लेखक-सूर्यकुमार पांडेय

स्कीम चाहे कोई भी हो, नाम भव्य होना चाहिए. हकदार को मिले न मिले पर चर्चा जोरदार होनी चाहिए. भई, इतनी मुश्किल से तो सरकारी स्कीम गांवदेहात तक पहुंची है, अब इस में भी यह चाहोगे कि असली हकदार को मिल जाए? यह गलत बात है. कोविड महामारी के समय उस ग्राम पंचायत को 2 लाख रुपयों की धनराशि स्वीकृत हुई थी. यह कुल रकम निम्न आय वर्ग के किसानों और मजदूरों में वितरित करने के लिए आवंटित की गई थी, जो संक्रमण के चलते अपने निकट के संबंधियों को खो चुके थे.

यह राशि जिस मद से जारी हुई थी, उस को ‘महामंत्री ग्राम मृतक सहायता उत्सव’ नाम दिया गया था. उत्सव इसलिए कि इसे एक भव्य समारोह में उल्लासपूर्वक बांटने के निर्देश थे. हमारे यहां अब कोई भी योजना बिना भारीभरकम नामकरण के टटपूंजिया लगती है. उसे किसी दिवंगत महापुरुष या जीवित महानमंत्री के नाम से जोड़ दिया जाए तो उस में एक मनमोहक ग्लैमर आ जाया करता है. चूंकि अब यह योजना शब्द यों भी बासी पड़ चुका है, इसलिए इस सहायता स्कीम को सहायता उत्सव नाम दिया गया था, ‘महामंत्री ग्राम मृतक सहायता उत्सव.’ किसी ने आपत्ति की, इस नामकरण में मृतक सहायता शब्द का प्रयोग अटपटा है. इस के स्थान पर ‘मृतक आश्रित सहायता’ होना चाहिए.

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एक जानकार ने उस को समझाते हुए कहा, ‘इस तरह तो नएनए शब्दों के जोड़े जाने से इस स्कीम का नाम अनावश्यक तौर पर लंबा होता चला जाएगा. कल कोई इस में कोरोना शब्द को भी मिलाने की मांग कर सकता है. ऐसा करना अव्यावहारिक है.’ यों भी ‘उत्सव’ शब्द में जैसी सकारात्मकता है वह 3 लोक में दुर्लभ है. संभव है, कल दाहसंस्कार को शवदाहोत्सव और मृत्युभोज को श्राद्धोत्सव कहा जाने लगे. समारोहपूर्वक मृतक सहायता के रुपयों के बंटवारे के उपरांत समिति की बैठक में पंचायत सचिव ने जो व्यय का ब्योरा दिया, वह इस प्रकार था. कुल 2 लाख रुपए की धनराशि स्वीकृत हुई थी. इस राशि को प्राप्त करने में व्यय धनराशि 20 हजार रुपए रही. इस सहायता राशि की प्राप्ति के प्रयास में सरपंचजी की बोलेरो के पैट्रोल, ड्राइवर आदि का व्यय 20 हजार रुपए आया (तेल की बढ़ती हुई कीमतों को देखते हुए इतने कम खर्च के लिए सरपंच को विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया गया.).

उत्सव के लिए टैंट, शामियाना, दरी, मेज, कुरसी, बैनर, फूल, माला तथा विज्ञापन, प्रचार आदि पर व्यय 30 हजार रुपए और श्मशान कब्रिस्तान के रखरखाव पर खर्च 50 हजार रुपए. (ग्रामसभा के एक सदस्य द्वारा इस पर आपत्ति उठाई गई. उस को यह समझा कर चुप करा दिया गया कि यह व्यय भी मृतक सहायता का ही एक भाग है.) चूंकि इन सभी के परिवार के लोग या सगेसंबंधी कोरोना में मरे हैं, इस नाते पांचों पंचों को प्रदत्त राशि 15 हजार रुपए प्रतिपंच के हिसाब से 75 हजार रुपए. (इस बात पर भी एतराज हुआ. आपत्ति करने वाले ग्रामीण की शंका का समाधान यह कह कर कर दिया गया कि ये लोग पूरे गांव को ही अपना परिवार समझते हैं, इसलिए वे इस विशेष सहायता के प्रथम हकदार हैं.) शेष राशि 5,000 रुपए को पात्र परिवारों को वितरित किया गया. गांव में कुल 4 लोग कोरोना से मरे.

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इस प्रकार 1,000 रुपए प्रति मृतक आश्रित परिवार को मिला. शेष राशि मात्र 1,000 रुपए. करतल ध्वनि से अनुमोदन के पश्चात सरपंच ने अपने उद्बोधन में सरकार से ले कर जनजन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘यह प्रसन्नता की बात है कि इतनी बड़ी महामारी में भी हमारे गांव में कुल 4 ही मौतें हुईं. हम ने भी त्वरित कार्रवाई करते हुए पीडि़त परिवारों को ‘महामंत्री ग्राम मृतक सहायता उत्सव’ के मद से सहायता कर दी है. लेकिन दुख का विषय यह है कि अभी भी इस स्कीम में हजार रुपए बचे हुए हैं. हम इस से किसी एक पीडि़त परिवार की सहायता करना चाहेंगे. प्रकृति की कृपा से हमारा यह संकल्प भी अवश्य पूरा होगा. हम आप सब के सहयोग के आकांक्षी हैं.’’ जनप्रतिनिधि ने अपना संदेश दे दिया है. अब सारी जिम्मेदारी गांव वालों पर आ चुकी है.

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