कहने को तो हम

जिंदा हैं मगर

बस चल रही हैं सांसें

यूं ही बेतरतीब सी

बेजान शरीर का बोझ उठाए

चलते जा रहे हैं हम

पर क्या सचमुच

वाकई हम जिंदा हैं?

जब निष्प्राण हैं सब भावनाएं

दम तोड़ रही है इंसानियत

बेजान हो गए हैं रिश्ते

क्या जिंदगी सिर्फ यही है?

सिर्फ जिंदा मत रहो दोस्त

आगे बढ़ कर जी लो तुम

बांट लो किसी का दर्द

अपना दुख भी कर लो कम

जिंदगी जीने के लिए ही तो है

तुम मुरदों के नहीं

जिंदा इंसानों के शहर में रहते हो

इसीलिए भावनाओं में प्राण दो

और इंसानियत को बल दो

किसी का गम अपनाओ

किसी की खुशियां बन जाओ

क्योंकि हम जिंदा हैं

और जिंदगी हमीं से है.

                 - अर्चना भारद्वाज

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