मैं चुप हो जाता। पहले मैं सोचता था कि यह मेरा विषय नहीं हैं इसलिए न तो मैं उन की लिखी कहानी पढ़ता और न ही उनमें रुचि लेता। पर कहते हैं न कि संगत का असर आखिर पड़ ही जाता है इसलिए मुझे भी पड़ गया। एक दिन जब काका सब्जी लेने बाजार गए थे मैं बोर हो रहा था। मैं ने यों ही उन की अधूरी कहानी उठा ली और पढ़ता चला गया था।
कहानी मुझे कुछकुछ उन के जीवन परिचय का बोध कराती सी महसूस हुई थी। वह एक प्रणय गाथा थी। किन्ही कारणों से नायिका की शादी कहीं और हो जाती है। नायक शादी नहीं करता। चूंकि कहानी अधूरी थी इसलिए आगे का विवरण जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी। मैं ने यह जाहिर नहीं होने दिया था कि मैं ने कहानी को पढ़ा है। काकाजी की यह कहानी 2-3 दिनों में पूरी हो गई थी। अवसर निकाल कर मैं ने शेष भाग पढ़ा था।
नायिका का एक संतान है। वह विधवा हो जाती है। उस का बेटा उच्च शिक्षा ले कर अमेरिका चला जाता है यहां नायिका अकेली रह जाती है। उस के परिवार के लोग उस पर अत्याचार करते हैं और उसे घर से निकाल देते हैं। वह एक वृद्धाश्रम में रहने लगती है। कहानी अभी भी अधूरी सी ही लगी। पर काकाजी ने कहानी में जिस तरह की वेदना का समावेश किया था उस से पढ़ने वाली की आंखें नम हुए बगैर नहीं रह पाती थीं। आंखें तो मेरी भी नम हो गई थीं। यह शब्दों का ही चमत्कार नहीं हो सकता था शायद आपबीती थी। तब ही तो इतना बेहतर लेखन हो पाया था। मैं ने काकाजी को बता दिया था कि मैं ने उन की कहानी को पढ़ा है और कुछ प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहे हैं। काकाजी नाखुश नहीं हुए थे।
‘‘देखो, कहानी समसामयिक है इसलिए तुम्हारे प्रश्नों का जवाब देना जरूरी नहीं है पर तुम्हारी जिज्ञासा को दबाना भी उचित नहीं है। इसलिए पूछ सकते हो,” काकाजी के चेहरे पर हलकी सी वेदना दिखाई दे रही थी।
‘‘कहानी पढ़ कर मुझे लगा कि शायद आप इन घटनाक्रम के गवाह हैं।’’ वे मौन रहे।
‘‘इस कहानी के नायक में आप की छवि नजर आ रही है, ऐसा सोचना मेरी गलती है,’’ मैं ने काकाजी के चेहरे की ओर नजर गङा ली थी। उन के चेहरे पर अतीत में खो जाने के भाव नजर आने लगे थे मानो वे अपने जीवन के अतीत के पन्ने उलट रहे हों।
काकाजी ने गहरी सांस ली थी,”वैसे तो मैं तुम को बोल सकता हूं कि यह सही नहीं है, पर मैं ऐसा नहीं बोलूंगा। तुम ने कहानी को वाकई ध्यान से पढ़ा है इस कारण ही यह प्रश्न तुम्हारे ध्यान में आया। हां, यह सच है. कहानी का बहुत सारा भाग मेरा अपना ही है।’’
‘‘नायक और नायिका भी?”
‘‘हां…”हम दोनों मौन हो गए थे।
काकाजी ने उस दिन फिर और कोई बात नहीं की। दूसरे दिन मैं ने ही बात छेड़ी थी, ‘‘वह कहानी प्रकाशन के लिए भेज दी क्या?’’
‘‘नहीं, वह उस के लिए नहीं लिखी,’’ उन्होने संक्षिप्त सा जबाब दिया था।
‘‘काकाजी, आप ने उन के कारण ही शादी नहीं की क्या?’’ वे मौन बने रहे।
‘‘पर इस से नुकसान तो आप का ही हुआ न,’’ मैं आज उन का अतीत जान लेना चाहता था।
‘‘प्यार में नुकसान और फायदा नहीं देखा जाता बेटा।’’
‘‘जिस जीवन को आप बेहतर ढंग से जी सकते थे, वह तो अधूरा ही रह गया न. और इधर नायिका का जीवन बहुत अच्छा भले ही न रहा हो पर आप के जीवन से अच्छा रहा,” वे मौन बने रहे।
‘‘मेरे जीवन का निर्णय मैं ने लिया है. उसे तराजू में तौल कर नहीं देखा जा सकता,’’ काकाजी की आंखों में आंसू की बूंदें नजर आने लगी थीं।
हम ने फिर और कोई बात नहीं की। पर अब चूंकि बतों का सिलसिला शुरू हो गया था, इस कारण काकाजी ने टुकड़ोटुकड़ों में मुझे सारी दास्तां सुना दी थी।
कालेज के दिनों उन के प्यार का सिलसिला प्रारंभ हुआ था। रेणू नाम था उन का। सांवली रंगत पर मनमोहक छवि, बड़ीबड़ी आंखें और काले व लंबे घने बाल। पढ़ने में भी बहुत होशियार। उन्होंने ही उन से पहले बात की थी। उन्हें कुछ नोट्स की जरूरत थी और वे सिर्फ रेणू के पास थे। काकाजी अभावों में पढ़ाई कर रहे थे। किताबें खरीदने की गुंजायश नहीं थी। उन्हें नोट्स चाहिए थे ताकि वे उसे ही पढ़ कर परीक्षा की तैयारी कर सकें। साथियों का मानना था कि रेणू बेहद घमंडी लड़की है और वह उन्हें नोट्स नहीं देगी। निराश तो वे भी थे पर उन के पास इस के अलावा और कोई विकल्प था भी नहीं। उन्होने डरतेडरते रेणू से नोट्स देने का अनुरोध किया था। रेणू ने बगैर किसी आनाकानी के उन्हें नोट्स दे भी दिए थे। उन्हें और उन के साथियों को वाकई आश्चर्य हुआ था। रेणू शायद उन की आवश्यकताओं से परिचित थी इस कारण वह उन्हें पुस्तकों से ले कर कौपीपेन तक की मदद करने लगी थी। संपर्क बढ़ा और प्यार की कसमों पर आ गया।
काकाजी तो अकेले जीव थे। उन के न तो कोई आगे था और न पीछे। उन्होंने जब अपनी आंखें खोली थीं तो केवल मां को ही पाया था। मां भी ज्यादा दिन उन का साथ नहीं निभा सकी और एक दिन उन की मृत्यु हो गई। काकाजी अकेले रह गए। काकाजी का अनाथ होना उन के प्यार के लिए भारी पड़ गया। रेणू के पिताजी ने रेणू के भारी विरोध के बाबजूद उस की शादी कहीं और करा दी। रेणू के दूर चले जाने के बाद काकाजी के जीवन का महकता फलसफा खत्म हो गया था ।