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मम्मी के एक सहयोगी के बेटे की बरात में हम शामिल हुए तो पहले मेरी मुलाकात शिखा से हुई थी. मेरी तरह उसे भी नाचने का शौक था. हम दोनों दूल्हे के बाकी रिश्तेदारों को नहीं जानते थे, इसलिए हमारे बीच जल्दी ही अच्छी दोस्ती हो गई थी.

खाना खाते हुए शिखा ने अपने पापा राकेशजी से मेरा परिचय कराया था. उस पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपने हंसमुख स्वभाव के कारण मुझे बहुत प्रभावित किया था. जब शिखा और मेरे साथ उन्होंने बढि़या डांस किया तो हमारे बीच उम्र का अंतर और भी कम हो गया, ऐसा मुझे लगा था.

शिखा से मेरी मुलाकात रोज ही होने लगी क्योंकि हमारे घर पासपास थे. अकसर वह मुझे अपने घर बुला लेती. जब तक मेरे लौटने का समय होता तब तक उस के पापा को आफिस से आए घंटा भर हो चुका होता था.

उन के साथ गपशप करने का मुझे इंतजार रहने लगा था. वह मेरा बहुत ध्यान रखते थे. हर बार मेरी मनपसंद खाने की कोई न कोई चीज वह मुझे जरूर खिलाते. उन के साथ हंसतेबोलते घंटे भर का समय निकल जाने का पता ही नहीं लगता था.

फिर उन्होंने मुझे घर तक छोड़ आने की जिम्मेदारी ले ली तो हम आधा घंटा और साथ रहने लगे. इस आधे घंटे के समय में उन्होंने मेरी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ जान लिया था.

जब पापा की सड़क दुर्घटना में 6 साल पहले मौत हुई थी तब मैं 14 साल की थी. मम्मी तो बुरी तरह से टूट गई थीं. उन्हें रातदिन रोते देख कर मैं कभीकभी इतनी ज्यादा दुखी और उदास हो जाती कि मन में आत्महत्या करने का विचार पैदा हो जाता. उस वक्त के बाद से मैं ने भगवान को मानना ही छोड़ दिया है.

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