आप की बातों में
कुछ न कुछ तो खास है
बड़ी ही मधुर हैं
लगें दिल के बहुत पास हैं
आप की जो आंखें हैं
न जाने क्या बोलती हैं
आप के दिल के भावों के
भेद कई खोलती हैं
आप के होंठ जैसे बातों के
रस भरे पिटारे हों
सुनना चाहूं मैं बातें
सवाल कितने सारे हों
कुछकुछ मीठा सा लगे
आप के सवालों में
जी चाहे चंपा बन गुंथ जाऊं
आप के बालों में
आप के लहराते आंचल में
खुशबुएं हजार हैं
खयालों में लिपटी जैसे
बसंत की बयार है
दिन चला जाता है
पर रात नहीं कटती है
आप की याद मन का
द्वार खटखटाती है
इस कदर रचबस गई हैं
आप यों जीवन में
देखूं जो दर्पण कभी तो
आप नजर आती हैं
झिझकता हूं पर
मेरे दिल में इक खयाल है
गर मैं संग चलूं तो
आप को कोई एतराज है?
– जयश्री वर्मा
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