दे दिया और उन का पासपोर्ट जमा कर लिया तो वह सहारा की सब से बड़ी हार होगी. ऐसे में सहारा समूह के खिलाफ अदालत से बाहर धमकी देने जैसे विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ छपवाया गया है.

अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अगुआई में बनी 3 सदस्यों की खंडपीठ ने सहारा को 3 करोड़ निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ लगभग 24 हजार करोड़ रुपए वापस करने का आदेश दिया था. सहारा ने इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए एक याचिका दाखिल की थी. 9 जनवरी, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के एस बालाकृष्णन और जगदीश सिंह खेहर की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. ऐसे में निवेशक बेचैन हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उन का जमा पैसा कैसे वापस मिलेगा.

नाम बदल कर कराया निवेश

कोलकाता में कंपनी और कारोबारी जगत के जानकार श्रीकुमार बनर्जी का कहना है कि आम लोगों से पैसे उगाहते रहने के लिए मार्च 2008 में सहारा इंडिया ने अपनी एक अन्य कंपनी सहारा इंडिया ‘सी’ जंक्शन का नाम बदल कर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पाेरेशन कर दिया. कंपनी ने डिबैंचर के माध्यम से रुपए उगाहने का फैसला किया. इस के बाद सितंबर 2009 में सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन ने भी डिबैंचर के रूप में निवेश कराने का फैसला किया.

कंपनी की ओर से कहा गया कि यह रकम वह रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करेगी. इस के अलावा सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से भी सहारा ने निवेश कराया. सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी एक तरह की कोऔपरेटिव संस्था थी. इस पर रिजर्व बैंक औफ इंडिया का नियंत्रण नहीं था. ऐसे में सहारा पर यह आरोप लगा कि वह किसी चिटफंड कंपनी की ही तरह लोगों से पैसा वसूल रहा था.

सहारा समूह ने लोगों को शुद्ध चीजें उपलब्ध कराने के नाम पर सहारा क्यू शौप की शुरुआत की. सहारा क्यू शौप डायरैक्ट सेलिंग प्रोजैक्ट है. इस को जुलाई 2012 में सुब्रत राय और स्वप्ना राय ने 5 लाख रुपए के मूलधन से शुरू किया था. तय हुआ था कि कंपनी की आधिकारिक इक्विटी मूलधन 10 लाख करोड़ रुपए होगी. निवेशकों से भी 12,250 रुपए की रकम अग्रिम ली गई थी. इस रकम के एवज में कंपनी ने निवेशकों को यह सहूलियत दी कि निवेशक इस रकम के बराबर मूल्य की सामग्री क्यू शौप के यूनिक प्रोडक्ट रेंज से खरीद सकते हैं. साल 2012 में आधिकारिक इक्विटी मूलधन 5 लाख से बढ़ कर अब 2 हजार करोड़ रुपए का हो गया.

क्यू शौप के लिए वसूल की गई रकम को सहारा ने परोक्ष रूप से रियल एस्टेट में खर्च किया. 4 अक्तूबर, 2012 को कंपनी ने 2 हजार करोड़ रुपए का शेयर ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स को दिया. ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स ऐंबी वैली सिटी की ही अलग कंपनी है. सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पाेरेशन ऐंबी वैली सिटी का एक बड़ा शेयरधारक है. इस कंपनी में सहारा इंडिया कौर्पाेरेशन के 40 प्रतिशत, स्वप्ना राय के 26 प्रतिशत, ऐंबी वैली लिमिटेड के 35 प्रतिशत शेयर हैं.

इस के अलावा ऐंबी वैली लिमिटेड के प्रोमोटर शेयरधारक के रूप में सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन के 40 प्रतिशत, सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के 3 प्रतिशत और सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पोरेशन के  25 प्रतिशत शेयर हैं. कुल मिला कर यह पूरा मामला बहुत जटिल है. इस को समझ पाना बड़े से बड़े निवेशक के लिए सरल नहीं है. कारोबार जगत के लोग मानते हैं कि जटिलता रिजर्व बैंक, सेबी और निवेशकों की आंख में धूल झोंकने के लिए है.

सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के डिबैंचर के निवेशकों का पैसा चुकाने के लिए सहारा ग्रुप की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ऐंबी वैली लिमिटेड की 3,500 एकड़ जमीन को सिक्योरिटी के रूप में रखा गया है. सेबी को गोलगोल घुमाने के लिए सहारा ने विभिन्न कंपनियों में पैसों को गोलगोल घुमाया है. साथ में आम निवेशकों का पैसा सहारा ग्रुप ने रियल एस्टेट में निवेश किया. ऐंबी वैली को सहारा ग्रुप और ऐंबी वैली लिमिटेड ने मिल कर मुंबई में लोनावला के पास बसाया है. 10,600 एकड़ जमीन पर ऐंबी वैली नाम से बसा यह शहर एक बहुत ही आधुनिक सिटी के रूप में बसाया गया. इस की एक शाखा मौरीशस में बताई जाती है. कंपनी की एक शाखा ने न्यूयार्क में प्लाजा होटल और लंदन में ग्रौसवेनर होटल भी खरीदा है.

आमनेसामने सेबी और सहारा

सहारा ग्रुप को निवेशकों का कितना पैसा चुकाना है, इस को ले कर सेबी का आंकड़ा 26 हजार करोड़ रुपए के आसपास का है. इस के विपरीत सहारा का कहना है कि उस ने 22 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटा दिए हैं. उसे अब केवल 3,500 करोड़ रुपए ही लौटाने हैं.

सहारा कंपनी का मानना है कि वह सेबी के अधीन आती ही नहीं है. इस आधार पर उस ने सेबी को कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया था. सहारा ग्रुप का कहना है कि उस की कंपनी शेयर बाजार में पंजीकृत नहीं है, इसलिए वह सेबी के अधीन नहीं आती है. दबाव में आने के बाद सहारा ने निवेशकों से जुड़े तमाम तथ्य सीडी में डाल कर सेबी को दिए. यह सीडी पासवर्ड प्रोटैक्टेड थी, जिस के चलते सेबी उन का विश्लेषण करने में नाकाम रही. सीडी सेबी के किसी काम न आ सकी. सेबी की आपत्ति पर सहारा ने निवेशकों से जुड़े दस्तावेज ट्रकों में लाद कर सेबी को भेज दिए. इन का अध्ययन करना सेबी के लिए आसान नहीं था.

सहारा के हजारों निवेशकों में से सेबी को केवल 68 प्रामाणिक निवेशक मिले हैं. सहारा का कहना है कि जिन छोटेबड़े निवेशकों को भुगतान किया जा चुका है, वे सेबी से संपर्क क्यों करेंगे. सेबी का आरोप है कि सहारा ने अपने निवेशकों के सही पते नहीं लिखे हैं. सहारा कहता है कि हमारे लाखों निवेशक चाय के ढाबे चलाने जैसे छोटेछोटे रोजगार करते हैं. वे सड़क किनारे बैठते हैं. उन के पते उसी तरह के हो सकते हैं. इसी तरह गांव के लोगों के भी न मकान नंबर होते हैं और न ही उन का कोई महल्ला होता है. बड़ी संख्या में ऐसे निवेशक हैं जिन के अपने मकान नहीं हैं, इसलिए वे समयसमय पर अपने पते बदलते रहते हैं.

सहारा का तर्क है कि हमारे एजेंट उन को जानते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर उन लोगों तक पहुंच जाते हैं. ‘बस, बहुत हो गया’ विज्ञापन में सहारा ने सेबी को चुनौती देते हुए कहा है कि वह हमारे एक भी निवेशक को फर्जी पा ले या उसे फर्जी साबित करे.

सेबी के आरोपों के जवाब में सहारा दावा करता रहा है कि उस ने निवेशकों के पैसे वापस कर दिए हैं. सहारा के इस तर्क का जवाब देने के लिए असली निवेशकों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है. दिल्ली के रहने वाले रोशन लाल मौर्या ने दूसरे निवेशकों के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की और अदालत से गुहार लगाई कि उन के पैसे ब्याज सहित देने के लिए सहारा को आदेश दिया जाए.

कंपनी रजिस्ट्रार ने किए सवाल

सहारा अपने निवेशकों का पैसा लौटाने के बजाय उसे दूसरी योजनाओं में बिना निवेशक की जानकारी के निवेश कर देता था. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर, उत्तर प्रदेश ने इस की जांच शुरू कर दी है. सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर, समाजसेवी नूतन ठाकुर और आशीष वर्मा ने शिकायत दर्ज कराई थी. सेबी के जाल से बचने के लिए सहारा ने क्यू शौप को उपभोक्ता सामग्री बेचने वाली नैटवर्क कंपनी बताया था.

असल में सहारा, क्यू शौप के जरिए भी पैसे एकत्र कर रहा था. नूतन ठाकुर और अमिताभ ठाकुर ने सहारा क्यू शौप के 1-1 हजार रुपए के 2 बौंड खरीदे. बौंड खरीदते समय इन लोगों को बताया गया कि 8 साल के बाद 1 हजार रुपए के बदले 2,335 रुपए देंगे. इस से पता चलता है कि ऊपर से सहारा जिस योजना को उपभोक्ता सामग्री वाली चेन बताते रहे, असल में वह भी निवेश योजना का अंग थी.

एक दूसरे शिकायतकर्ता आशीष के पास 58 हजार रुपए के 4 ऐडोबे बौंड थे. उस के मिलने वाले 2 लाख 32 हजार रुपए सहारा कंपनी पहले सहारा क्यू शौप में निवेश कराना चाहती थी. कंपनी रजिस्ट्रार में शिकायत के बाद सहारा ने पूरा पैसा वापस कर दिया. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर ने शिकायत के आधार पर सहारा रियल एस्टेट से 5 सवाल पूछे हैं. ये सवाल हैं : क्या सहारा रियल एस्टेट बौंड को सहारा क्यू शौप में परिवर्तित करने हेतु धारा 297 के तहत कंपनी अधिनियम के तहत कोई अनुमति ली गई है? सहारा रियल एस्टेट के बौंड में पैसा लौटाने की जगह पर सहारा क्यू शौप में सामग्री खरीदने की कोई शर्त थी? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश में पैसा लगाने की जगह पर बौंड परिवर्तन की व्यवस्था है? अब तक कैश और शेयरों के माध्यम से परिवर्तित किए गए निवेश का प्रतिशत क्या है? क्या सहारा रियल एस्टेट के ब्रोशर में सहारा क्यू शौप से सामान खरीदने की बात कही गई थी?

सहारा पर सेबी की शिकायत से पहले भी आरोप लगते रहे हैं. सहारा की ‘द प्राइज सर्कुलेशन ऐंड कलैक्शन मनी गोल्डन स्कीम’ भी सवालों के घेरे में रहती है. 1995-96 में शुरू की गई इस स्कीम के जरिए पैसा हड़पने का आरोप लगा था. पैसा जमा करने वालों की याचिका पर बदायूं के न्यायिक मजिस्ट्रेट बिसौली शिवकुमार ने सहारा के कुछ लोगों के खिलाफ फरवरी में गैर जमानती वारंट जारी किया है. मजिस्ट्रेट की सुनवाई में ये लोग उपस्थित नहीं हो रहे थे, इस कारण अदालत को यह कदम उठाना पड़ा है.वर्ष 1986 में सहारा ने ‘गोल्डन की’ नाम से एक इनामी योजना शुरू की थी. इनाम बांट कर पैसा दोगुना करने का लालच दे कर लोगों से इस योजना में पैसा लगवाया गया. इस के खिलाफ सुब्रत राय, जयव्रत राय और ओ पी श्रीवास्तव के खिलाफ अलीगंज थाने में मुकदमा लिखा गया था.

अपराध संख्या 332/93 पर दर्ज इस मुकदमे की जांच का काम सीबीसी आईडी ने किया था. 2003 में इस मामले में चार्जशीट भी सौंप दी गई थी. इस के बाद शुरू हुआ मामले से बच निकलने का काम. मुकदमा वापस लेने का प्रयास शुरू हो गया. 18 अप्रैल, 2007 को न्यायिक मजिस्ट्रेट बिजेंद्र त्रिपाठी ने मुलायम सरकार के प्रार्थनापत्र 3 मई, 2006 को अस्वीकार कर दिया था. 31 जुलाई, 2009 को यूपी के न्याय विभाग ने भी मामला वापस लेने की अर्जी को खारिज कर दिया था. 3 नवंबर, 2009 को सत्र न्यायाधीश ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया जिस में मामले को वापस लेने से मना कर दिया गया था. 

20 नवंबर, 2009 को इस की शिकायत भारत के मुख्य न्यायाधीश से की गई.

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