नश्तर चुभाचुभा के मेरी जान ली गई
कर के इक साजिश मेरी पहचान ली गई
वो सच का फरिश्ता मुसकराता था बहुत
इसी के चलते उस की मुसकान ली गई
सचाई उस की बन गई आंख की किरकिरी
तभी तो उस को उड़ाने की ठान ली गई
उस की मदद को आया कोई न सामने
उस पर हरेक बंदूक तान दी गई
जीवन के सफर में रहा वह प्यासा सदा
मौत से पहले मंशा उस की मान ली गई.
– हरीश कुमार ‘अमित’
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