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दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

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