लेखक-राम बजाज

बाबूजी का असली नाम नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव था. वे इलाहाबाद बैंक के बैंक प्रबंधक पद से रिटायर हुए थे. रिटायर होने से पहले वे गीता प्रैस रोड, गांधी नगर, गोरखपुर में बैंक के मुख्यालय में थे. उन्हें ‘बाबूजी’ का उपनाम तब मिला जब वे अल्फांसो रोड पर बैंक में शुरूशुरू में टेलर (क्लर्क) थे. हालांकि उन के पास बीकौम प्रथम श्रेणी की डिग्री थी लेकिन उन्हें एक उपयुक्त नौकरी नहीं मिली और उन्हें टेलर की नौकरी के लिए समझौता करना पड़ा. वे अपने ग्राहकों, सहकर्मियों और अपने वरिष्ठों व मालिकों के साथ सम्मान व मुसकराहट के साथ व्यवहार करते थे. नौकरी से वे खुश थे.

ग्राहक उन के अच्छे स्वभाव व हास्य के कारण उन्हें बाबूजी कहने लगे. बाबूजी को उन का प्यार पसंद आया और उन्हें इस उपनाम से कोई आपत्ति न थी और इस का आनंद लेना शुरू कर दिया क्योंकि इस में प्यार, स्नेह और आशीर्वाद सभी एकसाथ विलीन थे. तो, नरेंद्र ‘बाबूजी’ बन गए. नरेंद्र चूंकि बहुत महत्त्वाकांक्षी और उज्ज्वल व्यक्ति थे, अपने कैरियर में चमकना चाहते थे, इसलिए जब वे काम कर रहे थे, रात्रि कक्षाएं लीं और प्रथम श्रेणी के साथ एमकौम पास किया.

जल्द ही उन का परिवार बढ़ गया, और उन्हें जुड़वां बेटों का आशीर्वाद मिला, जिन के नाम भार्गव और राघव थे. भार्गव राघव से लगभग 2 मिनट बड़ा था और दोनों के बीच जो बंधन था, वह असाधारण था- राघव हमेशा अपने भाई का सम्मान करता था और अपने भाई को बड़े भाई के रूप में संदर्भित करता था. आखिरकार, वे बड़े हुए. अच्छी तरह से शिक्षित हुए. शादी हुई और उन के परिवार में दोदो बच्चे थे, एकएक लड़का और एकएक लड़की. परंतु, घर के दूसरे परिवारों से उन्हें दूर जाना पड़ा.

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