शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ वक्त निकाल कर कुदरती नजारों में समय बिताना किसे अच्छा नहीं लगता है. शायद इसी वजह से सुनंदा को जैसे ही पता चला कि वीरेश हनीमून के सिलसिले में दार्जिलिंग जाने के लिए दफ्तर में छुट्टी की अर्जी दे कर घर लौटा है, तो वह खुशी से झूम उठी.
दार्जिलिंग शहर से दूर एक छोटी सी जगह चटकपुर के बारे में वीरेश को किसी से जानकारी मिली थी, तभी से वह उसी जगह को देखना अपनी पहली पसंद बना बैठा था.
दार्जिलिंग शहर से ही तकरीबन 28 किलोमीटर व सोनदा शहर से सिर्फ 7 किलोमीटर दूर चटकपुर समुद्रतल से 7810 फुट की ऊंचाई पर बसा है. छोटी जगह होते हुए भी यह सैलानियों के लिए बेहद सुकून भरा है. आसमान छूते ऊंचेऊंचे पेड़ों के साए में खिले रंगबिरंगे फूल देखते ही बनते हैं.
शायद इसी माहौल के चलते चटकपुर वीरेश की पहली पसंद था. हिमालय के घने जंगल के रास्ते वे कब और कैसे चटकपुर पहुंच गए, पता ही नहीं चला.
उस दिन दार्जिंलिंग का मौसम कुछ ज्यादा ही सुकून भरा था. कंचनजंघा को छूती ठंडी हवा बदन में अजीब सा जोश जगा रही थी. देखते ही देखते उन्हें चटकपुर के रंगबिरंगे फूलपौधों से घिरे मकान दिखने लगे. गाड़ी ज्यों ही नरबू शेरपा के होम स्टे के सामने आ कर रुकी, ताजा हवा का एक झोंका आ कर रास्ते की उन की सारी थकान मिटा गया.
रबू शेरपा का होम स्टे क्या था, जैसे कश्मीर की डल झील में तैरता कोई शिकारा. कमरे के अंदर का साजोसामान किसी स्वप्नपुरी का सा नजारा पेश कर रहा था. शहर के पांचसितारा होटलों की मौडर्न सुविधाओं को झुठलाती इस छोटी सी जगह में नरबू शेरपा का होम स्टे बड़ा शानदार था.