अरंडी औद्योगिक तेल देने वाली खास तिलहनी फसल है. इस के बीजों में 45 से 55 फीसदी तेल और 12 से 16 फीसदी प्रोटीन की मात्रा होती है. इस के तेल में 93 फीसदी रिसिनीलिक नामक वसा अम्ल पाया जाता है, जिस के कारण इस का बहुत औद्योगिक महत्त्व है. भारत के कुल अरंडी उत्पादन का एक बड़ा भाग हर साल विदेशों को निर्यात किया जाता है. इस की खेती आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब व हरियाणा सूबों के सूखे भागों में बहुतायत से की जाती?है. अरंडी की फसल में भी कई रोग लग जाते?हैं, जिस से पैदावार पर भारी असर पड़ता है. पेश?है अरंडी में लगने वाले खास रोग व उन के इलाज की जानकारी.

उकठा रोग (विल्ट)

यह रोग ‘फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम’ नामक कवक से होता?है, जो करीब 43 साल पहले राजस्थान के सिरोही जिले में सब से पहले पाया गया था. आजकल अरंडी उगाए जाने वाले तमाम राज्यों में यह रोग पाया जाता है.

लक्षण : शुरू में रोगी पौधों की पत्तियां मुरझा कर पीली पड़ जाती?हैं. इस के बाद नीचे वाली पत्तियां गिर जाती हैं. सिर्फ सिरे पर कुछ पत्तियां बाकी रहती हैं. पौधों में पानी ले जाने वाली नलियों में फफूंद जमा हो जाती?है और पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं. यह रोग बीज व भूमि जनित होता है.

इलाज

* रोग ग्रस्त खेतों में 2-3 सालों तक अरंडी की फसल न बो कर रोग के असर व फैलाव को कम किया जा सकता?है.

* बीजों को कार्बंडाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की बीज दर से उपचारित कर के बोआई करें.

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