विक्रम से शादी कर दीपिका ससुराल आई तो खुशी से झूम उठी. यहां उस का इतना भव्य स्वागत होगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.
सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ससुराल में रस्में चलती रहीं. इस के बाद वह कमरे में आराम करने लगी. शाम करीब 4 बजे कमरे में विक्रम आया और दीपिका से बोला, ‘‘मेरा एक दोस्त बहुत दिनों से कैंसर से जूझ रहा था. उस के घर वालों ने फोन पर अभी मुझे बताया है कि उस का देहांत हो गया है. इसलिए मुझे उस के घर जाना होगा.’’
दीपिका का ससुराल में पहला दिन था, इसलिए उस ने पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन विक्रम उसे यह समझा कर चला गया, ‘‘तुम चिंता मत करो, देर रात तक वापस आ जाऊंगा.’’
विक्रम के जाने के बाद उस की छोटी बहन शिखा दीपिका के पास आ गई और उस से कई घंटे तक इधरउधर की बातें करती रही. रात के 9 बजे दीपिका को खाना खिलाने के बाद शिखा उस से यह कह कर चली गई कि भाभी अब थोड़ी देर सो लीजिए. भैया आ जाएंगे तो फिर आप सो नहीं पाएंगी.
ननद शिखा के जाने के बाद दीपिका अपने सुखद भविष्य की कल्पना करतेकरते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला.
दीपिका अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. उस से 3 साल छोटा उस का भाई शेखर था. वह 12वीं कक्षा में पढ़ता था. पिता की कपड़े की दुकान थी.
ग्रैजुएशन के बाद दीपिका ने नौकरी की तैयारी की तो 10 महीने बाद ही एक बैंक में उस की नौकरी लग गई थी.
2 साल नौकरी करने के बाद पिता ने विक्रम नाम के युवक से उस की शादी कर दी. विक्रम की 3 साल पहले ही रेलवे में नौकरी लगी थी. उस के पिता रिटायर्ड शिक्षक थे और मां हाउसवाइफ थीं.
विक्रम से 3 साल छोटा उस का भाई तुषार था, जो 10वीं तक पढ़ने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था. तुषार से 4 साल छोटी शिखा थी, जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी.
पति के जाने के कुछ देर बाद दीपिका गहरी नींद सो रही थी, तभी ननद शिखा उस के कमरे में आई. उस ने दीपिका को झकझोर कर उठाया. शिखा रो रही थी. रोतेरोते ही वह बोली, ‘‘भाभी, अनर्थ हो गया. विक्रम भैया दोस्त के घर से लौट कर आ रहे थे कि रास्ते में उन की बाइक ट्रक से टकरा गई. घटनास्थल पर उन की मृत्यु हो गई. पापा को थोड़ी देर पहले ही पुलिस से सूचना मिली है.’’
यह खबर सुनते ही दीपिका के होश उड़ गए. उस समय रात के 2 बज रहे थे. क्या से क्या हो गया था. पति की मौत का दीपिका को ऐसा गम हुआ कि वह उसी समय बेहोश हो गई.
कुछ देर बाद उसे होश आया तो अपने आप को उस ने घर के लोगों से घिरा पाया. पड़ोस के लोग भी थे. सभी उस के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. कोई डायन कह रहा था, कोई अभागन तो कोई उस का पूर्वजन्म का पाप बता रहा था.
रोने के सिवाय दीपिका कर ही क्या सकती थी. कुछ घंटे पहले वह सुहागिन थी और कुछ देर में ही विधवा हो गई थी. खबर पा कर दीपिका के पिता भी वहां पहुंच गए थे.
अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने विक्रम का शव घर वालों को सौंप दिया था. तेरहवीं के बाद दीपिका मायके जाने की तैयारी कर रही थी कि अचानक सिर चकराया और वह फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. ससुराल वालों ने उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया. मेहमान भी वहां आ गए.
डाक्टर को बुलाया गया. चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि दीपिका 2 महीने की प्रैग्नेंट है. पर वह बेहोश कमजोरी के कारण हुई थी.
2 सप्ताह पहले ही तो दीपिका बहू बन कर इस घर में आई थी तो 2 महीने की प्रैग्नेंट कैसे हो गई. सोच कर सभी लोग परेशान थे. दीपिका के पिता भी वहीं थे. वह सकते में आ गए.
दीपिका को होश आया तो सास दहाड़ उठी, ‘‘बता, तेरे पेट में किस का पाप है? जब तू पहले से इधरउधर मुंह मारती फिर रही थी तो मेरे बेटे से शादी क्यों की?’’
दीपिका कुछ न बोली. पर उसे याद आया कि रोका के 2 दिन बाद ही विक्रम ने उसे फोन कर के मिलने के लिए कहा था. उस ने विक्रम से मिलने के लिए मना करते हुए कहा, ‘‘मेरे खानदान की परंपरा है कि रोका के बाद लड़की अपने होने वाले दूल्हे से शादी के दिन ही मिल सकती है. मां ने आप से मिलने से मना कर रखा है.’’
विक्रम ने उस की बात नहीं मानी थी. वह हर हाल में उस से मिलने की जिद कर रहा था. तो वह उस से मिलने के लिए राजी हो गई.
शाम को छुट्टी हुई तो दीपिका ने मां को फोन कर के झूठ बोल दिया कि आज औफिस में बहुत काम है. रात के 8 बजे के बाद ही घर आ पाऊंगी. फिर वह उस से मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में चली गई.
उस दिन के बाद भी उन के मिलनेजुलने का कार्यक्रम चलता रहा. विक्रम अपनी कसम देदे कर उसे मिलने के लिए मजबूर कर देता था. वह इतना अवश्य ध्यान रखती थी कि घर वालों को यह भनक न लगे.
एक दिन विक्रम उसे बहलाफुसला कर एक होटल में ले गया. कमरे का दरवाजा बंद कर उसे बांहों में भरा तो वह उस का इरादा समझ गई.
दीपिका ने शादी से पहले सीमा लांघने से मना किया लेकिन विक्रम नहीं माना. मजबूर हो कर उस ने आत्मसमर्पण कर दिया.
गलती का परिणाम अगले महीने ही आ गया. जांच करने पर पता चला कि वह प्रैग्नेंट हो गई है. विक्रम का अंश उस की कोख में आ चुका था. वह घबरा गई और उस ने विक्रम से जल्दी शादी करने की बात कही.
‘‘देखो दीपिका, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बैंक्वेट हाल, बैंड वाले, बग्गी आदि सब कुछ तय हो चुके हैं. एक महीना ही तो बचा है. घर वालों को सच्चाई बता दूंगा तो तुम ही बदनाम होगी. तुम चिंता मत करो. शादी के बाद मैं सब संभाल लूंगा.’’
जब सास उसे तरहतरह के ताने देने लगी तो दीपिका ने आखिर चुप्पी तोड़ दी. उस ने सभी के सामने सच्चाई बता दी. पर उस का सच किसी ने स्वीकार नहीं किया. सभी ने उस की कहानी मनगढ़ंत बताई.
आखिर अपने सिर बदचलनी का इलजाम ले कर दीपिका मातापिता के साथ मायके आ गई.
वह समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करे. भविष्य अंधकारमय लग रहा था. होने वाले बच्चे की चिंता उसे अधिक सता रही थी.
5 दिन बाद दीपिका जब कुछ सामान्य हुई तो मां ने उसे समझाते हुए गर्भपात करा कर दूसरी शादी करने की सलाह दी.
कुछ सोच कर दीपिका बोली, ‘‘मम्मी, गलती मैं ने की है तो बच्चे को सजा क्यों दूं. मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी. उस के बाद ही भविष्य की चिंता करूंगी.’’
दीपिका को ससुराल आए 20 दिन हो चुके थे तो अचानक तुषार आया. वह बोला, ‘‘मुझे विश्वास है कि तुम बदचलन नहीं हो. तुम्हारे पेट में मेरे भाई का ही अंश है.’’
‘‘जब तुम यह बात समझ रहे थे तो उस दिन अपना मुंह क्यों बंद कर लिया था, जब सभी मुझे बदचलन बता रहे थे?’’ दीपिका ने गुस्से में कहा.
‘‘उस दिन मैं तुम्हारे भविष्य को ले कर चिंतित हो गया था. फिर यह फैसला नहीं कर पाया था कि क्या करना चाहिए.’’ तुषार बोला.
दीपिका अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली, ‘‘अब क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम से शादी कर के तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूं. तुम्हारे होने वाले बच्चे को अपना नाम देना चाहता हूं. इस के लिए मैं ने मम्मीपापा को राजी कर लिया है.’’
औफिस और मोहल्ले में वह बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी. सभी उसे दुष्चरित्र समझते थे. ऐसी स्थिति में आसानी से किसी दूसरी जगह उस की शादी होने वाली नहीं थी, इसलिए आत्ममंथन के बाद वह उस से शादी के लिए तैयार हो गई.
दीपिका बच्चे की डिलीवरी के बाद शादी करना चाहती थी, लेकिन तुषार ने कहा कि वह डिलीवरी से पहले शादी कर के बच्चे को अपना नाम देना चाहता है. ऐसा ही हुआ. डिलीवरी से पहले उन दोनों की शादी हो गई.
जिस घर से दीपिका बेइज्जत हो कर निकली थी, उसी घर में पूरे सम्मान से तुषार के कारण लौट आई थी. फलस्वरूप दीपिका ने तुषार को दिल में बसा कर प्यार से नहला दिया और पलकों पर बिठा लिया.
तुषार भी उस का पूरा खयाल रखता था. घर का कोई काम उसे नहीं करने देता था. काम के लिए उस ने नौकरी रख दी थी.
तुषार का भरपूर प्यार पा कर दीपिका इतनी गदगद थी कि उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.
डिलीवरी का समय हुआ तो बातोंबातों में तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘तुम अपने बैंक की डिटेल्स दे दो. डिलीवरी के समय अगर मेरे एकाउंट में रुपए कम पड़ जाएंगे तो तुम्हारे एकाउंट से ले लूंगा.’’
दीपिका को उस की बात अच्छी लगी. बैंक की पासबुक, डेबिट कार्ड और ब्लैंक चैक्स पर दस्तखत कर के पूरी की पूरी चैकबुक उसे दे दी.
नौरमल डिलीवरी से बेटा हुआ तो उस का नाम गौरांग रखा गया. 6 महीने बाद तुषार ने हनीमून पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया तो दीपिका ने मना नहीं किया.
वहां से लौट कर आई तो बहुत खुश थी. तुषार का अथाह प्यार पा कर वह विक्रम को भूल गई थी.
गौरांग एक साल का हो गया था. फिर भी दीपिका ने तुषार से डेबिट कार्ड और दस्तखत किए हुए चैक्स वापस नहीं लिए थे. इस की कभी जरूरत महसूस नहीं की थी. तुषार ने उस के अंधकारमय जीवन को रोशनी से नहला दिया था. ऐसे में भला वह उस पर अविश्वास कैसे कर सकती थी.
जरूरत तब पड़ी, जब एक दिन दीपिका के पिता को बिजनैस में कुछ नुकसान हुआ और उन्होंने उस से 3 लाख रुपए मांगे. तब दीपिका ने पिता का एकाउंट नंबर तुषार को देते हुए कहा, ‘‘तुषार, मेरे एकाउंट से पापा के एकाउंट में 3 लाख रुपए ट्रांसफर कर देना.’’
इतना सुनते ही तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे एकाउंट में रुपए हैं कहां. मुश्किल से 2-4 सौ रुपए होंगे.’’
दीपिका को झटका लगा. क्योंकि उस के एकाउंट में तो 12 लाख रुपए से अधिक थे. आखिर वे पैसे गए कहां.
उस ने तुषार से पूछा, ‘‘मेरे एकाउंट में उस समय 12 लाख रुपए से अधिक थे. इस के अलावा हर महीने 40 हजार रुपए सैलरी के भी आ रहे थे. सारे के सारे पैसे कहां खर्च हो गए?’’
तुषार झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कुछ तुम्हारी डिलीवरी में खर्च हुए, कुछ हनीमून पर खर्च हो गए. बाकी रुपए घर की जरूरतों पर खर्च हो गए. तुम्हारे पैसों से ही तो घर चल रहा है. मेरी सैलरी और पापा की पेंशन के पैसे तो शिखा की शादी के लिए जमा हो रहे हैं.’’
तुषार का जवाब सुन कर दीपिका खामोश हो गई. पर उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ कहीं कुछ न कुछ गलत हो रहा है.
डिलीवरी के समय उसे छोटे से नर्सिंगहोम में दाखिल किया गया था. उस का बिल मात्र 30 हजार रुपए आया था. हनीमून पर भी अधिक खर्च नहीं हुआ था. जिस होटल में ठहरे थे, वह बिलकुल साधारण सा था. उन का खानापीना भी सामान्य हुआ था.
जो होना था, वह हो चुका था. उस पर बहस करती तो रिश्ते में खटास आ जाती. लिहाजा उस ने भविष्य में सावधान रहने की ठान ली.
तुषार से अपनी बैंक पास बुक, चैकबुक और डेबिट कार्ड ले कर उस ने कह दिया कि वह घर खर्च के लिए महीने में सिर्फ 10 हजार रुपए देगी. सैलरी के बाकी पैसे गौरांग के भविष्य के लिए जमा करेगी और शिखा की शादी में 2 लाख रुपए दे देगी.
दीपिका के निर्णय से तुषार को दुख हुआ, लेकिन वह उस समय कुछ बोला नहीं.
अगले दिन ही दीपिका ने बैंक से ओवरड्राफ्ट के जरिए पैसे ले कर अपने पिता को दे दिए. पर उन्हें यह नहीं बताया कि तुषार ने उस के सारे रुपए खर्च कर दिए हैं.
कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा. उस के बाद अचानक तुषार ने उस से कहा, ‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’
‘‘क्यों?’’ दीपिका ने पूछा.
‘‘बिजनैस करना चाहता हूं. इस के लिए तैयारी कर ली है, पर तुम्हारी मदद के बिना नहीं कर सकता.’’
‘‘तुम्हारी मदद हर तरह से करूंगी. बताओ, मुझे क्या करना होगा?’’ दीपिका ने पूछा.
‘‘तुम्हें अपने नाम से 50 लाख रुपए का लोन बैंक से लेना है. उसी रुपए से बिजनैस करूंगा. मेरा कुछ इस तरह का बिजनैस होगा कि लोन 5 साल में चुकता हो जाएगा.’’
‘‘इतने रुपए का लोन मुझे नहीं मिलेगा. अभी नौकरी लगे 5 साल ही तो हुए हैं.’’
‘‘मैं ने पता कर लिया है. होम लोन मिल जाएगा.’’
‘‘होम लोन लोगे तो बिजनैस कैसे करोगे. इस लोन में फ्लैट या कोई मकान लेना ही होगा.’’ दीपिका ने बताया.
‘‘इस की चिंता तुम मत करो. मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है. तुम्हें सिर्फ होम लोन के पेपर्स पर दस्तखत कर बैंक में जमा करने हैं.’’
‘‘मैं कुछ समझी नहीं, तुम करना क्या चाहते हो. ठीक से बताओ.’’
तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता.
दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.
तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’
‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.
‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’
सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’
सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’
वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’
शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.
पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.
दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.
मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.
तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.
तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.
तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फइतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’
कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.
दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.
एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’
‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.
‘‘पर कैसे?’’
‘‘उस का कत्ल कर के.’’
उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’
‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’
‘‘कैसी योजना?’’
‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’
तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’
‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’
कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’
दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.
इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी.
दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.
फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया.
कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.
शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’
पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.