देश के हृदय मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर 10 से 12 सितंबर तक आयोजित 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन कई माने में सार्थक रहा. जिस का सार यह निकला कि हिंदी को कहीं से कोई खतरा नहीं है, जरूरत उसे कारोबारी शक्ल देने की है. अभी तक हुए 9 सम्मेलनों में बड़ी चिंता हिंदी के अस्तित्व को ले कर जताई जाती रही थी. वह इस सम्मेलन में नहीं दिखी तो वजह बड़ी अहम थी कि आयोजक विदेश मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार ने साहित्यकारों की सीमारेखा खींच दी थी. साफसाफ कहा जाए तो हिंदी के स्वयंभू ठेकेदारों को मनमानी नहीं करने दी गई जिस से हिंदी का वास्तविक वैश्विक व व्यापारिक पहलू सामने आ पाया. यह बहुत जरूरी भी हो चला था कि हर दफा हिंदी को साहित्यकारों के नजरिए से ही देखने की गुलामी से छुटकारा पाया जाए. इसीलिए इस सम्मेलन का मुख्य विषय साहित्य के बजाय हिंदीभाषा विस्तार एवं संभावनाएं रखा गया था. समकालीन हिंदी साहित्यकारों के लिए हालांकि यह बात तकलीफदेह थी कि साहित्य की यानी उन की अनदेखी कर भाषा की बात ज्यादा की जा रही है. साहित्यकारों की इस पीड़ा से आम लोगों ने कोई वास्ता न रख उन की बातों व आलोचनाओं पर ज्यादा तवज्जुह नहीं दी.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सम्मेलन के मुख्य संरक्षक थे और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस की अध्यक्ष थीं. सम्मेलन में मुद्दे की बात थी हिंदी का आधुनिक और तकनीकी स्वरूप, उस का मोबाइल और कंप्यूटर में प्रयोग और इस से भी अहम था हिंदी के डिजिटल व रोजगारोन्मुखी होने पर चर्चा, जिस ने आयोजन को एक बेहतर मुकाम पर ला खड़ा कर दिया. 39 देशों से आए प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया. देशविदेश के तकरीबन 6 हजार प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में शिरकत की. उन्होंने अपनी बात कही, दूसरों की सुनी और 12 विभिन्न विषयों पर सत्रों की चर्चा के बाद निष्कर्ष भी दिए जिन से हिंदीप्रेमियों को सुखद एहसास यह हुआ कि हिंदी उत्तरोत्तर तरक्की कर रही है, कुछ विसंगतियां हैं लेकिन वे किसी किस्म का खतरा नहीं हैं क्योंकि उन्हें दूर किया जा सकता है. सम्मेलन में कुछ विवाद भी हुए जो आमतौर पर ऐसे आयोजनों में अकसर होते हैं.

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