लालटू ने घर को आखिरी बार निहारा. घर जैसे उस के सीने में किसी कील की तरह धंस गया था. उस ने बहुत कोशिश की लेकिन कील टस से मस न हुई. उस ने सामने खुले मैदान में नजर दौड़ाई. सामने बड़ेबड़े पहाड़, खूबसूरत वादियां… भला कौन इस जन्नत को छोड़ कर जाने की बात सोचता है. लेकिन वह अपने बूढ़े बाप और अपने बच्चों का चेहरा याद करता है तो यह घाटी अब उसे मुर्दों का टीला ही जान पड़ती है. इधर घाटी में जब से मजदूरों पर हमले बढ़े हैं उस के पिताजी और उस के बच्चों का हमेशा फोन आता रहता है कि कहीं कुछ…
उस के बूढ़े पिता कोई बुरी घटना घाटी के बारे में सुनते नहीं कि उस का मोबाइल घनघना उठता है. चिंता की लकीरें लालटू के चेहरे पर और घनी हो जाती हैं.
बूढ़ा असगर जाने कब से आ कर लालटू की बगल में खड़ा हो गया था. उस की नजर अचानक बूढ़े असगर पर पड़ी. लालटू झोंपता हुआ बोला, ‘‘अरे चचा, आइए बैठिए.’’
‘‘तुम ने तो जाने का इरादा कर ही लिया है तो मैं क्या कहूं. लो, यह पश्मीना शौल है. रास्ते में ठंड लगे तो ओढ़ लेना,’’ असगर चचा ने तह की हुई शौल को पन्नी से निकाला और लालटू के कंधे पर डाल दिया.
इस अपनत्व की गरमी के रेशे ने एक बार फिर से लालटू की आंखें नम कर दीं.
असगर चचा ने धीरे से उस के कंधे दबाए और हाथ से उस के कंधे को बहुत देर तक सहलाते रहे. असगर चचा को भी कहीं यह एहसास हुआ कि ज्यादा देर तक वे इस तरह रहे तो उन की भी आंखें भीगने लगेंगी.
उन्होंने बात को दूसरी तरफ मोड़ते हुए कहा, ‘‘चाय लोगे?’’
लालटू ने हां में सिर हिलाया. बूढ़े असगर ने नदीम को आवाज लगाई, ‘‘नदीम, जरा 2 कप चाय दे जाना.’’
थोड़ी ही देर में नदीम 2 प्यालों में गरमगरम चाय ले कर आ गया.
चाय पीते हुए बूढ़ा असगर बोला, ‘‘ठीक है, अब तुम भी क्या कर सकते हो. जब यहां लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं, वहां तुम्हारे वालिद और बच्चे परेशान हैं. यहां क्या है, पुचके अब नहीं बिकेंगे तो चाय बेचने लगूंगा. आखिर कहीं भी रह कर कमायाखाया जा सकता है. तुम जहां रहो, खुश रहो. अपने वालिद और अपने बच्चों को देखो. जमाना बहुत खराब आ गया. पहले लोग इंसानियत और मुल्क के लिए जान दे देते थे.
लेकिन अब इन नालायकों को जिहाद और आतंकवाद के अलावा कुछ नहीं सूझता.
‘‘जिहाद बुराई को खत्म करने के लिए किया जाता है, बुरा बनने के लिए नहीं. इसलाम में कहीं नहीं लिखा है कि बेगुनाहों और मजलूमों का कत्ल करो. ये सब वही लड़के हैं जिन्हें धर्म के नाम पर उकसाया जाता है और सीमापार बैठे हुक्मरान इन से खेलते हैं.’’
बहुत देर से चुप बैठा नदीम भी आखिरकार चुप न रह सका, बोला, ‘‘तमिलनाडु में एक कंपनी ने तो एक ऐसा विज्ञापन निकाला है जिस में लिखा है कि वह नौकरियां केवल हिंदुओं को देगा, मुसलमानों को नहीं.
‘‘आखिर जो हो रहा है, एकतरफा तो नहीं हो रहा है न?’’
अचानक से चचा के शब्दों में अफसोस उतर आया. वे नदीम को घूरते हुए बोले, ‘‘आज सालों पहले लालटू यहां आया था और पता नहीं कितने मजदूर यहां काम की तलाश में आए होंगे. यह देश जैसे तुम्हारा है वैसे लालटू का भी है. कोई भी कहीं भी देश के किसी भी हिस्से में जा कर मजदूरी कर सकता है. कमानेखाने का हक सब को है. लालटू आज भी मुझे अपने वालिद की तरह ही मानता है. गोलगप्पे मैं बेलता हूं, छानता वह है. रेहड़ी मैं लगाता हूं, धकेलता वह है. मैं ने कभी तुम में और लालटू में अंतर नहीं किया. बेचारा हर महीने जो कमाता है, अपने घर भेज देता है. सालछह महीने में वह कभी घर जाता है तो अपने बूढ़े बाप और बालबच्चों से मिलने. मैं ने कभी इसे दूसरी किसी नजर से नहीं देखा है.
‘‘इस ढंग की हरकतें सियासतदां करें, उन को शोभा देता होगा. हम तो इंसान हैं. ऐसी गंदी हरकतें हमें शोभा नहीं देतीं. हम तो मिट्टी के लोग हैं और हमारी जरूरतें रोटी पर आ कर सिमट जाती हैं. रोटी के आगे हम सोच ही नहीं पाते.
‘‘हिंदूमुसलमान भरे पेट वाले लोगों के लिए होता है. खाली पेट वाले रोटी के पीछे दौड़ते हुए अपनी उम्र गंवा देते हैं. इसलिए नदीम, दुनिया में आए हो तो हमेशा नेकी करने की सोच रखो. बदी से कुछ नहीं मिलता, बेटा. बेकार की अफवाहों पर ध्यान मत दो. इस तरह की अफवाहों पर कान देने से अपना ही नुकसान है. ऐसी अफवाहें घरों में रोशनी नहीं करतीं और न ही शांति के लिए कंदीलें जलाती हैं बल्कि पूरे घर को आग लगा देती हैं. मैं उन नौजवानों से भी कहना चाहता हूं जो इस तरह की कत्लोगारत में यकीन रखते हैं. बेटा, उन का कुछ नहीं जाएगा लेकिन तब तक हमारा सबकुछ जल जाएगा.’’
बाहर खिली हुई धूप में कुछ कबूतर उतर आए थे. असगर गेहूं के कुछ दाने कोठरी से निकाल लाया और उन की तरफ फेंकने लगा. ढेर सारे कबूतर वहां दाना चुगने लगे.
असगर उन की ओर उंगली दिखाते हुए लालटू और नदीम से बोला, ‘‘देखो, ये हम से बहुत बेहतर हैं. अलगअलग रंगों के होने के बावजूद एकसाथ बैठ कर दाना चुग रहे हैं. ये बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, फिर भी ये आपस में कभी नहीं लड़ते. लेकिन आदमी इतना बुद्धिमान होने के बावजूद जातियों और मजहबों में बंटा हुआ है. इन कबूतरों से आदमी को बहुतकुछ सीखने की जरूरत है.’’
लालटू ने नजरें दौड़ाईं. दोपहर धीरेधीरे सुरमई शाम में तबदील होने लगी थी. उस ने एक बार रेहड़ी को छुआ, फिर उन बरतनों पर सरसरी निगाह दौड़ाई. बिस्तर को निहारा.
यह सब वह आखिरी बार कर रहा था. पिछले 10-12 सालों से वह कश्मीर के इस हिस्से में रेहड़ी लगाता आ रहा था. अब सब छूटा जा रहा था. उस की बस किनारे आ कर लगी. लालटू चलने को हुआ.
असगर दौड़ कर बस तक आया. उस ने लालटू को सीने से लगा लिया. लालटू और असगर दोनों रोने लगे.
असगर बोला, ‘‘अपना खयाल रखना. कभी हमारी याद आए और हालात ठीक हो जाएं तो चले आना.’’
‘‘आप भी अपना खयाल रखना,’’ झोंपता हुए वह बस की सीट पर बैठ गया. उस ने बैग से पश्मीना शौल निकाल कर ओढ़ ली. सुरमई शाम धीरेधीरे रात में बदल गई.