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एअर इंडिया के जहाज में बैठी मृदुला अतीत में खोई हुई थी. परिचारिका की आवाज सुन कर कि ‘मैडम, सीट बैल्ट लगा लीजिए, जहाज दिल्ली के हवाई अड्डे पर लैंड करने वाला है,’ वह एकाएक संभली.

जहाज से उतरते ही वह टैक्सी ले कर होस्टल में अपने वार्डन वाले फ्लैट में पहुंच गई. उस की नौकरानी ने पहले ही उसे टैक्सी से उतरते देख लिया था, सो पूछ बैठी, ‘‘बीबीजी, आप इतनी जल्दी कैसे आ गईं? आप तो एक महीने बाद आने वाली थीं?’’

मृदुला  झल्ला उठी थी और बिना उस की ओर देखे कह उठी, ‘‘अभी तू जा, मैं बहुत थक गई हूं, आराम करना चाहती हूं.’’

उस के जाते ही मृदुला लेट गई और अतीत में खो गई.

लगभग 28 वर्ष पहले उस के पिता ने बड़े अरमानों से उस का विवाह एक संपन्न परिवार के एकलौते बेटे अविनाश से कर के राहत की सांस ली थी.

रिश्तेदारों ने भी पूछा था, ‘मास्टर साहब, यह सब आप ने कैसे संभव किया?’

‘यह सब ऊपर वाले की कृपा से ही संभव हुआ है,’ उन्होंने ऊपर हाथ उठा कर कहा था.

अविनाश के घर वालों ने भी तो मृदुला को सिरआंखों पर लिया था. तभी उसे एक दिन अचानक पता चला कि सिर्फ 2 महीने बाद अविनाश पीएचडी करने अमेरिका जाने वाला है. यह सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हो रहा था कि मृदुला न खुश हो पा रही थी न दुखी. हां, उसे इतना अवश्य लग रहा था कि उन्होंने यह बात उसे शादी से पहले न बता कर ठीक नहीं किया और यही सोच कर वह रातों को जागती व दिन व्यस्तता में बीतते.

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