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उस के पैर द्रुतगति से तिगदा-तिग-तिग, तिगदा-तिग-तिग तिगदा-तिग-तिग-थेई की ताल पर थिरक रहे थे. परंतु सहसा उस के पैरों की थिरकन द्रुतगति से विलंबित ताल पर होती हुई समय आने से पहले ही रुक गई. पैरों से घुंघरू उतार कर वह चुपचाप जाने लगी तो उस के डांस टीचर ने कहा, ‘आज एक नया तोड़ा सिखाना था, यामिनी तो कभी ठीक से सीखती नहीं, अब तुम भी जा रही हो.’

‘5 साल से नृत्य सीख रही हूं मास्टरजी, अब मैं सितार सीखूंगी,’ अनुभा ने सहज भाव से कहा.

‘हांहां क्यों नहीं,’ मास्टरजी ने भी हामी भर दी थी.

कौन जान पाया कि अनुभा के पैरों की थिरकन क्यों रुक गई. उस में कोई बाहरी परिवर्तन होता तो कोई देखता. अनुभा अपनी पढ़ाई और सितार के तारों में खो गई. दीदी यामिनी की शादी में आलोक दूल्हा बन के आया. दीदी चली गई, उस सपने के हिंडोले में बैठ कर जो उस ने अपने लिए बुना था.

‘याद है माल रोड वाली सड़क की वह टक्कर.’

जीजा बना आलोक उस से ठिठोली करता. जीजा को साली से मजाक करने का पूरा अधिकार था.

जिस घोड़ी पर बैठ कर आलोक आया था उस के गले में पड़ा खूबसूरत हार सब के आकर्षण का केंद्रबिंदु था. उस हार में जड़ा था खूबसूरत पत्थर, जिसे सब देखते नहीं थकते थे.

‘यह कौन है?’ जिज्ञासा से भरे सवाल निकले.

‘आलोक की क्या लगती है?’

‘हाय कितनी सुंदर है, पूरी मौडल जैसी.’

पता चला कि आलोक के पिता के मित्र की लड़की थी और आलोक की बचपन की ‘स्वीटहार्ट’. तब आलोक ने उस से शादी क्यों नहीं की? वह अभी छोटी थी और बहुत महत्त्वाकांक्षी. उस ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए थे उस में विवाह का स्थान था ही नहीं. विवाह को वह बंधन मानती थी. वे दोनों स्वतंत्र थे और स्वच्छंद भी.

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