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‘‘यों ही समझ लो.’उस ने लड्डू खा तो लिया मगर चेहरा उदास हो गया.मांसिर पर हाथ फिरा कर कमरे से यह कह कर चली गईं, ‘‘शकील बेटा, रात का खाना खा कर जाना. बहुत दिनों के बाद आए हो.’‘‘बोलो न, आज बड़े खुश हो, कोई खास बात हो गई?’’ नसीबन ने उत्सुकता के चलते पूछा.

‘‘पहले एक लड्डू मेरे हाथ से खाने का वादा करो तो बताऊंगा.’’नसीबन समझ तो गई मगर अनजान बन कर बोली, ‘‘बहुत खुश हो तो तुम्हारी खुशी में शरीक होना भी जरूरी है, आखिर जिंदगी के बेहतरीन क्षण तुम्हारे साथ ही तो गुजारे थे.’’

शकील एक हाथ से नसीबन के बालों में उंगलियां फिरा रहा था दूसरे से लड्डू खिला रहा था. नसीबन के आंसू जारी थे फिर भी उस के हाथ का लड्डू शौक से खा रही थी.

नसीबन को पलंग पर लिटा कर अपना सीना उस के सीने पर रख कर शकील बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बतलाओ कि तुम्हारे साथ मेरी शादी हो गई होती और कोई डाकू तुम्हारी इज्जत जबरदस्ती लूट लेता तो क्या तुम मेरे योग्य न रहतीं?’’

वह उत्तर न दे सकी.‘‘जान, खामोशी को रजामंदी समझूं और कल बरात ले कर आऊं.’’नसीबन ने शकील के गले में बांहें डाल कर उसे सख्ती से भींच लिया. लिपट कर दिल से दिल मिला और सारे शिकवे- शिकायतें गायब.‘‘मां, शकील का खाना.’’यह आवाज नसीबन के मुंह से रात के 3 बजे निकली. वह अब भी उस के ऊपर लेटी, उसे प्यार भरी नजरों से देखे जा रही थी.

‘‘बेटी, 4 बार गरम कर चुकी हूं.’’दोनों ने एकदूसरे को निवाले खिलाए. सुबह मसजिद के इमाम साहब ने निकाह पढ़ा दिया.गांव के लोगों ने करीमन के दरवाजे पर जम कर बकरे के मांस की दावत की....रात हसीन थी.‘‘अब हटो, मेरी हड्डीपसली तोड़ दी. कौन सी दुश्मनी निकाल रहे हो. सुबह हो गई, अब तो पीछा छोड़ो.’’सुन कर शकील ने हटना चाहा तो नसीबन ने फिर उसे सीने से लिपटा लिया.

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