सुबह सुबह चार बजे किसी मन्त्र की आवाज से मेघा की आंख खुली, लेटे लेटे माथे पर हाथ मारा , ओह्ह, फिर मां जी ने कोई ड्रामा शुरू किया है, मेघा का मन बेड छोड़ने का नहीं किया, आजकल कोरोना वायरस के कारण कहने को तो वर्क फ्रॉम होम था, पर सारा दिन पल भर चैन न मिलता, ऊपर से मां जी के व्हाट्सएप्प पर मिले उनके फालतू के ज्ञान भरे उपदेश सुनने को मिलते, उन्हें समझाने में ही कितना टाइम चला जाता.
उसने बराबर में सोये सुमित पर नजर डाली, फिर मन ही मन हंसी भी आ गयी, सुमित की नींद भला इन मन्त्रों से क्यों खुलेगी, बचपन से यही सब सुनकर ही तो बड़ा हुआ है, पक्का हो गया होगा. मेघा ने दोबारा सोने की कोशिश की पर जब नींद नहीं आयी तो उठकर पानी पीने के लिए अपने बैडरूम से बाहर आ गयी.
पानी पीने किचन में गयी तो किचन के ही एक तरफ बने छोटे से पूजा घर में उसके सास ससुर सुधा और रमेश हाथ जोड़े बहुत जोश में मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे, सुधा ने बीच में पूछा, तुम क्यों उठ गयी?”
”इन आवाजों से.”
”चाहो तो तुम भी नहा धोकर आ जाओ, महा मृत्युञ्जय जाप सब करते रहेंगें, फिर ये कोरोना वोरोना तो घर में फटकेगा भी नहीं.”
मेघा का मन हुआ सर पीट ले अपना, बोली, ”मां जी, मैं तो पानी पीकर लेटने जा रही हूं.” इस बीच रमेश की पूजा जारी थी, सुधा अपने मन से पूजा में कभी भी ब्रेक ले लेती थीं, भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़े, फिर मेघा के पास आकर कहा,”जब तुम लोग रात को सो गए थे, इंदौर से रमा जीजी का फ़ोन आया था, नवरात्र आने वाले हैं न, वे हमेशा की तरह अपने घर माता की चौकी रख रही हैं, आज रात की बस से हम दोनों भी जा रहे हैं, इन्होने रात में ही बुकिंग कर ली थी.”
मेघा ने कुछ हड़बड़ाकर कहा,”क्या कह रहीं है, मां जी? लोगों को बाहर न निकलने की सलाह दी जा रही है, नहीं, नहीं, न तो रमा मौसी को यह सब भीड़ अभी जुटानी चाहिए और न आप जायेंगी.”
”सुबह सुबह उठ कर महा मृत्युञ्जय जाप कर तो लिया, अब क्या डर, अब कौन रोकेगा मुझे ?”
”नहीं, मां जी, मुंबई से इंदौर इस समय इस पूजा के काम के लिए जाना बिलकुल समझदारी नहीं है, नहीं, मां जी, आप जाने की सोचना भी मत. सुमित आपको बिलकुल नहीं जाने देंगें.”
”अरे, मैं देखती हूं, कौन रोकेगा मुझे, मेरे धर्म कर्म में तुम लोग टांग न अड़ाया करो, यह जो आज दुनिया में हो रहा है न, वह इसलिए कि सब लोग अपना धर्म, संस्कार भूलते जा रहे हैं, ईश्वर नाराज हैं.
आज हम कुछ पूजा कर रात की बस से निकल जायेंगें, सुबह रमा जीजी के घर, जाओ, तुम थोड़ी देर और लेट लो.” मेघा खीझती हुई बैडरूम में आ गयी. टाइम देखा, अब साढ़े चार हो रहे थे, उसे लेटे लेटे गुस्सा आने लगा, यह कौन सा पागलपन है, घर में सब कुछ अच्छा है, उसकी सास ससुर से अच्छी बॉन्डिंग है, वह खुद अच्छे पद पर है, दस साल की प्यारी सी बेटी चिंकी है.
सुमित अच्छा पति है, पर धर्मांध सास ससुर के आगे उनकी एक नहीं चलती है, उसकी क्या, सुमित भी हार जाता है उनकी जिदों के आगे, अब यह मूर्खता ही है न, कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, सब घर में काम कर रहे हैं, स्कूल बंद हैं, पर ये पूजा में मुंबई से इंदौर जाने की तैयारी कर रहे हैं, कितनी बड़ी मूर्खता! और रमा मौसी !सोने पे सुहागा, बहन को ऐसे में आने के लिए जोर डाल रही हैं, उनके घर भी यही हाल, उनके बेटे बहू भी उन्हें समझाकर जरूर थक गए होंगें पर वे भीड़ जुटाकर रहेंगीं. वह जानती है , उनकी भी एक नहीं चली होगी.
सुमित सोकर उठा तो उसने उसे सास के प्रोग्राम की जानकारी दी, सुमित को गुस्सा आ गया, पैर पटकते हुए मां के पास पहुंचा,”मां, आप इस समय घर से नहीं निकल सकती.”
” देख , सुमित, हमारे तो टिकट भी बुक हो गए, हम तो जा रहे हैं.”
”नहीं, मां, सवाल ही नहीं उठता, आप लोग कहीं नहीं निकलेंगें,”
सुमित का स्वर तेज हुआ तो सुधा का उससे तेज होना ही था,”कौन रोकेगा मुझे?”
”मैं रोकूंगा, मैं आप लोगों की लाइफ को रिस्क में नहीं डाल सकता.”
”अरे, कुछ तो ईश्वर पर भरोसा करो, सुबह उठते ही इतने पाठ किये हैं, हमारा अब कुछ भी अमंगल हो ही नहीं सकता, धर्म कर्म पर भरोसा करना सीखो कुछ.”
” नहीं , मां , आप लोग नहीं जायेंगें.”
”देख, बेटा, हम तो जा रहे हैं. हमें तो अब कोई नहीं रोक सकता.”
चिंकी सोकर उठ गयी थी, वह भी दादा दादी के साथ जाने की ज़िद करने लगी, उसके स्कूल बंद थे. सुमित ने थोड़ा प्यार, थोड़ी सख्ती से स्थिति की गंभीरता समझायी तो वह समझ गयी पर अपने माता पिता को सुमित समझा नहीं पा रहा था, सुमित ने फिर नाराज होने का पैंतरा भी आजमाया, वह भी फेल हो गया.
”कौन रोकेगा मुझे, ईश्वर के नाम पर सबको ऐसे धर्म कर्म में साथ देना चाहिए,
बताओ, जीजी के घर इतनी बड़ी पूजा और मैं मना कर दूं.
राम राम, कितना पाप लगेगा मुझे, सब नास्तिक हुए जा रहे हैं तभी तो इतना प्रकोप भुगत रहे हैं .”
सुधा पूरा दिन अपना ही राग अलापती रहीं और रात की बस से रमेश के साथ इंदौर निकल भी गयीं. पूरा दिन रमेश अपनी पत्नी की बातों से हमेशा की तरह सहमत दिखे. सुमित का मूड बहुत खराब हुआ. इससे पहले भी सुमित जब भी किसी भी धार्मिक कर्मकांड को आंख बंद करके मानने पर कोई भी लॉजिक देता, सुधा तुनक जाती,
”मैं अपने भक्ति भाव में किसी की दखलंदाजी नहीं सह सकती.” पर इस बार बात गंभीर थी. यह कहीं से भी समझदारी नहीं थी कि ऐसे समय में जब महामारी जैसी स्थिति हो गयी हो, व्यर्थ की ज़िद पर मुसीबत को दावत देने जैसी बात थी, पर वह क्या कर सकता था, अपने पिता से भी उसे नाराजगी थी कि वे भी क्यों मां का ऐसी बातों में साथ देते हैं. सुमित और मेघा बस उन्ही की चिंता में डूबे अपना काम करते रहे.
इंदौर पहुंच कर रमा और सुधा ने गले मिलते हुए जय माता दी का उद्घोष किया, रमा ने बड़े उत्साह से कहा,” वाह , बहन हो तो ऐसी, बिल्कुल मेरी तरह माता की भक्त, ऐसे माहौल में भी हर साल की तरह आ ही गयी. रमा के बेटे बहू सुधीर और नीना ने भी दोनों का स्वागत किया, रमा ने कहा ,”तुम लोग फ्रेश होकर आराम करो, रात भर सफर करके आये हो, शाम को तो माता का दरबार लगेगा, बहुत आनंद आएगास और हां, तुम्हे पता है, सुधा इस बार मैंने एक बड़े हाई प्रोफाइल पंडित शिवनाथ को बुलाया है, यहां के बड़े बड़े लोगों के यहां जाते हैं, इनका अपॉइंटमेंट बड़ी मुश्किल से मिलता है, तीन दिन पहले ही यहां के एक धन्ना सेठ अनिल काबरा के यहां इन्होंने कोरोना से बचाव के लिए ऐसी भव्य पूजा की थी कि लोग पेपर में फोटोज देखकर हैरान होते रह गए थे, जब वे यहां आने के लिए मान गए, हम तो धन्य हो गए.”
वहीं खड़े सुधीर ने छेड़ा, ”वो इसलिए मान गए, मां, इस समय उन्हें कोई नहीं पूछ रहा होगा,
कौन समझदार इस समय अपने घर में भीड़ जुटाएगा.”
रमा ने झिड़का ,”बकवास मत करो, खबरदार, उन्हें कुछ न कहो.”
सुधीर यहीं पर नहीं रुका, फिर सुधा से कहा ,”देखा, मौसी, एक फर्जी पंडित के लिए मां अपने बेटे को भी डांट सकती है.
” सुधा ने भी प्यार से झिड़का, देखो, सुधीर, कम से कम तुम तो सुमित की तरह बात मत करो, एक तो पता नहीं, हमारे बच्चों को क्या हो गया है,व हमने उन्हें इतने अच्छे संस्कार दिए फिर भी धर्म कर्म से तो ऐसे भागते हैं कि पूछो मत, सुमित भी आने के लिए मना कर रहा था पर मुझे कौन रोक सकता है, आपके यहां सालाना माता का दरबार लगे और मैं न आऊं,
जीजी , यह तो हो ही नहीं सकता .”
शाम को जैसे घर में शादी का माहौल था, एक बड़ी सी चौकी पर देवी की महंगे फ्रेम में बड़ी सी तस्वीर, फूलों की सजावट, जिसमे रमा के पति अनिल पूरी रूचि ले रहे थे. प्रोग्राम यह था कि शिवनाथ जी आकर एक पूजा करेंगें, फिर वे चले जायेंगें, उसके बाद महिला मंडली कीर्तन करेंगीं, कोरोना से बचने के लिए भजन तैयार थे, फिर जलपान होगा, जो एक तरह से डिनर ही था, रमा के बड़े से घर के पीछे के हिस्से में हलवाई बैठे थे. खूब तैयार, सजी धजी पड़ोसने जब इकठ्ठा होने लगीं, सुधीर और नीना अपने रूम में परेशान से बातें कर रहे थे,
” यार , मुझे इतना डर लग रहा है, भीड़ से बचने के लिए कहा जा रहा है, पर हमारे पेरेंट्स को कौन रोक सकता है, मुझे बड़ा दुःख है कि मैं इस बेकार की भीड़ को रोक नहीं पाया.”
पंडित शिवनाथ करीब पचास के काफी स्टाइलिश पंडित थे, उन्होंने क्या मन्त्र बुदबुदाए, यह तो उन्हीं को पता होगा, रमा ने उनकी खातिरदारी बहुत की, महिलायें जिन्होंने इतनी ख़ुशी से कभी अपने सास ससुर के पैर नहीं छुए होंगें, उनके चरण छूने के लिए बावली हुई जा रहीं थीं, वे सबके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते रहे, जो कुछ कम उम्र की थीं, उन्हें सर से कमर तक हाथ फहराकर आशीर्वाद दिया, उनकी छोटी सी पूजा हो गयी. उन्होंने कहा, आप सबको डरने की जरुरत नहीं है, आप सबका मंगल ही होगा, ईश्वर की इतनी भक्ति करने वालों का कोई अहित नहीं होता .” सब गदगद हो गए.
रमा ने उन्हें काफी भारी भरकम गिफ्ट्स वाला पैकेट और एक लिफाफे में कितना कैश दिया, यह तो कोई देख नहीं पाया. शिवनाथ ख़ुशी ख़ुशी चले गए. फिर जमकर कीर्तन किया गया, खा पीकर सब महिलायें भी चली गयीं.
सुधा और रमेश को रमा ने कुछ दिन और रोक लिया, दो ही दिन और हुए तो सुबह पेपर पढ़ते हुए रमा और अनिल के मुंह से घबराई सी आवाज निकली, ”ओह्ह. यह तो बड़ी चिंता की बात है .”
सुधीर और नीना घर से ही काम कर रहे थे, लैपटॉप से नजर उठाकर पूछा,”क्या हुआ, माँ?”
”अनिल काबरा का कोरोना का टेस्ट पॉजिटिव आया है. वह अभी मिलान से लौटा था. कुछ दिन पहले उसके घर जो पूजा हुई थी, उसमे शामिल सब लोगों का टेस्ट हो रहा है.”
”सुधीर चौंक पड़ा,”क्या?” फिर उसने पेपर पढ़ा, सर पकड़ लिया, बोला,”ओह्ह,नो, शिवनाथ हमारे घर भी होकर गया है.”
अनिल ने कहा,” मैंने तुम लोगों को कुछ कहा तो नहीं, पर मुझे भी तबियत कुछ ढीली लग रही है.”
सबके चेहरों पर पसीना आ गया, सुधीर अलर्ट हुआ, उसने और नीना ने तुरंत लैपटॉप बंद किया. पिता को देखा, चेहरा बुखार की लालिमा वाला लगा, उसने फौरन फैमिली डॉक्टर से बात की, वे अनिल काबरा और उसके मेहमानों से बहुत नाराज थे. बोले- ये लोग हमारी और अपनी मुश्किलें बढ़ा देते हैं. शिवनाथ का भी टेस्ट पॉजिटिव आया है. तुम लोग फौरन अपना टेस्ट करवाओ, मैं इंतज़ाम कर रहा हूं.”
पूरा घर कोरोना वायरस की चपेट में था, जिसे सब मामूली सी ढीली तबियत, खांसी, जुकाम समझ रहे थे, वह शिवनाथ का आशीर्वाद था. यहां तक कि रमेश और सुधा जो अपने जॉइंट्स पेन को उम्र का तकाजा समझ रहे थे, वे भी इससे नहीं बच पाए थे. सबको तुरंत हॉस्पिटल में एडमिट कर लिया गया, पूरी कीर्तन मंडली में हड़कंप मच गया, सबके टेस्ट होने शुरू हुए तो संख्या बढ़ती चली गयी, लोग उन्हें बुरा भला कहते रहे, देखते ही देखते शहर में हालत बदतर होती जा रही थी.
सुधा ने जब रोते रोते सुमित को पूरी जानकारी दी, सुमित को घबराहट के मारे रोना और गुस्सा भी आ गया, ” मां , देख लिया, आप दोनों बहनों ने अपनी ज़िद का नतीजा. कहां हैं आपके धर्म कर्म अब? किसी ने क्यों नहीं बचाया आप लोगों को?”
सुधा ने कहा,” बेटा, हम तो आकर फंस गए. अब पता नहीं कब घर आ पायेंगें. डॉक्टर पता नहीं कब तक रोकेंगे!”
”नहीं, माँ, आपकी जब मर्जी हो, चली आना, अपनी मर्जी से ही तो गयी थी, आपको कौन रोक सकता है.”
सुमित मां को गुस्सा तो दिखा रहा था, पर मां के लिए बहुत चिंतित और बेचैन हो उठा था, कुछ भी अब उसके बस में कहां था. अब तो बस सबके ठीक होने का इंतज़ार ही किया जा सकता था.