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लेह से मेरी नई पोस्टिंग श्रीनगर की एकवर्कशौप में हुई थी. मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरीतो मुझे वीआईपी लाउंज में पहुंच कर यूनिट केएडजूडेंट कैप्टन नसीर एहमद को फोन करना था, हालांकि, अधिकारिक तौर पर उन को मेरे आने की सूचनाथी.

मैं ने नसीर साहब को फोन किया, ‘सर, गुडमौर्निंग. मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूंश्रीनगर ऐयरपोर्ट से. इस समय मैं वीआईपी लाउंज मेंहूं.’ ‘गुडमौर्निग, कैप्टन नीरजा. श्रीनगर में आप कास्वागत है. आप वीआईपी लाउंज में ही बैठें. मैंएस्कार्टड गाड़ी भेज रहा हूं. आधा घंटा लग जाएगा. तब तक आप वीआईपी लाउंज में रिफ्रैशमैंट कालुत्फ उठाएं.’ ‘ओके, थैंकस, सर.’ मुझे लेह से ही वीआईपी लाउंज का कूपन मिलगया था. मैं ने ब्रैड मक्खन लिया और खाने लगी.

चाय, मैं तेज गरम पीती हूं, इसलिए उसे बाद में लेने के लिएकहा. चाय के बाद मैं गाड़ी का इंतजार करने लगी. कुछदेर बाद फोन की घंटी बजी.‘हैलो.’‘जय हिंद, मैंडम. मैं हवलदार चतर सिंह बोल रहा हूं. आप को लेने आया हूं. आप मैडम सामान लेने वाली जगह पर पहुंचें. हम आप को वहीं मिलेंगे.’‘ओके, मैं आ रही हूं.’थोड़ी देर में मैं गंतव्य स्थान पर पहुंचगई. मैं यूनिफौर्म में थी, इसलिए मुझे पहचानने में मुश्किल नहीं हुई. सभी ने मुझे सैल्यूट किया.

सामान लिया और मेरे लिए आई गार्ड के साथ मैं चल पड़ी. हम 3गाड़ियों में चल रहे थे. एक गाड़ी हथियार लिए जवानों के साथ आगे चल रही थी. बीच की गाड़ी मेंमैं थी और एक गाड़ी हथियार लिए जवानों के साथ हमारे पीछे चल रही थी.जम्मू कश्मीर में जबरदस्त आतंकवाद के चलते किसी अफसर को लाने, ले जाने के लिए यही व्यवस्था थी. आधे घंटे में हम यूनिट में पहुंच गए. गाड़ी सीधे मेरे लिए तय कमरे के सामने खड़ी की गई. सामान उतारा और कमरे में रख दिया गया.

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