मेरे एक दोस्त हैं जो हमेशा अमीर बनने के सपने देखते रहते हैं. जब भी उन के पास जाओ, बस, रुपयों की बातें करते रहते हैं- ‘काश, मैं धनवान होता तो यह करता, वो करता, फिल्में बनाता, पुस्तकें छापता, अवार्ड देता, गीतसंध्या करवाता.’ ऐसे अनर्गलप्रलाप करते रहते थे. उन की बकबक से मैं बहुत परेशान था. लेकिन इस के पहले मैं आगे कुछ कहूं, पहले एक कंजूस बुढि़या की कहानी बताना चाहता हूं- एक गांव में एक कंजूस बुढि़या रहती थी. वह पूरे गांव में अपनी कंजूसी को ले कर प्रसिद्घ थी. एक सर्दरात में एक भटका हुआ मुसाफिर उस रास्ते से निकला. उसे आश्रय चाहिए था. उस ने बुढि़या का दरवाजा खटखटाया. बुढि़या ने दरवाजा खोला तो उस मुसाफिर ने रात में घर पर रुकने की अपील की. बुढि़या ने कहा, ‘रुकने को तुम रुक जाओ लेकिन खाने को कुछ भी नहीं दूंगी, मेरे पास कुछ भी नहीं है.’
मुसाफिर चालाक था और भूखा भी. उस ने घर में प्रवेश किया और आराम से बैठने के बाद कहा, ‘अम्माजी, आप ने कभी कुल्हाड़ी की खीर खाई है?’ ‘कुल्हाड़ी की खीर?’ बुढि़या ने आश्चर्य से पूछा और फिर कहा, ‘लेकिन मेरे पास खीर बनाने का कोई सामान नहीं है.’
‘कुल्हाड़ी की खीर में केवल कुल्हाड़ी की जरूरत होती है और वह भी खीर पक जाने के बाद कुल्हाड़ी वैसी ही बची रह जाती है,’ उस मुसाफिर ने कहा.
‘उस के लिए क्या चाहिए?’
‘एक कुल्हाड़ी.’
‘वह तो मेरे पास है.’
‘जरा ले आइए,’ मुसाफिर ने कहा. तुरंत ही बुढि़या ने कुल्हाड़ी ला कर दे दी. मुसाफिर ने उस में से हत्था (लकड़ी) निकाल दिया और उस कुल्हाड़ी को पानी से धो दिया और एक बरतन में डाल कर उस में पानी डाल दिया और चूल्हे पर उसे रख दिया. बुढि़या बहुत आश्चर्य से देखने लगी. पानी चूल्हे पर खौलने लगा तो उस मुसाफिर ने उसे फिर हिलाया और बुढि़या से कहा, ‘अगर इस कुल्हाड़ी की खीर में थोड़ी शक्कर डाल दें तो बहुत ही स्वादिष्ठ खीर बनती है.’
बुढि़या उठी, उस ने शक्कर दे दी. मुसाफिर खौलते पानी में शक्कर डाल कर फिर हिलाने लगा. फिर उस ने कुछ देर बाद कहा, ‘अगर इस में थोड़े से चावल डल जाएं तो फिर देखो, इस कुल्हाड़ी की खीर का स्वाद.’
‘चावल है मेरे पास,’ उस बुढि़या ने कहा और चावल ला कर दे दिए. मुसाफिर ने उसे भी पानी में डाल कर घोंटना शुरू कर दिया. बुढि़या बहुत आश्चर्य से देख रही थी. थोड़ी देर बाद मुसाफिर ने कहा, ‘हमारी खीर लगभग तैयार होने को है, अगर इसे और भी स्वादिष्ठ बनाना हो तो इस में जरा सा दूध डाल दो, फिर देखो, इस का स्वाद.’
‘दूध है ना,’ बुढि़या ने खुशीखुशी कहा और तुरंत ढेर सा दूध ला कर मुसाफिर को दे दिया. उसे भी उस ने बरतन में डाल दिया और लगा हिलाने. बुढि़या ने प्रश्न किया, ‘कब तक पक जाएगी?’
‘बस, पकने ही वाली है,’ मुसाफिर ने कहा. बुढि़या अंदर गई और 2 खाली प्लेट ले कर आ गई. मुसाफिर ने बरतन में से वह लोहे की कुल्हाड़ी निकाल कर बाहर रखी और बुढि़या से कहा, ‘देखो, पूरी तरह से कुल्हाड़ी सुरक्षित है.’
बुढि़या ने कुल्हाड़ी देखी और संतोष किया. मुसाफिर ने प्लेट में खीर डाली, खुद खाई और बुढि़या को भी खिलाई. बुढि़या बहुत खुश थी कि उस की लोहे की कुल्हाड़ी भी सुरक्षित थी और खीर भी खाने को मुफ्त में मिली.
मुसाफिर अपनी चालाकी से भरपेट खीर खा कर कंजूस बुढि़या को मूर्ख बना कर खुश हुआ. दोस्तो, इस कहानी को याद रखिएगा. मैं अपने दोस्त की बात कर रहा था जो अमीर बनना चाह रहा था.
एक दिन एक अनजान स्थान से उस के पास फोन आया कि उस की लौटरी लग गई है और प्रोसैसिंग में 30 हजार रुपए लग रहे हैं. वह खुशीखुशी मुझे बताने आया. मैं ने कहा, ‘अगर विश्वास हो, तो दे दो.’
‘पूरे 5 लाख रुपए मिलेंगे,’ लालच में डूबी उस की आंखें डोल रही थीं.
‘तो भेज दो,’ मैं ने कहा. उस दोस्त ने बताए नंबर पर रुपया भेज दिया. एक सप्ताह बाद उसे मेल आया और मोबाइल कौल भी कि गलती से 5 लाख रुपए लिख दिया था, वास्तव में वह संख्या 50 लाख रुपए है. इस के लिए प्रोसैसिंग फीस 4 लाख रुपए हैं. वह दौड़ादौड़ा मेरे पास आया.
मैं ने उसे समझाया, लेकिन वह नहीं माना. मुझ से उस ने 1 लाख रुपए उधार लिए और बतलाए हुए खाते में रुपए डलवा दिए. एक सप्ताह बाद वहां से थैंक्स का एक पत्र मिला और उसे बताया गया, ‘भारतीय रिजर्व बैंक में कागजी कार्यवाही हो रही है, जल्दी ही आप के अकाउंट में पूरे 50 लाख रुपए डाल दिए जाएंगे.’
वह बहुत खुश था. इस मध्य उस ने पूरे एक वर्ष की प्लानिंग तैयार कर ली कि इतने रुपयों का क्याक्या करना है? अवार्ड, गीतसंध्या, फिल्मी नाइट, एक कम बजट की फिल्म का निर्माण जैसे कई काम खोज और सोच लिए थे ताकि रुपयों का सदुपयोग हो सके. एक सप्ताह बाद फिर मैसेज मोबाइल पर आया कि यूरो के भाव बढ़ जाने से भारतीय मुद्रा में यह राशि 1 करोड़ रुपए के लगभग होगी, इस के लिए अतिरिक्त रुपए शीघ्र भेजें अन्यथा ये रुपए डूब जाएंगे.
मरता क्या न करता? बीवी के जेवर गिरवी रखे और फिर मुझ से 1 लाख रुपए की भीख मांगी. रुपया मिलते ही चुकाने का पक्का वादा किया और फिर
4 लाख रुपयों को बताए बैंक खाते में डलवा दिया. उस के बाद दोस्त प्रतीक्षा और प्रतीक्षा-इंतजार और इंतजार ही करता रहा. पूरे 2 माह बाद उसे पता चला कि वह ठगी का शिकार हो चुका है.वह बहुत दुखी हुआ, जो उधारी थी वह चुकानी तो थी ही. वह परेशानी में मेरे घर आया, बहुत रोया और भविष्य में ऐसी दोबारा गलती न करने की बात कही. अधिक लालच के चक्कर में जो पूंजी थी वह भी डूब गई और कुल्हाड़ी की खीर उसे खानी प ड़ी.
बात यहीं समाप्त नहीं हुई. वह बहुत अधिक परेशान था और कह रहा था कि अब कभी ऐसे सपने नहीं देखूंगा जिस का रास्ता शौर्टकट हो. तब हम ने उस से कहा, ‘हम कल उस के घर पर आ रहे हैं.’ अगले दिन हम उस के घर गए और उसे एक लिफाफा देते हुए कहा, ‘दोस्त, यह सबकुछ तुम्हारी आंखें खोलने को किया था.’
‘और वह बैंक अकाउंट…?’ दोस्त ने आश्चर्य से प्रश्न किया.
‘दिल्ली में हमारे एक दोस्त का था, वही तुम्हें मेल भेज रहा था, फोन कर रहा था.’ हम ने बताया तो दोस्त ने हमें गले लगाया. हम ने उस से कहा, ‘सपनों को सच करने का या सफलता का कोई शौर्टकट नहीं होता है. बड़े लालच के चलते जो छोटी पूंजी होती है वह भी खत्म हो जाती है.’
हमारे भावपूर्ण उपदेशों को सुन कर वह गदगद हो गया. तब से उस ने फालतू धनवान बनने के सपनों को देखना बंद कर दिया. हम खुश थे कि हमारी रकम लौट आई थी और हमारा दोस्त सही रास्ते पर आ गया था, जो हम चाहते थे.