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जीप सफारी में सभी ने बहुत आनंद उठाया. हालांकि शेर के दर्शन नहीं हुए पर कल सुबह हाथी की सवारी पर शेर देखने की आशा लिए चारों रिजोर्ट लौट आए. पूरे दिन के थके हुए खाना खा कर चारों अपनेअपने बिस्तर पर ढेर हो गए. कल सुबह जल्दी उठना था सो जल्दी सोने का निर्णय पहले ही तय था.

सोते हुए अचानक माहिर को ऐसा प्रतीत हुआ कि बिस्तर पर कुछ हलचल हो रही है. उस ने उठ कर देखा तो ईशान बड़ी व्याकुलता से अपनी छाती सहला रहा था. ‘‘क्या हुआ?’’ माहिरा ने पूछा ईशान हौले से बोला, ‘‘अजीब घबराहट सी हो रही है. करीब 1 घंटे से जागा हुआ हूं. टौयलेट भी हो आया पर ऐसा लग रहा है जैसे छाती में गैस हिट कर रही है. कोई चूरण लाई हो क्या?’’

ईशान की छटपटाहट देख माहिरा बेचैन हो उठी. इतनी रात गए, यहां घर से बाहर...समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. ‘‘बाहर का खाना खाया है, क्या पता उसी से अपच हो रही हो. थोड़ा टहल कर देखो.’’ माहिरा के सु झाव पर ईशान उठ कर कमरे में ही धीरेधीरे टहलने लगा, ‘‘काफी देर से टहल रहा हूं पर आराम नहीं आया तब जा कर वापस बिस्तर पर बैठ गया था.’’

ईशान के बिगड़ते मुंह से माहिरा सम झ रही थी कि उसे तकलीफ हो रही है. उस ने तत्काल रिजोर्ट की रिसैप्शन पर फोन किया. यहां कोई डाक्टर औन कौल की सुविधा तो नहीं थी पर हल्द्वानी में कई अच्छे अस्पताल हैं, यह बताया गया. बच्चे सो रहे थे. ईशान की तबीयत में कोई सुधार न आता देख माहिरा ने अस्पताल जाने का निर्णय ले एक टैक्सी बुलवा ली. बच्चों को यहीं रूम में सोता छोड़ कर दोनों टैक्सी से हल्द्वानी के लिए रवाना हो गए. हल्द्वानी के ब्रिजपाल हौस्पिटल तक पहुंचने में उन्हें पूरा 1 घंटा लग गया.

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