उम्र के 45 साल भी पूरे नहीं हुए कि मैं ब्लडप्रैशर, शुगर की दयादृष्टि का पात्र बन गया. लाख काबू पाने की कोशिश करता हूं मगर ब्याहता बीवी की तरह ये मेरा साथ छोड़ने को तैयार ही नहीं. उस पर लोगों की नसीहतें और परहेज, डाक्टर की दवाएं, इन सब ने मिल कर मुझे ज्यादा बीमार बना दिया.

पत्नी एक आदर्श ब्याहता का फर्ज निभाती, उन सब नसीहतों का पालन करती, बल्कि मुझ से जबरन पालन करवाती. करेले का जूस, करेले की सब्जी, सोयाबीन, इन सब को झेलझेल कर मेरी खानेपीने की इच्छाशक्ति ही लुप्त हो रही थी, इस पर मेरे वजन को ले कर डाक्टर ने मुझे घूमनेफिरने की हिदायत दे डाली. चैन की नींद जो आज तक नसीब होती थी, उस के भी अब लुप्त होने की आशंका थी.

‘‘अरे-रे...अब तो बख्शो मुझ गरीब को,’’ मैं विचारों में खोया था कि देखा पत्नी फिर से नाश्ते में करेले की सब्जी, मेथी की रोटी मेरे सामने ले आई.

‘‘क्यों जी, क्या बुराई है इन सब में? क्या पकड़े ही रखोगे मेरी इन सौतनों को,’’ वह दवा की शीशी हाथ में नचाते हुए बोली.

तभी मेरा बेटा जिम में पसीना बहा कर मेरे कमरे में आया. मां के सुर में सुर मिलाने की कमी थी शायद.

‘‘डैडी, मम्मी ठीक कहती हैं, मेरे दोस्तों के फादर आप से भी ज्यादा उम्र के हैं, मगर फिटनैस के मामले में जवानों को भी पछाड़ते हैं.’’

‘‘बेटा, तू कल से जिम छोड़, अपने डैडी को मौर्निंग वाक पर ले जाया कर. वैसे भी डाक्टर बता रहे थे कि सुबहशाम की सैर इन के लिए अच्छी है,’’ पत्नी ने अपनी शुभ राय अपने होनहार बेटे को देते हुए कहा.

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