प्रेम कुमार, रिटायर्ड साफ्टवेयर इंजीनियर, की नौकरी इतने अच्छे ओहदे की थी कि घर, गाड़ी और बैंकबैलेंस कुछ हद तक ठीकठाक सा था. हालांकिi, ज्यादातर पैसा उन्होंने पानी की तरह बच्चों पर बहा दिया था.  बच्चों (2 बेटों और एक बेटी) की हर ख़्वाहिश पूरी करना उन्हें अच्छे से अच्छा खानाओढ़ना देना, उन्हें अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाना और तीनों बच्चों को ऊंचे पदों पर आसीन करना उन का सपना था,  जो अब लगभग पूरा हो चुका है.
लगभग इसलिए कि बड़ा बेटा अनिल एमटैक कर के एक आईटी कंपनी में अच्छे ओहदे पर नौकरी करते हुए कंपनी की तरफ से 2 साल के लिए अमेरिका चला गया और बेटी तान्या डबल एमए, बीएड के बाद यूनिवर्सिटी औफ दिल्ली में लैक्चरर थी.   लेकिन तीसरी औलाद यानी कि छोटा बेटा सुनील बीए करने के बाद न जाने कितने एंट्रेंस की तैयारियां कर रहा था, न जाने कितने तरह के टैस्ट दे चुका था और न जाने किनकिन कोर्सों के लिए आएदिन पिता से पैसे लेता रहता. कौन जाने कुछ कर भी रहा था या केवल मौजमस्ती में ही सब समय और पैसा बरबाद कर रहा था.
बस, प्रेम कुमार जी को चिंता थी तो केवल सुनील की. हर समय यही कहते, ‘न जाने यह नालायक कुछ करेगा भी कि नहीं. कौन जाने मुंबई जा कर क्या करता है, क्या नहीं.’ बेशक प्रेम कुमार नौकरी के पूरे समय बेंगलुरु में रहे, लेकिन रिटायर होते ही 2 दिनों बाद ही अपने गांव ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र के नज़दीक) आ पहुंचे. जो खेतीबाड़ी चाचा के बेटों राम लाल और श्याम लाल  को आधाआधा पर जोतने के लिए दी थी, उन के बेटे  राघव और माधव अब उसे हड़पने की फ़िराक़ में थे.
प्रेम कुमार जब भी खेतों में जाते, राघव और माधव उन्हें यह कह कर घर वापस भेज देते कि, ‘बड़े चाचा क्या इस उम्र में भी काम करोगे का?  अरे, हम हैं न ई का देखभाल की खातिर. हम तोहार बच्चे न सही मगर बच्चे जैसन तो हैं न. जाइबे घर जाई के आराम करी के. और हम तो कहत कि आपन कहां ईहा गांम में आपन जिंदगी खराब करेत रहिन. अपन उही सहर में जा के रहो आराम से.’
प्रेम कुमार को थोड़ा अटपटा लगता जब राघव-माधव हर बार खेतों से उन्हें वापस घर भेज देते. वे कमाई के नाम पर हिसाब भी न देते, बस, केवल अनाज उन के घर पहुंचा देते.
अगर कभी प्रेम कुमार पैसों का ज़िक्र करते कि ख़र्च के लिए ज़रूरत है तो कहते, ‘लो भई, बड़े चाचा, अब आप ने के कमी है, थारो तो पेनसन भी आवे है, खर्च तो हमारे न पूरा पड़यो है.’
आखिर एक दिन प्रेम कुमार ने साफ लफ़्ज़ों में कह दिया कि अब से वे अपने खेतखलिहान खुद संभालेंगे. उन्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं. इस पर राघव-माधव बिगड़ पड़े. और हो गई आपस में तूतूमैंमैं. यहां तो बात हाथापाई तक आ पहुंची. राघव-माधव बोले, ‘कोण से खेत चाचा? अब तक मेहनत की हम लोगां ने, और अब आप कहो खेत आपने दे दें. फेर हमारा के? जे खेत तो ना मिले अब थाने.’
प्रेम कुमार जी ने रामलाल और श्यामलाल से कहा तो वे बोले, “भाईसाहब अब बच्चे बड़े हो गए हैं, खुद समझदार हैं, जो कह रहे हैं ठीक ही होगा.” गांव में पंचायत बैठाई गई. पंचायत भी राघव-माधव का साथ ही देने लगी, क्योंकि उन दोनों ने पंचायत की जेब पहले से गरम कर रखी थी. प्रेम कुमार ने शहर आ कर पुलिस थाने में कंपलेंट की, लेकिन थाने के चक्कर काटकाट कर प्रेम कुमार की चप्पल घिस गई, मामला ज्यों का त्यों. अब प्रेम कुमार ने कोर्ट केस कर दिया लेकिन राघव-माधव ने पहले से ही अपने पांव इतने फैला रखे थे कि कहीं कुछ भी प्रेम कुमार को बात बनती नज़र न आती.
उधर प्रेम कुमार के बड़े बेटे अनिल ने अमेरिका में अमेरिकी लड़की से शादी कर ली और शादी की तसवीरें मातापिता को भेज कर सूचित कर दिया कि उस ने शादी कर ली, और कहा, “कोई मजबूरी थी, कुछ समय बाद इंडिया आ कर सब बात बताऊंगा.” ख़ैर, प्रेम कुमार ने कहा कि, “ठीक है, बेटा. सफाई देने की ज़रूरत नहीं. जो किया, ठीक किया.” बेटी के लिए कब से रिश्ता ढूंढ रहे हैं मगर आजकल हर लड़के वाले इतनी बड़ी बोली बोलते हैं कि प्रेम कुमार सबकुछ बेच कर भी डिमांड पूरी न कर सकें. तान्या जब भी छुट्टी में घर आती मां से हमेशा यही कहती, “मां, समझाओ न बाबा को, क्यों परेशान होते हैं. नहीं करनी मुझे शादीवादी. कभी सुना है कि जो गाय बेचता है वह पैसे देता है. गाय बेचने जाओगे तो पैसे ले कर आओगे न.”
“सुना जी आप ने, क्या कह रही है तान्या, पता नहीं आजकल के बच्चे पढ़लिख कर कैसी सोच के हो जाते हैं. भला दानदहेज बिना कभी शादी होती है. हां, यह बात अलग है कि लड़के वाले के मुंह थोड़े ज्यादा ही खुल गए हैं.” “सब सुन और देख रहा हूं. आजकल बच्चे कुछ अधिक ही सयाने हो गए हैं,”  प्रेम कुमार को एक और भी चिंता सताए जा रही थी. जो तान्या पतली-दुबली सी छुई-मुई सी हुआ करती थी, वह अब आत्मनिर्भर होने के साथसाथ शारीरिक तौर पर भी बदल रही थी. तान्या का बदन गदराया हो गया था. उस की चालढाल बदल गई थी. तान्या के उभार पहले से ज्यादा गदराए हुए हैं जो कि किसी मर्द की छुअन से ही हो सकते हैं  (क्योंकि प्रेम कुमार भी तो खेलेखाए हुए हैं अपने वक्त में)  लेकिन प्रेम कुमार कुछ कह नहीं रहे बल्कि इसलिए वे जल्द से जल्द तान्या की शादी कर देना चाहते हैं.
एक तान्या की चिंता, दूसरे सुनील की फ़िक्र. न तो वह किसी एंट्रेंस में क्लियर हो रहा है, न ही कोई नौकरी मिल रही है, उस पर ये राघव-माधव ने खेतखलिहान पर‌ कब्जा कर लिया. अनिल को फोन पर बताया कि राघव-माधव खेत आपने क़ब्ज़े में ले रहे हैं. कहीं सुनवाई नहीं हो रही. उन की पहुंच बहुत ऊपर तक है. अनिल ने दोटूक सा जवाब दे कर फोन रख दिया कि, ” मैं यहां विदेश में बैठा क्या कर सकता हूं, सुनील वहां है सुनील  से कहिए.” सुनील को‌ फोन किया तो बोला, “पापा, अब तक इन खेतों से क्या बना पाए? ले भी लें अगर तो क्या करेंगे. कौन जोतेगा, कौन देखभाल करेगा? कुछ ले-दे कर समझौता कर लो, वही सही रहेगा.”
“हूं ऊऊ कहता है समझौता कर लो, बापदादा की जमीनजायदाद ऐसे ही छोड़ दूं‌. कोई बताए ज़रा इन को तुम ने इसी खेत की रोटी खाई है. भला, डिप्लोमा इंजीनियर की कमाई में इतना कहां जो तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर पाता. वह तो इन खेतों की वजह से खुद भी आगे पढ़ता रहा और बच्चों को भी पढ़ा दिया. और आज कहता है, छोड़ दो, क्या मिला इन खेतों से,” गुस्से में बड़बड़ाते हुए प्रेम कुमार बाहर चले गए.  कुछ दिनों बाद प्रेम कुमार की पत्नी दयावती की अचानक हार्टअटैक से मृत्यु हो गई. मां की मृत्यु के बाद बेटी अपने पिता को दिल्ली ले आई कुछ दिनों के लिए. बेटी ने खूब सेवा की पिता की, खूब अच्छे से खयाल रखा. लेकिन एक दिन शादी की चर्चा पर बापबेटी में खूब बहस हो गई.
“तान्या,  इतनी मुश्किल से ऐसा लड़का मिला है जो  कम बजट में शादी के लिए तैयार है, लेकिन अब तुम्हें क्या एतराज़ है? चाहती क्या है तू? जो बात है, साफसाफ कह. मैं पागल नहीं हूं, दुनियां देखी है मैं ने, सब जानता हूं. जो जिंदगी तू जी रही है न, मैं सब समझता हूं.   समय से अपने घर जा और मैं भी चैन की सांस ले सकूं.” “पापा, मुझे नहीं करनी शादीवादी इन लड़कों से जिन्हें आप ढूंढढूंढ कर ला रहे हैं. अगर आप को मेरी शादी की इतनी फिक्र है तो जहां मैं चाहती हूं वहीं मेरी शादी करा दीजिए. लेकिन मुझे पता है कि आप मेरी पसंद के लड़के को कभी स्वीकार नहीं करोगे, इसलिए मैं ने अब तक आप लोगों से कुछ नहीं बताया. आप लोग जात-धर्म के पचड़ों में पड़े रहते हैं.
“मेरी नज़र में अक्षित में कोई कमी नहीं. अच्छा, स्वस्थ, सुंदर लड़का है. आईपीएस औफिसर है. मुझ पर जान लुटाता है और क्या चाहिए. जो कुछ है सब सामने है. मैं आप की तरह चोरी की ज़िंदगी नहीं जी रही. देखती थी मैं आप को अकसर जब आप मां को अपने बटुए को हाथ तक नहीं लगाने देते थे. “बालकनी में छिप कर कितनीकितनी देर तक बटुए से तसवीर निकाल कर बिना पलक झपके उसे निहारते रहते, ऐसा महसूस करते जैसे वह आप के सामने है और आप उस से बातें करने लग जाते थे. तब उस समय आप को मां पर बहुत प्यार आता था.
“मैं वह तसवीर कभी नहीं देख पाई थी. यह राज़ मुझ पर तब खुला जब एक दिन मैं अपनी किसी सहेली के साथ एक प्रोजैक्ट पर काम करने के लिए बाजार सामान लेने गई तब मैं ने आप को देखा, आप शिवानी मैम के घर के बाहर स्कूटर रोक कर इधरउधर चोरों की तरह देख रहे थे जैसे कहीं कोई आप की चोरी न पकड़ ले. और फिर आप मैम के घर के अंदर चले गए. तब मुझे समझ आया कि शिवानी मैम मुझे इतना प्यार क्यों करती है. उस चोरी की ज़िंदगी से तो यह जात-पांत से दूर हमारी जिंदगी लाखगुना अच्छी है.” “हां, जी है मैं ने चोरी की ज़िंदगी, इंसान हूं मैं भी, मुझे भी कुछ पल का सुकून चाहिए था. जो मुझे शिवानी की निकटता से मिला. लेकिन तुम्हारी तरह किसी ग़ैरजात से तो रिश्ता नहीं बनाया था मैं ने. कहां हम ज़मींदार, मैं उच्च कोटि का इंजीनियर और कहां वह नाई का बेटा. क्या बराबरी हमारी और उस की.”
“वाह पापा, आप के उच्च कोटि वाले इतना मोटा दहेज मांगते हैं कि जिस की किस्तें भरतेभरते इंसान खत्म हो जाए फिर भी किस्तें न खत्म हों. और वो आप के उच्च कोटि वाले, आप के सगे वाले ही आप की ज़मीन हड़प रहे हैं और आप कोर्टकचहरी के चक्कर काट रहे हैं, जिस से कुछ हासिल होता नज़र नहीं आ रहा. और आप का वो उच्च कोटि वाला आप का अपना सपूत जो विदेश में न जाने किस से शादी कर के वहीं बस गया. भारत उसे रास नहीं आ रहा, इसलिए उस ने यहां आना तो दूर, यहां से नाता ही छोड़ लिया. और आप का वो उच्च कोटि वाला दूसरा सपूत जो आप से कह रहा है कि कुछ ले-दे कर समझौता कर लो, ज़मीन का क्या करोगे, मैं कुछ नहीं कर सकता.”
“तू चाहे कुछ भी कह, अपने तो अपने होते हैं और ग़ैर, ग़ैर ही रहेंगे. हो सकता है उस की कोई मजबूरी  रही हो. मैं कल ही अनिल से बात करता हूं और चाहे तू कुछ भी कर ले, इस नाई के बेटे से तो तेरी शादी मेरे जीते जी नहीं होगी. मेरे मरने के बाद जो जी चाहे करते रहना सब के सब.” तान्या के पिता बोलते हुए गुस्से से गांव जाने के लिए निकल जाते हैं. अगले दिन अनिल को फिर से फोन किया. अनिल के कोई जवाब न देने पर दोतीन दिनों तक फोन करते रहे. आखिर एक दिन अनिल ने साफ़ कह दिया, “पापा, मुझे डिस्टर्ब मत किया कीजिए. अपनी समस्याएं आप सुलझाइए.”
इधर तान्या ने अक्षित को पापा की ज़मीन की सारी कहानी बताई. अक्षित की पहुंच और रुतबा काफी अच्छा था, इस वजह से ज़मीन का फैसला जल्दी हो गया और प्रेम कुमार जी को उन की ज़मीन मिल गई. लेकिन अब प्रेम कुमार को एहसास हो गया था कि कौन अपना है और कौन पराया. कौन उच्च कोटि का है और कौन छोटा. इंसान कर्मों से उच्चता को प्राप्त होता है न कि जातबिरादरी या धर्म से.
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