कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

काकाजी गांव वापस आ गए और नए सिरे से अपनी दिनचर्या को बनाने में जुट गए। कहानी सुनातेसुनाते कई बार काकाजी फूटफूट कर रोए थे। मैं ने उन को बच्चों जैसा रोते देखा था। शायद वे बहुत दिनों से अपने दर्द को अपने सीने में समेटे थे। मैं ने उन को जी भर कर रोने दिया था। इस के बाद हमारे बीच इस विषय को ले कर फिर कभी कोई बात नहीं हुई।

मैं उन के पास नियमित गणित पढ़ने जाता और वे पूरी मेहनत के साथ मुझे पढ़ाते भी। उन की पढ़ाई के कारण मेरी गणित बहुत अच्छी हो गई थी। उन्होंने मुझे अंगरेजी विषय की पढ़ाई भी कराई।

काकाजी की मदद से मेरा इंजीनियर बनने का स्वप्न पूरा हो गया था। पर मैं ज्यादा दिन इंजीनियर न रह कर आईएएस में सिलैक्ट हो गया और कलैक्टर बन कर यहां पदस्थ हो गया था। लगभग 10 सालों का समय यों ही व्यतीत हो गया था। इन सालों में मैं काकाजी से फिर नहीं मिल पाया था। मैं 1-2 बार जब भी गांव गया काकाजी से मिलने का प्रयास किया पर काकाजी गांव में नहीं मिले।

कलैक्टर का पदभार ग्रहण करने के पहले भी मैं गांव गया था तब ही पता चला था कि काकाजी तो कहीं गए हैं जब से यहां लौटे ही नहीं। उन के घर पर ताला पड़ा है। गांव के लोग नहीं जानते थे कि आखिर काकाजी चले कहां गए। आज जब अचानक उन की स्लिप चपरासी ले कर आया तो गुम हो चुका पूरा परिदृश्य सामने आ खड़ा हुआ। औफिस के बाहर मिलने आने वालों के लिए लगी बैंच पर वे बैठे थे, सिर झुकाए और कुछ सोचते हुए से।

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...