मैं बिक्री कर विभाग में अपीलीय अधिकारी था. स्टेनो के रूप में जो महिला कर्मचारी मिलीं, उन का नाम मीरा था. मीराजी शौर्टहैंड भी जानती थीं और टाइपिंग भी. आखिरकार विभाग में स्टेनो के पद पर थीं. यह दूसरी बात है कि या तो वे कहीं खोई रहती थीं या उन की शौर्टहैंड और टाइपिंग की आपस में बनती नहीं थी. यह भी हो सकता है कि ‘लिखें आप और समझें ऊपरवाला’ की तर्ज पर उन की ‘शौर्टहैंड’ ढली हो. कुछ भी हो, अर्थ का अनर्थ करने या फिर सस्पैंस पैदा कर देने, जिस में डिक्टेशन देने वाला बड़ी देर तक यह सोचता, खोजता, अनुमान लगाता रह जाए कि आखिर उस ने कहा क्या था, में माहिर थीं मीराजी. कुछ खास मौकों पर तो उन की बानगी देखने लायक है. आप भी मुलाहिजा फरमाइए :

मशीनरी पार्ट के निर्माता व्यापारी के संबंध में मेरे द्वारा डिक्टेशन दिया गया था. उस में एक वाक्य था, ‘स्वत: निर्मित मशीनरी पार्ट्स के व्यापार में वृद्धि है.’ लेकिन टंकित हो कर आया, ‘स्वत: गिरमिट मशीनरी पार्ट्स के व्यापार में बुद्धि है.’ गनीमत है गिरमिट के बजाय गिरगिट नहीं छपा.

किसी प्रकरण में हाईकोर्ट में की गई बहस का हवाला था. मेरे डिक्टेशन में था, ‘याची ने हाईकोर्ट में कहा…’ छप कर आया ‘चाची ने हाईकोर्ट में कहा.’ शायद, इन की चाची वकील हों.

किसी केस में व्यापारी ने अपने किसी कर्मचारी के लिए कहा था कि उक्त कर्मचारी को व्यापारविरोधी गतिविधियों के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था. यही बात मैं ने लिखाई भी थी. पर धन्य हों मीराजी. टंकण में यह हो गया ‘उक्त कर्मचारी को परिवार नियोजी गतिविधियों के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था.’ फैमिली प्लानिंग डिपार्टमैंट वालों को पता चल जाए तो व्यापारी की तो शामत ही आई समझिए, कि किसी बेचारे कर्मचारी को परिवार नियोजी गतिविधियों के कारण नौकरी से ही हाथ धोना पड़ा.

मेरा डिक्टेशन था, ‘आलोच्य वर्ष में व्यापारी को लाभ हुआ है.’ छपा था, ‘आलूचिप्स में व्यापारी को लाभ हुआ है.’ मैं देर तक हैरान हो कर फाइल उलटपलट कर देखता रहा कि मैं ने आलूचिप्स का व्यापार कहां नोट किया था, व्यापारी तो स्टेशनरी का था.

एक मामले में याची मुसलिम महिला थी. नाम था ‘शमाना वहाब’. पर मीराजी की कृपा से नाम छपा था ‘सामना बहाव’. ऐसा लगता है कि मीराजी के घर में या महल्ले में सीवर की कोई समस्या जोर पकड़े थी. इसी प्रकार एक मामले में मैं ने लिखवाया था कि ‘दो साझीदार परदानशीन महिलाएं हैं. वहां छपा था ‘दो साझीदार परदानसीब महिलाएं हैं.’ जाहिर सी बात है, हमारी मीराजी को परदानशीन महिलाओं से बहुत हमदर्दी थी और कहीं न कहीं वे उन का दोष न पा कर उन के नसीब को मन ही मन कोसती रह जाती थीं. विभाग में रेलवे स्टेशन के बाहर चैकिंग स्क्वायड की तैनाती के लिए मुझे योजना बना कर देनी थी. मेरे डिक्टेशन में कहीं पर आया था, ‘विभागीय अधिकारी के लिए रेलवे स्टेशन की प्रिमाइस में एक कक्ष का निर्माण कराना आवश्यक होगा.’ पर मीराजी का हृदय शायद विभाग से बेहद जलाभुना बैठा था, सो टाइप हुआ, ‘विभागीय अधिकारी के लिए रेलवे स्टेशन की प्रिमाइस पर एक कब्र का निर्माण आवश्यक होगा.’

और तो और, मेरे एक डिक्टेशन में था, ‘व्यापारी ने इस वर्ष ‘हार्ड कोक’ नहीं बेचा है.’ पर यह हो गया, ‘व्यापारी ने इस वर्ष हाईकोर्ट नहीं बेचा है.’ वाह रे व्यापारी, हर वर्ष एक न एक हाईकोर्ट ही बेचता रहता है, जैसे इस की बपौती हो. जब हाईकोर्ट ही बिकाऊ हो गया तो देश की न्याय व्यवस्था का तो कोई ऊपरवाला ही मालिक है. यही है मीराजी का न्याय…  

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...