अधीर और शीरी दोनों काफी देर से शौपिंग करने गए हुए थे. मां बारबार घड़ी देख रही थीं. उन्हें लगा कि फोन मिला कर पूछ लूं कि आखिर और कितनी देर लगेगी? मां ने अभी मोबाइल लौक खोला ही था कि बहूबेटे की आवाज उन के कानों में पड़ी. अधीर और शीरी दोनों ऊंची आवाज में बात कर रहे थे. सुनने वाले को ऐसा लग सकता था कि शीरी और अधीर एकदूसरे से लड़ रहे हैं पर वे लड़ नहीं रहे थे बल्कि यह तो एक मीठी नोकझोंक थी, जो अकसर युवा पतिपत्नी के जोड़ों में होती है. अधीर शीरी के इस फालतू शौक को कोस रहा था कि वह किचन के लिए कितने ढेर सारे मसाले ले आई है.
‘‘अब तुम ही बताओ मां, हमारे घर में इतने बड़ेबड़े चाकुओं का क्या उपयोग? हम लोग तो ठहरे शाकाहारी, हमें कौन सा मटन चौप करना है,’’ अधीर ने मां से शिकायती लहजे में कहा.
मां शीरी के इस खाने के शौक को अच्छी तरह जानती थीं, इसलिए उन्होंने शीरी की वकालत करते हुए अधीर से कहा कि वह यह न समझे कि किचन में सिर्फ हलदी, धनिया और मिर्ची से ही मसालों की पूर्ति हो जाती है बल्कि अलगअलग सब्जी के लिए अलगअलग मसाले होते हैं. और तो और, अब तो चाय और रायता भी मसाले वाला बनता है और रह गई बात चाकुओं के सैट की तो वह बड़े काम की चीज है.
शीरी यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम के लिए खाने के वीडियो भी बनाती है. उस में टेबल पर सजाने के लिए ये सारे मसाले बहुत अच्छे हैं क्योंकि जब तक शोऔफ न किया जाए तब तक वीडियोज पर व्यूज ही नहीं आएंगे. मां ने शीरी को सफाई में कुछ भी कहने का मौका दिए बिना सबकुछ स्वयं ही कह डाला था.
‘‘अब जब आप ही अपनी बहू को इतना प्रोटैक्ट कर रही हो तब मुझे क्या? मैं तो चला नहाने के लिए,’’ यह कहते हुए अधीर बाथरूम की ओर बढ़ गया. शीरी ने मुसकराते हुए मां को देखा मानो उस की आंखें धन्यवाद कह रही हों मां से.
अधीर और शीरी की शादी को 2 साल ही हुए थे. यह एक अंतरजातीय विवाह था. अधीर एक जैन परिवार से था तो शीरी कायस्थ थी और शुरुआत में इस शादी में भी अड़चनें आई थीं पर दोनों के परिवार वाले काफी सुलझे हुए और खुलेदिमाग के थे व आर्थिक रूप से संपन्न भी थे. संपन्न परिवारों पर तो वैसे भी समाज का अंकुश कम ही रहता है. सारे नियमकायदे, कानून गरीबों के लिए ही तो हैं.
दोनों के परिवार वालों ने समाज की परवा किए बिना सिर्फ अपने बच्चों की खुशी देखी और शीरी व अधीर की शादी हो गई. वैसे तो शीरी को ससुराल में सारे सुख थे, प्यार करने वाला पति और बहू का ध्यान रखने वाले सास व ससुर पर शीरी अब ससुराल में एक परेशानी महसूस कर रही थी. दरअसल शीरी को नौनवेज खाना बहुत पसंद था पर उस का ससुराल तो ठहरा एकदम शाकाहारी, लहसुनप्याज तक नहीं खाया जाता था यहां.
हालांकि शादी से पहले शीरी के जेहन में यह बात नहीं आई थी कि अधीर के घर वाले शाकाहारी होंगे. उस ने सोचा था कि आजकल नौनवेज खाना तो फैशन स्टेटमैंट बन गया है पर ससुराल आ कर उसे पता चला कि यहां पर सभी लोग शाकाहारी हैं. घर में जब भी कुछ अच्छा पकता तो बाकी सब लोग तो उसे एंजौय करते पर शीरी को नौनवेज खाने की तलब लगती. मौसम में थोड़ी सी ठंडक हो या हलकी सी बूंदाबांदी हो जाए तो शीरी नौनवेज फूड खाने के लिए मचल उठती थी.
अब ससुराल में किसी तरह के प्रेम की कमी तो थी नहीं पर जीवन में जबान के स्वाद का अपना ही महत्त्व होता है, इसलिए शीरी ने अधीर से नौनवेज खिलाने की जिद की. पहले तो अधीर ने एकदम सिरे से खारिज कर दिया पर जब शीरी ने बारबार आग्रह किया और नौनवेज नहीं खिलाने पर नाराज हो गई तब अपना मन मार कर अधीर शीरी को बाहर ले जा कर किसी रैस्टोरैंट में नौनवेज खिलाने पर राजी हो गया. शर्त यह रखी गई कि वह घर आने से पहले मुंह में इलायची या कोई माउथफ्रैशनर रख लेगी जिस से मम्मी और पापा को किसी तरह का कोई शक न हो. फिर क्या था, शीरी तुरंत ही मान गई.
एक बढि़या रैस्टोरैंट में अधीर और शीरी ने अपनेअपने लिए खाने का और्डर दिया. जहां अधीर ने सिर्फ कुछ डैजर्ट और आइसक्रीम ही और्डर की, वहीं शीरी ने जीभर कर नौनवेज फूड का और्डर दिया जिस में तंदूरी फिश, टिक्का और कोल्हापुरी मटन करी मुख्य रूप से थीं और इन सब के साथ 2 बार सलाद भी मंगवाया था शीरी ने. उसे इस तरह से खाने पर टूट पड़ते देख अधीर को बहुत अजीब लग रहा था.
शीरी नौनवेज खाने को इस तरह से खा रही थी जैसे वह कितने दिनों से भूखी है. खाने के बाद बिल चुकता करते समय अधीर ने शीरी के चेहरे पर नजर डाली तो एक गहरी तृप्ति का भाव था शीरी के चेहरे पर और जैसा कि तय हुआ था कि नौनवेज खाने के बाद कुछ न कुछ माउथफ्रैशनर खाया जाएगा, इसलिए शीरी ने माउथफ्रैशनर को मुंह में चारों तरफ घुमाना शुरू कर दिया ताकि नौनवेज खाने का कोई सुबूत न रह जाए.
अपने पति को इस अच्छे व्यवहार और उस की पसंद का ध्यान रखने के लिए उसे थैंक यू भी कहा पर भला अधीर को क्या पता था कि निकट भविष्य में उसे ऐसे कई ‘थैंक यू’ मिलने वाले हैं क्योंकि एक बार बाहर जा कर नौनवेज खा लेने से तो शीरी को एक बहुत अच्छा औप्शन मिल गया था जिस से वह रैस्टोरैंट जा कर नौनवेज खा सकती थी और उस के सासससुर को इस का पता भी नहीं चलता और घर में पकाने का झंझट भी नहीं.
अधीर को लगा कि उस ने शीरी को बाहर ले जा कर नौनवेज खिला कर गलती कर दी है क्योंकि अब यह क्रम रुकने वाला नहीं दिखता था. जब भी शीरी का मन होता वह अधीर से जिद करने लगती और अगर अधीर नौनवेज खिलाने में टालमटोल करता तो शीरी मुंह फुला लेती.
हालांकि जिस दिन शीरी नौनवेज खाती तो उस दिन अधीर उस से बिस्तर पर दूरी बना कर ही सोता था. ऐसी ही एक शाम को जब वे दोनों रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे और शीरी के सामने ढेर सारा नौनवेज फूड रखा हुआ था कि तभी रैस्टोरैंट के अंदर शीरी के ससुर अपने किसी दोस्त के साथ दाखिल हुए. अचानक से उन की नजरें अपने बेटे और बहू पर आ कर टिक गईं और अधीर और शीरी ने भी पापा को देख लिया था. पापा की अनुभवी आंखों ने यह भी देख लिया कि अधीर और शीरी की टेबल पर नौनवेज फूड रखा हुआ है. शीरी के ससुर बहुत समझदार थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को अनदेखा कर दिया और सब से कोने वाली टेबल पर जा कर इस तरह से बैठ गए जैसे उन की पीठ ही शीरी और अधीर की तरफ हो. अधीर की हलक के नीचे तो कुछ नहीं उतरा और शीरी ने भी जैसेतैसे ही कुछ खाया और जो नहीं खाया गया उस को वहीं छोड़ कर दोनों वहां से निकल लिए. शीरी को आज पहली बार अपराधबोध हो रहा था कि उस ने अपनी जीभ के जरा से जायके के लिए सासससुर की नजरों में अपनी इमेज को खराब कर लिया.
‘अब पापा सारी बात मां को बताएंगे और मां न जाने कैसा व्यवहार करेंगी मेरे साथ. हो सकता है आज के बाद मुझे किचन में जाने ही न दिया जाए,’ अपने ही मन में सोच रही थी शीरी. शीरी और अधीर के घर पहुंचने के कुछ देर बाद ही उस के ससुर भी घर लौट आए थे. उन के हाथ में मिठाई का एक डब्बा था. उन्होंने शीरी को देते हुए कहा कि कृष्णानगर वाले रैस्टोरैंट की यह बहुत फेमस मिठाई है. एक प्लेट में निकाल कर सब को दे दो और मुझे अधिक देना. पापा के चेहरे को देखती रह गई थी शीरी. उस ने पापा के चेहरे के भावों को पढ़ना चाहा पर पढ़ न सकी, कांपते हाथों से मिठाई निकाल कर सब को देने लगी और पापा उस मिठाई को ऐसे खा रहे थे जैसे पहली बार खा रहे हों.
कई दिन बीत गए लेकिन पापा ने रैस्टोरैंट और नौनवेज वाली बात का कोई भी जिक्र घर में मां से नहीं किया. वे अपने बड़ेपन का परिचय दे रहे थे. ‘अब आज के बाद मैं बाहर रैस्टोरैंट में नौनवेज खाने नहीं जाऊंगी,’ मन ही मन सोचा था शीरी ने लेकिन 20-22 दिन ही बीते थे कि शीरी का मन फिर से चिकन टिक्का खाने का करने लगा. यह बात उस ने अधीर से शेयर की तो अधीर थोड़ी देर तो चुप रहे लेकिन फिर बाद में उस ने एक औप्शन सुझाया, ‘‘तुम बाहर नहीं जा सकतीं तो क्या? घर में चिकन करी और फिश टिक्का ला ही सकते हैं.’’
‘‘अरे, घर में कैसे लाओगे? मम्मीपापा जान जाएंगे तब?’’ शीरी ने चिंता दिखाई.
‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो,’’ अधीर ने कहा.
अधीर अब चिकन करी और फिश टिक्का व अन्य नौनवेज डिश घर में ही पैक करा कर लाने लगा था. वह इस बात का ध्यान जरूर रखता कि कहीं नौनवेज खाने की सुगंध घर में न फैल जाए जिस से मम्मी को किसी तरह का कोई शक हो. हालांकि नौनवेज फूड को घर में लाना और फिर उसे चुपके से खा कर पैकिंग के पैकेट घर से बाहर फेंकना इतना सरल काम भी नहीं था. मां को कभी भी शक हो सकता था और ससुर तो शीरी की हकीकत जान ही गए थे जिस से शीरी के मन में हमेशा एक आत्मग्लानि बनी रहती थी.
‘मुझे अधीर इतना प्रेम करते हैं कि घर में मांसाहार के निषेध होने पर भी वे मेरी पसंद का खाना खिलाने बाहर ले जाते और जरूरत पड़ने पर घर में भी लाते हैं,’ अपनेआप से ही कुछ बात कर रही थी शीरी.
‘पापा ने यह जानते हुए भी कि मैं नौनवेज खाती हूं, मां को नहीं बताया. कितना ध्यान रखते हैं वे मेरा, क्यों न मैं ही धीरेधीरे अपनी इस नौनवेज खाने की आदत को कंट्रोल कर लूं और शाकाहारी बन कर अधीर के मन की पत्नी और एक आदर्श परिवार की आदर्श बहू बन जाऊं,’ शीरी के दिमाग में कई विचार चल रहे थे.
नौनवेज फूड खाने बाहर जाना हो या घर में ला कर खाना, इन दोनों कामों में आने वाली दिक्कतों के चलते शीरी ने इंटरनैट पर कुछ ऐसे फूड्स ढूंढ़े जो भले ही शाकाहार में आते हों मगर उन का स्वाद कुछकुछ नौनवेज फूड्स के जैसा हो और उसे बहुत से ऐसे शाकाहारी फूड्स मिले जो यदि अच्छे मसालों और तैयारी के साथ बनाए जाएं तो वे काफी हैल्दी और स्वादिष्ठ बनते थे और ऐसे खानों में प्रोटीन की मात्रा नौनवेज फूड के जितनी ही थी.
शीरी ने इन शाकाहारी फूड्स को जब किचन में बना कर ट्राई किया तो उन का स्वाद गजब का निकला. भले ही यह शाकाहारी खाना स्वाद में मांसाहार की बराबरी नहीं कर रहा था पर फिर नौनवेज फूड को घर में लाना या बाहर खाने जाना जैसा सिरदर्द और खतरा भी तो नहीं था और फिर शीरी अपने यूट्यूब चैनल पर शाकाहार को प्रमोट कर लोगों की तारीफें भी तो पा सकती थी.
‘जब हम बुफे सिस्टम में खाना खाते हैं तो हमें तो पता नहीं होता कि कहीं इन बरतनों का प्रयोग मांसाहारी खानों में तो नहीं किया गया है?’ अधीर अपनेआप से सवाल पूछ कर चुप हो गया जैसे खुद को ही उत्तर दे रहा हो.
‘और फिर एलोपैथिक दवाइयां, कैप्सूल वगैरह भी तो पशुओं की चरबी से ही बनते हैं,’ बुदबुदा रहा था अधीर. साथ ही साथ, उस के मन में यह बात भी बारबार आ रही थी कि अगर वह भी नौनवेज खाना शुरू कर दे तो शीरी के चिकन और मटन करी के शौक को पूरा करने में आसानी रहेगी और तब तो वह मां और पापा को भी अपने शौक के नाम पर घर में नौनवेज ले आने की परमिशन मांग सकेगा.
अधीर को आज अपने घर गीतापुर से 200 किलोमीटर दूर लखनऊ किसी काम से जाना था और काम निबटा कर अपनी ही गाड़ी से वापसी भी करनी थी. वापसी करने में उन्हें देर हो गई थी, इस बात की सूचना अधीर ने मोबाइल पर अपने मांपापा और शीरी को दे दी थी. अधीर घर आया तो सीधा अपने बैडरूम में गया और एक पैकेट निकाल कर टेबल पर रख आया और शीरी के मोबाइल पर एक मैसेज टाइप कर के सैंड कर दिया. शीरी किचन में व्यस्त थी. आज डिनर में उस ने पंजाबी छोले, अरहर की फ्राई दाल और तंदूरी रोटी बनाई थी. अधीर फ्रैश हो कर डाइनिंग टेबल पर आ गया और खाने से सजी टेबल देख कर चकित रह गया. सब ने खाना शुरू कर दिया. मांपापा को खाना बहुत पसंद आया था पर अधीर शीरी को चकित हो कर देखे जा रहे थे जो दाल, सब्जी भी बड़ी रुचि से खा रही थी. खाना निबटा तो अधीर और शीरी अपने कमरे में गए.
‘‘अरे मैं ने तुम्हें मैसेज किया था कि मां और पापा के सामने थोड़ा कम ही खाना क्योंकि मैं तुम्हारे लिए लखनऊ के अमीनाबाद से मशहूर टुंडेजी के कबाब परांठे और चिकन बिरयानी लाया हूं,’’ इतना कह कर अधीर ने कबाब के पैकेट को खोल दिया.
‘‘और आज नौनवेज खाने में मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा,’’ अधीर ने कहते हुए कबाब खाना शुरू कर दिया तो शीरी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह गया.
अधीर ने शीरी को देख कर उस की शंका का समाधान करते हुए कहा कि दोस्तों के बीच यह कहना कि मैं नौनवेज नहीं खाता, बहुत अजीब लगता था और उस का मजाक भी बनता था और इस के अलावा उस ने शीरी की पसंद में अपनी पसंद मिलाने के लिए नौनवेज खाना शुरू किया था. पहले तो उसे थोड़ा अजीब लगा पर धीरेधीरे निष्पक्ष भाव से स्वाद लिया तो नौनवेज भी काफी स्वादिष्ठ लगा.
शीरी ने मुसकराते हुए एक नजर कबाब परांठे पर डाली और कहने लगी कि अधीर और उस के परिवार से उसे इतना प्रेम मिला कि उसे लगा कि शाकाहारी परिवार में मांसाहारी खाना खा कर वह गलत कर रही है और मां व पापा को धोखा दे रही है, इसलिए उस ने शाकाहारी खाने में इंटरैस्ट लेना शुरू किया. नौनवेज को छोड़ना सरल नहीं था पर थोड़े ही प्रयास और कठोर संकल्प से उसे शाकाहारी बनने में बहुत हैल्प मिली है और आज अपने यूट्यूब चैनल पर वह शाकाहार भोजन को प्रमोट करती है. हालांकि उस की मंशा किसी नौनवेज खाने वाले को गलत या सही ठहराने की नहीं होती. अधीर ने आगे बढ़ कर शीरी को गले लगा लिया था.
मांसाहार या शाकाहार यह तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी पसंद हो सकता है पर अधीर और शीरी ने अपने साथी के प्रेम और पसंद को ध्यान में रखते हुए अपने पसंदीदा भोजन को त्याग दिया और एकदूसरे की पसंद को अपना लिया था. अधीर और शीरी ने अपने मां और पापा को जा कर इन सारी बातों के बारे में बताया तो वे दोनों अपने बेटे और बहू के प्रेम व समर्पण को देख कर बहुत खुश हुए. प्रेम में किसी की दासता के लिए जगह नहीं होती और न ही किसी तरह की ईगो का स्थान, पर जैसे संगम में 2 लहरें मिल कर एक हो जाती हैं उसी तरह एकदूसरे के रंग में रंग जाना ही सच्चे प्रेम की निशानी होती है.