Hindi Story : जरूरी है क्या स्त्री जीवनयापन के लिए पुरुष पर निर्भर रहे जबकि उस का आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता उसे जीवन के नए आयाम दे सकते हैं. सुषमा की इसी सोच ने उसे नए मुकाम पर पहुंचा दिया था.
मैं, लैफ्टिनैंट सुषमा कुमारी, आईएमए से डेढ़ साल की ट्रेनिंग के बाद पासिंगआउट हुई थी. मेरी पहली पोस्टिंग लद्दाख में सेना की आयुद्ध कोर की एक छोटी यूनिट में हुई थी. मुझे इंडिपैंडैंट कमांड मिली थी. थोड़ा आश्चर्य हुआ था कि पहली पोस्टिंग में इंडिपैंडैंट कमांड? शायद सैनिक परिवार से थी, इसीलिए ऐसा हुआ. मुझे 2 महीने की छुट्टी दी गई थी. मैं अमृतसर घर जाने के लिए प्लेन में बैठी तो मैं अपने अतीत में डूब गई.
मैं यहां तक कैसे पहुंची, यह एक लंबी दुखभरी दास्तान है. मैं कैप्टन राजेश की विधवा थी जो जम्मूकश्मीर में आंतकवादियों के एक अंबुश में शहीद हो गए थे. वे लड़ाकू फौज में नहीं थे लेकिन फिर भी सेना में सभी को लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है. वे उरी सैक्टर में कहीं जा रहे थे. उन पर अचानक आतंकवादियों ने हमला किया. इस अचानक हुए हमले से जब तक वे संभलते तब तक उन के 2 जवान शहीद हो गए थे. उन्होंने अपने बाकी के जवानों को बचाने के लिए तुरंत मोरचा संभाला और कारबाइन मशीन का मुंह खोल दिया. आतंकवादी संख्या में ज्यादा थे, उन्होंने अपने जवानों को तो बचा लिया लेकिन खुद शहीद हो गए. उन्हें उन की बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र मिला. मैं और मेरी सास इसे राष्ट्रपति से प्राप्त करने के लिए गए.
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