जब भी कोई नई गाड़ी मंदिर के आगे रुकती, मांगने वालों की टोली उस को घेर लेती. दुआओं का सिलसिला चालू हो जाता- 'साहब...आप की गाड़ी सलामत रहे...ईश्वर खूब तरक्की दे.' कुछ नई गाड़ी का नशा... कुछ दुआओं का असर... लोग दरियादिली से इन भिखारियों को खुल कर रुपए दे रहे थे. अभी राहुल और रमा ठीक से उतरे भी नहीं थे कि भिखारियों ने उन को भी घेर लिया और शुरू हो गया उन का राग...आप की गाड़ी सलामत...ईश्वर...
"यह क्या 10 रुपए..." रमा ने जब 10 रुपए दिए तो भिखारिन ने हिकारत से कहा.
"तो कितना दे?" व्यंग्य से राहुल बोला.
"सौ रुपए." गाड़ियों की बढ़ती कीमतों के साथसाथ भिखारियों के भाव भी बढ़ गए थे.
"सौ रुपये? पकड़ना है तो पकड़..." जैसे ही रमा ने यह कहा, दूसरी भिखारिन ने आ कर लपक लिया. उस के बाद तो दोनों भिखारिनों में तकरार शुरू हुई, तो दोनों ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी और देवी मां को चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर परिसर में बनी दुकान की ओर बढ़ गए.
प्रसाद खरीद कर मांबेटे ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया. मंदिर घंटेघड़ियालों के साथ देवी मां के जयकारों से गुंजायमान था. पूरा माहौल भक्तिमय था. पूजा की थाली ले कर दोनों श्रद्धालुओं के लिए बनी लंबी कतार में खड़े हो गए. मई महीने की गरमी में लाइन में खड़ेखड़े दोनों का बुरा हाल हो गया.
"मम्मी, देखो न, कितनी गरमी है," पसीना पोंछते हुए राहुल ने कहा.
"तभी तो मैं सुबह जल्दी उठने के लिए कह रही थी," गरमी से बेहाल रमा बोली.
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