आज कालेज कैंपस में सन्नाटा पसरा है. 3 छात्रों की पिकनिक के दौरान नदी में डूब जाने से अकस्मात मौत हो गई. सभी होनहार विद्यार्थी थे. हमेशा खुश रहना व दूसरों की मदद करना उन की दिनचर्या थी.
वे हमारे सीनियर्स थे. कालेज का फर्स्ट ईयर यानी न्यू कमर्स को भीगी बिल्ली बन कर रहना पड़ता था. न्यू कमर्स का ड्रैस कोड, रोज शेविंग करना, सीनियर्स को देख कर नजरें चुपचाप कमीज के तीसरे बटन पर ले जाना अनिवार्य लेकिन अघोषित नियम था.
इस नियम को न मानने का मतलब सीनियर्स द्वारा धुनाई के लिए तैयार रहना पड़ता था. इस वजह से हम सब उन नियमों के पाबंद थे.
हमें यह नसीहत भी दी गई थी कि सीनियर्स की डांटफटकार से आदमी के व्यवहार में गजब का आत्मविश्वास पैदा होता है.
इस रैगिंग से जीवन के किसी भी क्षेत्र में निर्णायक निर्णय लेने की क्षमता पैदा होती है. हर प्रकार की झिझक खत्म हो जाती है. किसी इंटरव्यू को फेस करने में नाममात्र भी घबराहट नहीं होती. यहां रैगिंग का पूरा काम अनैतिक होते हुए भी व्यक्तित्व के निर्माण के लिए मजबूत नींव बनाता है.
हम जूनियर्स ने भी खुद को इन अघोषित नियमों के हवाले कर रखा था, वे जो कहते हम हुक्म बजा लाते.
एक दिन एक सीनियर ग्रौसरीशौप में दिखे. परंपरा के मुताबिक मेरी निगाह अपने तीसरे बटन पर थी,‘‘…तो पापड़ खरीद रहे हो?’’
मैं ने निगाह नीची कर के कहा, ‘‘जी सर…’’
बला आई थी और टल गई… सांसें वापस लौटीं… मैं ने लिस्ट में उस शौप का नाम दर्ज कर लिया, भूल से वहां दोबारा नहीं जाना. यह इलाका सीनियर्स का था.
पापड़ की इतनी सी घटना ने सीनियर्स के दिमाग में नया फुतूर भर दिया.
उन्होंने जूनियर्स को अगले दिन शाम 4 बजे इकट्ठा किया और सब को श्मशान घाट चलने को कहा. हम जूनियर्स नीची निगाहें किए मन ही मन सोचने लगे कि अब क्या नई आफत आने वाली है, हम अंदर ही अंदर डर से कांपने लगे. रास्ते में एक सीनियर ने पापड़ खरीदे. श्मशान में 2-3 चिताएं जल रही थीं. लगभग सभी चिताओं की लकडि़यां सुलग रही थीं. चिताओं के दावेदार आग दे कर चले गए थे. वहां सन्नाटा पसरा हुआ था. सीनियर्स ने सब के हाथ में एकएक पापड़ दिया और कहा कि इन्हें चिता में सेंक कर खाना है, समझे.
यह सुन कर हम लोग सन्न रह गए. हमारे संस्कार आड़े आने लगे. हम रोंआसे हो गए. मन में कई विचार आने लगे. आखिर हम भागनेकतराने की तरकीब में दबी जबान में सीनियर्स से पहली बार भिड़ने की हिम्मत जुटा कर कहने लगे, ‘‘हम से यह नहीं होगा, सर.’’
लेकिन सीनियर्स में से ही एक सीनियर ने अपनी शर्ट खोली, जनेऊ उतार कर जेब में रखा, पापड़ मांगा, सेंका और खा लिया.
हम सब भौचक्क उन को देखते रह गए. उन्होंने कहा कि विचार हमारे मन की बाधाएं हैं. हमें जो संस्कार दिए गए हैं, उन से ऊपर उठने की हम कभी सोचते ही नहीं. हमें एक सांचे में ढालने की कोशिश की जाती है हम उस से जुदा कुछ बनने की, करने की कभी हिम्मत नहीं करते.
अब हम लोगों के पास बचने का कोई रास्ता बाकी नहीं था. इसलिए हम सब ने अपनेअपने पापड़ सेंके और खा लिए.
सीनियर्स ने कहा कि आज यह तुम लोगों की अंतिम परीक्षा थी. तुम सब इस में पास हुए हो. आज से हम सब फ्रैंड हैं.
तब से हम दोस्तों के बीच कोडवर्ड शुरू हो गया, ‘पापड़ पार्टी.’
घर में, कालेज में किसी को खबर नहीं है कि ये ‘पापड़ पार्टी’ बला क्या है.
इस पापड़ पार्टी के बमुश्किल 3 महीने गुजरे हैं और यह हादसा हो गया.
वही श्मशान, वही जगह, वही सीनियर्स…
चिता में लिटाए जाते वक्त लगता था, कमीज न होते हुए भी वे सब तीसरे बटन की ओर देख रहे हैं.