मैं सोच रही थी कि इतना सुनते ही श्रीमती सान्याल पानी से भरे पात्र सी छलक उठेंगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. वह सहज भाव में बोलीं, ‘विभू के विवाह से पहले मैं घर में बहुत बोर होती थी इसीलिए घर से बाहर निकल जाती थी या फिर किसी को बुला लेती थी. अब दिन का समय घर के छोटेबड़े काम निबटाने में ही निकल जाता है. शाम का समय तो बेटे और बहू के साथ कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.’
संतुष्ट, संतप्त, मिसेज सान्याल मेरे हाथ में एक पत्रिका थमा कर खुद रसोई में चाय बनाने के लिए चली गईं.
चाय की चुस्की लेते हुए मैं ने फिर कुरेदा, ‘काफी दुबली हो गई हो. लगता है, काम का बोझ बढ़ गया है.’
‘आजकल मानसी मुझे अपने साथ जिम ले जाती है’, और ठठा कर वह हंस दीं, ‘उसे स्मार्ट सास चाहिए,’ फिर थोड़े गंभीर स्वर में बोलीं, ‘इस उम्र में वजन कम रहे तो इनसान कई बीमारियों से बच जाता है. देखो, कैसी स्वस्थ, चुस्तदुरुस्त लग रही हूं?’
कुछ देर तक गपशप का सिलसिला चलता रहा फिर मैं ने उन से विदा ली और घर लौट आई.
लगभग एक हफ्ते बाद फोन की घंटी बजी. श्रीमती सान्याल थीं दूसरी तरफ. हैरानपरेशान सी वह बोलीं, ‘मानसी का उलटियां कर के बुरा हाल हो रहा है. समझ में नहीं आता क्या करूं?’
‘क्या फूड पायजनिंग हो गई है?’
‘अरे नहीं, खुशखबरी है. मैं दादी बनने वाली हूं. मैं ने तो यह पूछने के लिए तुम्हें फोन किया था कि तुम ने ऐसे समय में अपनी बहू की देखभाल कैसे की थी, वह सब बता और जो भूल गई हो उसे याद करने की कोशिश कर. तब तक मैं अपनी कुछ और सहेलियों को फोन कर लेती हूं.’