Hindi Story : जरूरी है क्या स्त्री जीवनयापन के लिए पुरुष पर निर्भर रहे जबकि उस का आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता उसे जीवन के नए आयाम दे सकते हैं. सुषमा की इसी सोच ने उसे नए मुकाम पर पहुंचा दिया था.
मैं, लैफ्टिनैंट सुषमा कुमारी, आईएमए से डेढ़ साल की ट्रेनिंग के बाद पासिंगआउट हुई थी. मेरी पहली पोस्टिंग लद्दाख में सेना की आयुद्ध कोर की एक छोटी यूनिट में हुई थी. मुझे इंडिपैंडैंट कमांड मिली थी. थोड़ा आश्चर्य हुआ था कि पहली पोस्टिंग में इंडिपैंडैंट कमांड? शायद सैनिक परिवार से थी, इसीलिए ऐसा हुआ. मुझे 2 महीने की छुट्टी दी गई थी. मैं अमृतसर घर जाने के लिए प्लेन में बैठी तो मैं अपने अतीत में डूब गई.
मैं यहां तक कैसे पहुंची, यह एक लंबी दुखभरी दास्तान है. मैं कैप्टन राजेश की विधवा थी जो जम्मूकश्मीर में आंतकवादियों के एक अंबुश में शहीद हो गए थे. वे लड़ाकू फौज में नहीं थे लेकिन फिर भी सेना में सभी को लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है. वे उरी सैक्टर में कहीं जा रहे थे. उन पर अचानक आतंकवादियों ने हमला किया. इस अचानक हुए हमले से जब तक वे संभलते तब तक उन के 2 जवान शहीद हो गए थे. उन्होंने अपने बाकी के जवानों को बचाने के लिए तुरंत मोरचा संभाला और कारबाइन मशीन का मुंह खोल दिया. आतंकवादी संख्या में ज्यादा थे, उन्होंने अपने जवानों को तो बचा लिया लेकिन खुद शहीद हो गए. उन्हें उन की बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र मिला. मैं और मेरी सास इसे राष्ट्रपति से प्राप्त करने के लिए गए.
मेरी आंखों के आंसू सूख नहीं रहे थे. मेरी उम्र मात्र 23 साल की थी. मैं राजेश को याद कर के रोती रहती थी. एक रोज मेरी सास मेरे पास आई और बड़े प्यार से बोली, मेरे ससुरजी भी पीछे आ कर खड़े हो गए थे, ‘सुषमा, कब तक रोती रहोगी? अगर तुम ने अपना पति खोया है तो हम ने अपना बेटा खोया है. हमें हौसला रखना होगा और आगे के जीवन के बारे सोचना होगा.’ वह थोड़ा हिचकी, फिर दृढ़ता से आगे कहा, ‘घर की बात घर में रह जाएगी. सबकुछ पहले की तरह चलेगा. तुम इस घर की बहू बनी रहोगी. तुम अपने देवर विभू से शादी कर लो. पैसाटका भी घर में रहेगा.’
मैं ने रोते हुए कहा था, ‘यह कैसे संभव है, मम्मीजी. मेरे पति और आप के बेटे की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि आप ऐसा अभद्र प्रस्ताव ले कर आई हैं. मैं विभू को अपना भाई मानती आई हूं और भाई से शादी नहीं की जाती.’
जब इस के लिए अन्य रिश्तेदारों से भी दवाब बढ़ने लगा तो मैं ‘कीर्ति चक्र’ ले कर अपने मायके चली आई. मैं मायके वालों पर भी बोझ नहीं बनना चाहती थी. वहां भी मेरा विरोध करने वाले बहुत थे. विधवा लड़की को कोई रखना नहीं चाहता. समाज की यह भद्दी सोच थी कि जो अपने पति को खा गई वह हमें कहां छोड़ेगी. मैं ने उसी शहर में 2 कमरों का फ्लैट लिया और रहने लगी.
मैं ने मन बना लिया था कि मैं कैप्टन राजेश की तरह आर्मी में जाऊंगी. मैं अपने पांवों पर खड़ी होऊंगी. मैं पढ़ीलिखी हूं, शहीद की विधवा हूं तो क्या हुआ.
कैप्टन राजेश की पैंशन और जो सुविधाएं मुझे मिलनी थीं, वे बैंक में आ गई थीं. मेरा मैडिकल कार्ड भी बन कर आ गया था.
सोशल मीडिया पर मेरे सासससुर बहुत से भ्रम फैला रहे थे, जैसे मैं सबकुछ ले कर अपने मायके चली आई हूं. मीडिया वाले सूंघतेसूंघते मेरे पास भी आए थे. मैं ने कहा, ‘आप मुझ से पूछने के बजाय सेना मुख्यालय से क्यों नहीं पूछते?’
‘हम ने पूछा था, शहीद को एक करोड़ रुपया दिया जाता है जिस में से 60 फीसदी पत्नी का होता है और 40 फीसदी शहीद के मांबाप का. पैंशन, पीएफ, मैडिकल का अधिकार पत्नी का होता है.’
‘फिर आप मुझ से और क्या जानना चाहते हैं?’
‘यही कि आप भविष्य में क्या करेंगी, शादी करेंगी?’
‘नहीं, शादी मैं बिलकुल नहीं करूंगी. शादी करनी होती तो मैं वहीं पड़ी रहती. यूपीएससी ने सेना में स्थायी कमीशन की वैकेंसी निकाली थी, मैं उस की लिखित परीक्षा दे कर आई हूं. उम्मीद है कि पास हो जाऊंगी. एसएसबी और मैडिकल भी क्लीयर कर लूंगी. आप मुझे अपने पांवों पर खड़े होते देखेंगे. मैं अपनी ससुराल से केवल ‘कीर्ति चक्र’ ले कर आई हूं. अपने लिए मैं ने पलंग और टेबलकुरसी खरीदी है. मेरे सारे गहने, दहेज का सामान वहीं पड़ा है. मेरे मायके जा कर भी आप देख सकते हैं.’
‘हम ने देख लिया है पर एक सवाल मन में कुलबुला रहा है कि आप अपने मायके में क्यों नहीं रह रहीं?’ महिला पत्रकार ने बड़े मीठे स्वर में पूछा था.
मैं ने कहा, ‘यह किसी व्यक्ति विशेष पर प्रहार नहीं है, यह समाज की सोच है कि मांबाप को छोड़ कर और कोई किसी विधवा को अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं होता. मैं ने यह बेहतर समझ कि अलग रहूं.’
दूसरे दिन अखबारों में मेरे बयानों की चर्चा थी. मेरे सासससुर और रिश्तेदारों को झुठा बताया गया था.
यूपीएससी की लिखित परीक्षा का रिजल्ट आ गया था. मैं सफल कैंडिडेट थी.
एसएसबी का सैंटर पुणे पड़ा था. इस के लिए 2 महीने का समय था. मैं ने
अमृतसर में एसएसबी की तैयारी के लिए कालेज जौइन किया.
पुणे में भी सारे फिजिकल टैस्टों के बाद फाइनल इंटरव्यू में सभी मेरे पति के शहीद होने के बारे में पूछते रहे. ‘कीर्ति चक्र’ प्राप्त करने के लिए बधाई भी दी और पति के शहीद होने का अफसोस भी जताया. आखिर में प्रीसाइडिंग अफसर ने कहा, ‘भारतीय सेना को ऐसी वीर नारियों की जरूरत है.’
पास बैठी बोर्ड की एक महिला अधिकारी ने पूछा, ‘इतनी लंबी जिंदगी अकेले कैसे काटोगी?’
मैं काफी देर चुप रही, फिर कहा, ‘आप की मुराद शायद शादी से है, यह मेरे अस्तित्व की लड़ाई है. मैं अकेले लड़ूंगी. फिलहाल मैं किसी मर्द को पालने में विश्वास नहीं रखती हूं.’
मेरे चेहरे पर दृढ़ता थी. प्रश्न जितना तीखा था, जवाब भी उतना ही तीखा था. फिर किसी ने कोई प्रश्न नहीं पूछा. मैं सब का अभिवादन कर के बाहर आ गई.
शाम को जब रिजल्ट सुनाया गया तो मैं सफल थी. दूसरे रोज मेरा मैडिकल हुआ और मैं अपने घर लौट आई. जनवरी के पहले सोमवार से मेरा कोर्स शुरू होना था. उस से पहले मेरे सर्टिफिकेट वैरिफाई किए गए. मिलिट्री अस्पताल से मैडिकल करवाया गया और भी बहुत सी फौरमैलिटीज पूरी होने के बाद वह लिस्ट भेजी गई जो मुझे आईएमए में ले कर जानी थी. मैं ने अमृतसर के सदर बाजार से वे आइटमें ले लीं. ट्रेनिंग चलती रही.
लैफ्टिनैंट बन कर मैं अपने किराए के मकान में आ गई. मैं ने यह मकान छोड़ा नहीं था, किराया देती रही थी. छोड़ने का इरादा भी नहीं था. एक दिन मुझे मेरी सास का पत्र प्राप्त हुआ. उस में लिखा था, ‘आप लैफ्टिनैंट बन गई हैं, इस के लिए बधाई. आप पर गलत प्रैशर डाला गया था, उस के लिए खेद है. आप इस घर की बहू हैं और रहेंगी, चाहे विधवा बन कर रहें. आप के दहेज का सामान और गहने सुरक्षित हैं, जब चाहें, ले जा सकती हैं.’
मैं ने उन के पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया. मन में इतनी टीस थी कि उत्तर देने का मन ही नहीं किया. 2 साल से उन्होंने मेरी कोई सुध नहीं ली. आज मैं अफसर बन गई हूं तो याद आई हूं. मीडिया में कैसेकैसे भ्रम फैलाए थे, मुझे सब याद है. अपनी ससुराल को ले कर मेरा मन फिर कसैला हो गया था. आज शायद इसलिए भी याद आई हूं, लगातार आने वाला पैसा दिखाई दे रहा है. मैं ऐसी ससुराल से दूर भली.
मेरे मांबाप मुझे मिलने आते रहे लेकिन उन्होंने मुझे कभी अपने पास आ कर रहने को नहीं कहा. कम उम्र में ही मैं सब की मानसिकता को जान गई थी. वे मेरे अफसर बनने से खुश थे.
मां ने पूछा था, ‘क्या तुम सारी उम्र किराए के घर में रहोगी?’
‘नहीं, बहुत जल्दी आर्मी वैलफेयर एसोसिएशन द्वारा बनाए गए फ्लैट के लिए अप्लाई करूंगी. वे फ्लैट जब बन जाते हैं तब अप्लाई करने के लिए कहते हैं. जल्दी ही दिल्लीएनसीआर में मुझे फ्लैट अलौट हो जाएगा.’
‘फिर हम से नाते टूट जाएंगे?’
‘हां, यही समझ लें. रिश्तेनाते अब भी कहां हैं? मायके से डोली उठती है तो ससुराल से अर्थी, यही परंपरा है न? मेरी तो डोली और अर्थी साथ उठ गई हैं. जीतेजी इस त्रासदी को भुगत रही हूं, फिर कैसे रिश्ते और कैसे नाते?’ यह कह कर मैं थोड़ी देर रुकी, फिर आगे कहा, ‘मुझे खुशी है कि मैं सेना की अफसर बन गई हूं. मुझे किसी के आगे अपनी जरूरतों के लिए हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है.’
वे मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दे पाए थे. थोड़ी देर बैठे और चले गए.
2 महीने की छुट्टी खत्म हुई तो मैं ने चंडीगढ़ ट्रांजिट कैंप में रिपोर्ट की. ट्रांजिट कैंप आगे की फ्लाइट का प्रबंध करता है. मैं चंडीगढ़ के एमसीओ यानी मिलिट्री मूवमैंट कंट्रोल औफिस पहुंची. यूनिफौर्म में थी. सब ने उठ कर मुझे सम्मान दिया. मैं ने कहा, ‘मुझे ट्रांजिट कैंप के लिए कोई गाड़ी मिलेगी?’
‘जी हां मैडम सर, सामने गाड़ी खड़ी है, वह ट्रांजिट कैंप जाएगी.’
कुली ने मेरा सामान गाड़ी में रख दिया. कुली पैसे ले कर चला गया. ड्राइवर ने मुझे सैल्यूट किया और कहा, ‘थोड़ी देर रुक कर चलते हैं. शायद कोई जवान ट्रांजिट कैंप जाने वाला आ जाए.’
मैं कुछ नहीं बोली. 2 जवान आ कर गाड़ी में बैठ गए. ड्राइवर ने जवानों को बैरक में उतार कर मुझे अफसर मैस में उतार दिया. मैं सामान वहीं रख कर अफसर मैस के औफिस में गई. वहां बैठे हवलदार को मैं ने अपना मूवमैंट और्डर दिया. उस ने मुझे सैल्यूट किया और बैठने के लिए कहा. मैं कुरसी पर बैठ गई. हवलदार ने एक जवान को बुलाया और मेरा सामान कमरा नंबर 2 में रखने के लिए कहा. मुझे से कहा, ‘मैडम सर, आप कमरे में चलें, मैं आप के जाने का शैड्यूल ले कर हाजिर होता हूं.’
मैं कमरे में आ गई. कमरा आधुनिक था. 2 अफसरों के रहने के लिए बनाया गया था. वाशरूम भी आधुनिक था. 2 कुरसियां और 1 टेबल रखी थी. ड्रैसिंगटेबल थी. मैं ने बैल्ट उतार कर मच्छरदानी लगाने वाले पोल पर टांग दी. मैं बैठी ही थी कि एक जवान मेरे लिए चाय ले कर आया, साथ में पनीर के पकौड़े थे. सफर से आई थी, मुझे चाय की बहुत जरूरत थी. मैं चाय के साथ पकौड़े खाने लगी.
अभी मैं चाय पी कर हटी ही थी कि औफिस का हवलदार आया, बोला, ‘मैडम सर, शैड्यूल इस तरह है. 8 बजे बार खुलेगी, आप सौफ्टड्रिंक, रम, व्हिस्की, वाइन पेमैंट पर पी सकेंगी. स्नैक्स आप को ट्रांजिट कैंप की ओर से मिलेंगे. 9 बजे डिनर होगा,’ वह थोड़ी देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. सुबह 2 बजे आप को बैड टी मिलेगी. 3 बजे आप को स्टेशनवैगन पिक करने आएगी. यह आप का बोर्डिंगपास है और वीआईपी लाउंज का 200 रुपए का कूपन है. आप वहां 200 रुपए का कुछ भी खा सकती हैं.
मैं ने पूछा, ‘कोई और भी अफसर ट्रांजिट कैंप से जा रहा है?’
‘अभी तो कोई नहीं है. आने की उम्मीद भी नहीं है. आना होता तो अब तक आ जाता. अब जो आएगा, परसों सुबह की फ्लाइट से जाएगा.’
वह चला गया तो मैं ने मोबाइल से अपनी यूनिट में बात की. वहां के सूबेदार इंचार्ज ने बताया, ‘जयहिंद मैडम सर, आप के शैड्यूल के मुताबक गाड़ी लेह पहुंच चुकी है. आप के लिए स्नो क्लोदिंग भेजा है. लेह में उतरते ही पहन लीजिएगा. सर्दी बहुत है, तापमान माइनस में चल रहा है. लेह ट्रांजिट कैंप के अफसर मैस को बोल दिया गया है कि आप के लिए चाय, नाश्ते और लंच का प्रबंध करें. इस के लिए मैं ने टिफिन और थर्मस भेजे हैं. ड्राइवर मैस से ले लेगा.’
मैं ने कहा, ‘थैंक्स.’
‘जयहिंद मैडम सर.’
‘जयहिंद.’
गेट पर खड़े जवान ने मुझे सैल्यूट किया और गेट खोल दिया. अंदर डिनर का अच्छा प्रबंध था. स्नैक्स में पकौड़े रखे हुए थे. मुझे भूख जोरों की लगी थी. कई ड्रिंक्स भी रखी थीं लेकिन मैं ने उस ओर ध्यान नहीं दिया. एक जवान मेरे पास ट्रे में ड्रिंक रख कर ले आया तो मैं ने उसे आराम से मना कर दिया कि मुझे नहीं चाहिए.
मैं ने डिनर किया और कमरे में आ गई. वरदी उतार कर हैंगर में डाल कर अलमारी में टांग दी. नाइटसूट पहना और मच्छरदानी लगा कर सो गई. सुबह 2 बजे चाय आई. फ्रैश हो कर वरदी पहनी. जवान मेरा बिस्तर और ट्रंक ले गया था, बोला, ‘स्टेशन वैगन आ गई है, आ जाइए.’
आधे घंटे में मैं एयरपोर्ट पर थी. इंडियन एयरलाइंस के लगेज पौइंट पर मैं ने सामान जमा किया. मेरे हाथ में मोबाइल और छोटा बैग था जिस में जरसी थी. ओवरकोट हाथ में पकड़ लिया था. चैकइन करने में आसानी हुई. वीआईपी लाउंज में पहुंची तो वहां दिन की तरह रौनक थी. टेबल सर्विस थी. मैं ने कूपन दे कर ब्रैडमक्खन लाने के लिए कहा. चाय मैं तेज गरम पीती थी. मैं ने उसे बाद में लाने के लिए कहा.
बोर्डिंग होने में काफी समय था, इसलिए आराम से नाश्ता करती रही. 05.30 बजे मैं बोर्डिंग होने के लिए काउंटर पर गई. बिजनैस क्लास पर अपनी सीट पर बैठी तो मुझे वहां कोई बैठा दिखाई नहीं दिया. सभी अकसर इकोनौमी क्लास में सफर करते हैं. सरकारी अफसर या कोई बिजनैमैन इस क्लास में सफर करता है. तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी. मेरे ‘हैलो’ कहने पर उधर से आवाज आई, ‘जयहिंद मैडम सर, मैं नायक ड्राइवर ईश्वर सिंह बोल रहा हूं. आप प्लेन में बैठ गईं?’
‘हां, बैठ गई.’
‘मैं आप को गाड़ी ले कर लगेज मिलने वाली जगह पर मिलूंगा, जी.’
‘ठीक है.’
‘जयहिंद मैडम सर.’
‘जयहिंद.’
मोबाइल बंद करने का अनाउंसमैंट हो गया था. मैं ने मोबाइल बंद कर दिया. प्लेन उड़ा और एक घंटे बाद लेह एयरपोर्ट पर लैंड कर गया. बताया गया, बाहर का तापमान माइनस 2 डिग्री है. जब तक स्टाफ उतरता, मैं ने जर्सी और ओवरकोट पहन लिए. सिर ढकने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था. जानती थी, इस से सर्दी नहीं रुकेगी लेकिन कोई चारा नहीं था.
मैं बाहर निकली, सर्दी का एक झौंका आया, मुझे भीतर तक कंपा गया. जल्दी से सामने लगी बस में बैठ गई. इकोनौमी क्लास से बहुत से जवान और एक जेसीओ आ कर बैठे थे. जेसीओ मेरे पास आया, सैल्यूट किया और बोला, ‘मैडम सर, आप शायद नई पोस्टिंग पर आई हैं, तभी आप के पास सिर ढकने के लिए कुछ नहीं है.’
मैं ने कहा, ‘मेरे जवान मुझे लेने के लिए आए हुए हैं, वे सबकुछ ले कर आए हैं, सिर्फ लगेज पौइंट तक मुझे ऐसे जाना है.’
‘ठीक है, मैडम सर, यहां की हवा बहुत खतरनाक है, लग गई तो आप तुरंत बीमार हो जाएंगी. मेरे पास बिलकुल नया कैपबलकलावा है. आप लगेज पौइंट तक पहन लें, सुरक्षित रहेंगी. मुझे भी वहीं जाना है. वहां जा कर मुझे वापस कर दें.’
मुझे जेसीओ साहब का सुझाव अच्छा लगा. मैं ने कैपबलकलावा ले कर पहन लिया. सिर को आराम मिला. मैं ने उन से पूछा, ‘आप कौन सी रैजिमैंट से हैं और कहां जाना है?’
‘मैडम सर, मैं डोगरा रैजिमैंट से हूं और मुझे दुरबुक जाना है.’
‘मुझे भी वहीं जाना है, आप हमारे साथ चलें.’
‘थैंक्स मैडम सर, ट्रांजिट कैंप ने अगर इजाजत दी तो मैं आप के साथ चलूंगा.’
‘मुझे भी वहां नाश्ता करना है, रास्ते के लिए चाय और लंच लेना है. मैं बोल दूंगी.’
‘थैंक्स मडैम सर, यहां रुक गए तो पता नहीं कब भेजें. रहने और खाने की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं होती है.’
‘कोई बात नहीं, मैं कह दूंगी तो जाने देंगे.’
साहब ने मुझे सैल्यूट किया और पीछे जा कर बैठ गए. मैं और साहब लगेज पौइंट पर पहुंचे तो ओवरकोट पर रैंक न लगा होने के कारण मेरे जवान मुझे पहचान नहीं पाए लेकिन मैं ने पहचान लिया था. मैं उन के पास गई तब उन्होंने मुझे पहचाना. नायक ईश्वर सिंह और साथ आए जवान ने मुझे सैल्यूट किया, पूछा, ‘मैडम सर, यही 2 नग हैं?’
‘हां, यह छोटा बैग भी है. ये सूबेदार साहब हमारे साथ दुरबुक जाएंगे. गाड़ी में जगह होगी?’
‘जी मैडम सर, टोयटा की 8 सीटर गाड़ी है, जगह बहुत है.’
‘ठीक है, ईश्वर, इन का सामान भी गाड़ी में रखवा लो.’
‘थैंक्स मैडम सर,’ सूबेदार साहब ने कहा.
ट्रांजिट कैंप में सारी व्यवस्था कर के मैं अफसर मैस में नाश्ते के लिए आई. नाश्ता करते मेरे जवान ने मेरे लिए चाय और लंच ले लिया. मैं ने पूछा, ‘आप लोगों ने नाश्ता कर लिया?’
‘जी मैडम सर, आप के आते ही हम दुरबक के लिए चल देंगे.’
मैं कुछ नहीं बोली, वह टिफिन और थरमस ले कर चला गया. सब ने अपना लंच भी ले लिया था. जब हम लेह से चले तो मौसम साफ था. सूरज चमक रहा था. उस की गरम किरणें शरीर को अच्छी लग रही थीं. जैसेजैसे हम चढ़ाई चढ़ते गए, मौसम खराब होता गया.
मैं ने कहा, ‘सूबेदार साहब, मौसम एकदम खराब हो गया?’
‘जी मैडम सर, यहां के मौसम के बारे में मशहूर है कि सरदारजी का दिमाग और यहां का मौसम कब बिगड़ जाए, पता नहीं.’ यह कह कर सूबेदार साहब थोड़ा हंसे. वे मेरे सामने खुल कर नहीं हंस सकते थे. यह सेना के अनुशासन में आता है. फिर आगे उन्होंने कहा, ‘हमारे ब्रिगेड कमांडर साहब भी सरदारजी हैं, सिख रैजिमैंट से, बहादुर और मार्शल कौम के. पता नहीं चलता किस समय क्या हुकम दे दें. वे हर चीज खुद चैक करते हैं.
‘पहले हमारी चौकियां नीचे थीं, चाइना हमें देखता था. अब चौकियां ऊपर हैं, हम चाइना को देखते हैं. एक रात जबरदस्त बर्फ पड़ रही थी. हमारी पैट्रोलिंग पार्टी जाने के लिए तैयार थी. वे आए और बोले, वे भी आप के साथ जाएंगे. वास्तव में वे यह जानना चाहते थे कि इतनी भयानक सर्दी और बर्फबारी में पैट्रोलिंग करने में क्याक्या दिक्कतें आती हैं. वे हमारी तरह फुल ड्रैस में थे. हर जवान कोई 20 किलो भार ले कर चलता है. पानी की बोतल भरी जाती है लेकिन पानी जम जाता है, पिया नहीं जा सकता. पानी की जगह जवान रम भर कर ले जाते हैं. पैट्रोल और रम नहीं जमती है. कमांडर साहब ने यह पूछा कि सब की वाटर बोटल में रम है? सब ने कहा ‘हां सर.’
वहां से चले तो उतराई थी. उन्होंने देखा कि गमबूट में भी जवान फिसल रहे हैं. वे खुद 2 बार फिसले. गमबूट नौनस्किड होते हैं. चढ़ाई में भी फिसलेंगे. यह तो हम रोप के सहारे चलते हैं. उन्होंने महसूस किया कि और तो सब ठीक है लेकिन गमबूट में कमी है. दूसरे, औक्सीजन की कमी से सब की सांस फूलती है. धीरेधीरे लगातार चलने से सांस कंट्रोल हो जाती है. उस का कोई इलाज नहीं है लेकिन गमबूट के लिए उन्होंने रिसर्च डिपार्टमैंट को लिखा. अब जो गमबूट आए हैं, वे फिसलते नहीं हैं.’
सूबेदार साहब चुप हो गए थे. मैं ने कहा, ‘ऐसे शानदार और बहादुर अफसर के अंडर में काम करने में बहुतकुछ सीखने को मिलेगा.’
‘जी मैडम सर.’
हमारे देशवासी सोचते होंगे कि बड़े अफसर यों ही दफ्तरों में बैठ कर एंजौय करते हैं. उन्हें पता ही नहीं होगा कि वे जवानों के साथ उन की समस्याओं को गहराई से समझते हैं और उन का समाधान करते हैं.
ड्राइवर ने कहा, ‘मैडम सर, हम इस समय दुनिया की सब से ऊंची सड़क चांगला टौप पर खड़े हैं.’
मैं ने कहा, ‘रुको, मैं कुछ तसवीरें लेना चाहूंगी.’
सूबेदार साहब ने कहा, ‘मैडम सर, बाहर मौसम बहुत खराब है. मोबाइल का कैमरा काम नहीं करेगा. तापमान माइनस 20 से 25 डिग्री के बीच होगा. कभी भी बारिश या बर्फ पड़नी शुरू हो सकती है. हमें यहां से जल्दी निकलना होगा. हम कार में बैठे हैं. हीटर चल रहा है, इसलिए सर्दी सहन हो रही है.’
‘जी मैडम सर, साहब ठीक कह रहे हैं. कार एयरटाइट है. बीडिंग लगा कर खिड़कीदरवाजों को सील किया गया है. तब भी सर्दी लगती है. थोड़ा आगे झरना है, वहां लंच कर के आगे चलेंगे,’ ड्राइवर ने कहा.
मैं कुछ नहीं बोली, ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. खराब मौसम के कारण दिन में ही अंधेरा हो रहा था. मैं ने कहा, ‘जो जवान ट्रांजिट कैंप की गाडि़यों में आते होंगे उन के लिए तो बहुत मुश्किल होती होगी? वे इतनी भयंकर सर्दी को कैसे सहते होंगे?’
‘तिरपाल से चारों तरफ से गाडि़यों को ढक लिया जाता है. जवान 3-4 कंबल ओढ़ लेते हैं. फ्रंट सीट पर ड्राइवर के साथ केवल एक जवान के बैठने का आदेश होता है लेकिन ड्राइवर अपनी रिस्क पर 2 जवान और आगे बैठा लेता है. बाकी जवानों के पास सर्दी सहने के अलावा कोई चारा नहीं होता. हां, रम पी कर खुद को गरम रखते हैं. इस के लिए ट्रांजिट से रम मिलती है.’
मैं सोच रही थी, अनुशासन के लिए जवानों और अफसरों में यह फर्क रहेगा. आगे चल कर सब ने लंच किया और चल पड़े. हम शाम 5 बजे अपनी यूनिट में पहुंचे. ड्राइवर को सूबेदार साहब रैजिमैंट में छोड़ने का आदेश दे कर मैं अपने लिए तय कमरे में आ गई. कमरा सुंदर था. हीटर से गरम कर रखा था. अच्छा लगा. हैल्पर मेरे लिए पानी और चाय ले कर आया. पानी हलका गरम था, मैं पूरा पी गई, फिर चाय पी. चाय बहुत टेस्टी थी.
मैं ने पूछा, ‘चाय किस ने बनाई ’
‘मैं ने बनाई है, मैडम सर,’ साथ के कमरे से आवाज आई और वह मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया, मुझ से जयहिंद कर कहा, मैडम सर, मैं आप का स्पैशल कुक हूं. आप के लिए स्नैक्स और खाना बनाऊंगा. मेरा नाम अजीत है और यह सुमन कुमार है, आप का हैल्पर.’
मैं नहाना चाहती थी, साथ में वाशरूम था. गीजर औन था. तेज गरम पानी से नहाई. बहुत अच्छा लगा. मैं पलंग पर आ कर बैठ गई. नाइटसूट में थी. मैं ने अपनी टांगों पर स्लीपिंग बैग ओढ़ लिया था. सिर कैपबलकलावा से ढक लिया था. सारे गरम कपड़े पहने और रूमहीटर चलने पर भी सर्दी लग रही थी. तभी किसी ने बाहर से अंदर आने की इजाजत मांगी. मेरे ‘यस’ कहने पर अंदर आए. एक नायब सूबेदार साहब थे, दूसरे सूबेदार साहब थे.
दोनों ने मुझ से ‘जयहिंद मैडम सर’ कहा.
मुझ उन के ‘जयहिंद मैडम सर’ कहने पर हैरानी नहीं हुई. एटीकेट ट्रेनिंग में बताया
गया था कि सेना में महिला अफसर से ऐसे ही बात करेंगे. मैं ने उन्हें बैठने के
लिए कहा लेकिन वे बैठे नहीं. मैं ने उन्हें ईजी हो कर खड़े होने के लिए कहा.
उन्होंने अपना परिचय दिया, ‘मैं सूबेदार हरिराम, यहां का सीनियर जेसीओ हूं.’
‘और मैं नायब सूबेदार गुरनाम सिंह, यहां का जेसीओ एडजूडैंट.’
‘मैडम सर, आप का सफर ठीक रहा? रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई? लंचचाय ठीक मिली?’
‘हां, सब ठीक था. मुझ पूरी यूनिट का इंस्पैक्शन करना है और फिर सैनिक दरबार लेना है. कुछ अपने बारे में बताऊंगी, कुछ जवानों की सुनूंगी. कब करवाना चाहेंगे?’
‘मैडम सर, आज बुधवार है, सोमवार को इंस्पैक्शन और मंगलवार को दरबार ले लें,’ सीनियर जेसीओ साहब ने कहा.
‘नहीं, मैं दरबार लूंगी, फिर दरबार के तुरंत बाद यूनिट का इंस्पैक्शन करूंगी, हो जाएगा?’
‘जी, मैडम सर,’ दोनों सैल्यूट कर के चले गए.
बाहर मौसम बहुत ज्यादा खराब हो रहा था. बारिश शुरू हो गई थी. थोड़ी देर में बर्फ भी गिरनी शुरू हो गई. कमरे का मीटर माइनस 22 डिग्री तापमान बता रहा था.ऐसे ठंडे मौसम में खून जमने लगता है. मैं ने गरम चाय मंगवाई. धीरेधीरे चाय के घूंट भरती रही. ठंड से बचने का यही रास्ता सूझ रहा था मुझे.
आगे का अंश बौक्स के बाद
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पर्यटकों की पहली पसंद
भारत खुद को कितना ही विश्वगुरु कह ले, पर्यटकों की नजर में वह अभी भी दुनियाभर के देशों में सब से पीछे है. 2024 के पर्यटकों के आंकड़े बताते हैं कि घुमंतुओं की पहली पसंद फ्रांस है. फ्रांस जाने वालों की संख्या 8.94 करोड़ थी. फ्रांस के बाद दूसरे नंबर पर स्पेन जाने वालों की संख्या 8.37 करोड़ रही. अमेरिका 7.93 करोड लोग घूमने गए. चीन जाने वालों की संख्या 6.57 रही और इटली घूमने वालों की संख्या 6.45 करोड़ रही है.
इस के विपरीत भारत आने वालों की संख्या मात्र 1.79 करोड़ रही. भारत जनसंख्या और क्षेत्रफल की नजर से बड़े देशों में शामिल किया जाता है. देश में घूमने और रहनसहन के तमाम स्थान हैं. इस के बाद भी पर्यटकों की नजर में भारत सब से नीचे आता है. इस की सब से बड़ी वजह यहां का धार्मिक कट्टरपन और रूढि़वादिता है.
घूमने में जो मजा पर्यटकों को फ्रांस, अमेरिका, चीन और इटली में आता है वह भारत में नहीं आता. यहां घूमने आने वालों को अभी भी परेशान किया जाता है. उन को अपराध का शिकार बनाया जाता है, खासकर, महिला पर्यटकों के खिलाफ माहौल ठीक नहीं होता है. पर्यटकों को जो आजादी विदेशों में होती है वह भारत में नहीं मिलती है, इसलिए भी भारत में पर्यटकों की संख्या कम ही रहती है.
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सोमवार को मैं इंस्पैक्शन के लिए हर जगह गई. यूनिट लाइन में गई तो जगहजगह खाली स्थान थे जैसे कोई चार्ट लगे हों. सीनियर जेसीओ और जेसीओ एडजूडैंट मेरे साथ थे. मैं ने उन से पूछा, ‘इस खाली जगह पर कोई चार्ट लगे थे?’
वे दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. वे बताने में झिझक रहे थे. मैं ने कहा, ‘बेझिझक बताएं. मैं सैनिक परिवार से हूं, ज्यादा तो नहीं लेकिन बहुतकुछ जानती हूं.’
सीनियर जेसीओ ने झिझक हुए कहा, ‘मैडम सर, यहां ब्यूटीपोस्टर थे. आप का इंस्पैक्शन था, इसलिए हटा दिए गए. इंस्पैक्शन के बाद लगा दिए जाएंगे.’
यह जान कर अच्छा लगा. सेना में मर्यादा रखी जाती है. महिला अफसर के सामने ऐसे पोस्टर नहीं लगाए जा सकते थे. जवानों को गरम रखने के लिए ऐसे पोस्टर जरूरी थे नहीं तो भयंकर सर्दी में इंपोटैंसी की बीमारी पनप जाती है और भी कई उपक्रम किए जाते हैं. ड्राईफ्रूट दिए जाते हैं, रोज रम और मीट या अंडे दिए जाते हैं. मक्खन खाने को मिलता है. रोमांटिक फिल्में दिखाई जाती हैं. ट्रेनिंग में सब बताया गया था. मैं मन से दृढ़ हो गई थी. जवानों के स्वास्थ्य का प्रश्न था. मैं ने कहा, ‘साहब, चाहे किसी का भी इंस्पैक्शन हो, पोस्टर हटाए नहीं जाएंगे.’
‘जी मैडम सर.’
उस के बाद मैं मैस में आ गई. वहां केवल 3 जवान थे. 2 कुक थे और एक मैस कमांडर. सब ने हाथों में ग्लव्ज पहने हुए थे. मैं ने उन के ग्लव्ज उतरवा कर नाखून चैक किए. मैस कमांडर से पूछा, ‘क्वार्टरमास्टर से राशन नफरी के मुताबिक मिलता है? किसी तरह की कमी तो नहीं रहती?’
‘नहीं, मैडम सर. राशन की कमी नहीं होती है. राशन पूरा मिलता है,’ मैस कमांडर ने कहा.
‘इस बार जब राशन आए तो मुझे दिखाना.’
‘जी, मैडम सर.’
मैं ने सीनियर जेसीओ से पूछा, ‘साहब, आप का खाना कौन बनाता है?’
‘यहीं मैस से आता है.’
‘गुड और मेरा खाना कौन बनाता है?’
‘आप का खाना स्पैशल कुक बनाता है.’
‘आज से मेरा नाश्ते से ले कर डिनर तक यहीं से आएगा. जो जवान खांएगे वही मैं खाऊंगी. यह मेरा चैक होगा.’
‘जी मैडम सर.’
दरबार का टाइम हो रहा था. मैं वाशिंग पौइंट पर न जा सकी. परंपरा के अनुसार जेसीओ साहब ने मुझे जवानों की संख्या बता कर दरबार हैंडओवर किया. मैं कुर्सी पर बैठी और कहा, ‘दरबार बहुत जल्दी में लिया गया है, इसलिए किसी का कोई पौइंट नहीं आया. किसी का कोई पौइंट हो तो बोले.’
बहुत देर चुप्पी छाई रही, फिर एक जवान उठा. अपना नामनंबर बता कर बोला, ‘मैडम सर, मैं सिपाही वाशरमैन हूं. मेरे साथ एक और वाशरमैन काम करता है. हमारे पास 2 सैमीऔटो मशीन हैं. उन में कपड़े तो धुल जाते हैं लेकिन स्पिन नहीं हो पाते. कपड़ों में पानी जम जाता है. हम बड़ी मुश्किल से जेसीओ सहाबन के कपड़े धो पाते हैं. मौसम खराब रहने के कारण कईकई दिन कपड़े सूखते नहीं हैं. कई बार प्रैस से कपड़े सुखाने पड़ते हैं. यदि फुल्लीऔटो वाशिंग मशीन मिल जाए तो हम जवानों के कपड़े भी धो पाएंगे.’
वह सैल्यूट कर के बैठ गया. मैं ने हैडक्लर्क से पूछा, ‘क्या हमारे पास रैजिमैंटल फंड की कमी है?’
‘नहीं, मैडम सर, सिर्फ आप के आदेश की जरूरत है.’
मैं ने स्पष्ट कहा, ‘बहुत जल्दी मशीनों का प्रबंध हो जाएगा.’
दरबार के बाद ब्रिगेड कमांडर साहब से मेरा इंटरव्यू था. ड्राइवर मुझे ब्रिगेड हैडक्वार्टर ले गया. ब्रिगेड मेजर ने रजिस्टर में पर्टिकुलर नोट किए और कमांडर साहब के सामने मार्च किया. मैं ने स्मार्ट सैल्यूट किया. मुझे देख कर बहुत खुश हुए. वे उठे और हाथ मिलाया, कहा, ‘अपनी ब्रिगेड में एक महिला अफसर का स्वागत करते हुए बहुत खुशी हो रही है. मैं समझता हूं, आप पुरुष अफसरों से भी अच्छी कमांड करेंगी. ‘कीर्ति चक्र’ के लिए बधाई और कैप्टन राजेश के शहीद होने का अफसोस है, कोई प्रौब्लम?’
वे 6 फुट लंबे थे. मैं उन के सामने पिद्दी लगती थी. लड़ाकू फौज के अफसर ऐसे ही होते हैं.
‘कुछ नहीं सर, वाशिंग के लिए मैं रैजिमैंटल फंड से फुल्ली औटो मशीनें खरीदने जा रही हूं.’
‘दैट इज योर मैनेजमैंट. वैसे, यहां ड्राईक्लीन प्लांट है. आप जवानों के गरम कपड़े यहां भेज सकती हैं. दिन आप को मेजर साहब बता देंगे.’
‘जी सर, आई विल डू दिस.’
‘मार्च करें.’
ब्रिगेड मेजर साहब ने मुझे चाय पिए बिना आने नहीं दिया. उन्होंने बताया कि ड्राईक्लीन के लिए हमारी यूनिट का शनिवार का दिन तय है.
मैं ने थैंक्स कहा और यूनिट लौट आई. सरकारी डाक देखी. हैडक्लर्क मेरे पास आए, बोले, ‘इस समय सब से अच्छी मशीन बौस की है. मेरी बात हो गई है, 32 हजार रुपए की एक मशीन है. लैटरहैड पर लिख कर फैक्स कर दें और वह चैक फैक्स कर दें जो उन्हें देना है. वे एक हफ्ते में मशीनें लगा जाएंगे.’
मैं ने हैडक्लर्क से पूछा, ‘हमारे पास रैजिमैंटल फंड कितना है?’
‘11 लाख रुपए से ज्यादा है.’
‘कमाल है, आज तक किसी ने इस्तेमाल नहीं किया?’
मैं ने खुद मशीन वालों से बात की. 2 साल की गारंटी के साथ वे कोई इंस्टौलेशन चार्ज नहीं लेंगे. मैं ने हैडक्लर्क साहब से 10 केजी की 2 औटो मशीन का और्डर तुरंत प्लेस करने को कहा.
रनर चाय और स्नैक्स ले कर आया तो मैं ने जेसीओ एडयूडैंट को भेजने के लिए कहा. मैं ने रनर से पूछा, ‘यह चाय और स्नैक्स जवानों को भी मिलते हैं.’
‘हां जी, मैडम सर. उन के लिए व्हिस्ल बजने वाली है.’
जेसीओ एडयूडैंट साहब चाय पीने के बाद आए. मैं ने ड्राईक्लीन प्लांट के बारे में बताया. उन्होंने कहा, ‘जी मैडम सर, पता है लेकिन वे कपड़े इतने अच्छे साफ नहीं कर पाता है. वाशरमैन का दिन भी खराब होता है और उसे फिर से ईजी में धोने पड़ते हैं.’
3 दिन में मशीनें इंस्टौल हो गईं. मैं संतुष्ट थी. जेसीओ और जवान भी संतुष्ट थे. मैं रात को ड्रिंक लेने के साथ सोच रही थी कि मैं पढ़ीलिखी होने के कारण स्थापित हो गई. जो योग्य हैं, उन्हें भारतीय सेना में जाना चाहिए. भारतीय सेना कम पढ़ीलिखियों को भी जगह देती है, क्लर्क, लेबर आदि. मैं उन वीर नारियों के बारे में सोच रही थी जो ससुराल, मायके और समाज के प्रभाव में आ कर अपना जीवन नारकीय बना लेती हैं. पैंशन और सेना से इतना रुपया मिलता है कि वे बड़े आराम से अपना जीवन बिता सकती हैं. किसी दूसरे पुरुष को पालना जरूरी है क्या?
बस, यही प्रश्न हैं जिन के उत्तर नहीं मिलते.