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ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह मेरे साथ मैडिकल कालेज के लड़कों को देख कर चिढ़ा हो, उन्हें बरदाश्त न कर पाया हो और न ही कभी ऐसा हुआ कि उस के साथ लड़कियों को देख कर कभी किसी शंका ने मेरे मन में जन्म लिया हो. हम अपने प्रेम के लिए पजैसिव भी थे और प्रोटैक्टिव भी. समय का अभाव जरूर हमें सालता था, पर हम अपने दायित्वों को समझते थे. हम हरसंभव प्रयास करते थे कि सप्ताहांत में मिलें और रोमांस को बरकरार रखें. उस सैक्स को जीवंत रखें, जो रोमांस के लिए जरूरी है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे.

एक डेट पर जब हम दोनों ने यह एहसास कर लिया कि हम एकदूसरे के लिए ही हैं तो हम ने विवाह बंधन में बंधने का निर्णय कर लिया. उस दिन पुलक कर मैं ने न जाने कितने चुंबन उस के गाल पर जड़ दिए थे और उस ने मुझे अपनी बांहों से बिलकुल भी छिटकने नहीं दिया था. मोबाइल की घंटी बजते ही शायनी की सोच बिखर गई. फोन पर शतांश था. शायनी ने उसे लगभग डांट सा दिया. हलके से क्रोध भरे स्वर में वह बोली, ‘‘शतांश, आजकल क्या हो गया है तुम्हें? मैं आधे घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘सौरी डार्लिंग, मैं आज नहीं आ पाऊंगा,’’ शतांश बोला. ‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘मैं बिजी हूं. एक पल की भी फुरसत नहीं है मुझे.’’ ‘‘मुझे पहले नहीं बता सकते थे,’’ शायनी ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘सौरी लव, मुझे ध्यान ही नहीं रहा.’’ गुस्से में शायनी ने फोन काट दिया. सोच का रथ फिर दौड़ने लगा. तेज और तेज. जीवन में कुछ परिवर्तन अचानक होते हैं. ऐसा ही परिवर्तन पिछले कुछ दिनों से मैं शतांश के व्यवहार में देख रही हूं. यद्यपि मेरा मन कई आशंकाओं और भय से इन दिनों लगातार घिरता रहा है पर मैं ने इन आशंकाओं को अब तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.

मैं ने हरसंभव प्रयास किया है कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. रोमांस बरकरार रहे. मेरा प्रेम मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण है. मैं रोमानी रिश्तों में बोल्डनैस की पक्षधर हमेशा रही हूं. रिश्तों में दावंपेंच मुझे कतई पसंद नहीं रहे. शतांश का मुझ से कतराना मुझे आहत करने लगा है. यदि अब वह किन्हीं कारणों से मुझ से सामंजस्य नहीं बना पा रहा है, तो मैं चाहती हूं कि वह मेरे समक्ष आए और मेरे सामने अपना दोटूक पक्ष रखे. यदि हमारे संबंधों में एकदूसरे का सम्मान लगभग समाप्त होने लगा है, तो कम से कम हम बिछुड़ें तो मन में खटास ले कर दूर न हों.

एक लंबे अंतराल के बाद शतांश ने शायनी को फोन किया. शायनी उस समय कालेज में थी. शतांश ने उसे बताया कि वह आज रेस्तरां में उस से मिलना चाहता है. शायनी उस समय अपने कई मित्रों से घिरी हुई थी. वह शतांश को अधिक समय नहीं दे पाई. उस से शाम को मिलने का वादा कर के वह अपनी क्लास में चली गई. शाम को जब शायनी रेस्तरां पहुंची तो वहां शतांश पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. शायनी को देखते ही उस ने वेटर को 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया और शायनी के बैठते ही उस से पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘पहले जैसी नहीं,’’ शायनी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया. ‘‘मैं तुम्हारी नाराजगी समझ सकता हूं,’’ वह बड़ी गंभीरता से बोला, ‘‘सौरी लव, व्यस्तता इतनी अधिक थी कि तुम से मिलने का समय नहीं निकाल पाया,’’ शतांश ने कहा.

शायनी चुप रही. वह शतांश के चेहरे को पढ़ने का प्रयास करने लगी. उस की चुप्पी ने शतांश को असहज कर दिया. कुछ समय पश्चात चुप्पी शतांश ने ही तोड़ी, ‘‘डियर, जो सच मैं इन दिनों तुम से छिपाता रहा हूं, वह यह है कि मैं पापा के मित्र की लड़की खनक से विवाह करने जा रहा हूं. मैं समझता हूं कि तुम मेरा यह फैसला सुन कर आहत जरूर होगी, लेकिन सच यह भी है कि हम में से यह कोई नहीं जानता कि अगला पल हमारे लिए क्या लिए हुए खड़ा है. ‘‘यह पापा का फैसला है. वे हृदयरोगी हैं. उन के अंतिम समय में मैं उन्हें कोई आघात नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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