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प्रथमा खिल उठी. फिलहाल तो उस ने कुछ नहीं मांगा मगर आगे की रणनीति मन ही मन तय कर ली. 2 दिनों बाद उस ने राकेश से कहा, ‘‘आज यह बच्ची आप से आप का दिया हुआ वादा पूरा करने की गुजारिश करती है. क्या आप मुझे कार चलाना सिखाएंगे?’’

‘‘क्यों नहीं, अवश्य सिखाएंगे बालिके,’’ राकेश ने कहा. जब वे बहुत खुश होते हैं तो इसी तरह नाटकीय अंदाज में बात करते हैं.

अब हर शाम औफिस से आ कर चायनाश्ता करने के बाद राकेश प्रथमा को कार चलाना सिखाने लगा. जब राकेश उसे क्लच, गियर, रेस और ब्रेक के बारे में जानकारी देता तो प्रथमा बड़े मनोयोग से सुनती. कभीकभी घुमावदार रास्तों पर कार को टर्न लेते समय स्टीयरिंग पर दोनों के हाथ आपस में टकरा जाते. राकेश ने इसे सामान्य प्रक्रिया समझते हुए कभी इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर प्रथमा के गाल लाल हो उठते थे.

लगभग महीनेभर की प्रैक्टिस के बाद प्रथमा ठीकठाक कार चलाने लगी थी. एक दिन उस ने भी राकेश के ही अंदाज में कहा, ‘‘जहांपनाह, कनीज आप को गुरुदक्षिणा देने की चाह रखती है.’’

‘‘हमारी दक्षिणा बहुत महंगी है बालिके,’’ राकेश ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘हमें सब मंजूर है, गुरुजी,’’ प्रथमा ने अदब से झुक कर कहा तो राकेश को हंसी आ गई और यह तय हुआ कि आने वाले रविवार को सब लोग चाट खाने बाहर जाएंगे.

चूंकि ट्रीट प्रथमा के कार चलाना सीखने के उपलक्ष्य में थी, इसलिए आज कार वही चला रही थी. रितेश अपनी मां के साथ पीछे वाली सीट पर और राकेश उस की बगल में बैठा था. आज प्रथमा को गुडफील हो रहा था. चाट खाते समय जब रितेश अपनी मां को मनुहार करकर के गोलगप्पे खिला रहा था तो प्रथमा को बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि वह तो राकेश के साथ ही ठेले पर आलूटिकिया के मजे ले रही थी. दोनों  एक ही प्लेट में खा रहे थे. अचानक मुंह में तेज मिर्च आ जाने से प्रथमा सीसी करने लगी तो राकेश तुरंत भाग कर उस के लिए बर्फ का गोला ले आया. थोड़ा सा चूसने के बाद जब उस ने गोला राकेश की तरफ बढ़ाया तो राकेश ने बिना हिचक उस के हाथ से ले कर गोला चूसना शुरू कर दिया. न जाने क्या सोच कर प्रथमा के गाल दहक उठे. आज उसे लग रहा था मानो उस ने अपने मिशन में कामयाबी की पहली सीढ़ी पार कर ली.

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