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‘डार्लिंग, इस ने कभी मुझे बताया ही नहीं.’

‘एक जवान तुम्हें क्या बताएगा, तुम्हें पता होना चािहए कि तुम्हारी यूनिट में क्या हो रहा है? इतनी सर्दी है, अगर बीमार हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?’

मेजर साहब कुछ नहीं बोले. मुझ से केवल इतना कहा कि मैं लाइन में जा कर सो जाऊं. कल वे इस का प्रबंध कर देंगे. कल उन्होंने मुझे मास्टर जी, सेना शिक्षा कोर का वह हवलदार जो जवानों की शिक्षा के लिए हर यूनिट में पोस्टेड होते हैं, के कमरे में ऐडजस्ट कर दिया.

मेजर साहब, 2 वर्षों तक मेरे कमांडिंग अफसर रहे और दोनों वर्ष मैं ने उन को सर्टीफिकेट ला कर दिखाए. वे और मेमसाहब बहुत खुश हुए, कहा, कितनी कठिनाइयां आएं, अपनी पढ़ाई को मत छोड़ना. उसे पूरा करना. फिर मैं लद्दाख में पोस्ट हो गया परंतु मुझे उन की बात हमेशा याद रही.

मैं ने कुछ जवानों को वरदी में देखा. उन के बाजू पर वही फौरमेशन साइन लगा हुआ था जो उस समय मैं लगाया करता था. इतने वर्षों बाद भी यह डिवीजन यहीं था. मैं ने सोचा कि फिर तो मेरी पहली यूनिट भी यहीं होगी. मैं ने साथ आए संतरी से वर्कशौप के बारे में पूछा. ‘‘हां, सर, वह यहीं है, थोड़ा आगे जा कर संगरूर रोड पर है. अब वह ब्रिगेड वर्कशौप कहलाती है.’’ मैं ने ड्राइवर से कार पीछे मोड़ कर मेन सड़क पर ले जाने के लिए कहा. वही संगरूर रोड है. संतरी को धन्यवाद के साथ बैरियर पर छोड़ दिया.

कार धीरेधीरे चल रही थी. थोड़ी दूर जाने पर मुझे वर्कशौप का टैक्टीकल नंबर और फौरमेशन साइन दोनों दिखाई दे गए. जिस ओर ऐरो मार्क लगा था, मैं ने कार को उस ओर ले जाने के लिए कहा. गेट से पहले ही मैं ने कार रुकवा दी. नीचे उतरा. कार को एक ओर पार्क करने के लिए कह कर मैं पैदल ही गेट की ओर बढ़ा. संतरी बड़ी मुस्तैदी से खड़ा था. मेरे पांव जमीन पर नहीं लग रहे थे. रोमांचित था कि जिस यूनिट से मैं ने अपना सैनिक जीवन शुरू किया, 65 की लड़ाई देखी, अपनी पढ़ाई की शुरुआत की, उसी गेट पर खड़ा हूं.

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